संयम के स्तर से जब गिरते हैँ
मुख से शब्दोँ के शर चलते हैं
तेरी धोती काली टोपी भी
जूते अक्सर फ़िकरे कसते हैं
मुख से शब्दोँ के शर चलते हैं
तेरी धोती काली टोपी भी
जूते अक्सर फ़िकरे कसते हैं
कितना ही इक दूजे को कोसेँ
दिल्ली में संग चारा चरते हैं
दिल्ली में संग चारा चरते हैं
भइया सुन सुन के थक चुके हैं
नेतागण कीचड़ में रहते हैं
नेतागण कीचड़ में रहते हैं
यूँ तो पुतलों में होती ना जान
पर पुतले मंत्री अब बनते हैं
ना स्नातक न बसाया घर जिस ने
पुतले उस के चमचे बनते हैं
टीकट के प्यासे पल दो पल में
प्यास बुझाने सोच बदलते हैं
कुमार अहमदाबादी
पर पुतले मंत्री अब बनते हैं
ना स्नातक न बसाया घर जिस ने
पुतले उस के चमचे बनते हैं
टीकट के प्यासे पल दो पल में
प्यास बुझाने सोच बदलते हैं
कुमार अहमदाबादी