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शुक्रवार, जून 28

विश्वकप विजय


टीम भारत संग अपने विश्वकप लाई थी
फ़ाइनल में पाक से वो जीत के आई थी

माही के धुरंधरोँ ने के खेल एसा खेला कि
जीतना है ये ललक मैचों में दिखलाई थी

काम अच्छा ओपनर ने फाईनल में किया
बॅट की गंभीर ने रन प्यास बुझाई थी

था नया रोहित पर स्ट्राइक थी
दुगनी उस की
गेंद को बल्ले से सीमा पार कराई थी

कैच कोई गर न हुआ बोल्ड उस को किया
आर पी की स्विंग ने दो बेल्स गिराई थी

क्रीज में वो जा सका ना बॅट पाकिस्तानी
गेंद सीधी स्टंप से रॉबिन ने टकराई थी

मध्य में इरफ़ान ने भी चोट एसी मारी
राह सीधी खान को तंबु की बतलाई थी

धीरे खो मिस्बाह ने भी शॉट एसा मारा
गेंद सीदी जीत बन के हाथ में आई थी

चालें सारी रंग लाई माही ने जो जो खेली
शान भारत की बढ़े एसी वो अगवाई थी

पाक के अरमान सारे चूर होते देखे
शारजाह के छक्के की खूब वो भरपाई थी
कुमार अहमदाबादी

गुस्सा


कुदरत जब गुस्सा करती है
गंगा तब लाशेँ बहती हैं
कुमार अहमदाबादी

माँ का क्रोध

 रंग लाया है आज वो बारूद
तुम ने जो मेरे सीने में उतारा था
प्रयोग जिस पे तुम ने किये औ...र
सहे जिस ने दिल वो हमारा था
क्या?! तुम जानते हो ये हकीकत
विस्फोट जो एक से एक करारा था
आग मेरे तन में उतरी थी जब
अपने विज्ञान को निखारा था
न जाने कितने घाव दिये उस
बेटे ने जो सब से दुलारा था
पर माँ हूँ ना कई बार किया
मैंने विनाश की ओर था
मगर हर बार हाँ आँ आँ हर बार
इतिहास को बेटे ने नकारा था
अब भुगतेगा बारंबार तबाही
सुनामी तो एक छोटा सा नजारा था
जैसी करनी वैसी भरनी
घाव बोने का काम तुम्हारा था
काटनी पड़ेगी वही फसल
जैसा खेत तुम ने सँवारा था
कुमार अहमदाबादी

बेटी री



[राजस्थानी रचना]
जात ने तू क्यों मिटावे बेटी री
कोख ने क्यों चिता बणावे बेटी री

बेटी लछमी बेटी सरसूती है तोइ
क्यों भलाई तू न चावे बेटी री

भार कऴी पर नोखे क्यों बेसुंबार
जोन जल्दी क्यों जिमावे बेटी री

बेटे बेटी ने बराबर मोने तो
मरजी री शादी कराये बेटी री

भोऴे ने अरदास कर तूं रोज आ
चूंदडी ना कोई लजावे बेटी री
कुमार अहमदाबादी

मैं, मैं नहीं हूँ

मैं, मै नहीं हूँ
क्योंकि,
मैं
सोनी हूँ महेश हूँ द्वेष हूँ
कवि हूँ लेखक हूँ निशेष हूँ..........

मैं
नागरिक हूँ भारतीय हूँ
गुजराती हूँ अहमदाबादी हूँ


मैं
राजस्थानी हूँ बीकानेरी हूँ
इंडियन हूँ एशियन हूँ

मैं
साहित्यकार हूँ कथाकार हूँ
वार्ताकार हूँ संगीतकार हूँ..........

मैं
पुत्र हूँ पिता हूँ पति हूँ
ससुर हूँ दादा हूँ नाना हूँ.......

मैं
दोस्त हूँ मित्र हूँ सखा हूँ
प्यार हूँ प्रणय हूँ परिणय़ हूँ

मैं
भाई हूँ जंवाइ हूँ वेवाई* हूँ
आर्य हूँ कार्य हूँ कर्ता हूँ

मैं ये सब तो हूँ पर इतना ही नहीं हूँ
और भी विस्तृत हूँ, जैसे जेठ, देवर हूँ

मैं वामन में विराट हूँ
पर मैं ये सब क्यों हूँ?
क्योंकि,
क्योंकि मैं इंसान हूँ
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कुमार अहमदाबादी

सच डरता नहीं (कहानी)

  सच डरता नहीं कौशल और विद्या दोनों बारहवीं कक्षा में पढते थे। दोनों एक ही कक्षा में भी थे। दोनों ही ब्रिलियन्ट स्टूडेंट थे, इसी वजह से दोनो...