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मंगलवार, सितंबर 3

स्तब्ध

स्तब्ध
भाव स्तब्ध हो गये
शब्द मौन हो गये
पीर छलकी नदी सी
बाँध गौण हो गये
कुमार अहमदाबादी

जुगनू

रोशन नजर से मार्ग को वो जगमगा गया
घनघोर वन में राह पथिक को बता गया
पागल सी झूमने लगी है ख्वाहिशें, इन्हें
दुल्हन नई नवेली लगे यूं सजा गया
कुमार अहमदाबादी

कोशिश?

लोग कहते हैं
कविता लिखता हूँ
पर मैं, मैं क्या करता हूँ?
शायद,
भावों की कश्ती में
सवार होकर
शब्दों के चप्पू चलाकर
वाह वाह के किनारों को
छूने की कोशिश?
कुमार अहमदाबादी

जय जय भारत

जय जय, जय, जय जय भारत
जय जय, जय, जय जय भारत
भारत मेरे भारत मेरे.........

भारत मेरे भारत मेरे......
भारत तेरे चरणों की धूल मैं लेने आया हूँ.....जय जय

इन्द्रधनु सी धूल से मस्तक को सजाने आया हूँ
पावन चरणों की गूँज से नभ दहलाने आया हूँ
गीता को हाथों में रखकर सच को सुनाने आया हूँ
सात सूरों के रंगों से शब्दों को सजाने आया हूँ......जय जय

भारत मेरे......
भारत माँ की गाथायें मैं जग को सुनाने आया हूँ

महाराणा की वीरता के सुनाने आया हूँ
जयचंदों के धोखे को मैं याद दिलाने आया हूँ
पद्मिनीयों के जौहर तक तुम को ले जाने आया हूँ
चाणक्य के सूत्रों को मैं याद दिलाने आया हूँ......जय जय

भारत मेरे......
भारत के इतिहास के तुम पन्ने पलटने आये हो

देश नहीं ये त्रि-बंदर का ये बतलाने आया हूँ
कब तक चांटे खाओगे मैं ये जानने आया हूँ
कब तक जमीं लुटाओगे मैं ये पूछने आया हूँ
करवट बदलो बनो विजेता ये कहने मैं आया हूँ......जय जय
कुमार अहमदाबादी

रेशम

जब भी रेशम का
जिक्र होता है
आँखों के सामने
तेरा व्यक्तित्व
झूमने लगता है
कुमार अहमदाबादी

सच डरता नहीं (कहानी)

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