झूम झूम के मन ये गाये
मात् के चरणोँ में शीश झुकाये
शरण में ले ले चाहे मेरी
बिगड़ी बनाये या न बनाये..झूम
शरण में तेरी आया हूँ मैं
सबकुछ पीछे छोड़कर माँ
क्या था मेरा जो लाता मैं
आया हूँ मैं खुद को तुम से जोड़कर माँ..झूम
क्या बतलाउँ क्या पाऊँगा
सब कुछ पाकर खोना है
जीवन ये यूँ जीना है कि
हँसना है पलपल इक पल भी न रोना है..झूम
कुमार अहमदाबादी
मात् के चरणोँ में शीश झुकाये
शरण में ले ले चाहे मेरी
बिगड़ी बनाये या न बनाये..झूम
शरण में तेरी आया हूँ मैं
सबकुछ पीछे छोड़कर माँ
क्या था मेरा जो लाता मैं
आया हूँ मैं खुद को तुम से जोड़कर माँ..झूम
क्या बतलाउँ क्या पाऊँगा
सब कुछ पाकर खोना है
जीवन ये यूँ जीना है कि
हँसना है पलपल इक पल भी न रोना है..झूम
कुमार अहमदाबादी