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शुक्रवार, दिसंबर 20

नशा और भक्ति


मैंने अपनी आधी सदी से ऊपर के जीवन में कई एसे व्यक्ति देखे हैं. जो कुछ विशेष दिनों या तिथियों पर सामूहिक रुप से भजन करते हैं. उन में कई एसे होते है.जो भजन करते समय या भजन करने से पहले नशा करते हैं. कभी कभी मन में प्रश्न उठता है. क्या एसा करने से भजन अच्छी तरह होते हैं? ज्यादा तन्मयता से होते हैं? क्या उस परिस्थिति में परमात्मा से साक्षात्कार भी हो सकता है? एक क्षण के लिए मान लें. परमात्मा से साक्षात्कार हो जाता है. तो क्या भजन करने वाला नशे की हालत में परमात्मा से नजर मिला सकता है? 

सब से महत्वपूर्ण प्रश्न है. परमात्मा के भजन गाने के लिए नशे की जरूरत पड़ती ही क्यों है? या कहीं एसा तो नहीं कि भजन करने वाले नशा करने के लिए भजन का सहारा लेते हैं? 

लेकिन मैं ये भी जानता हूं. एसे प्रश्नों के सटीक उत्तर कम ही बल्कि नहीं के समान होते हैं. वैसे ये साथ मिलकर समूह में भजन करने की आदत उस प्रसिद्ध वाक्य भजन और भोजन एकांत में होने चाहिए  के एकदम विपरीत है. जब ये वाक्य याद आता है तो लगता है. लोग नशा करने के लिए भजन करने की क्रिया का एक हथियार के रुप में उपयोग करते है

कुमार अहमदाबादी

दैवी ताकत(रुबाई)

  जन्मो जन्मों की अभिलाषा हो तुम सतरंगी जीवन की आशा हो तुम  थोडा पाती हो ज्यादा देती हो दैवी ताकत की परिभाषा हो तुम  कुमार अहमदाबादी