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सोमवार, अप्रैल 2

ज्ञान बंदे

तपस्या के बिना सधता नहीं है ज्ञान बंदे।
अगर सध जाए टिकाना नहीं आसान बंदे॥

गगन के पार ले जाए जो, हैँ वो सारथि कौन?
दशमलव, शून्य उड़ाते हैं वायुयान बंदे॥

लगाते पार वो मल्लाह, नैया को जो लहरों;
दिशाओँ, वायुओँ से रखते हैं पहचान बंदे॥

पसीना नींव में सिमेन्ट के संग गर भरा जाए।
इमारत बनती अपने आप आलिशान बंदे॥

जड़ें जब मातृभाषा से जुड़ी हों गहरे तक।
कोई संस्कृति कभी खोती नहीं पहचान बंदे॥

विधि लंबी है बीजों से सही इंसान तक की।
पिता औ' माँ को बनना पड़ता है किसान बंदे॥

ग़ज़ल एवं सफ़र आरंभ होते पूर्ण होते।
है मत्ला कोख एवं मक्ता है शमशान बंदे॥
कुमार अहमदाबादी

4 टिप्‍पणियां:

  1. koi aur tippani na kare to khud hi tippani karo aur khud hi thanx bhi kah do ... andaaj achcha hai ... :)))))))))))

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    1. क्या करें पूनम जी,
      आपके जैसा लोकप्रिय ब्लॉग नहीं है मेरा। वैसे ब्लॉगिंग सीख रहा हूँ। टिप्पणी कैसे की जाती है ईसलिए अपने पर ही प्रयोग कर के देखा। वैसे सिर्फ टिप्पणी ही दिखानी होती तो फेक एकाउन्ट बनाकर करता। या आप या जैसे किसी दोस्त से कहता। जो प्यारी सी टिप्पणी कर देता।

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छेड़ दो (मुक्तक)

बांसुरी से राग मीठा छेड़ दो मन लुभावन गीत प्यारा छेड़ दो गोपियों की बात मानो कृष्ण तुम तार राधा का जरा सा छेड़ दो कुमार अहमदाबादी