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शुक्रवार, जून 30

अमृत


 

नखरे मत कर पी ले तू ये दूध पी ले

सब से पहले पी ले तू ये दूध पी ले

अमरत होता है गाय का दूध ‘कुमार’

पीकर सुख से जी ले तू ये दूध पी ले

       कुमार अहमदाबादी

गुरुवार, जून 29

प्यारी बोतल (रुबाई)

मेरी जीवन साथी है ये बोतल

सच्ची जीवनदायी है ये बोतल

यारों आओ बैठो तुम भी पी लो

गोरस से तर प्यारी है ये बोतल

कुमार अहमदाबादी

 

जीवन लौटा है(रुबाई)

 


जीवन लौटा है फिर से जीवन में

खुशबू लौटी है उज्जड़ चंदन में

बिछड़ा साथी अब है जीवन साथी

भंवरा वापस आया है मधुवन में

कुमार अहमदाबादी

बुधवार, जून 28

सब्जी की खुशबू(रुबाई)

 चौके से आयी सब्जी की खुशबू

साथ आयी टिक्कड़ रोटी की खुशबू

खाना लेकर आयी तो साथ आयी

उत्तम औ' कोमल पत्नी की खुशबू

कुमार अहमदाबादी

मंगलवार, जून 27

मस्तानी(रुबाई)

शायद पागल हो गयी है मस्तानी
दर्पण देखे जा रही है दीवानी
सोलह की है आयु ही कुछ एसी की
मन कहता है कोई करे शैतानी
कुमार अहमदाबादी 

शनिवार, जून 24

खिड़की में खड़ी है(रुबाई)


खिड़की  में  खड़ी  है आंखें  हैं  पथ  पर

बेचैन बड़ी है आंखें  हैं पथ पर

आए नहीं क्यों साजन अब तक लेने

सावन की झड़ी है आंखें हैं पथ पर

कुमार अहमदाबादी

सोमवार, जून 19

कठिन है (रुबाई)


स्वीकार कठिन है या इंकार कठिन

सन्यास कठिन है या संसार कठिन

ये प्रश्न अमर है छोड़ो फिक्र ‘कुमार’

तुम प्यार करो प्यारे है प्यार कठिन

कुमार अहमदबादी

शुक्रवार, जून 16

प्यास बहक जाती है(रुबाई)


 

वो ही भरेंगे मांग(रुबाई)


 शादी के नये मस्त नशे में है चूर

ये सोचती है क्यों है सनम मुझ से दूर

दफ्तर से आकर वो ही भरेंगे अब मांग

चुटकी में लिये बैठी है कब से सिंदूर

कुमार अहमदाबादी

पीठ पीछे मुस्कुराती हो सनम(मुक्तक)


 

गुरुवार, जून 15

साहित्यिक जोड़े की तू तू मैं मैं

  

एसे पति पत्नी जिन्होंने साहित्य में एम.ए. किया था। उन का शाब्दिक झगड़ा

पत्नी - 

मैंने तुम्हारा नाम 

रेत पर लिखा तो धुल गया

हवा में लिखा तो उड़ गया

फिर, 

मैंने तुम्हारा नाम दिल पर लिखा तो हृदयाघात हो गया


पति -

परमात्मा ने मुझे भूखा देखा तो रोटी बनाई

परमात्मा ने मुझे प्यासा देखा तो पानी बनाया

परमात्मा ने मुझे अंधेरे में देखा तो रोशनी बनाई

परमात्मा ने मुझे समस्या विहीन देखा तो तुम्हें बनाया

*अनुवादक - कुमार अहमदाबादी*

રેતી સરકતી રહી (મુક્તક)

 

યુવાની રેતની માફક સરકતી રહી

પળે પળ સ્વર્ણ મૃગ પાછળ ભટકતી રહી

સમય વીતી ગયો એના પછી સઘળી

આશાઓ રોજ શ્રાવણ થઈ વરસતી રહી

અભણ અમદાવાદી

बुधवार, जून 14

नशे में चूर(रुबाई)


शादी के नये मस्त नशे में है चूर
ये सोचती है क्यों है सनम मुझ से दूर
दफ्तर से आकर वो ही भरेंगे अब मांग
चुटकी में लिये बैठी है कब से सिंदूर
कुमार अहमदाबादी

रविवार, जून 11

पी ले लाला(रुबाई)


 लेकर आयी हूँ मैं प्याला पी ले

पी ले मेरे प्यारे लाला पी ले

एसा प्याला सब को मिलता है क्या

ये आंखें हैं मादक हाला पी ले

कुमार अहमदाबादी 

शनिवार, जून 10

जी लो लाला(रुबाई)


धीरज नीरज भोला एवं लाला
आओ बैठो भर लो अपना प्याला
पी लो जी भर के जी लो जी भर के
कल ना होगा प्याला ना मधुशाला
कुमार अहमदाबादी

शुक्रवार, जून 9

निशा की महक(रुबाई)



 बाँहों में आकर प्यास बहक जाती है

ज्यों आग हो चूल्हे की दहक जाती है

फिर प्रेम की गंगा में निरंतर बहकर

संतृप्त निशा रानी महक जाती है

*कुमार अहमदाबादी*

गुरुवार, जून 8

बेकार वहां वो है (रुबाई )

 

बेकार वहां वो है यहां मैं भी हूँ 

लाचार वहां वो है यहां मैं भी हूँ 

पूछो न हमें प्रेम का फल क्या पाया 

बीमार वहां वो है यहां मैं भी हूँ 

कुमार अहमदाबादी

मंगलवार, जून 6

काली नाग का मर्दन(रुबाई)

 

हर स्तर पर लोगों को बदलना होगा

कलयुग के दानव को सुधरना होगा

दानव ना बदला तो, तो कान्हा को फिर

मर्दन काली नाग का करना होगा

कुमार अहमदाबादी

शनिवार, जून 3

कमसिन आंखें


 कमसिन आंखें लग रही है बादामी

ये कश्मीरी भी है व है आसामी

जीवन इन के साथ मुझे जीना है

स्वीकारो प्रस्ताव व भर दो हामी

कुमार अहमदाबादी 

घास हरी या नीली

*घास हरी या नीली* *लघुकथा* एक बार जंगल में बाघ और गधे के बीच बहस हो गई. बाघ कह रहा था घास हरी होती है. जब की गधा कह रहा था. घास नीली होती है...