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मंगलवार, मई 30

घाटी मुस्कुराने लगी


 

घाटी फिर से मुस्कुराने है लगी

झील भी नव गीत गाने है लगी

 

फिर शिकारे रोशनी से सज गये

झील जगमग जगमगाने है लगी

 

ऊन पश्मीना से जो बनती है वो

शाल अब परदेस जाने है लगी

 

चंद दशकों बाद जनता शान से

रोजी रोटी फिर कमाने है लगी

 

देखकर कश्मीर में बदलाव उस

पार जनता छटपटाने है लगी

 

देश आए बीस जब कश्मीर में

घाटी नव सपने सजाने है लगी

कुमार अहमदाबादी

शुक्रवार, मई 26

अदाकारी नहीं देखी(मुक्तक)



सफल पर ढोंगी लोगों की अदाकारी नहीं देखी
सरल शालीन इंसानों की गद्दारी नहीं देखी
समझते हैं वे अभिनय कब कहां कितना दिखाना है
बहारों ने कभी फूलों की मक्कारी नहीं देखी
कुमार अहमदाबादी
आखिरी पंक्ति एक शरद तैलंग साहब की ग़ज़ल में पढ़ने के बाद रचना बनी है।


गुरुवार, मई 25

फैसला


 सत्कर्म का फल हरा भरा होता है

दुष्कर्म का फल सडा गला होता है

जब कर्म करो ये सोचकर करना की 

हर कर्म का रोज फैसला होता है

कुमार अहमदाबादी 

सोमवार, मई 22

प्याला(रुबाई)


सांसे अब बिखरी बिखरी माला है

प्याले में अब थोड़ी सी हाला है

प्याला खाली होते ही मिट्टी का

प्याला मिट्टी में मिलने वाला है

कुमार अहमदाबादी 

मुझे याद है जी(रुबाई)

मधुरात मधुर आस मुझे याद है जी

हम थे आग के पास मुझे याद है जी

सांसों ने बजाया था मधुर गीत उसे 

सुनकर मिटी थी प्यास मुझे याद है जी

कुमार अहमदाबादी

गुरुवार, मई 18

दीदार याद रहा(रुबाई)


 


भूला न कभी प्यार सदा याद रहा
मासूम चमत्कार  सदा  याद  रहा
पूछो न मुझे याद तुझे क्यों है ‘कुमार’
ईश्वर का वो दीदार सदा याद रहा
कुमार अहमदाबादी

बुधवार, मई 17

माना की मंजिल दूर है(मुक्तक)


चलो माना की मंज़िल दूर है

ये भी माना विधाता क्रूर है

मगर वो जानता है राही के

जिगर में हौसला भरपूर है

*कुमार अहमदाबादी*

भावनाएं भोली है(मुक्तक)

 

सांस उस की ना जरा भी डोली है

पास जिस के फूल सी इक गोरी है

यूं अविचलित देख मौसम ने कहा

प्रेमी की सब भावनाएं भोली है

कुमार अहमदाबादी

सोमवार, मई 15

राज्य का प्रस्ताव


 
अवसर ये बडा है मत इन्कार करो
मेरे लिए तन मन को तैयार करो
पटरानी बनो मन के साम्राज्य की तुम
इस राज्य के पद को स्वीकार करो
कुमार अहमदाबादी

रविवार, मई 14

गीत बनती है(मुक्तक)

 बावफा की सब दुआएं गीत बनती है

और उस की सिसकियां संगीत बनती है 

साथ लेकर ताल का जब गूंजती है वो 

चाहकों के मन की फिर मनमीत बनती है 

कुमार अहमदाबादी

गुरुवार, मई 11

ये शाम सुहानी है (रुबाई )


ये शाम सुहानी है चली आओ तुम

इक रीत निभानी है चली आओ तुम

प्यासे को प्रतीक्षा नहीं करवाते जी

अब प्यास बुझानी है चली आओ तुम

कुमार अहमदाबादी

मंगलवार, मई 9

मधुरानी आ जाओ(मुक्तक)


     मधुरानी मधु प्याला लेकर आ जाओ

लालायित हूं मधुमय करने आ जाओ

मेरी प्यारी साथी हो मधु हो तुम भी

मुझ को मधुमय कर दो मुझ पर छा जाओ

कुमार अहमदाबादी

छोटा सा बाग खिलाना है(मुक्तक)


 

फूलमाला   से  गला  तेरा  सजाना  है
जोड़कर  संबंध  जीवनभर  निभाना है
ये वचन देता हूं तुम को आज मैं जानम
साथ मिलकर बाग़ छोटा सा खिलाना है
कुमार अहमदाबादी

सोमवार, मई 8

ये तिलक पहचान है


 
   ये तिलक पहचान है
                            साथिया भी शान है                         

विश्व में अब हिंदू का
हो रहा सम्मान है

सार गीता का सुनो
वो ही सच्चा ज्ञान है

बस सनातन धर्म ही
ब्रह्म की संतान है

राम एवं कृष्ण हर
हिंदू का अभिमान है

हिंदू नीती रीति में
सांस लेना आसान है

विश्व सारा कर रहा
बिंदी का सम्मान है
कुमार अहमदाबादी

रविवार, मई 7

शेरनी सी आंखें(मुक्तक)

 

मुक्तक
रेशमी आंखें कभी बादामी आंखें दिखती है
झील सी आंखें कभी ये मोरनी सी लगती है
शांत आंखें प्यासी आंखें क्रुद्ध आंखें औ’ कभी
आदमी को इन के भीतर शेरनी भी दिखती है
कुमार अहमदाबादी


नशे में हूं क्या(रुबाई)

 

ये शाम सनम साथ नशे में हूं क्या

ये नैन अदा खास नशे में हूं क्या

ए वक्त जरा ठहर मज़ा लेने दे

ये जाम मधुर प्यास नशे में हूं क्या

कुमार अहमदाबादी

शनिवार, मई 6

पी ले प्याला(मुक्तक)

पी ले जल्दी से ये प्याला

लाया हूं मैं मीठी हाला

घोला भावों को शब्दों में

जल्दी जल्दी पी ले लाला

कुमार अहमदाबादी

ये प्यार उषा भी है(रुबाई)

 ये प्यार उषा भी है व संध्या भी है

ये प्यार आशा भी है निराशा भी है

गर प्यार करोगे कभी तो जानोगे

ये सूर्य किरण चंद्र किरण सा भी है

कुमार अहमदाबादी

गुरुवार, मई 4

रुप मधु(मुक्तक)


 यौवन जब से फूलों जैसा निखरा है
दैहिक मधुवन में क्या रुपमधु बिखरा है
आयी है ॠत अलबेली तन पर मन पर
पत्ता पत्ता फूलों जैसा दिख’रा है
(दिख’रा = दिख रहा)
कुमार अहमदाबादी

बुधवार, मई 3

सबकुछ है गुलाबी(मुक्तक)



 होंठ बिंदी फूल सबकुछ है गुलाबी 
ये अलकलट और चुनरी है नवाबी 
रोकता हूं मैं कलम को बारहा पर
देखकर यौवन हो जाती है शराबी 
कुमार अहमदाबादी

पुष्प हाला(रुबाई)


 

मनचाही सुगंध पुष्प माला में है

स्वादिष्ट व श्रेष्ठ स्वाद हाला में है

चखते ही नहीं कभी जो वो क्या जाने

क्या स्वाद सुगंध पुष्प हाला में है

कुमार अहमदाबादी

मंगलवार, मई 2

जिंदगानी देखी(रुबाई)


मासूम व पवित्र जिंदगानी देखी
कण कण में कथा तथा कहानी देखी
दो चार पलों की जिंदगी में मैंने
ठहराव कभी कभी रवानी देखी
कुमार अहमदाबादी

रवानी = लगातार गतिशील

घास हरी या नीली

*घास हरी या नीली* *लघुकथा* एक बार जंगल में बाघ और गधे के बीच बहस हो गई. बाघ कह रहा था घास हरी होती है. जब की गधा कह रहा था. घास नीली होती है...