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रविवार, दिसंबर 25

अंतर का आधार (अनुदित रूबाई)

 

ज्ञानी को अंतर का आधार रहा

सूरज की किरनों का आभार रहा

हर युग में वाणी का विस्तार हुआ

दुनिया में तेजोमय भंडार रहा

अनुवादक – कुमार अहमदाबादी 


चकचूर मांग

 


मदिरा से चकचूर हृदय की है मांग
साकी से मदमस्त प्रणय की है मांग
हर दिल को माशूक कहे ये दिन रात
होने दो संगम ये समय की है मांग
कुमार अहमदाबादी

शनिवार, दिसंबर 24

सूरज की रोशनी(रूबाई)

 


*सूरज की रोशनी उदय से समझो*
*संसार करे याद विनय से समझो*
*अनजान प्रकाश से दिशाएं चमकी*
*घटना है दिन रात समय से समझो**

  अनुवादक – कुमार अहमदाबादी*

बुधवार, दिसंबर 21

शुक्रवार, दिसंबर 16

दृष्टिकोण


मानवता का दृष्टिकोण कहता है
तुम इंसान नहीं हो
क्यों कि,
तुमने आंसुओं की मजबूरी
आंखों की बेबसी,  इंसान की लाचारी
और दिल की तड़प को
कभी समझा ही नहीं
समझने की बात तो दूर रही
कभी समझने का प्रयास भी नहीं किया
प्रयास भी किया होता तो शायद.......
कुमार अहमदाबादी


पहला पत्र

वो पत्र पहला पत्र था 

जिस ने पत्रों का महत्व बताया था

वो पत्र जो कोमल उंगलियों ने 

थरथराते हुए मुझे दिया था 

जब उंगलियां पत्र थमा रही थी

उसकी आंखें ये कहकर झुक गई थी कि

इसे पढ़ना जरूर

जब मैं पत्र थाम रहा था तब पत्र देनेवाली उंगलियों से

मेरी उंगलियों ने अनजाने में स्पर्श कर लिया था

तब वो छुईमुई के पौधे सी सिकुड़ गई थी

ठीक से पत्र थमा भी न पाई थी

हालांकि मैंने वो पत्र पढ़ा था

पढ़ने का बाद विश्व बदल भी गया था

मगर सच कहूं तो

वो पत्र पढ़ने की जरूरत थी ही नहीं

पत्र में जो कुछ भी लिखा था

कमलनयनी आंखों ने पहले ही कह दिया था।

*कुमार अहमदाबादी*

दर्द सोलहवें साल वाला

 


गुलाब सा गुलाबी औ’ कमल सा पवित्र
वो सोलहवां साल आज बहुत याद आ रहा है
ना बचपन था ना जवानी थी मगर धड़कनें किसी की दीवानी थी
दीवानी थी एक कली की जो फूल बनने की ड्योढी पर खड़ी थी
दीवाने को देखकर उस की आंख शर्माकर झुक जाती थी
मगर, झुकते झुकते भी बहुत कुछ कह जाती थी
वो कह देती थी वो सब बातें जो कहते हुए
जुबान लड़खड़ा सकती थी थर्रा भी सकती थी
या कहने से ही कतरा सकती थी मगर आंख
शर्मीली होकर भी नीडर थी बहादुर थी
वो सोलहवां साल जब जीवन से
परिचय होने की क्रिया शुरू हो रही थी
तब, जिसने
जीवन के सर्वाधिक महत्वपूर्ण व्यक्ति से मुलाकात करवाई थी
और जीवन का सर्वाधिक मीठा दर्द भी दिया था
इतना महत्वपूर्ण की, उस दर्द ने हमेशा उस समय भी साथ दिया
जब समय भी साथ छोड़कर चला गया था
तब भी उस दर्द ने एक विश्वसनीय दोस्त बनकर साथ निभाया था निभा रहा है
क्यों? क्यों कि वो सोलहवें साल वाला दर्द है
और, आज भी देख लो वही दर्द इस कलम को चलने के लिए प्रेरित कर रहा है।
*कुमार अहमदाबादी*

गुरुवार, दिसंबर 15

रईस


मुझे याद है वे तमाम पल जो तेरे दामन में बिताये थे

तुम ही कहो कैसे भूल सकता हूँ मैं भी कभी रईस था


कुमार अहमदाबादी



बुधवार, दिसंबर 14

जुगनू

मित्रोँ, आज मुक्तक पेश करता हूँ।


रोशन नजर से मार्ग को वो जगमगा गया
घनघोर वन में राह पथिक को बता गया
पागल सी झूमने लगी है ख्वाहिशें, इन्हें
दुल्हन नई नवेली लगे यूं वो सजा गया
कुमार अहमदाबादी

शनिवार, दिसंबर 3

ज्योतिषी और क्रिकेट मैच

मैच के बारे में बतानेवाले ज्योतिषियों की बातों ने सिद्ध कर दिया। चैनल पर बैठकर भारत की जीत का दावा करनेवाले सारे ज्योतिषी अपनी अपनी विद्या में ठोठ हैं; डफोळ हैं। 


लेकिन इस का अर्थ ये नहीं की ज्योतिष शास्त्र गलत है या बकवास है।

जैसे पढ़ाई में कोई विद्यार्थी होशियार और कोई ठोठ होता है। 


जैसे जड़ाई का काम करनेवालों के कुछ बहुत बेहतरीन कारीगर और कुछ एकदम रद्दी काम करनेवाले होते हैं।


जैसे खाना पकानेवाली गृहिणियों और रसोइयों में कुछ बहुत ही स्वादिष्ट और लाजवाब खाना पकाते है; जब की कुछ मामूली और कुछ एकदम बेकार खाना पकाते हैं।


उसी तरह ज्योतिष शास्त्र के अध्ययन और फलादेश करने में भी कोई ज्योतिषी कुशल और सचोट होते है। जब की कुछ एकदम ठोठ होते हैं। उन की गणनाएं गलत होती रहती है। बल्कि ज्योतिष इतना गहन ज्ञान है कि ज्यादातर ज्योतिषी ठोठ ही होते हैं।

कुमार अहमदाबादी

शुक्रवार, दिसंबर 2

मधुशाला में चलिए

आप भी चलिए संग मेरे मधुशाला में

शब्द दोनों के निखरेंगे मधुशाला में

मधु का असर जब होगा मस्तिष्क पर

मधुधारा अविरत बहेगी मधुशाला में

कुमार अहमदाबादी

भावानुवादित मुक्तक


द्वेष का हलाहल है प्रेम की कटोरी है
विश्व तेरी ये हरकत एकदम छिछोरी है
बोझ वासना का है सांस के भरोसे पर
कौन ये कहे मन को टूटी प्रेम डोरी है
कुमार अहमदाबादी

घास हरी या नीली

*घास हरी या नीली* *लघुकथा* एक बार जंगल में बाघ और गधे के बीच बहस हो गई. बाघ कह रहा था घास हरी होती है. जब की गधा कह रहा था. घास नीली होती है...