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शुक्रवार, नवंबर 1

मन गाये (भजन)

 
झूम झूम के मन ये गाये
मात् के चरणोँ में शीश झुकाये
शरण में ले ले चाहे मेरी
बिगड़ी बनाये या न बनाये..झूम

शरण में तेरी आया हूँ मैं
सबकुछ पीछे छोड़कर माँ
क्या था मेरा जो लाता मैं
आया हूँ मैं खुद को तुम से जोड़कर माँ..झूम

क्या बतलाउँ क्या पाऊँगा
सब कुछ पाकर खोना है
जीवन ये यूँ जीना है कि
हँसना है पलपल इक पल भी न रोना है..झूम
कुमार अहमदाबादी

मंगलवार, अक्तूबर 29

समंदर भी आएँगे (ग़ज़ल)

रास्ते में समंदर भी आएँगे
बाढ़ सूखा बवंडर भी आएँगे..रास्ते में

सेठ राजे मिलेंगे फकीरों से
औ' नवाबी कलंदर भी आएँगे..रास्ते में

लोमडी शेर भालू हिरन के संग
देखना तीन बंदर भी आएँगे..रास्ते में

लक्ष्मी के नाथ तो साथ देगें ही
पार्वतीनाथ शंकर भी आएँगे..रास्ते में

जीत औ' हार सब मोहमाया है
ये बताने सिकंदर भी आएँगे..रास्ते में

ज्ञान को बांटना सीख लेने पर
भीख लेने तवंगर भी आएँगे..रास्ते में

खुरदुरे फूल मासूम कांटे और
रेशमी स्वर्ण-कंकर भी आएँगे..रास्ते में
कुमार अहमदाबादी

जगमग (मुक्तक)

आशा ने जब दीप जलाया
लौ ने जलवा खूब दिखाया
कोना कोना रोशन कर के
जगमग ने कर्तव्य निभाया
कुमार अहमदाबादी

खिलखिलाहट (ग़ज़ल)



चाँद को जब मुस्कुराना आ गया
फूल को भी खिलखिलाना आ गया
 
चाँदनी को पुष्परस में घोलकर
पान करना लड़खड़ाना आ गया

गूँथकर माला में तारेँ, रूपसी
रात को दुल्हन बनाना आ गया

क्या जरूरत बोतलों की है भला
होश को जब गडबडाना आ गया

 
आसमाँ की जगमगाहट देखकर
स्वप्न को भी जगमगाना आ गया

 
 सोलवें में चाँद के सिंगार को
देख दरपन को लजाना आ गया

चाँदनी के एक पल के संग से
बादलों को चमचमाना आ गया
 
चाँदनी को छेड़ने की सोच से
पास मेरे खुद बहाना आ गया



रात बोली पूर्णिमा की ए 'कुमार'
चाँदनी का अब जमाना आ गया
.............................................................
कुमार अहमदाबादी

कान्हा (गीत)

कान्हा कान्हा प्यार मिला है तेरे द्वार
मोहे कर दिया तूने निहाल.... कान्हा कान्हा

गीता मुज को राह दिखाये
कर्मों की गति को समझाये...
जीवन नैया पार लगाये.... कान्हा कान्हा

प्यार तुम से मैंने किया है
जीवन तुम को सौंप दिया है
जीवन में तू लाया निखार... कान्हा कान्हा

प्यासी हूँ पर मीरा नहीं मैं
गोपी हूँ पर राधा नहीं मैं
चंदन कर दिया घर संसार... कान्हा कान्हा
कुमार अहमदाबादी
ला है तेरे द्वार
मोहे कर दिया तूने निहाल.... कान्हा कान्हा

गीता मुज को राह दिखाये
कर्मों की गति को समझाये...
जीवन नैया पार लगाये.... कान्हा कान्हा

प्यार तुम से मैंने किया है
जीवन तुम को सौंप दिया है
जीवन में तू लाया निखार... कान्हा कान्हा

प्यासी हूँ पर मीरा नहीं मैं
गोपी हूँ पर राधा नहीं मैं
चंदन कर दिया घर संसार... कान्हा कान्हा
कुमार अहमदाबादी

आई रे नवरातरी (भजन)



रून झून रून झून,
रून झून रून झून...............रून

रून झून करती आई रे
गरबोँ की रूत लाई रे...नवरात्..री

भक्ति रस की गहराई में डूब जाना है
आत्.मा को ईश् वर से.... मिलाना है
नवरात्रि की रसधारा में बहनेवाले
भजनों का रस प्यासे मन को पिलाना है.. रूम झूम रूम झूम

आओ यारों पूजा से तनमन की शुद्धि कर लें
मन में योगियों... सी थोड़ी सी धीर धर लें
ये मेरा है वो तेरा है जैसे कडवे शब्दोँ से
जिव्हा को यारों कोसों.. दूर कर लें....रूम झूम रूम झूम
कुमार अहमदाबादी

अनोखे ढंग (मुक्तक)




रात ने जगाया है मुझे
पानी ने जलाया है मुझे
है बड़ी अनोखी जिंदगी
आग ने बुझाया है मुझे
कुमार अहमदाबादी

विश्वास कर के देख ले(ग़ज़ल)

स्वर्ण से सत्कर्म का विश्वास कर के देख ले
साथ दूँगा मुश्किलोँ में खास कर के देख ले

भूख का आधार हूँ मैं तृप्ति का श्रँगार हूँ
हेम से थोड़ी वफ़ा की आस कर के देख ले

जाए बाहर दायरे से बस में ना इंसान के
कान चाहे देखना परयास कर के देख ले

देखना जो मन ये चाहे आँख वो ही देखती
रेत में जलधार! द्रश्याभास कर के देख ले

वो भुगतता है सजा जो खेल खेले वायु से
तू हवाओँ का कभी परिहास कर के देख ले

रास्ता सरिता बदलती गर न हो अनुकूल पथ
सोच जो परिणाम दे सायास कर के देख ले

ज्ञान सारा ब्रह्म में है इस जगत में ए 'कुमार'
ओम में है ज्ञान तू विश्वास कर के देख ले
कुमार अहमदाबादी

मंगलवार, सितंबर 3

स्तब्ध

स्तब्ध
भाव स्तब्ध हो गये
शब्द मौन हो गये
पीर छलकी नदी सी
बाँध गौण हो गये
कुमार अहमदाबादी

जुगनू

रोशन नजर से मार्ग को वो जगमगा गया
घनघोर वन में राह पथिक को बता गया
पागल सी झूमने लगी है ख्वाहिशें, इन्हें
दुल्हन नई नवेली लगे यूं सजा गया
कुमार अहमदाबादी

कोशिश?

लोग कहते हैं
कविता लिखता हूँ
पर मैं, मैं क्या करता हूँ?
शायद,
भावों की कश्ती में
सवार होकर
शब्दों के चप्पू चलाकर
वाह वाह के किनारों को
छूने की कोशिश?
कुमार अहमदाबादी

जय जय भारत

जय जय, जय, जय जय भारत
जय जय, जय, जय जय भारत
भारत मेरे भारत मेरे.........

भारत मेरे भारत मेरे......
भारत तेरे चरणों की धूल मैं लेने आया हूँ.....जय जय

इन्द्रधनु सी धूल से मस्तक को सजाने आया हूँ
पावन चरणों की गूँज से नभ दहलाने आया हूँ
गीता को हाथों में रखकर सच को सुनाने आया हूँ
सात सूरों के रंगों से शब्दों को सजाने आया हूँ......जय जय

भारत मेरे......
भारत माँ की गाथायें मैं जग को सुनाने आया हूँ

महाराणा की वीरता के सुनाने आया हूँ
जयचंदों के धोखे को मैं याद दिलाने आया हूँ
पद्मिनीयों के जौहर तक तुम को ले जाने आया हूँ
चाणक्य के सूत्रों को मैं याद दिलाने आया हूँ......जय जय

भारत मेरे......
भारत के इतिहास के तुम पन्ने पलटने आये हो

देश नहीं ये त्रि-बंदर का ये बतलाने आया हूँ
कब तक चांटे खाओगे मैं ये जानने आया हूँ
कब तक जमीं लुटाओगे मैं ये पूछने आया हूँ
करवट बदलो बनो विजेता ये कहने मैं आया हूँ......जय जय
कुमार अहमदाबादी

रेशम

जब भी रेशम का
जिक्र होता है
आँखों के सामने
तेरा व्यक्तित्व
झूमने लगता है
कुमार अहमदाबादी

बुधवार, जुलाई 31

शोले बुझा दो

बिंदीया के मन सपन है प्यास मीठी जगा दो
साथी मेरे मन बदन के आज शोले बुझा दो

कस्तूरी सी महक मुज में काम्य काया कटीली
माधुरी को सजन घर की राजरानी बना दो
सोचो जानो बलम मन ये बावरा क्यों हुआ है?
   क्यों काया का कण कण कहे कंचुकी को सजा दो

काया वीणा छम छम करे घुंघरू के सरीखी
सारंगी सी सरगम झरे रागिणी वो बजा दो

  माली वो जो कई तरह के फूल प्यारे खिलाए
बागीचा है मन चमन में रातरानी खिला दो

कामिनी को अगन घर में छोड़ना ना अधूरी
दामिनी को दशमलव सी पूर्णता से मिला दो

चोटी को मै अब सजनवा, छू रही हूँ अदा से
प्राप्तिका सी मधु सरित सी रंग धारा बहा दो
कुमार अहमदाबादी



  

पहली बार

पहली बार चार पंक्तियाँ छंद में लिखी
और आँख से छंदबद्ध गंगा बह निकली
कुमार अहमदाबादी

गगन को

वीर तौलेंगे गगन को
स्वप्न चूमेंगे गगन को
हौसला ये जानता है
पंख छू लेंगे गगन को
कुमार अहमदाबादी

न हटाओ

मिट्टी पर से मख़मल ना हटाओ तुम
देह पर से चंदन ना हटाओ तुम
फटी पुरानी जैसी है पहचान है ये
अर्थी पर से कंबल ना हटाओ तुम
कुमार अहमदाबादी

मंजिल

लोग कहते हैं मेरी नजर मंजिल पर रहती है। 
जब कि मेरे घर से शमशान दिखाई देता है।
कुमार अहमदाबादी

प्रमाण पत्र

सीमा व पवन बेचैनी से इंतजार कर रहे थे। दोनों की नजर दरवाजे पर लगी थी। चंद पलों के बाद लेबर कम ऑपरेशन कक्ष का दरवाजा खुला।

लेडी डॉक्टर दोनों के पास आकर उन को बधाई देते हुए बोली "आप की इच्छा पूरी हो गई है। अनिता ने कन्या को जन्म दिया है। आप नाना नानी बन गये हैँ।"

सीमा व पवन मुस्कराते लगे। मुस्कराहट के बाद सीमा बोली "डॉक्टर साहिबा, हम नाना नानी नहीं: दादा दादी बने हैं।" एक पल हैरान व आश्चर्यचकित होने के बाद लेडी डॉक्टर की नजरोँ में प्रशंसा का सागर लहराने लगा।
कुमार अहमदाबादी

भूकंप को समर्पित

हमारी किस्मत से जला करो यारों
हमें खुद उपरवाला झूला झूलाता है

अर्पण

पूरे शहर में कवि बुद्धुराम चर्चा का विषय बना हुआ था। जिसे देखो बुद्धु के बारे में बात कर रहा था। उसे के कार्य पर टिप्पणी कर रहा था। कोई प्रशंसा कर रहा था तो, कोई ढोँगी सनकी कर रहा था। दरअसल उस ने कार्य
ही एसा किया था व्यक्ति से विरोध या समर्थन अपने आप हो जाता था। आप भी करेंगे।
उस ने किया क्या था?....

.......
........
.......
.......
.........
............
 उस ने सासुजी को उन के देहावसान पर सिर के बाल अर्पण किये थे।
कुमार अहमदाबादी

बेटी री [राजस्थानी रचना]

जात ने तू क्यों मिटावे बेटी री
कोख ने क्यों चिता बणावे बेटी री

बेटी लछमी बेटी सरसूती है तोइ
क्यों भलाई तू न चावे बेटी री

भार कऴी पर नोखे क्यों बेसुंबार
जोन जल्दी क्यों जिमावे बेटी री

बेटे बेटी ने बराबर मोने तो
मरजी री शादी कराये बेटी री

भोऴे ने अरदास कर तूं रोज आ
चूंदडी ना कोई लजावे बेटी री
कुमार अहमदाबादी

मैं, मैं नहीं हूँ

मैं, मै नहीं हूँ
क्योंकि,
मैं
सोनी हूँ महेश हूँ द्वेष हूँ
... कवि हूँ लेखक हूँ निशेष हूँ..........

मैं
नागरिक हूँ भारतीय हूँ
गुजराती हूँ अहमदाबादी हूँ


मैं
राजस्थानी हूँ बीकानेरी हूँ
इंडियन हूँ एशियन हूँ

मैं
साहित्यकार हूँ कथाकार हूँ
वार्ताकार हूँ संगीतकार हूँ..........

मैं
पुत्र हूँ पिता हूँ पति हूँ
ससुर हूँ दादा हूँ नाना हूँ.......

मैं
दोस्त हूँ मित्र हूँ सखा हूँ
प्यार हूँ प्रणय हूँ परिणय़ हूँ

मैं
भाई हूँ जंवाइ हूँ वेवाई* हूँ
आर्य हूँ कार्य हूँ कर्ता हूँ

मैं ये सब तो हूँ पर इतना ही नहीं हूँ
और भी विस्तृत हूँ, जैसे जेठ, देवर हूँ

मैं वामन में विराट हूँ
पर मैं ये सब क्यों हूँ?
क्योंकि,
क्योंकि मैं इंसान हूँ
- - - - - - - - - -
कुमार अहमदाबादी

वेवाई > समधी (गुजराती में)

शुक्रवार, जून 28

विश्वकप विजय


टीम भारत संग अपने विश्वकप लाई थी
फ़ाइनल में पाक से वो जीत के आई थी

माही के धुरंधरोँ ने के खेल एसा खेला कि
जीतना है ये ललक मैचों में दिखलाई थी

काम अच्छा ओपनर ने फाईनल में किया
बॅट की गंभीर ने रन प्यास बुझाई थी

था नया रोहित पर स्ट्राइक थी
दुगनी उस की
गेंद को बल्ले से सीमा पार कराई थी

कैच कोई गर न हुआ बोल्ड उस को किया
आर पी की स्विंग ने दो बेल्स गिराई थी

क्रीज में वो जा सका ना बॅट पाकिस्तानी
गेंद सीधी स्टंप से रॉबिन ने टकराई थी

मध्य में इरफ़ान ने भी चोट एसी मारी
राह सीधी खान को तंबु की बतलाई थी

धीरे खो मिस्बाह ने भी शॉट एसा मारा
गेंद सीदी जीत बन के हाथ में आई थी

चालें सारी रंग लाई माही ने जो जो खेली
शान भारत की बढ़े एसी वो अगवाई थी

पाक के अरमान सारे चूर होते देखे
शारजाह के छक्के की खूब वो भरपाई थी
कुमार अहमदाबादी

गुस्सा


कुदरत जब गुस्सा करती है
गंगा तब लाशेँ बहती हैं
कुमार अहमदाबादी

माँ का क्रोध

 रंग लाया है आज वो बारूद
तुम ने जो मेरे सीने में उतारा था
प्रयोग जिस पे तुम ने किये औ...र
सहे जिस ने दिल वो हमारा था
क्या?! तुम जानते हो ये हकीकत
विस्फोट जो एक से एक करारा था
आग मेरे तन में उतरी थी जब
अपने विज्ञान को निखारा था
न जाने कितने घाव दिये उस
बेटे ने जो सब से दुलारा था
पर माँ हूँ ना कई बार किया
मैंने विनाश की ओर था
मगर हर बार हाँ आँ आँ हर बार
इतिहास को बेटे ने नकारा था
अब भुगतेगा बारंबार तबाही
सुनामी तो एक छोटा सा नजारा था
जैसी करनी वैसी भरनी
घाव बोने का काम तुम्हारा था
काटनी पड़ेगी वही फसल
जैसा खेत तुम ने सँवारा था
कुमार अहमदाबादी

बेटी री



[राजस्थानी रचना]
जात ने तू क्यों मिटावे बेटी री
कोख ने क्यों चिता बणावे बेटी री

बेटी लछमी बेटी सरसूती है तोइ
क्यों भलाई तू न चावे बेटी री

भार कऴी पर नोखे क्यों बेसुंबार
जोन जल्दी क्यों जिमावे बेटी री

बेटे बेटी ने बराबर मोने तो
मरजी री शादी कराये बेटी री

भोऴे ने अरदास कर तूं रोज आ
चूंदडी ना कोई लजावे बेटी री
कुमार अहमदाबादी

मैं, मैं नहीं हूँ

मैं, मै नहीं हूँ
क्योंकि,
मैं
सोनी हूँ महेश हूँ द्वेष हूँ
कवि हूँ लेखक हूँ निशेष हूँ..........

मैं
नागरिक हूँ भारतीय हूँ
गुजराती हूँ अहमदाबादी हूँ


मैं
राजस्थानी हूँ बीकानेरी हूँ
इंडियन हूँ एशियन हूँ

मैं
साहित्यकार हूँ कथाकार हूँ
वार्ताकार हूँ संगीतकार हूँ..........

मैं
पुत्र हूँ पिता हूँ पति हूँ
ससुर हूँ दादा हूँ नाना हूँ.......

मैं
दोस्त हूँ मित्र हूँ सखा हूँ
प्यार हूँ प्रणय हूँ परिणय़ हूँ

मैं
भाई हूँ जंवाइ हूँ वेवाई* हूँ
आर्य हूँ कार्य हूँ कर्ता हूँ

मैं ये सब तो हूँ पर इतना ही नहीं हूँ
और भी विस्तृत हूँ, जैसे जेठ, देवर हूँ

मैं वामन में विराट हूँ
पर मैं ये सब क्यों हूँ?
क्योंकि,
क्योंकि मैं इंसान हूँ
- - - - - - - - - -
कुमार अहमदाबादी

बुधवार, अप्रैल 3

बताती है मुझे

 खो चुका जो वो सुहाना था बताती है मुझे
याद की खुशबू पहाड़ों से बुलाती है मुझे

शिल्पकारी से सजे सुंदर शिकारे खो गये
पीर अपनों से बिछडने की रुलाती है मुझे

पीर भोगी है वतन से भागने की इसलिए
खैर, टंडन, कौल की पीड़ा सताती है मुझे

क्या हसीं पल था प्रिया ने जब कहा था चूमकर
रेशमी होंठों की रंगीनी लुभाती है मुझे

भाव विह्वल प्रेममय बादामी आँखों की अदा
क्या नशा होता है नारी में बताती है मुझे

स्वर्ण हूँ मैं दाम मेरे और बढ़ जाते हैं जब
हाथ की कारीगरी जेवर बनाती है मुझे

कोई सोयेगा नहीं भूखा ये होगा एक दिन
ये किताबें बारहा क्यों बरगलाती है मुझे
कुमार अहमदाबादी

सताती है मुझे


आज भी मासूम दीवानी सताती है मुझे
याद की खुशबू पहाड़ों से बुलाती है मुझे 
ढाके की मलमल सी वो भी खो गई इतिहास में
ऐतिहासिक पृष्ठ की पीड़ा रुलाती है मुझे
दो दिलों की कामनायेँ रंग लाई थी यहाँ
सूने शिकारे की तन्हाई बताती है मुझे

पुष्पों सी रंगीन प्यारी चुलबुली दीवानगी
सारे बंधन तोड़ दो कह कर लुभाती है मुझे
फूल सी छोटी थी उस की जिन्दगी जो आज तक
लोगों के जीवन को महकाना सिखाती है मुझे
कुमार अहमदाबादी

बुधवार, मार्च 13

रंग लगाने दे (होली ग़ज़ल)

यार तू साली है, रंग तो लगाने दे
रंग में रिश्ते की शोखियाँ मिलाने दे

ओय जीजा तू जल्दी जवान क्यों हुआ?
होली के मौके पर दीदी को चिढ़ाने दे
चोली, कंगन से गहनों से सज चुकी तू अब
शर्म की लाली को चेहरा सजाने दे

तेरे सिंगार में चार चाँद जड़ने दे
भाल पर बिंदी माणिक सी ये लगाने दे
 प्यासी हूँ बरसों से, आज मौका आया है
प्यासी पिचकारी को प्यास तू बुझाने दे

रंग सागर में गोते लगायें चल सजनी
जा, नी, वा, ली, पी, ना, ला में डूब जाने दे


ओढ़णी झूमकर गा रही है कह रही है
मौसमी प्यास को तृप्ति के खजाने दे 
कुमार अहमदाबादी


 

बुधवार, फ़रवरी 27

जब से

दिल का इलाज हुआ है जब से
आँखों की झील सूखी है तब से

आदतेँ अच्छी डाली है रब ने
मैंने हक भी न माँगा है रब से

कोई आयेगा सब ठीक होगा
सांत्वना मिल रही है ये कब से

बेटा बेटी व माँ बाप सब साथ
हो रहे हैं विदा देखो पब से

प्रार्थना के लिए ही खुले हैं
और कुछ भी न निकले है लब से
कुमार अहमदाबादी

मजा आता है

अंधेरे का सिंगार करने में मजा आता है
दीपक की साथी लौ हूँ, जलने में मजा आता है
 
 सिंगार दुल्हन सा किया करती हूँ, अक्सर मैं भी
तन्हाई हूँ, यादों से सजने में मजा आता है
 
 
एसा किला हूँ मैं, जो ढहने का मजा लेता है
इक दौर में यौवन को ढहने में मजा आता है
 
 
दिल में अगन, बाजू में ताकत, मन में सपने हों तो
दीवाने को कांटो पे चलने में मजा आता है

क्योंकि छू सकते हैं आभूषण रूप को, इसलिए:
सोने को कंगन, चूडी बनने में मजा आता है
कुमार अहमदाबादी

बुधवार, फ़रवरी 6

सहारा

 
 

खुद का सहारा खुद बन जाओ
राहें अपनी आप सजाओ
जीवन लक्ष्य उसी को मिलता
चट्टानों से जो नहीं डरता...खुद का

सोना जितना ज्यादा तपता
गहना उतना बढ़िया बनता
घाट घाट का पानी जो पीता
जंग वही जीत पाता.....खुद का

साथ उसी का कुदरत देती
जिस की वो परीक्षा लेती
ईम्तहान से जो डर जाता
मंजिल अपनी कभी न पाता....खुद का

वीर शिवाजी वीर प्रताप
झांसी की रानी ईन्दिरा गाँधी
चट्टानों से टकराकर सब
बन गये थे इक आँधी.....खुद का
कुमार अहमदाबादी

शुक्रवार, जनवरी 11

ज्ञान गंगा

यहाँ की ज्ञान-गंगा में समंदर डूब जाते हैं
ये भारत है यहाँ आकर सिकंदर टूट जाते हैं

मधुशाला को शब्दों में मिलाकर जो पिलायेँ तो,
हठीले जुल्म के हाथोँ से खंजर छूट जाते हैं

कला की साधना का दौर ब्रह्मानंद देता है
सुहाने श्वेत काले सारे मंज़र छूट जाते हैं

स्वदेशी स्टोर में फल देशी मुझ को बेचकर, देखो
नफा सारा विदेशी बन के बंदर लूट जाते हैं
कुमार अहमदाबादी

घुंघरूं


पवन को घुंघरूं पहनाता हूँ
जमाने तक कला पहुँचाता हूँ

गगन या रेत भूमि वारि मैं
व्यथा, हर मंच पर छलकाता हूँ

पवन, जल, आग मेरे दोस्त हैं
मजे से यारी मैं निभाता हूँ
कुमार अहमदाबादी

सोना जीवन साथी है

मित्रों,
हम सुनार हैं। सोना हमारा साथी है। आज स्वर्ण को केन्द्र में रखकर कुछ शेर पेश कर रहा हूँ। आप की कमेन्ट का इंतज़ार रहेगा।
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लालच
लालच मुज को मत दो प्यारे धन की तुम
सोनी हूँ मैं सोना जीवन साथी है
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कूट लो
स्वर्ण को तुम पीट लो चाहे कितना कूट लो
ये न बदलेगा कभी चाहे कितना खींच लो
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परीक्षा
राम को वनवास होता ईस जमाने में सदा
स्वर्ण की होती परीक्षा ईस जमाने में सदा
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सोना हूँ मैं
सोना हूँ ना भिन्न धातुओँ को मैं अपनाता हूँ
थोड़ा सा, पर उन के स्तर को उँचा मैं
उठाता हूँ
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देख ले
स्वर्ण से सत्कर्म का विश्वास कर के देख ले
साथ दूँगा, मुश्किलोँ में खास कर के, देख ले

भूख का आधार हूँ मैं तृप्ति का श्रृँगार हूँ
स्वर्ण से थोड़ी वफ़ा की आस कर के देख ले
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तपना पड़ेगा,
हेम हूँ तो क्या हुआ तपना पड़ेगा,
हार बनने के लिए गलना पड़ेगा.
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કસોટી
હું કસોટી પર જરા પરખાઈ જાઊં તો કહું
સ્વર્ણ છું સાબિત થવા ટીચાઈ જાઊં તો કહું
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कुमार अहमदाबादी । અભણ અમદાવાદી
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उदासी

सूर्य के मुख पे उदासी है
रोटी भूखी दाल प्यासी है

कोसे क्यों तू रात को प्यारे
रात तो यौवन की दासी है

ये कहाँ है वो कहाँ है माँ
माँ है तेरी वो न दासी है

यार कारण क्या क्यों भारत में
होते ना पैदा अगासी है

हाथी तो नीकल चुका है अब
पूँछ बाकी है जरा सी है
कुमार अहमदाबादी

अमावस्या की चाँदनी

रोशनी के बिना रोशनी हो गई
है अमावस्या पर चाँदनी हो गई
कुमार अहमदाबादी


 सोमरस
सोमरस गर पीना ही है तो पीयो शान से
साथ दो कहना ये प्रिया से या बुद्धिमान से
बेतहाशा पी के तुम जग में तमाशा ना बनो
कम पीयो छुपकर भी ताकि जी सको सम्मान से

खैयाम की रूबाई का शून्य पालनपुरी द्वारा किये गये अनुवाद का अनुवाद
कुमार अहमदाबादी


 पी गया
सूर्य को प्याले में घोलकर पी गया
रोशनी के नशे में जीवन जी गया
रोशनी को पचाना नहीं था सरल
कामयाबीयों को भूलकर जी गया
कुमार अहमदाबादी

संघर्ष 
 मेट्रो का संघर्ष रोटी के लिए नहीं
कार पीसी फोन, लक्जरी के लिए है
कुमार अहमदाबादी

अंतर
मैं उठता हूँ तब तुम सोते हो
यु ए से भारत में अंतर है
कुमार अहमदाबादी


सजावट
क्या क्या कुदरत ने आँचल में छुपाया है
कितनी खूबी से आँचल को सजाया है
कुमार अहमदाबादी


 दंभ
बात हिन्दुस्तान की करते हैं
जोधपुर नागौर में अटके हैँ
कुमार अहमदाबादी







घास हरी या नीली

*घास हरी या नीली* *लघुकथा* एक बार जंगल में बाघ और गधे के बीच बहस हो गई. बाघ कह रहा था घास हरी होती है. जब की गधा कह रहा था. घास नीली होती है...