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गुरुवार, फ़रवरी 29

गुलकंद जैसी(ग़ज़ल)



मान या मत मान है गुलकंद जैसी

सभ्यताएं हैं पुराने ग्रंथ जैसी


कंकरों को छांटती है धान में से

यार ये चलनी है बिल्कुल छंद जैसी


कोयले सी हो गयी ये आज लेकिन 

दौर था जब थी ये खादी हंस जैसी


प्रेमिका का काव्य झरना सूखने पर

काव्य धारा हो गयी आक्रंद जैसी


आंख जनता को बताता है जो राजा

उस की होती है दशा धननंद जैसी


विष के प्याले गट गटागट पी गया

इस की भूखी प्यास थी शिव कंठ जैसी

कुमार अहमदाबादी 

सोमवार, फ़रवरी 26

शुक्रवार, फ़रवरी 23

બાળકના સવાલ - મમ્મીના જવાબ


બાળકના સવાલ

મમ્મી ક્હેને કેમ છે આવું

જેવું જે છે કેમ છે એવું

'અભણ' ન રહેવું મારે મમ્મી

જાણવું છે મારે સઘળું મમ્મી

ફૂલો એ કેમ ફૂલ છે ને

કાંટા એ કેમ કાંટા છે?

ફૂલો ને સૌ પ્રેમ કરે ને

કાંટા ને કેમ ધિક્કારે? મમ્મી

સૂરજ રોજ સવારે આવે

સાંજે કેમ કદી ન આવે?

ચાંદો કેમ વધતો જાય

પાછો કેમ ઘટતો જાય? મમ્મી

જાણવું છે મારે મમ્મી

સૌ ધર્મોમાં ફાંટા છે કેમ?

સૌ માને જો ભગવન ને તો 

ઘર ભગવનનાં જુદા છે કેમ? મમ્મી




મમ્મીના જવાબ

જાણવું જો તારે સઘળું 

જેવું જે છે તેવું છે કેમ

થોડું ઘણું હું બતાવું 

બાકી માટે ભણવું પડશે જાણવું

સૌને આપે ફૂલ સુગંધ 

માટે એને પ્રેમ કરે સૌ

કાંટા વાગી લોહી વહાવે 

માટે એને ધિક્કારે સૌ જાણવું

સૂરજ ઉગે 'તે' જ સવાર 

સૂરજ ડૂબે 'તે' છે સાંજ

વધતો ઘટતો કેમ ચાંદો 

જાણવાને ભણવું પડશે. જાણવું

ભગવન તો છે એક 

પણ ધર્મો એના રસ્તા છે

જેમ તારી સ્કૂલ છે એક 

ને રસ્તા સૌના જુદા છે જાણવું

અભણ અમદાવાદી

गुरुवार, फ़रवरी 22

वेदप्रकाश शर्मा कौन थे?

 


वेद प्रकाश शर्मा यानी वेद इस दुनिया में नहीं रहे. एक शख्सियत अलविदा हो गई. अब उनकी स्मृति शेष है. जिंदगी की जंग में वह हार गए. लेकिन कलम के इस योद्धा की उपलब्धियां हमारे एक पीढ़ी के बीच आज भी कायम हैं और जब तक वह पीढ़ी जिंदा रहेगी, उसे वो वदीर्वाला गुंडा बहुत याद आएगा. वेद जी ने 80 से 90 के दशक में सामाजिक उपन्यास का एक बड़ा पाठक वर्ग तैयार किया. आज वह पीढ़ी पूरी तरह जवान हो गई है. वह एक दौर था जब लोगों उनके उपन्यासों को लेकर अजीब दीवानगी रहती थी. उनकी कलम बोलती थीं. लोग नई सीरीज का इंतजार करते थे. सामाजिक और जासूसी उपन्यास पढ़ने वालों की एक पूरी जमात थी.
सस्पेंस, थ्रिलर उपन्यासों का एक बड़ा पाठक वर्ग था. वेद प्रकाश शर्मा, मोहन राकेश, केशव पंड़ित और सुरेंद्र मोहन पाठक जैसे उपन्यासकारों का जलवा था. उस दौर के युवाओं में गजब की दीवानगी देखने को मिलती थी. जहां जाइए, वहां युवाओं के हाथ में एक मोटी किताब मिलती थी.
लेखकों की इस जमात में उस दौर के युवाओं में किताबों में पढ़ने एक आदत डाली. हलांकि साहित्यिक उपन्यासों के प्रति लोगों में इतना लगाव नहीं देखा गया जितना की सामाजिक उपन्यासों को लेकर लोगों ने दिलचस्पी दिखाई. एक उपन्यास लोग दो-से तीन दिन में फारिग कर देते थे.
कुछ एक ऐसे लोगों को भी हमने देखा जिनको उपन्यास पढ़ने का बड़ा शौक था. कभी-कभी वे 24 घंटे में उपन्यास खत्म कर देते थे. उस पीढ़ी की जमात जब आपस में आमने सामने होती थी तो उपन्यासों और लेखकों पर बहस छिड़ जाती थी.
हमारे बगल में एक पड़ोसी हैं, अब उनकी उम्र तकरीन 52 साल हो चुकी है. जिस दिन वेद जी का निधन हुआ, उस दिन हम शाम हम चैपाल पर पहुंचे तो लोग यूपी के चुनावी चर्चा में मशगूल थे. तभी हमने यह संदेश दिया कि ‘वर्दीवाला गुंडा’ अब नहीं रहा. पल भर के लिए लोग स्तब्ध हो गए. फिर कयास लोग कयास लगाने लगे की कौन वदीर्वाला गुंडा..? क्योंकि उसमें 25 से 30 साल वाली साइबर और नेट युग की जमात भी रही. उसकी समझ में कुछ नहीं आया.
लेकिन जब हम उन उपन्यास प्रेमी की तरफ इशारा किया, क्या आप उन्हें नहीं जानते. कुछ क्षण के लिए वह ठिठके और अंगुली को वह दिमाग पर ले गए और तपाक से बोल उठे..क्या वेद प्रकाश जी नहीं रहे. हमने कहा हां. उन्हें बेहद तकलीफ पहुंची बाद में उन्होंने वेद जी और उनकी लेखनी पर प्रकाश डाला. रेल स्टेशनों के बुक स्टॉलों पर उपन्यासों की पूरी सीरीज मौजूद थी. सुंदर और कलात्म सुनहले अक्षरों में उपन्यास के शीर्षक छपे होते थे.
शीर्षक इतने लुभावने होते थे कि बिना उपन्यास पढ़े कोई रह भी नहीं सकता था. रेल सफर में समय काटने का उपन्यास अच्छा जरिया होता था. रहस्य, रोमांच से भरे जासूसी उपन्यासों में कहानी जब अपने चरम पर होती तो उसमें एक नया मोड आ जाता था. पाठकों को लगता था की आगे क्या होगा. जिसकी वजह थी की पाठक जब तक पूरी कहानी नहीं पढ़ लेता था सस्पेंस बना रहता था. उसे नींद तक नहीं आती थी.
हमारे एक मित्र हैं, उनकी लोकल रेल स्टेशन पर बुक स्टॉल है. उन दिनों उपन्यास से अच्छा कमा लेते थे. उनकी पूरी रैक उपन्यासों से भरी होती थी. उन्होंने बाकायदा एक रजिस्टर बना रखा था जिसमें किराए पर वेद जी और दूसरे लेखकों के उपन्यास पाठक ले जाते थे. उन दिनों उपन्यासों की कीमत भी मंहगी होती थी. लिहाजा, कोई इतना अधिक पैसा नहीं खर्च कर सकता था.
दूसरी वजह थी, एक बार कोई कहानी पढ़ ली जाती थी तो उसकी अहमियत खत्म हो जाती थी, उस स्थिति में फिर उसका मतलब नहीं रह जाता था. इसलिए लोग किराए पर अधिक उपन्यास लाते थे. इससे बुक सेलर को भी लाभ पहुंचता था और पाठक को भी कम पैसे में किताब मिल जाती थी. लेकिन किराए का भी समय निर्धारित होता था.
एक से दो रुपये प्रतिदिन का किराया लिया जाता था. जिन सीरीजों की अधिक डिमांड थी वह किराए पर कम उपलब्ध होती थी. 1993 में वेद जी का उपन्यास ‘वर्दीवाला गुंडा’ सामाजिक और जासूसी एवं फतांसी की दुनिया में कमाल कर दिया. इसी उपन्यास ने वेद को कलम का गुंडा बना दिया. जासूसी उपन्यास की दुनिया में उनकी दबंगई कायम हो गई.
कहते हैं कि बाजार में जिस दिन ‘वर्दीवाला गुंडा’ उतारा गया, उसी दिन उसकी 15 लाख प्रतियां हाथों-हाथ बिक गई थीं. इस उपन्यास ने बाजार में धूममचा दिया. इसकी आठ करोड़ प्रतियां बिकीं. वेद प्रकाश शर्मा के जीवन और रचना संसाद की सबसे बड़ी उपलब्धि थी.
इस उपन्यास में उन्हें इतनी बुलंदी दिलाई कि वह प्रतिस्पर्धियों से काफी आगे निकल एक नई पहचान बनाई. इस पर ‘पुलिसवाला गुंडा’ नाम की फिल्म भी बनी. उनके दूसरे उपन्यासों पर भी कई फिल्में बनीं. फिल्मों में उन्होंने स्क्रिप्ट राइटिंग भी किया. इसके अलावा दूर की कौड़ी, शाकाहारी खंजर जैसे चर्चित उपन्यास लिखे.
उन्होंने 170 से अधिक उपन्यास लिखा. विजय और विकास उनकी कहानियों के नायक हुआ कतरे थे. उनकी स्क्रिप्ट पर शशिकला नायर ने फिल्म ‘बहू मांगे इंसाफ’ बनाई.
वेद के पिता का नाम पंडित मिश्री लाल शार्मा था. वह मूलत: मुजफ्फरनगर के बिहरा गांव के निवासी थे. वेद एक बहन और सात भाइयों में सबसे छोटे थे. उनके कई भाइयों की प्राकृतिक मौत हो गई थी. पिता की मौत के बाद उन्हें आर्थिक संकटों का सामना करना पड़ा. उनकी पारिवारिक और माली हालत बेहद खराब थी.
लेकिन कलम की हठवादिता ने उन्हें दुनिया का चर्चित उपन्यासकार बनाया. उनके तीन बेटियां और एक बेटा शगुन उपन्यासकार है. मेरठ आवास पर उन्होंने 17 फरवरी को इस दुनिया से रुख्सत लिया. बदलती दुनिया में आज इन उपन्यासों का कोई वजूद नहीं है.
यह सिर्फ रेलवे बुक स्टॉलों और वाचनालयों के अलावा घरों की शोभा बने हैं. इन्हें दीमक चाट रहें. साहित्य और उपन्यास की बात छोड़िए सामाजिक और जासूसी उपन्यासों को कोई पढ़ने वाला नहीं है. किताबों और पाठकों का पूरा समाज ही खत्म हो गया है. अब दौर साइबर संसार का है. इंटरनेट पीढ़ी को किताबों की दुनिया पसंद नहीं और न वह इसके बारे में अपडेट होना चाहती है.
साहित्य और समाज से उसका सरोकार टूट गया है. सिर्फ बस सिर्फ उसकी एक दुनिया है, जहां पैसा, दौलत और भौतिकता एवं भोगवादी आजादी के सपने और उसका संघर्ष है. निरीह और निर्मम साइबर संसासर ने हमारे अंदर एक अलग दुनिया का उद्भव किया है.
इसका सरोकार हमारी सामाजिक दुनिया से कम खुद से अधिक हो चला है. साहित्य, पुस्तकें और पाठकीयता गुजने जमाने की बात हो गई है. जिसकी वजह है कि हम निरीह और निरस संसार का निर्माण कर रहे हैं, जिसमें बेरुखी अधिक है मिठास की रंग गायब है. चेहरे पर बिखरी वह मासूमिय और मुस्कराहट दिलों पर आज भी राज करती है.
तुम बहुत याद आओगे वेद.. बस एक विनम्र श्रद्धांजलि!
(लेखक प्रभुनाथ शुक्ल स्वतंत्र पत्रकार हैं, ये लेखक के निजी विचार हैं)

रामनाम (पार्ट - 02)

पार्ट - 2 (कल का अनुसंधान)



शिवजी ने तीसरा उपाय आजमाया; विषधर नाग को गले में धारण कर लिया। भोलेनाथ ने सोचा की विषधर नाग मेरे गले में स्थित सागरवाले कातिल विष को ग्रहण कर लेंगे। सरल भाषा में समझें तो विष का भोग लगा लेंगे। विषैले नाग को भला विष से कैसा भय? मगर भोलेनाथ ने जैसा सोचा वैसा हुआ नहीं। विषधर नाग की भी हिंमत नहीं हुयी कि वो हलाहल विष का भोग लगा लें, उस को भोजन बना लें।
इस तरह चंद्रमा, गंगा जी और विषधर नाग ने भोलेनाथ के गले से लेकर मस्तक पर स्थान तो प्राप्त कर लिया, लेकिन उन के संकट का समाधान नहीं किया।
भोलेनाथ ने फिर नया उपाय सोचा। वे वाराणसी नगर में बसते थे। वाराणसी का वातावरण गरम रहता है, सो भोलेनाथ ने सोचा 'चलो, कैलाश चला जाये, वहां का वातावरण शीतल है। उस शीतलता से शरीर में जो जलन है। वो शांत हो जाये। ये सोचकर भोलेनाथ कैलाश पर्वत पर चले गये। वहीं बस गये। कैलाश हिमाच्छादित स्थान है। वहां तो बरफ ही बरफ है। अति शीतल स्थान है। ठंडा प्रदेश है। वहां जाने से तो शरीर में लगी जलन अवश्य शांत होगी। सो भोलेनाथ वहां जाकर बस गये। मगर, फिर भी जलन शांत नहीं हुयी।
एक से बेहतर एक समर्थ उपाय आजमाने के बाद भी भोलेनाथ की समस्या का निराकरण नहीं हुआ। शरीर की जलन से मुक्ति नहीं मिली।
अब क्या किया जाये?
भोलेनाथ की ये दशा देखकर पार्वतीमाता हंसने लगे। भोलेनाथ देवी के हास्य को समझ न सके, इसलिये पूछा 'देवी, आप हंस क्यों रही है?
भगवती पार्वती ने हाथ जोड़कर उत्तर दिया।
'भगवान्,! आप के शरीर में जो अगन लगी है। मुझे भी उस आंच का असर हो रहा है, क्यों कि मैं आप के वामांग में उपस्थित हूँ । आपने जो उपाय आजमाये। वे भी मुझे मालूम है। परंतु प्रभु समुद्रमंथन से प्राप्त हलाहल विष के शमन के लिये किये गये ये उपाय सार्थक साबित नहीं हुये हैं। ये उपाय उस विष की असर की तीव्रता के सामने बहुत मामूली है।
'देवी, आप की बात सच है, लेकिन इस बात से आप हंसी क्यों?'
'प्रभु, क्षमा करना, मुझे हंसी इसलिये आयी कि चाहे केसा भी हलाहल विष हो। उस का उपाय एक क्षण में हो सकता है; और वो समर्थ उपाय आप के पास है। आप सर्वज्ञ और सर्वशक्तिमान होकर भी उसे ना आजमाकर एसे मामूली उपाय आजमा रहे हैं।
भोलेनाथ ने पूछा 'देवी, आप कौन से उपाय की बात कर रही हैं?'
पार्वती ने कहा - प्रभु, आप वो उपाय जानते हैं और आपने समग्र विश्व को कयी बार बताया है।'
ये सुनकर भोलेनाथ के नेत्र बंद हुये। नाभि में से उत्पन्न हुआ नाद कंठ द्वारा वाणी बनकर बहने लगा, राम ! राम ! राम ! राम ! राम !
और एक क्षण में भोलेनाथ के तन में लगी जलन शांत हो गयी। भोलेनाथ प्रगाढ़ समाधि में डूब गये। शरीर की अगन और मन के दहन का शमन करने का सर्वश्रेष्ठ और अचूक यानि रामबाण उपाय है,
राम का नाम
राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम
(प्रकरण - 2 रामनाम समाप्त)

भाणदेव लिखित गुजराती पुस्तक 'जीवन और धर्म' के बाकी पेरेग्राफ का अनुवाद
अनुवादक - महेश सोनी

राम नाम (पार्ट - 01)

 रामनाम

पार्ट - 1



देवों और असुरों ने अमृत प्राप्त करने के लिये साथ मिलकर समुद्रमंथन का प्रारंभ किया था। समुद्र में कयी औषधियां डाली गयी थी। मंदराचल को घोटा (यानि दही या छाछ बिलोने का साधन) बनाया गया। भगवान श्री विष्णु ने कच्छपावतार धारण कर के मंदराचल को आधार दिया। वासुकी नाग को बिलोने की रस्सी बनाया गया। वासुकी के मुख की ओर से असुरों ने और पूंछ की ओर से देवों ने ये कार्य आरंभ किया। 

देवों के लिये परमात्मा का विधान भी गहन होता है। अमृत के लिये मंथन किया था। लेकिन नीकला हलाहल विष! प्रश्न उपस्थित हुआ की अब इस का क्या करें? जब कष्ट आता है तब सब देवाधिदेव महादेव के पास जाते हैं; सो दोनों भोलेनाथ के पास गये। दोनों ने भोलेनाथ से विनती कि वे इस महाआपत्ति से सृष्टि को बचा लें: क्यों कि कातिल हलाहल विष के कारण सृष्टि के अस्तित्व ही जोखिम खडा हो चुका था।

शिवजी तो आशुतोष यानि तुरंत प्रसन्न होनेवाले हैं, क्यों कि वो भोलेनाथ हैं। सृष्टि को बचाने के लिये, देवों और असुरों का संकट दूर करने के लिये वे हलाहल पीने के लिये तैयार हो गये। भोलेनाथ ने विषपान तो कर लिया। लेकिन ना तो उसे पेट तक पहुंचने दिया: ना ही वमन किया। उन्होंने हलाहल को कंठ में धारण कर लिया। लेकिन विष तो विष था। भोलेनाथ के तन में जलन होने लगी। देव, असुर व मानव समस्या के समाधान के लिये महादेव के पास जा सकते हैं। लेकिन महादेव किस के पास जाकर समस्या का समाधान पूछें? उन्हें तो अपनी समस्या का समाधान स्वयं ही करना था। 

हलाहल विष के असर के कारण हो रही जलन से तन को मुक्ति कैसे दिलवाई जाये?  भोलेनाथ ने उपाय ढुंढ लिया। उन्हों ने चंद्रमा को मस्तक पर धारण कर लिया। चंद्रमा से निरंतर अमृत झरता है। भोलेनाथ ने सोचा था की चंद्र के अमृतस्त्राव से बदन को जलन से मुक्ति मिलेगी। लेकिन वैसा हुआ नहीं। विष आखिर हलाहल था। ऊस पर अमृतस्त्राव भी असर कर ना सका। 

अब क्या किया जाये? 

भोलेनाथ ने एक और उपाय सोचा। उन्होंने मस्तक पर गंगाजी को धारण कर लिया। गंगाजल आगन को शांत करता है। भोलेनाथ ने सोचा कि गंगाजल विष की अगन को दूर कर देगा। लेकिन एसा हुआ नहीं। 

अब कौन सा उपाय किया जाये? 

(अनुवाद जारी है)

जीवन और धर्म (लेखक- भाणदेव) के प्रकरण-2 रामनाम के पहले पांच पेरेग्राफ का अनुवाद

बाकी पेरेग्राफ का अनुवाद कल पेश करुंगा। 

अनुवादक - महेश सोनी

बुधवार, फ़रवरी 21

जीवन चक्र (अनुष्टुप छंद)

 कल का कल है आज

आज का कल है कल

जीवन चक्र है यार

जी ले इसे पल पल

कुमार अहमदाबादी 



राख और साख

 


जब समय बलवान होता है

राख की भी साख होती है

भाग्य जब कंगाल होता है

साख मिट्टी राख होती हैं

  कुमार अहमदाबादी 




राख की साख


 




राख(एशेज प्रतिष्ठा का प्रतीक)
मैंने आज सुबह एक मुक्तक पेश किया था। जिस में ये पंक्तियां है कि मैंने आज सुबह एक मुक्तक पेश किया था। जिस में ये पंक्तियां है कि जब समय बलवान होता है. राख की भी साख होती है। यूं तो ये इस संदर्भ में लिखी है. समय साथ देता है तब मामूली से मामूली आदमी की भी कदर होती है। लेकिन क्रिकेट के इतिहास में एसी घटना घट चुकी है। जो अक्षरः राख की साख को सिद्ध करती है। क्रिकेट के शौकीन जानते होंगे। इंग्लैंड और आस्ट्रेलिया के बीच खेली जाने वाली टैस्ट मैच सीरीज को एशेज सीरीज कहते हैं। एशेज क्या होती है? राख को अंग्रेजी में एशेज कहते हैं।
१८८१-८२ के आसपास इंग्लैंड आस्ट्रेलिया से मैच हार गया था। तब एक अंग्रेजी अखबार ने समाचार छापे कि कल इंग्लिश क्रिकेट की मौत हो गयी है। इस के अंतिम संस्कार के बाद इस की राख आस्ट्रेलिया को दे दी जाएगी। जो उसे अपने साथ ले जाएंगे।
घटना क्रम यहीं नहीं रुका। उस के बाद जो सीरीज हुयी। पूरे देश में उस राख को वापस लाने के लिये का वातावरण बन गया।
उस के बाद की सीरीज आस्ट्रेलिया में खेली गयी। इंग्लैंड ने वो सीरीज जीत ली। तब आखिरी टैस्ट मैच के बाद मेल्बर्न में कुछ आस्ट्रेलियाई महिलाओं ने बेल्स जला कर उस की राख को एक थैली में डाल कर अंग्रेज कप्तान को सीरीज को जीतने के लिये ट्रॉफी के रुप में दे दी।
इंग्लैंड के अखबारों ने समाचार छापे कि इंग्लैंड का सम्मान लौट आया।
इस तरह बेल्स की राख यानि एशेज(राख को अंग्रेजी में एशेज कहते हैं) दो देशों के बीच प्रतिष्ठा का मुद्दा बन गया।
उस के बाद आज तक(बीच में खेली गयी एक दो सीरीज को छोड़कर) एशेज खेली जा रही है।
दोनों देशों का हर खिलाड़ी एशेज जीतने में अपना योगदान देना चाहता है। क्यों? क्यों कि उस एशेज यानि राख की भी अपनी एक साख है, शान है, इज्जत है, रुतबा है। उसी को ध्यान में रखकर ये पंक्तियां लिखी है कि
जब समय बलवान होता है
राख की भी साख होती है
कुमार अहमदाबादी
(फोटो में उसी मैच के समाचार हैं) होता है. राख की भी साख होती है*। यूं तो ये इस संदर्भ में लिखी है. समय साथ देता है तब मामूली से मामूली आदमी की भी कदर होती है। लेकिन क्रिकेट के इतिहास में एसी घटना घट चुकी है। जो अक्षरः राख की साख को सिद्ध करती है। क्रिकेट के शौकीन जानते होंगे। इंग्लैंड और आस्ट्रेलिया के बीच खेली जाने वाली टैस्ट मैच सीरीज को एशेज सीरीज कहते हैं। एशेज क्या होती है? राख को अंग्रेजी में एशेज कहते हैं।
१८८१-८२ के आसपास इंग्लैंड आस्ट्रेलिया से मैच हार गया था। तब एक अंग्रेजी अखबार ने समाचार छापे कि कल इंग्लिश क्रिकेट की मौत हो गयी है। इस के अंतिम संस्कार के बाद इस की राख आस्ट्रेलिया को दे दी जाएगी। जो उसे अपने साथ ले जाएंगे।
घटना क्रम यहीं नहीं रुका। उस के बाद जो सीरीज हुयी। पूरे देश में उस राख को वापस लाने के लिये का वातावरण बन गया।
उस के बाद की सीरीज आस्ट्रेलिया में खेली गयी। इंग्लैंड ने वो सीरीज जीत ली। तब आखिरी टैस्ट मैच के बाद मेल्बर्न में कुछ आस्ट्रेलियाई महिलाओं ने बेल्स जला कर उस की राख को एक थैली में डाल कर अंग्रेज कप्तान को सीरीज को जीतने के लिये ट्रॉफी के रुप में दे दी।
इंग्लैंड के अखबारों ने समाचार छापे कि इंग्लैंड का सम्मान लौट आया।
इस तरह बेल्स की राख यानि एशेज(राख को अंग्रेजी में एशेज कहते हैं) दो देशों के बीच प्रतिष्ठा का मुद्दा बन गया।
उस के बाद आज तक(बीच में खेली गयी एक दो सीरीज को छोड़कर) एशेज खेली जा रही है।
दोनों देशों का हर खिलाड़ी एशेज जीतने में अपना योगदान देना चाहता है। क्यों? क्यों कि उस एशेज यानि राख की भी अपनी एक साख है, शान है, इज्जत है, रुतबा है। उसी को ध्यान में रखकर ये पंक्तियां लिखी है कि
जब समय बलवान होता है
राख की भी साख होती है
कुमार अहमदाबादी
(फोटो में उसी मैच के समाचार हैं)


रविवार, फ़रवरी 18

अपनी अपनी दुनिया(रुबाई)



मीठे हों या खारे तन्हा हैं सब 

जलधारों के धारे तन्हा हैं सब

सब की अपनी दुनिया है दुनिया में

सागर सूरज तारे तन्हा हैं सब 

कुमार अहमदाबादी

बुधवार, फ़रवरी 14

मंगलवार, फ़रवरी 13

दुर्गम पर्वत माला


 कामिनीकायकान्तारे

मा संचर मनःपांथ तत्रास्ते स्मरतस्करः।।५३।।

रे मुसाफिर मन, कामिनी के काया रुपी जंगल में स्तनो के रुप में जो दुर्गम पर्वतमाला है। वहां मत जाना। क्यों कि वहां कामदेव नाम का चोर बसता है। 


श्री भर्तुहरी विरचित श्रंगार शतक के तिरेपनवें श्लोक का मनसुखलाल सावलिया द्वारा किये गये गुजराती भावानुवाद का हिन्दी भावानुवाद 

भावानुवादक - कुमार अहमदाबादी 

सरस्वती प्रार्थना

हे सरस्वती देवी, हे सरस्वती देवी

तेरी भक्ति में डूबा रहूं 

तेरी पूजा मैं करता रहूं

इतनी तू मुझ को शक्ति दे

हे सरस्वती देवी..........


शब्द की साधना चलती रहे

काव्य की धारा बहती रहे

कलम सत्कर्म करती रहे

इतनी तू मुझ को शक्ति दे

हे सरस्वती देवी...........


शब्द सदा रंग भरते रहे

मेघ धनुष भी बनते रहे

शब्द बाग खिलते रहे

सब को सुगंधित करते रहे

इतनी तू मुझ को शक्ति दे

हे सरस्वती देवी..........

कुमार अहमदाबादी

रविवार, फ़रवरी 11

मृगनयनीयों का दास

 शंभुस्वयंभुहरयो हरिणेक्षणानां

येनाक्रियन्त सततं गऋहकुम्भदासाः।

वाचामगोचरचरित्रविचित्रताय

तस्मै नमो भगवते मकरध्वजाय।। १ ।।

जिसने ब्रह्मा, विष्णु, महेश को हमेशा के लिये मृगनयनी सुंदरीयों के घर के काम करने वाला दास बना दिया था। जिस की वाणी से उस के विचित्र चरित्र का पता नहीं चलता। उस भगवान प्रेमदेव (कामदेव) को नमस्कार।


श्री भर्तुहरी विरचित श्रंगार शतक के पहले श्लोक के मनसुखलाल सावलिया द्वारा किये गये गुजराती भावानुवाद का हिन्दी भावानुवाद 

भावानुवादक - कुमार अहमदाबादी 

शुक्रवार, फ़रवरी 9

राम नाम से आराम (अनुष्टुप छंद)

(अनुष्टुप छंद)

जो भजेगा राम नाम

 उस के ही होंगे काम

जीवन होगा सफल

पायेगा सुख आराम

कुमार अहमदाबादी 

भज मन भज ले रे (अनुष्टुप छंद)


भज मन भज ले रे 

(अनुष्टुप छंद)

भज मन भज ले रे भज ले राम भजन

भज मन भज ले रे भज ले श्याम भजन


भज ले राम भजन भज ले श्याम भजन 

भज ले श्याम भजन भज ले राम भजन 


भज मन भज ले रे भज ले राम भजन

भज मन भज ले रे भज ले श्याम भजन 


भज ले राम भजन भज ले श्याम भजन 

भज ले श्याम भजन भज ले राम भजन

कुमार अहमदाबादी 

गुरुवार, फ़रवरी 8

અવિજ્ઞેય પ્રેમ વન [મુક્તક]

 અવિજ્ઞેય પ્રેમ વન
(મુક્તક) 

મંજુ ભાષિણી છંદ
લલગાલગા, લલલગા, લગાલગા 
 

ભર યૌવને નજરમાં ગુલાબ છે
કવનો અને હૃદયમાં ગુલાબ છે
મન, શું કહું મન વિશે, કહી દઉં
અવિજ્ઞેય પ્રેમ વનમાં ગુલાબ છે
અભણ અમદાવાદી

અવિજ્ઞેય = જાણી ન શકાય એવું
અભણ અમદાવાદી

સરવાળે ભાગાકાર (મુક્તક)


આ જિન્દગીનો સાર છે 
સરવાળે ભાગાકાર છે 
સરખી છે સૌની યોગ્યતા 
સૌની ચિતા તૈયાર છે 
અભણ અમદાવાદી

बुधवार, फ़रवरी 7

ચરણો(પ્રમિતાક્ષરા છંદ)

ચરણો

(મુક્તક)

(પ્રમિતાક્ષરા છંદ)

ફળશે સદા સુમતિ ના ચરણો

ચડશે સદા પ્રગતિ ના ચરણો

કડવાશ છે કુમતિ આ સમજો

ફળતા નથી કુમતિ ના ચરણો

અભણ અમદાવાદી



रविवार, फ़रवरी 4

मौसम का नशा (रुबाई)

 आज मौसम में एक मस्ती सी छायी है। सर्दी का असर है। राजस्थानी भाषा में जिसे फूलगुलाबी सर्दी कही जाती है। वातावरण में वैसी सर्दी है। एसी सर्दी में एसे दुल्हे के मन की बात को रुबाई में कहने का प्रयास किया है। जिस की नयी नयी शादी हुयी हो। 


आंखो में शरारत का नशा छाया है

मौसम की नजाकत का नशा छाया है

दुल्हन मिल जाने से प्यासे मन पर

मदमस्त कयामत का नशा छाया है

कुमार अहमदाबादी

कहां बसना चाहिये (भावार्थ)


आवासः क्रियतां गांगे पापहारिणि वारिणी

स्तनद्वये तरुण्या वा मनोहारिणि वारिणी।। ३८

या तो पाप हरनेवाली गंगा के किनारे पर बसना चाहिये; या फिर तरुणी या रसिक स्त्री के दोनों स्तनों में बसना चाहिये।


श्री भर्तुहरी विरचित श्रंगार शतक के श्लोक के मनसुखलाल सावलिया द्वारा किये गुजराती में किये गये भावानुवाद का हिन्दी भावानुवाद 

हिन्दी अनुवादक - कुमार अहमदाबादी

 


उत्तम उपदेशक श्रेष्ठ श्रोता

 सुप्रभात 🙏

   उपदेश्योपदेष्टृत्वात तत्सिद्धि:।।

   इतरथान्धपरम्परा।।

                      सांख्य सूत्र

     अर्थात जब उत्तम श्रेष्ठ उपदेशक होते हैं

अच्छे श्रोता होते हैं तब अच्छे धर्म अर्थ काम और मोक्ष सिद्ध होते हैं।जब उत्तम उपदेशक और श्रोता नही रहते तब अंध परम्परा चलती है।

               फिर पुनः जब सत्पुरुष उत्पन्न होकर सत्य उपदेश करते हैं तभी अंध परम्परा नष्ट होकर प्रकाश की परम्परा चलती है।

                सर्वेषां सुदिनं भवतु।🌞

                                 मीरा

(मीरा जी संस्कृत की ‌जानकार हैं, विशेषज्ञ हैं।)

शुक्रवार, फ़रवरी 2

ये क्या लाये हो जी(रुबाई)


कुछ दिन पहले एक रुबाई पेश की थी। जो सौंदर्य में वृद्धि करने के लिये पत्नी या प्रेमिका द्वारा मंगवाये जाने वाले सौंदर्य प्रसाधनों ( ब्युटी प्रोडक्ट) पर आधारित या केन्द्रित थी। आज जो रुबाई पेश कर रहा हूं। वो उस के बाद के घटना क्रम पर आधारित है; अर्थात जब भी कभी पति या प्रेमी फरमाइश के अनुसार सामग्री ले आता है। तब प्रेमिका या पत्नी जो कहती है। उस पर आधारित है।


एकदम ढीली कुर्ती लाये हो जी

कितनी फीकी बिन्दी लाये हो जी

मैं क्या कहती हूं क्या ले आते हो

देखो कैसी चुनरी लाये हो जी

कुमार अहमदाबादी

घास हरी या नीली

*घास हरी या नीली* *लघुकथा* एक बार जंगल में बाघ और गधे के बीच बहस हो गई. बाघ कह रहा था घास हरी होती है. जब की गधा कह रहा था. घास नीली होती है...