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रविवार, फ़रवरी 27

युद्ध के बाद

महमूद दारविश(पेलेस्टीनियन कवि) की रचना का भावानुवाद 


घोषणा होगी 

युद्ध के समाप्त होने की

दोनों प्रमुख नेता हाथ मिलायेंगे

मुस्कुराते हुये तस्वीर खिंचवाएंगे

शांति की महिमा गायी जायेगी

लेकिन गांवों और शहरों में जो

दादीयां, नानियां, माताएं, पत्नियां, बहनें  बेटियां 

और नन्हें मुन्ने फूल

व्याकुल मन से बेचैन नजरों से

दादा, पिता, पति, पुत्र, भाई की

प्रतीक्षा कर रही हैं

उन में से किस प्रतीक्षा समाप्त होगी

किस की आजीवन में बदल जायेगी

कौन जाने किसने क्या कीमत चुकाई है

हां, मैं ये कह सकती हूँ 

मैंने क्या चुकाया है

क्यों कि मैं भी एक माँ हूँ 

धरती माँ

(भावानुवाद - कुमार अहमदाबादी)

गुरुवार, फ़रवरी 24

भूगोल का ज्ञान



प्रितम मेरे
जब तुम पढते थे
तुम्हें भूगोल का विषय
बहुत पसंद था
तुम्हें विश्व के प्रत्येक समंदर
नदियों व पहाडों के बारे में
जानने में रुचि  थी
क्या तुम्हें नहीं मालूम कि
देह की भी अपनी 
एक भूगोल होती है
उस में भी रस लेना चाहिये
कुमार अहमदाबादी


शुक्रवार, फ़रवरी 18

गाय माता

गाय को माता कहोगे आज से 

मात की पूजा करोगे आज से 

इतनी सी गर बात तुमने मान ली

ना किसी से तुम डरोगे आज से

कुमार अहमदाबादी

बुधवार, फ़रवरी 16

माता का प्रसाद

छोटे भाई ने बडे भाई से पूछा 'भाईसाहब, आप हमारे गांव में स्थित कुलदेवी के मंदिर चलोगे?

बडे ने कहा 'नहीं, मेरी किताब पूरी होनेवाली है। प्रकाशन की तैयारियां आखिरी चरण में है। मैं नहीं आ सकता। वैसे मेरे लिये शब्दों की साधना ही  कुलदेवी के दर्शन के समान हैं।'

ये सुनकर छोटाभाई अकेला ही दर्शन के लिये चला गया। उसी रात लेखक ये सोचते सोचते सो गया कि 'अरे, मैं छोटे को ये कहना तो भूल ही गया कि तुम मेरे लिये कुलदेवी का प्रसाद लेते आना।'
तीन चार दिन बीत गये।

चौथे दिन रात को बडे को सपना आया। सपने में उसे कुलदेवी दिखी। कुलदेवी ने बडे से कहा 'तू नहीं आ सका। कोई बात नहीं। तू तेरी साधना को छोडना मत। करता रह। मैं तेरे लिये प्रसाद भेज रही हूँ। एसा कैसे हो सकता है बेटा साधना में डूबा हो और माता उस की भूख प्यास का ध्यान ना रखे।

पांचवें दिन शाम को बडे की पत्नी ने कहा 'सुनिये जी, मैं जरा व्यस्त हूँ। आप मंदिर में दीपक....
उस का वाक्य पूरा होने से पहले बडे ने कहा 'ठीक है'
बडे ने दीप प्रज्वलित करने के लिये मंदिर का दरवाजा खोला। खोलते ही उस की नजर एक कटोरी पर पडी। लेकिन उसने उसे अनदेखा कर के  दीप प्रज्वलित करने पर ध्यान दिया।
दीप प्रज्वलित करने के बाद बडे ने पत्नी से पूछा 'ये कटोरी में क्या है?'
पत्नी बोली 'अरे हां, मैं आप को बताना भूल गयी। देवर जी कुलदेवी का प्रसाद लाये हैं। लेकिन कटोरी में वही है...और अश्रु गंगा बह निकली।
*कुमार अहमदाबादी*

बप्पी लाहिरी डिस्को कींग


 मैं जब लगभग चौदह वर्ष का था यानि टीन एज(किशोरावस्था) में प्रवेश कर चुका था। उन दिनों अहमदाबाद के पहले डबल डेकर(आज की भाषा में मल्टीप्लेक्स कह सकते हैं) थियेटर अजंता इलोरा के इलोरा में सुरक्षा मूवी प्रदर्शित हुयी थी। उस मूवी और उस के एक गीत *मौसम है गाने का, गाने का बजाने का, ये जीवन ये सपना है दीवाने का* ने बहुत धूम मचायी थी। 

वो गीत बप्पी लाहिरी ने गाया था। उस मूवी में संगीत बप्पी लाहिरी का था। मिथुन दा भी उसी मुवी से स्टार बने थे; बल्कि उस समय एक चर्चा ये भी चल पडी थी कि मिथुन की अगर एसी दो चार हीट आ गयी; तो बच्चन की सुपरस्टार की कुरसी गयी समझो। 

सुरक्षा के अन्य गीत भी अच्छे थे। लेकिन शिरमौर था मौसम है गाने का

उस के बाद कयी वर्षों तक मिथुन के लिये बप्पी दा ने ही प्ले बेक दिया। दरअसल बात कुछ यूं थी कि किशोर कुमार ने मिथुन के लिये गीत गाने से मना कर दिया था; क्यों कि मिथुन का किशोर कुमार की तलाकशुदा पत्नी से रोमांस व शादी की अफवाहें चल रही थी। हालांकि मिथुन ने बाद में योगिता बाली से शादी की। 

इसलिये बप्पी दा मिथुन की ऑनस्क्रीन आवाज बने। उस से पहले भी बप्पी दा कुछ बेहतरीन सुरीले गीतों की रचना कर चुके थे। उन का एक गीत *चलते चलते मेरे ये गीत याद रखना, कभी अलविदा ना कहना, कभी अलविदा ना कहना* तो आज भी एक माइल स्टोन है; और सदा माइल स्टोन रहेगा। 

उस समय तक के हीट गीतों में कुछ और यादगार गीत है *बंबई से आया मेरा दोस्त....* है: इस के अलावा जख्मी मूवी के *जलता है जिया मेरा भीगी भीगी रातों में, आओ तुम्हें चांद पे ले जायें*  *अभी अभी थी दुश्मनी अभी है दोस्ती* : टूटे खिलौने का *माना हो तुम बेहद हंसी* है। 1979 में प्रदर्शित लहू के दो रंग मूवी के गीत *माथे की बिंदिया बोली काहे को गोरी* *चाहिये थोडा प्यार थोडा प्यार चाहिये* *मुस्कुराता हुआ गुनगुनाता हुआ मेरा यार* । ये सारे गीत बहुत सफर व लोकप्रिय हुए थे।

*और फिर आये 1982-83 के वर्ष,*

यहाँ से बप्पी दा की करियर जैसे छलांग लगाई।

अमिताभ बच्चन की नमक हलाल के गीत *आज रपट जईयो* को कौन भूल सकता है। 

लेकिन सब से महत्वपूर्ण आज भी जिस की सफलता के चर्चे होते हैं वो थी *हिम्मतवाला*

इस मूवी से बप्पी दा की करियर ने एसा जम्प लगाया की हर तरफ घर घर गली गली उन के गीत गूंजने लगे। 

हिम्मतवाला के साथ उसी वर्ष बाद में आयी। जस्टीस चौधरी, तोहफा के गीतों ने बप्पी दा को  सफलता की नयी ऊंचाइयों तक पहुंचाया। 

दरअसल,

उस समय एक एसी टीम बनी थी। जो  सफलता की गारंटी थी। बप्पी दा उस टीम के महत्वपूर्ण सदस्य थे। हिम्मतवाला से कादरखान, शक्तिकपूर, श्रीदेवी, अमजदखान तथा कुछ और कलाकारों  व टेक्नियनों की टीम बनी थी। 

अगले आठ दस वर्ष इस टीम के सदस्यों ने खूब सफलता पायी। बप्पी लाहिरी के कयी गीत माइल स्टोन बन गये। 

और फिर, जो शुरु होता है। उस का कहीं न कहीं अंत भी होता है। करियर के आखिरी वर्षों में भी बप्पी दा ने *सिल्क* ( एसा कहा जाता है कि सिल्क मूवी साउथ की डांसर सिल्क स्मिता के जीवन पर आधारित है) मूवी में *उलाला उलाला*  हीट गीत कम्पोज किया था। 

अब बप्पी दा अनंत की यात्रा पर रवाना हो गये हैं। 

परमात्मा बप्पी दा की आत्मा को मोक्ष प्रदान करें

कुमार अहमदाबादी

मंगलवार, फ़रवरी 15

काला रंग और मनोविज्ञान

मनोविज्ञान रंग और उस के प्रभाव को जानता है; जानता है इसलिये बताता भी है। मनोविज्ञान कहता है प्रत्येक कुदरती रंग मानव के मस्तिष्क तक एक भाव, अर्थ एवं प्रभाव पहुंचाता है। वो प्रभाव मानव को दुनिया को घटनाओं को समझने में मदद करता है। 

मैं पहले भी एक दो पोस्ट में कुछ रंगों के प्रभाव व उस के असर की बात लिख चुका हूँ। जैसे कि लाल रंग उग्रता, हरा रंग समृद्धि का, केसरिया रंग वीरता का, सफेद रंग शांति का, आसमानी रंग गहराई एवं विशालता का, पीला रंग कमजोरी का प्रतिक है। 

आज बात करते हैं काले रंग की,

काला रंग अंधेरे का प्रतिक है। रात काली होती है। जो रात जितनी ज्यादा काली होती है। उतनी ही रहस्यमयी, भेदभरमवाली व विकराल होती है या लगती है। काले रंग का नकारात्मक शक्तियों से बहुत गहरा घनिष्ठ लगाव है। आप ने कयी किस्से कहानियों में पढा होगा। तांत्रिक अक्सर अमावस की गहरी काली रात को श्मशान में साधना करते हैं। आपने शायद इस पर भी गौर किया होगा। वे जब अपनी साधना आराधना पूजा या अपनी विधियां करते हैं: तब ज्यादातर तांत्रिक काले रंग के वस्त्र धारण कर के उपरोक्त सारी विधियां करते हैं। 

एसा नहीं है कि काला रंग सिर्फ नकारात्मक या विध्वंसकता का ही प्रतीक है। कयी अन्य सकारात्मक कार्य भी काले रंग के प्रभाव के दौरान यानि जब अंधकार छाया हो; तब किये जाते हैं। जैसे की यौन कार्य एकांत में किये जाते हैं; और उस से महत्वपूर्ण सृजनात्मकत कार्य दूसरा कोई नहीं है। लेकिन एसे सकारात्मक कार्य बहुत कम हैं। जो काले रंग के प्रभाव यानि अंधकार में किये जाते हों। 

आपने ये भी गौर किया होगा। चोर जब चोरी करने जाता है। तब अक्सर काले रंग के वस्त्र पहनकर या चेहरे पर काला नकाब बांधकर जाता है। 

कयी पुरानी कहानियों में समुद्री लुटेरों को या डाकूओं को भी काला नकाब पहने हुये बताया गया है। इसी तरह कई बार व्यक्ति चोर न होते हुये भी काला नकाब पहनते हैं। काला लबादा ओढते हैं। 

लेकिन आजकल इस काले नकाब का दुरुपयोग भी होने लगा है। कुछ शरारती लोग जो स्वभाव से विभाजनकारी हैं; कानून व्यवस्था को तोडने में अपनी शान समझते हैं। वे नकाब का दुरुपयोग करने लगे हैं। 

वीर वो होता है। जो हमेशा खुली लडाई लडता है। दूसरी तरफ कायर कभी खुली लडाई नहीं लडता। जो अपने हक के लिये लडता है और जिसे अपनी लड़ाई सच्ची होने का विश्वास होता है। वो कभी मुंह छुपाकर नहीं लडता। मुंह छुपाकर वो लडता है। जिस की नियत में खोट होती है। 

जो अपना मुंह छुपाना चाहता है। उस की नियत में कहीं न कहीं गलत इरादे छुपे होते हैं। जिस के इरादे गलत नहीं होते। वो कभी भी मुंह नहीं छुपाता; तथा किसी भी तरीके से अपनी पहचान नहीं छुपाता। 

महेश सोनी

कुरुक्षेत्र

युग बदल चुका है

पर कुरुक्षेत्र में आज भी 

सत्य और असत्य दोनों में

युद्धोन्माद छाया हुआ है

लेकिन आज के अर्जुन के सारथी

कृष्ण नहीं है

आज सारथी वो गीता है जो

कृष्ण ने अर्जुन को सुनायी थी

वो गीता आज के

आज के कौरवों को 

हणने के लिये आह्वान कर रही है

कौन है आज के कौरव?

बल्कि आज के अर्जुन के शत्रुओं को कौरव कहने से

कौरवों का अपमान होगा

कैसे?

वो एसे की

कौरव अपनी स्त्रियों का चेहरा ढककर 

उन्हें कुरुक्षेत्र में नहीं लाये थे

कुमार अहमदाबादी

सोमवार, फ़रवरी 14

खंभा नोचना

जब कोई जीव इच्छित लक्ष्य

प्राप्त नहीं कर सकता

तब वो लक्ष्य प्राप्त न करने की खिज

किसी और तरीके से निकालता है 

जिसे अलंकारिक भाषा में एक कहावत 

खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे

कहकर व्यक्त किया जाता है

लगता है आजकल कुछ एसा ही हो रहा है

कानूनों को रोक ना पाये इसलिये अब

खंभे नोच रहे हैं

कुमार अहमदाबादी

शनिवार, फ़रवरी 12

नौलखा हार

 जडतर कलाकार जानते है

नौलखा हार क्या होता है 

कैसे बनता है व कैसे बनाया जाता है

जेवर निर्माण की सब से विशेष प्रक्रिया है

विभिन्न रंग के नगीनों को डिजाइन के अनुसार

जरुरत के अनुसार रंग पोतकर

उन के उचित स्थानों पर चिपकाना, और

इस तरह चिपकाना की नगीने टूटे नहीं 

एवं आगे के कार्य में भी तकलीफ हो नहीं 

एक विशिष्ट कला है

बस उसी तरह 

जीवन रुपी जेवर में संबंध रुपी नगीनों को

अर्थात

बडे छोटे या पास दूर के संबंधों को

पारिवारिक नक्शे यानि डिजाइन को ध्यान में रखकर 

उष्मा या शुष्कता से निभाना 

और, इस तरह निभाना की

संबंध टूटे नहीं, कलाकारी है

जो इस कला में निपुण हो गया, समझो 

जीवन उस का नौलखा हार बन गया। 

कुमार अहमदाबादी

शुक्रवार, फ़रवरी 11

पोस्ट बोक्ष कह रहा है

 



मैं सिर्फ लाल रंग का डिब्बा नहीं हूँ। भावनाओं का वाहक हूँ। संसार के नियम जो आयेगा। वो जायेगा के अनुसार मेरे जीवन के आखिरी वर्ष या महीने या फिर शायद दिन चल रहे हैं।
दुनिया जब से बनी है। डाक यानि पत्रों का आना जाना किसी न किसी रुप में किसी न किसी माध्यम के द्वारा होता रहा है। इंसानों के अलावा जानवरों और पक्षियों ने विशेष रुप से कबूतरों ने भी पत्र वाहक का कर्तव्य निभाया है।
बस इसी पत्रों के आवागमन को सुचारु रुप से करने के लिये मुझे जन्म दिया गया यानि मेरा आविष्कार किया गया।
पहला सार्वजनिक पत्रवाहक डिब्बा यानि लेटर बोक्स वर्ष ई.स. 1848 में रशिया के सेन्ट पीटर्सबर्ग शहर में रखा गया था। कुछ लोग ये भी कहते हैं कि ई.स. 1842 में पोलेन्ड देश के वोर्सो नगर में सब से पहला पोस्ट बोक्ष रखा गया था। कुल मिलाकर 1840 के दशक में हमारा उपयोग शुरु हुआ। हम अमरीका में ई.स. 1850 के दशक में सार्वजनिक रुप से काम करने लगे थे। हमारी रुप रेखा यानि आकार का निर्माण एन्थनी ट्रोलोप ने किया था।
ज्यादातर देशों में हम लाल रंग के होते हैं। इस का कारण है। लाल रंग बहुत दूर से दिखायी देता है। चूंकि हम जनभावनाओं से बहुत ही गहरे रुप से जुडे हैं। हम पत्रवाहकों को जल्दी दिखायी देने चाहिये ना, इसीलिये ज्यादातर देशों ने हमें लाल रंग में रंगा। वैसे लाल रंग से एक दूसरा मुद्दा भी याद आया। दुनिया में एक एसी विचारधारा भी जन्मी है। जिसे लाल रंग के साथ जोडा गया है।

 
बहरहाल, वापस मेरी कहानी पर आता हूँ।
एसा माना जाता है। भारत में डाक सेवा 1 अक्तूबर 1854 के दिन आरंभ हुयी थी। डाक विभाग सादा पोस्ट कार्ड, अंतरदेशीय पत्र, तार यानि टेलिग्राम व रजिस्टर्ड पत्र एवं पार्सल सेवा द्वारा अपना कर्तव्य निमाता था व कुछ रुप में आज भी निभाता है। हालांकि आज तार सेवा बंद हो गयी है। चलती कलम आप को ये भी बता दूं। ईस्वीसन 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अंग्रेजों ने हमारा बहुत उपयोग किया था। उस समय तार सेवा नयी नयी थी। वो सेवा सिर्फ अंग्रेज सरकार के पास थी। त्वरित सेवा थी। इसलिये क्रांतिकारीयों के पास तार की सेवा नहीं थी। जिस से वो संदेशे जल्दी भेज सकें।
समय बीतता गया, बीतता गया। समय के साथ नये साधन आने के बाद हमारा उपयोग कम होता गया। अब तो बहुत कम काम रह गया है। 
जब पीछे मुडकर देखता हूँ तो आत्मसंतोष से भरी एक मुस्कान चेहरे पर आ जाती है। हम हर तरह के साहित्य का हिस्सा बने है।
ये आखिरी वाक्य लिखकर पत्र समाप्त करता हूँ कि,
डाकिया डाक लाया, डाक लाया..................
*कुमार अहमदाबादी*

गुरुवार, फ़रवरी 10

आदर्श

व्यक्ति जब आयु में छोटा होता है। उस समय एक महत्वपूर्ण घटना होती है। वो ये की वो किसे अपना आदर्श मानता है। किस के जैसा बनना चाहता है। अक्सर ये होता है कि व्यक्ति जिसे आदर्श मानता है। उस आदर्श के जैसा बनना भी चाहता है। हालांकि वो ये ध्यान रखना चाहता है कि आदर्श व्यक्ति के गुण ही अपनाए। लेकिन वैसा होता नहीं है। होता ये है कि  आदर्श के गुण अवगुण कम ज्यादा मात्रा में आदर्श माननेवाले के स्वभाव में आ जाते हैं।


इसे मैं अपने पर लेकर कहूँ तो,

यूँ समझिये,

मैंने बचपन में सुनील गावस्कर, कपिलदेव, अमिताभ बच्चन को अपना आदर्श माना। आदर्श मानने के बाद उन तीनों के वो गुण थोडे बहुत प्रमाण में मेरे स्वभाव में आ ही जायेंगे। जो मुझे अच्छे लगे। जैसे गावस्कर का गुण है पररफेक्ट डिफेन्स एवं वाकचातुर्य। 


गावस्कर जब क्रिकेट की तकनीक से संबंधित कोई बात कहते हैं तो कोई उस में नुक्स नहीं निकाल सकता। गावस्कर का दूसरा महत्वपूर्ण गुण है वाकचातुर्य यानि बात कहने की, पेश करने की कला। एसा नहीं के समान हुआ है कि गावस्कर द्वारा कही गयी किसी बात या मुद्दे की किसीने गलत कहा हो। 

तो, जो आदमी गावस्कर को आदर्श मानेगा। उस व्यक्ति में अपने आप गावस्कर के गुण कम या ज्यादा प्रमाण में आने लग जायेंगे। 

इसी तरह अमिताभ बच्चन के व्यक्तित्व को देख लीजिये। अमिताभ के खुद के जीवन में वैसी घटना घटी। जैसी वो फिल्मों में निभाते थे। 

अमिताभ ने फिल्मों अक्सर एसे इंसान का रोल निभाया है। जो जमाने द्वारा सताया गया, पीडीत किया गया। लेकिन परदे पर नायक के तौर पर अमिताभ प्रत्येक विघ्न को पार कर के या पीछे छोडकर  विजेता बनकर निकले। दूसरे शब्दों में कहें तो हरेक विघ्न को पार कर के किनारे पर पहुंचे। 

अमिताभ के निजी जीवन में भी यही हुआ। फिल्मों में हीरो बनने की उमर निकलने के बाद एंटरटेनमेंट कंपनी बनाई तो उस में बहुत बडा घाटा खाया। घर बार नीलाम होने की तैयारी हो गयी। लेकिन अमिताभ फिल्मों के नायक की तरह परिस्थितियों से जूझकर आर्थिक फिर खडे हुये। 


तीसरे हैं कपीलदेव

सीधा सरल निश्छल और देशप्रेम से भरा व्यक्तित्व

एसा व्यक्ति जिसने अपनी काबिलियत से देश के क्रिकेट इतिहास में एसे पन्ने लिखे। जिस के बारे कभी किसी ने सोचा तक नहीं था। कपिलदेव से पहले भारत के क्रिकेट इतिहास में एसा कोई तेज गेंदबाज आया नहीं था। जिसे खेलने के लिये विदेशी बल्लेबाजों ने हेल्मेट पहना हो। कपिलदेव से पहले किसी तेज गेंदबाज ने भारत को टैस्ट मैच जिताया नहीं था। कपिलदेव के आने के बाद आज एसी परिस्थिति है कि भारत का तेज गेंदबाजी का आक्रमण विश्व के श्रेष्ठ आक्रमणों में से एक है। 


सुनील गावस्कर के आने से पहले ये माना जाता था। भारत के बल्लेबाज तेज गेंदबाजी को सही तकनीक व अच्छी तरह से खेल नहीं सकते। सुनील गावस्कर ने क्या किया? सुनील गावस्कर ने विश्व के एक से एक लाजवाब तेज गेंदबाजों को हेल्मेट पहने बगैर खेला। उस पर सोने में सुहागा ये कि जिस टीम के पास एक से बढकर एक बेहतरीन तेज गेंदबाज थे। उस वेस्ट इंडीज के विरुद्ध सब से ज्यादा सफलता प्राप्त की। वेस्ट इंडीज के विरुद्ध तीन दोहरे शतक बनाये। वेस्ट इंडीज के विरुद्ध एक टेस्ट मैच की दोनों पारियों में शतक बनाने का पराक्रम दो बार किया। 

क्रिकेटरों की जो पीढी गावस्कर को देखकर बडी हुयी। उस में गावस्कर वाले क्रीज पर जम जाने के और बडे बडे स्कोर बनाने के गुण आ गये। गावस्कर को आदर्श माननेवाले कयी बल्लेबाज मिले। जिन में सब से ज्यादा सफल सचिन तेंदुलकर हुये। 

इसलिये जीवन में आदर्श होना जरुरी है। साथ ये भी याद रखना चाहिये। हम किसे हम आदर्श मानें? बहुत सोच समझकर आदर्श को पसंद पसंदगी करना चाहिये। 

आप जैसा आदर्श पसंद करोगे। वैसे ही बनोगे। 

*महेश सोनी*

पति एक प्रयोगशाला

पत्नी ने हल्दीवाला दूध बनाने के लिये दूध को भगोने में डालकर भगोना गैस के चूल्हे पर रखा। गैस चलाया। दूध थोडा गरम होने पर उस में चीनी डाली। मसाला बोक्स खोला और चपटी भर कर हल्दी डाल दी। 

लेकिन अगले ही पल ट्यूबलाइट जली। मैंने हल्दी के बदले......

मन ने कहा दूध को यूं ही बहा देना चाहिये। पर इतना सारा दूध यूं ही बहाने के लिये मन नहीं माना। सोचा जो होगा देखा जायेगा।

गरम होने पर एक कप में डालकर दूध चखा। 

उस के बाद उस दूध को बडे ग्लास में भरकर पतिदेव को पीने के लिये दे दिया। बोली कुछ भी नहीं। वो कम्प्यूटर पर अपना काम कर रहे थे। उन्होंने ग्लास हाथ में लिया और गटागट पी गये। ग्लास मुझे वापस थमा दिया। 

मैंने ग्लास लिया और चुपचाप वहां से खिसक गयी। सचमुच पतिदेव बहुत भोले हैं। उन्हें पता ही नहीं चला की दूध में हल्दी नहीं हींग थी।

अनुवादक - कुमार अहमदाबादी

सांस्कृतिक पुष्पगुच्छ

भारत एक सांस्कृतिक पुष्पगुच्छ है। जिस में भांति भांति के पुष्प सजे हैं। सारे पुष्पों को देखें  तो एसा लगता है। वे अपने आप में एक एक इंद्रधनुष को समाये हुये हैं; और आप तो जानते ही होंगे।

इंद्रधनुष में सात रंग होते हैं; सात रंग जो जीवन के हर भाव को उतार चढाव को, लोक संस्कृति को इतिहास को तथा और न जाने क्या क्या समेटे हुये हैं। कश्मीर की केसर और पंजाब के भंगडा से दक्षिण के कथकली एवं पश्चिम के रण एवं गरबों से लेकर पूर्व के मणिपुरी नृत्य एवं आसाम के बीहू तक न जाने कितनी संस्कृतियां सांस लेती है न जाने कितने उत्सव झूमते हैं गाते है। ये सब एसे पुष्प है जो सदियों से  विश्व को सुगंधित कर रहे है। ये सब तो सांस्कृतिक पुष्पगुच्छ में हाजिर चंद पुष्पों की विशेषताएं हैं।

सब की विशेषता को शब्दों से सजाने लगें तो, शब्द कम पड जायेंगे।

लेकिन,

भारत रुपी सांस्कृतिक पुष्पगुच्छ के पुष्पों की विशेषता बतानी बाकी रह जायेगी। इसलिये आप के पास जो पुष्प है  आप उस की सुगंध का आनंद लीजिये। आप को आनंदरस पीता देखकर समय आप को समय समय पर प्रत्येक पुष्प के रंग रुप और सुगंध से झर रहे आनंदरस को पीने का अवसर देगा। 

कुमार अहमदाबादी

गज़ल (क्रांति की लौ)

क्रांति की लौ को जलानेवाली है

हाथ में बंदूक आनेवाली है


भूख दो रोटी की थी जो ना मिली

रक्तगंगा वो बहानेवाली है


ये पतीली खाली थी एवं है पर 

दाल पूरी बस'ब आनेवाली है (बस अब)


रोटी मजदूरों के हक की छीन मत

देश का कल ये सजानेवाली है


भूख को बस लक्ष्य दिखता है 'कुमार'

भूख अब मंजिल को पानेवाली है

कुमार अहमदाबादी

मंगलवार, फ़रवरी 8

चिंता

बेटा, 

यहां से घर जाते ही कुछ खा लेना।

आज सुबह से 

यानि 

मेरी आखिरी सांस के बाद

तूने कुछ नहीं खाया है

चिता पर सोयी 

माता के मन के भाव पढकर 

ब्रह्माण्ड रो पडा।

कुमार अहमदाबादी

सोमवार, फ़रवरी 7

सवायी बेटी

अपने कक्ष में देवी सरस्वती गुमसुम और उदास बैठी है। सितार को उन्होंने एक तरफ संभालकर रख दिया है। बहुत मुश्किल से अपने आसुओं को रोक रही है। एसे में नारायण नारायण का उच्चारण करते हुये नारदमुनि प्रवेश करते हैं। देवी सरस्वती नारद मुनि को मौन होने के लिये कहती है,

देवी सरस्वती - नारद जी, आइये, आप को एक कार्य करना है। स्वागत की तैयारी करनी है।

नारद जी - किस के स्वागत की तैयारी करनी है माते?

देवी सरस्वती - आज मेरी पुत्री पृथ्वी पर सरगम का अश्वमेघ यज्ञ पूर्ण कर के वापस लौट रही है। जाओ उस के स्वागत की तैयारी करो। 

नारद जी - आप की आज्ञा का पूर्णतः पालन होगा माते। 

नारद जी स्वागत की तैयारी करने लगते हैं। 


कुछ पल बाद का दृश्य 

माता सरस्वती और पुत्री लता मंगेशकर गले मिली हुयी है। दोनों की आंखों से गंगा जमना बह रही है। 

माता सरस्वती- बेटी, मैं क्या कहूँ, मुझ से तूने जो पाया था, जितना पाया था। उस का कयी गुना तू पृथ्वीवासियों को देकर आयी है। मुझे ही नहीं विश्व की सारी माताओं को इस सत्य पर गर्व होगा की बेटियां भी परिवार का नाम रोशन करती है। 

कुमार अहमदाबादी

रविवार, फ़रवरी 6

किस से मिलेगा?

 

सप्त मिले पंच में
पंच मिलेंगे ब्रह्म में
ब्रह्म मिलेगा अनंत में
अनंत कहां और किस में
जाकर मिलेगा?
कुमार अहमदाबादी

शनिवार, फ़रवरी 5

वेदना के आंसू

आज इस पल इस घडी

स्टूडियो सिसक रहा है

सितार चौधार आंसू बहा रही है

तबले के आंसू सूख गये हैं

वायोलिन को होश में लाने के प्रयास स कौन करे?

ढोलक गुमसुम है 

वीणा स्तब्ध है, पखवाज सदमे में है

माइक मौन साधे खडा है

हां, 

इन सब की आंखों में जो

अपने परिवार के सदस्य से बिछडने की वेदना है

वो भी अपने आप को भावुक होने से रोकने में असमर्थ है

कुमार अहमदाबादी

सवायी बेटी

अपने कक्ष में देवी सरस्वती गुमसुम और उदास बैठी है। सितार को उन्होंने एक तरफ संभालकर रख दिया है। बहुत मुश्किल से अपने आसुओं को रोक रही है। एसे में नारायण नारायण का उच्चारण करते हुये नारदमुनि प्रवेश करते हैं। देवी सरस्वती नारद मुनि को मौन होने के लिये कहती है,

देवी सरस्वती - नारद जी, आइये, आप को एक कार्य करना है। स्वागत की तैयारी करनी है।

नारद जी - किस के स्वागत की तैयारी करनी है माते?

देवी सरस्वती - आज मेरी पुत्री पृथ्वी पर सरगम का अश्वमेघ यज्ञ पूर्ण कर के वापस लौट रही है। जाओ उस के स्वागत की तैयारी करो। 

नारद जी - आप की आज्ञा का पूर्णतः पालन होगा माते। 

नारद जी स्वागत की तैयारी करने लगते हैं। 


कुछ पल बाद का दृश्य 

माता सरस्वती और पुत्री लता मंगेशकर गले मिली हुयी है। दोनों की आंखों से गंगा जमना बह रही है। 

माता सरस्वती- बेटी, मैं क्या कहूँ, मुझ से तूने जो पाया था, जितना पाया था। उस का कयी गुना तू पृथ्वीवासियों को देकर आयी है। मुझे ही नहीं विश्व की सारी माताओं को इस सत्य पर गर्व होगा की बेटियां भी परिवार का नाम रोशन करती है। 

कुमार अहमदाबादी

शुक्रवार, फ़रवरी 4

हनुमान चालीसा की रचना

(अनुवादक - महेश सोनी)

हनुमान चालीसा की रचना कैसे व कब हुयी?

हनुमान चालीसा की रचना कैसे हुयी?

ये कहानी नही सत्यघटना है। ये बहुत कम लोगों को ये मालूम है।


हनुमान चालीसा गाकर सब पवनपुत्र हनुमान जी की आराधना करते हैं। लेकिन इस को रचना के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। 


तुलसीदास जी के जीवन में घटना है। उस समय यानि इ.स. 1600 की घटना है। 

एक बार तुलसीदासजी मथुरा जा रहे थे। रात घिरने लगी थी। उन्होंने उस दिन आग्रा में ठहरने का निर्णय किया। जैसे जैसे लोगों को मालूम होने लगा की तुलसीदासजी मथुरा पधारे हैं। लोगों के समूह के समूह उन के दर्शन करने के लिये आने लगे। 


अकबर को इस घटना का पता चलने पर उसने बीरबल को पूछा 'ये तुलसीदासजी कौन है?' बीरबल ने कहा 'वे रामभक्त हैं। उन्होंने रामचरितमानस की रचना की है। मैं भी उन के दर्शन कर के आया हूँ। तब अकबर ने भी उन के दर्शन करने की इच्छा व्यक्त की। अकबर ने सिपाहियों की टुकडी भेजी। उस के कप्तान ने वहां जाकर तुलसीदासजी को बादशाह का लाल किले में हाजिर होने का फरमान सुनाया। तुलसीदासजी ने कहा 'मैं रामभक्त हूँ। मुझे बादशाह या लाल किले से कोई मतलब नहीं है। मैं लाल किले में नहीं आउंगा। 

सिपाहीयों द्वारा तुलसीदासजी का उत्तर सुनकर बादशाह को बहुत बुरा लगा। वो लालपीला हो गया। लालपीले होकर हुक्म दिया 'तुलसीदास जी को हथकडीयां पहनाकर लाल किले में लेकर आओ।'

तुलसीदासजी को हथकडियां पहनाकर लालकिले में लाया गया। अकबर ने तुलसीदासजी से कहा 'अगर आप चमत्कारी व्यक्ति हो तो कोई चमत्कार कर के दिखाइये।' 

तुलसीदासजी ने कहा 'मैं तो भगवान रामचंद्र जी का भक्त मात्र हूँ। कोई जादूगर नहीं हूँ कि जादू के खेल या कोई चमत्कार कर के दिखाउं।' ये सुनकर अकबर क्रोधित हो गया। क्रोधित होकर फरमान जारी कर दिया कि 'इसे हथकडियां पहनाकर कालकोठरी में कैद कर दो' 

दूसरे दिन आग्रा के उस लाल किले में न जाने कहां से सैंकडों की संख्या में बंदर आ गये। उन्होंने पूरे लालकिले को अस्तव्यस्त कर दिया। जैसी तबाही हनुमान जी ने अशोक वाटिका में मचायी थी। वैसी तबाही मचा दी। तबाही देखते हुये अकबर ने बीरबल से पूछा 'ये सब क्या हो रहा है? 

बीरबल ने कहा 'हुजूर, आप को चमत्कार देखना था ना! देख लीजिये।'

अकबर ने तुरंत हुक्म देखर तुलसीदासजी को कालकोठरी से मुक्त कर दिया; बेड़ियां खोल दी। तुलसीदासजी ने बीरबल से कहा 'मुझ कोई अपराध किये बिना दंड मिला है। मैं उस कोठरी में श्री रामचंद्रजी और हनुमान जी का स्मरण कर रहा था। आंखों से अश्रु झर रहे थे। हनुमान जी की प्रेरणा से मेरी कलम अपने आप चलने लगी थी। हनुमानजी की प्रेरणा से ही चालीस चौपाईयां लिख दी है। 

जो भी व्यक्ति संकट या पीडा में होगा। वो जब इस का पाठ करेगा। उस के सारे संकट सारी पीडा दूर हो जायेंगे। इसे हनुमान चालीसा कहा जायेगा। 

अकबर बहुत शरमिंदा हुआ। उसने तुलसीदासजी से माफी मांगी। उन्हें पूरे मान सम्मान और सैन्य के पहेरे के मथुरा की ओर साथ विदा किया। 

हनुमान जी इसीलिये संकटमोचन कहे जाते हैं। आज सब हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं। 


बोलो जय श्री राम

बोलो श्री हनुमान दादा जी की जय हो

अनुवादक - महेश सोनी

गुरुवार, फ़रवरी 3

जैन सर की यादगार टिप्पणी



 

प्यास का सुख

 जिंदगी में कभी 

प्यासा होने का सुख भोगा है

तुम सोचोगे! प्यासा होने का सुख 

प्यास का ना मिटना भी एक सुख देता है

ये सुख का एसा पौधा है 

जो अतृप्ति के आंगन खिलता है

जिस पर छटपटाहट के फूल लगते है

आंसू जेठ की तपती दोपहरी बन जाते है

और मन?

एसा रेगिस्तान बन जाता है

जिस में दूर तक पानी की एक बूंद दिखायी नहीं देती

पानी बूंद हा हा, हाहाहाहा

पानी बूंद सही समय पर सही जगह पर बरस जाये

तो रेगिस्तान का सृजन ही नहीं होता

पर अफसोस 

हर जगह बूंद नहीं बरसती

इसलिये धरा अतृप्त ही रह जाती है

और प्यास को भी सुख समझ लेती है

कुमार अहमदाबादी

यादगार टिप्पणी



 

बुधवार, फ़रवरी 2

मीठी क्षणों के सपने

तने से लिपटी ये बेल 
बहुत बेचैन करती है
नभ में लहराता बादल
किनारों से खेलता सागर
थिरकता मचलता बहकता
गुनगुनाता मदमस्त आंचल
ये बसंत ये बहार नस नस
में उठी मदहोश तरंगे
 ये उच्छृंखल भावनाएं
सब तृप्ति की बांहों में 
मसले जाने के लिये
संघर्ष की मीठी क्षणों से
गुजरने के लिये
और उस के बाद पागल होकर
झूमने के लिये बेचैन है
कुमार अहमदाबादी

घास हरी या नीली

*घास हरी या नीली* *लघुकथा* एक बार जंगल में बाघ और गधे के बीच बहस हो गई. बाघ कह रहा था घास हरी होती है. जब की गधा कह रहा था. घास नीली होती है...