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सोमवार, जुलाई 31

उपन्यासों का जमाना

 https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.263516

मैंने कुछ दिन पहले उपन्यासों की बात की थी. आज सोचा इन दिनों नेट पर लगभग सबकुछ मिल जाता है; तो देखूं, पुराने उपन्यास भी उपलब्ध है क्या? खोज के दौरान 60, 70 व 80 के दशक के एक और लोकप्रिय उपन्यासकार गुलशन नंदा के एक दो उपन्यास मिले. 

आज की जेनरेशन शायद ही माने की उस 60 से 80-85 तक के समय में गुलशन नंदा के उपन्यास पढ़ना भी एक रुतबे का काम था. जैसे ही ए  को मालूम होता की बी गुलशन नंदा के उपन्यास पढ़ता है. ए

 की नजर में बी का रुतबा बढ़ जाता था. हालांकि हमारे समाज में छुप छुपकर उपन्यास पढ़े जाते थे. लेकिन अन्य शहरी वर्गों में उपन्यास पढ़ना प्रगतिशील व्यक्ति होने की निशानी थी. उस में भी गुलशन नंदा के उपन्यास पढ़ना रुतबे को और भी बढ़ा देता था. 

गुलशन नंदा ने बहुत ज्यादा उपन्यास नहीं लिखे हैं. मेरे दो पसंदीदा लेखक गुलशन नंदा और वेद प्रकाश शर्मा थे. वेद प्रकाश शर्मा ने गुलशन नंदा के मुकाबले कहीं ज्यादा उपन्यास लिखे हैं. शर्मा ने डेढ सौ से ज्यादा उपन्यास लिखे हैं. जब की गुलशन नंदा ने मुश्किल से साठ पैंसठ उपन्यास लिखे होंगे. हो सकता है इतने भी ना हों. लेकिन उन की लेखनी भाषा शैली धारा प्रवाह, रोचक और रसीली थी. एक बार जो उन का उपन्यास पढ़ लेता था. वो अपने आप उन के दूसरे उपन्यास पढ़ने के लिए लालायित हो जाता था. 

उन के कुछ उपन्यासों पर मुंबई के फिल्मोद्योग ने फिल्में भी बनाई हैं. उन्होंने कुछ फिल्मों की स्क्रिप्ट भी लिखी है. लेकिन कुल मिलाकर कवि नीरज की तरह उन्हें भी माया नगरी रास ना आयी. उन के उपन्यासों पर बनी कुछ फिल्में  खिलौना काजल, सावन की घटा, दाग, कटी पतंग, पत्थर के सनम वगैरह हैं.

कुमार अहमदाबादी 

भोलेनाथ अंतर्ध्यान हो गये

 अनूदित

अनुवादक - कुमार अहमदाबादी

भोलेनाथ एक कविराज की शब्द तपस्या से प्रसन्न हो गये। शिवरात्रि के दिन भोलेनाथ उस के सामने प्रगट हुये। प्रगट होकर बोले *मैं प्रसन्न हुआ। बोल तुझे क्या चाहिए?

कविराज ने कहा “भोलेनाथ, मुझे पत्नी से जूझने की शक्ति दीजिए।"

भोलेनाथ ने कहा “लगता है तुमने भांग का ज्यादा सेवन कर लिया है!”

इतना कहकर भोलेनाथ अंतर्ध्यान हो गये। 

अनुवादक - कुमार अहमदाबादी

बहु मांगे इंसाफ(उपन्यास)

 बहु मांगे इंसाफ

लेखक - वेदप्रकाश शर्मा


एक एसा उपन्यास जिसने उपन्यासों की दुनिया में तहलका मचा दिया था. एसा उपन्यास जिसने वेदप्रकाश शर्मा की लेखनी को बुलंदी पर पहुंचा दिया था. उस समय सामान्यत: एक उपन्यास की 1000 से लेकर ज्यादा से ज्यादा 3000 तक कोपियां बिकती थी. उस समय एसा कहा जाता था. बहु मांगे इंसाफ की दस से पंद्रह हजार कॉपियां बिकी है. बहु मांगे इंसाफ ने जबरदस्त सफलता प्राप्त की थी. इस उपन्यास से पहले वेदप्रकाश शर्मा के उपन्यासों के नियमित चरित्र पात्र विजय, विकास, आशा, नाहर, परवेज और भारतीय सिक्रेट सर्विस का बॉस अजय, प्रिंसेज जैक्सन, सिंगही, अल्फांसे, बागारोफ(ये रूसी जासूस हुआ करता था) पाकिस्तानी जासूस नुसरत तुगलक की जोड़ी; हुआ करते थे. चूं कि ये सब नियमित पात्र थे. इन में सिंगही, प्रिंसेज जैक्सन और अन्य एक दो विलन पात्र थे. लेकिन चूं कि ये रेगुलर पात्र थे. इसलिए पाठक जानते थे. कहानी के अंत में ये पुलिस के हाथ नहीं लगेंगे बल्कि भाग जाएंगे. 


पाठकों की एसी सोच को बदलने के लिए वेदप्रकाश शर्मा ने नए पात्र केशव पंडित का सृजन किया. उस समय दहेज प्रताड़ना के किस्से ज्यादा हो रहे थे. सो, दहेज को केंद्र में रखकर थ्रिलर उपन्यास बहु मांगे इंसाफ लिखा. उस उपन्यास में नए पात्र केशव पंडित का चरित्र चित्रण किया.


विश्वास कीजिए मित्रों, 

वेदप्रकाश शर्मा ने केशव पंडित के पात्र का सृजन सिर्फ उसी उपन्यास के लिए किया था. लेकिन वो पात्र इतना सफल हुआ की बाद में वेदप्रकाश शर्मा को उसे अपना रेगुलर पात्र बनाना पड़ा.


बहु मांगे इंसाफ में अस्सी के दशक के थोड़े बड़े शहर के रईस परिवार की कहानी है. वो रईस परिवार बहुत कम दहेज मिलने का कारण षडयंत्र रचकर अपनी छोटी बहू की हत्या कर देता है. हत्या के समय बड़ी बहू को उस के पीहर भेज देता है. षडयंत्र एसा रचा जाता है, एसा लगे की बहू ने आत्महत्या की है. वे बहु की लाश को ले जाकर एक रेलवे ब्रिज से नीचे फेंक देते हैं. उसी ब्रिज पर बहु का सुसाइड नोट एक कोयले से लिख देते हैं. जो बबूल के पेड़ की लकड़ी के जलने से बनता है. यहीं वो गलती कर देते हैं. 

खैर, 

पुलिस केस होता है. सबकुछ उन की योजना के अनुसार होता है. बीमा कंपनी क्लैम भी पास करने ही वाली थी कि बीमा कंपनी का डिटेक्टिव केशव पंडित अपनी मर्जी से इस केस को हाथ में लेने का निर्णय करता है. जिस के बारे मशहूर था की वो जो केस अपनी मर्जी से हाथ में लेता है. उस में बीमा कंपनी को क्लेम नहीं देना पड़ता. 

लेकिन प्रश्न ये है कि केशव पंडित ने अपने आप ये केस हाथ में क्यों लिया? उसे केस में कहां किस घटना के कारण ये लगा था. इस केस की जांच मुझे करनी चाहिए. जब की पुलिस भी आत्महत्या का केस मान चुकी थी. 

वहीं से केस में बदलाव आता है. केशव पंडित एक के बाद एक परत उधेड़कर रख देता है. लेकिन सब से महत्वपूर्ण प्रश्न ये कि केशव पंडित को केस में कहां या उस परिवार के षडयंत्र में कहां गलती दिखी थी; जिस से उसने केस अपने हाथ में लेने का फैसला किया था? गलती की तरफ संकेत है. लेकिन वो संकेत भर है. 

महेश सोनी

रविवार, जुलाई 30

સ્ત્રી શણગાર કેમ કરે છે?

જરૂરી છે દીવાનાઓ પ્રશંસા રૂપની કરવા

સલામો ચાંદને ભરવા સિતારાઓ જરૂરી છે

કિસ્મત કુરૈશી


હિન્દી ફિલ્મી ગીત ઘૂંધટ કી આડ સે માં શબ્દો છે 'જબ તક ન પડે આશિક કી નજર સિંગાર અધૂરા રહતા હૈ'. રૂપ શણગાર કોના માટે શા માટે કરે છે? પ્રશંસા માટે. દીવાના ન હોત તો સૌંદર્યને પ્રતિભાવ કોણ આપત? ગગનમાં તારલા હોવાથી ચાંદો વધારે સુંદર લાગે છે. તારલા વિના એની સુંદરતા ઝાંખી પડી જાત, ફીકી થઈ જાત. દરબારમાં રાજા એકલો શોભે? ના. દરબારીઓ વિના રાજા અને દરબાર બંને ય ના શોભે. દીવાનાઓના કારણે રૂપની સુંદરતામાં ચાર ચાંદ લાગી જાય છે.


પત્નીની ટેવ હોય છે. એ તૈયાર થયા પછી પતિને અચૂક પૂછે છે કે આ સાડીમાં હું કેવી લાગુ છું. બરાબર લાગુ છું કે નહીં. જો કે એ વાત જુદી છે. એ જ સાડી પહેલા પણ પાંચ વાર પહેરીને પૂછી ચૂકી હોય છે. પણ આ સ્ત્રીઓનો સ્વભાવ હોય છે. પતિને પૂછવાના બહાને તેઓ પતિના હાવભાવ જુવે છે. તેઓ જુવે છે. પતિ મારી તરફ કયી દૃષ્ટિથી જુએ છે. પતિની નજરમાં પ્રશંસા છે કે નહીં. 

તા.૧૫।૦૪।૧૨ના રોજ દૈનિક જયહિંદમાં મારી કૉલમ 'અર્જ કરતે હૈં' માં છપાયેલો આસ્વાદ લેખ

અભણ અમદાવાદી

ગાલગા છંદ છે(નેનો ગઝલ)

ગાલગા

છંદ છે


કાવ્ય આ

યંગ છે


ચાસણી

સંગ છે


શબ્દમાં

રંગ છે


રાજવી

અંધ છે


ફૂંકવો

શંખ છે


છેડવો

જંગ છે


સંવિધાન

તંગ છે


કાયદો

રંક છે


યોજના

ભંગ છે


હાટ તો

બંધ છે?


પપ્પુડો

નંગ છે

અભણ અમદાવાદી

रामबाण(सारांश)

 रामबाण

रामबाण एक एसे वैज्ञानिक की कहानी है. जो विलन के लिए एसा कम्प्यूटर बनाता है. जो भविष्य बताता है, बल्कि उसे मजबूरन बनाना पड़ता है. लेकिन वो विलन भी कम माया नहीं था. दूसरी तरफ नायक भी जानता था. खलनायक क्या कर सकता है. 

खलनायक भविष्य दर्शक कंप्यूटर बनवाकर नायक के मस्तिष्क से उस पूरे समय की याददाश्त नष्ट कर देता है. कौन से समय की? जब से खलनायक और नायक के बीच पहली मुलाकात हुई तब से लेकर कंप्यूटर बनवाने के बाद उसे वापस उस के बेडरूम तक पहुंचाने के बीच की सारी याददाश्त खलनायक नष्ट कर देता है. ताकि वो दुबारा वैसा कंप्यूटर बना जा सके और ना ही बनाए हुए कंप्यूटर को नष्ट करने का कोई विचार आए. जब इंसान को ये ही याद नहीं रहेगा की उसने क्या बनाया है तो वो उसे मिटाने का सोचेगा भी कैसे?

लेकिन इस के बावजूद नायक अपनी चाल खेल जाता है. वो उस भविष्य दर्शक कंप्यूटर को नष्ट करने के लिए पहुंच जाता है. कैसे? बस इस कैसे को जानने के लिए ही ये उपन्यास पढ़ने में मजा आता है.

नायक इतना जबरदस्त प्लान बनाता है.जो रामबाण साबित होता है. खलनायक चाहते हुए और जानते  हुए भी उसे रोक नहीं पाता. 

कुमार अहमदाबादी

रामबाण (उपन्यास के बारे में)

 आखिरी उपन्यास ये पढ़ा है. इस की कहानी और राकेश रोशन की आखिरी एक दो मूवी में से एक मूवी की कहानी का मूल विचार एक ही है. 

रामबाण एसे व्यक्ति की कहानी है. जिसने भविष्य देखा है. संक्षेप में इस की कहानी लिखता हूं. उस से पहले इस के एक दृश्य के बारे में लिखता हूं. जिस से आप को कुछ अंदाजा हो जाएगा. 


राजीव(नायक) की नींद से आंख खुलती है. उस की नजर सामने पड़े ड्रेसिंग टेबल पर मौजूद दर्पण पर पड़ते ही वो चौंक जाता है. उस की चीख निकल जाती है. उस के मुंह से शब्द निकलते हैं "हे भगवान एसा कैसे हो सकता है." वो कूदकर दर्पण के पास पहुंचता है. दर्पण में दिख रहे अपने अक्स को नजदीक से देखता है. देखते देखते सोचता है.

"कैसे...कैसे रात ही रात में मेरे बाल इतने लंबे कैसे हो गए? मूर्खों की मानिंद बड़बड़ाकर मानो उसने खुद से ही पूछा "ये दाढ़ी, ये मूंछ, ये सिर के इतने लंबे बाल ! भला एक ही रात में ये कहां से आ गए? नहीं...ये मेरे नहीं हो सकते."

कहने के साथ उसने अपने चेहरे पर मौजूद दाढ़ी मूंछों को नोचने की कोशिश की तो हलक से एक और चीख निकल गई.

जबरदस्त पीड़ा का एहसास हुआ था उसे. 

बाल असली थे.

यह महसूस करते ही उसका आश्चर्य सभी सीमाएं लांघ गया. 

बौखलाकर कमरे में इधर उधर देखा.

कमरा उसी का था.

बेड उसी का था.

सबकुछ उसी का था. 

यहां तक कि चेहरा भी उसी का था. 

अगर नहीं थे तो केवल वे बाल उसके नहीं थे. जो उसके चेहरे और सिर पर उगे हुए थे.... यह बात उसकी समझ में नहीं आ रही थी कि रात ही रात में वे बाल कहां से आ गए?

उसे अच्छी तरह याद था. रात के समय वह अच्छा भला अपने बिस्तर पर सोया था. 

कल ही दाढ़ी बनाई थी उसने.

जबकि बाल इतने बढे हुए थे जैसे सालों से दाढ़ी ना की गई हो.

सिर के बालों की हालत भी वैसी ही थी. 

पागलों वाली  हालत हो गई उसकी. 

अपने आप से ही डरने लगा.

हलक फाड़कर चिल्लाया "किशनलाल....किशनलाल"

..................

ब्रेड पर मक्खन लगाते किशनलाल के हाथ से छुरी छूट गई.

एसा लगा था जैसे मालिक ने पुकारा हो.

मगर कहां?

भला मालिक कहां से पुकारेंगे?

उन का तो चार साल से पता ही नहीं है. जाने कहां चले गए?

आवाज उसे अपने कानों का भ्रम लगी.

सो, छुरी वापस उठाने के लिए हाथ बढ़ाया. 

हाथ बढ़ाया ही था कि आवाज पुनः सुनाई दी "किशनलाल...किशनलाल..अरे कहां मर गया तू?"

आवाज थी और ...उसके मालिक की ही थी. 

कंगारू की तरह कुलांचे मारता वह किचन से बाहर निकला. 

ड्राइंग रूम में पहुंचा.

दो कमरों का छोटा सा फ्लैट था वह. 

उसे पुकारते मालिक की आवाजें बैडरूम से आ रही थी. 

दरवाजा बंद था उसका. 

केवल बंद ही ही नहीं था बल्कि ड्राइंग रूम की तरफ से ताला भी लटका हुआ था. ताला खुद किशनलाल ने लगाया था. 

किशनलाल हैरान परेशान!

बात समझ में नहीं आ रही थी कि एसा कैसे हो रहा है.

चार साल बाद अचानक कहां से लौट आए मालिक?

और कैसे सीधे अपने कमरे में पहुंच गए जिसे हर रोज की तरह उसने कल साफ करके उसने ही ताला लगाया था. 

हकबकाया सा वो बोला "हां मालिक, मैं यहीं हूं. 

अंदर से जोर से आवाज आई "अबे बाहर से क्यों बंद कर दिया इसे?

"अभी खोलता हूं मालिक"

टेबल पर रखी चाबी लेकर दरवाजे की तरफ लपका. दिमाग में ख्याल उभरा "ये क्या कर रहा मैं?चार साल से गायब मालिक भला इस कमरे में कैसे बंद हो सकते हैं? कहीं कोई भूत वूत का चक्कर तो नहीं है ?

उसे जवाब सूझे उस से पहले एक बार फिर दरवाजा तोड़ डालने वाले अंदाज में बजाकर उसे पुकारा गया. 

अब.... किशनलाल ने न सिर्फ सोचे समझे बगैर चाबी ताले में डालकर घुमा दी बल्कि डंडाला(स्टॉपर) सरकाकर दरवाजा भी खोल दिया. 

यहां प्रथम दृश्य पूरा होता है

महेश सोनी

अल्फांसे की शादी(उपन्यास की कहानी)

आज मैंने वेदप्रकाश शर्मा के दो उपन्यासों के मुखपृष्ठ पोस्ट किये थे. उस में से रामबाण के बारे में लिख चुका हूं. अब दूसरे उपन्यास

 अल्फांसे की शादी  के बारे में लिख रहा हूं. 


अल्फांसे वेदप्रकाश शर्मा के उपन्यासों का नियमित चरित्र यानि पात्र था. जो की एक अंतरराष्ट्रीय ठग था. मुझे लगता है. वेदप्रकाश शर्मा ने अल्फांसे का पात्र चार्ल्स शोभराज के व्यक्तित्व को ध्यान में रखकर बनाया था. हालांकि दोनों पात्रों में एक मुख्य फर्क ये था. चार्ल्स शोभराज ठगी करता था. लेकिन वो ज्यादातर बड़ी उम्र की महिलाओं को शिकार बनाता था. जब की अल्फांसे को महिलाओं में कोई रुचि बल्कि रत्ती भर भी नहीं थी. इस के अलावा दोनों पात्रों में काफी समानताएं थी. 

बहरहाल, वापस उपन्यास की कहानी पर लौटते हैं. 


अल्फांसे और भारतीय जासूस विजय दोनों एक दूसरे के शत्रु थे. लेकिन एक दूसरे की खूबियों के प्रशंसक भी थे. विजय कभी किसी को उस के असली नाम से नहीं बुलाता था. अपनी तरफ से कोई न कोई उपनाम रख देता था. अल्फांसे को विजय लूमड़ प्यारा कहता था. जब की अल्फांसे विजय को जासूस प्यारे के नाम कहता था. 


एक दिन विजय को पता चलता है. अल्फांसे शादी करने वाला है. उस का दिमाग घूम जाता है. अल्फांसे खुद उसे बताता है. वो शादी करनेवाला है. लड़की लंदन में रहती है. विजय को विश्वास नहीं होता. अल्फांसे उसे शादी की तारीख भी बता देता है. ये भी कहता है. तुम्हें हर हाल में मेरी शादी में आना है. विजय को मामला हज़म नहीं होता. वो शादी के दिन से कई सप्ताह पहले लंदन चला जाता है. विजय ने अल्फांसे को अपने बारे में सूचित भी नहीं किया की वो आ गया है. वहां जाकर अल्फांसे की गतिविधियों पर नजर रखने लगा. लेकिन अल्फांसे तो प्यार में दीवाना हो चुका था. वो दिन रात या तो अपनी भावि पत्नी के साथ मीठी मीठी बातें करता रहता या फिर उस की तस्वीर अपने हाथों में लेकर उस तस्वीर से बातें करता रहता था. विजय ने कई सप्ताह वहां बिताए. लेकिन अल्फांसे की कोई शंकास्पद गतिविधि नजर नहीं आई. आखिर विजय को भी लगने लगा की अपना लूमड साला सचमुच बावला हो गया है.


शादी का दिन आ गया. तब तक विजय के साथी आशा, नाहर, परवेज, विकास वगैरह भी शादी में शामिल होने के लिए पहुंच गए. शादी वाले दिन फेरों के समय कुछ पलों के लिए बिजली गुल हो गई. उस समय अंधेरे में विजय को मालूम हुआ कि लूमड साला किस चक्कर में है. अल्फांसे जिस महिला से शादी कर रहा था. उस महिला का बाप एक सिक्योरिटी दल का प्रमुख था. और उस सिक्योरिटी दल की सिर्फ एक ही जिम्मेदारी थी. कोहिनूर हीरे की सिक्योरिटी करना. 


कितना लम्बा खेल खेला था अल्फांसे ने कोहिनूर उड़ाने के लिए उस की सिक्योरिटी करने वाले दल के प्रमुख की लड़की से शादी करके. जैसे ही विजय को मालूम हुआ. अल्फांसे क्या खेल खेल रहा है. वो भी योजना की प्रशंसा किए बिना नहीं रह सका. लेकिन अब विजय के सामने एक दो प्रश्न थे. क्या वो अल्फांसे को कोहिनूर चुराने दे. अल्फांसे के कोहिनूर चुराने के बाद वो अल्फांसे के पास से कोहिनूर उड़ाकर भारत ले जाए; या वहां की सीक्रेट सर्विस को जानकारी दे दे की कोहिनूर खतरे में है. क्यों कि अंतरराष्ट्रीय ठग अल्फांसे उसे चुराने की योजना पर काम कर रहा है. न सिर्फ काम कर रहा है बल्कि इतना आगे बढ़ गया है. कोहिनूर की सुरक्षा करने वाले विशेष दल के प्रमुख के घर तक उन का दामाद बनकर पहुंच चुका है. 

इन्हीं सवालों का पाने के लिए उपन्यास अल्फांसे की शादी पढ़ना पड़ता है.

महेश सोनी

शनिवार, जुलाई 29

नेरेशन क्या होता है

 नेरेशन

जिस पोस्ट में बहु मांगे इंसाफ की कहानी संक्षेप में बताई थी. उस में एक शब्द नेरेशन का उपयोग किया था. शायद ये शब्द कई पाठकों के लिए नया होगा. नेरेशन कहानी की मुख्य घटना को, आइडिया को बताने को कहते हैं. 


मैं ये मानकर लिख रहा हूं की आप में से ज्यादातर वाचकों ने शोले फिल्म देखी होगी. शोले फिल्म की कहानी को संक्षेप में बतानी ही तो कैसे बताएंगे या क्या बताएंगे?

कुछ एसे


शोले

ठाकुर अपने गब्बर द्वारा अपने पूरे परिवार को खत्म करने का बदला लेता है. ठाकुर बदला लेने के लिए *जैसे को तैसा* का तरीका अपनाता है. गब्बर एक खूंखार डाकू है. गब्बर जैसे खूंखार आदमी से लड़ने के लिए ठाकुर शहर से दो मुजरिमों को पैसा देकर बुलवाता है. वे पैसे के बदले गब्बर को जिंदा पकड़कर ठाकुर के हवाले करते हैं. शोले की कहानी कहावत लोहे को लोहा काटता है को भी सच साबित करती है.


सत्ते पे सत्ता का नेरेशन ये होगा. पुरुष चाहे एक हो या एक से ज्यादा; नारी के बिना उन का जीवन पशुओं जैसा ही होता है. 

कहा जाता है की एक औरत ही मकान को घर बनाती है. सत्ते पे सत्ता में केंद्र में यही बात यही सूत्र है. 


मुकद्दर का सिकंदर 

इंसान मूल: इंसान है. जन्म से उस के धर्म का कोई लेना देना नहीं होता. धर्म उसे जन्म के बाद मिलता है. इंसान को जीने के लिए मकसद चाहिए. मकसद पूरा होते ही इंसान वापस धरती की गोद में समा जाता है. 


याराना

मैं अमिताभ बच्चन और अमजद खान की याराना मूवी की बात कर रहा हूं. जीवन में सच्चे दोस्त एक दूसरे की लिए कुछ भी कर सकते हैं. अपना सबकुछ दाव पर लगा सकते हैं. 

कुमार अहमदाबादी

वो उपन्यास वो दृश्य(अनुसंधान)

केशव पंडित बीमा कंपनी का बेहद चालाक काइयां डिटेक्टिटिव यानि जासूस था. उस के बारे में मशहूर था कि जिस केस की जांच केशव पंडित खुद अपने हाथ में लेता है. उस केस में बीमा कंपनी को क्लेम नहीं देना पड़ता. एसा उस का करियर था. इधर छोटी बहू के घरवाले केस को लेकर निश्चिंत थे. क्योंकि तब तक जांच जिस तरह से हुई थी. उन्हें लग रहा था. उनका षडयंत्र सफल हो रहा है. बस कुछ ही दिनों की बात है. फिर छोटी बहू के बीमे का चेक उन के हाथ में आने ही वाला है. 

लेकिन.......जैसे ही उन्हें मालूम हुआ कि केशव पंडित ने खुद अपनी मर्जी से केस की जांच अपने हाथ में ली है. उन सब पर जैसे बिजली टूट पड़ी. सारे पुरुष जानते थे कि केशव पंडित किस व्यक्तित्व का नाम है. वो कैसे किसी केस की बाल की खाल निकलता है. वे सतर्क हो गए. अपने आप को केशव पंडित के सवालों का जवाब देने के लिए तैयार करने लगे. सोचने लगे कि वो क्या क्या पूछ सकता है. हमारी योजना में उसे कहां कौन सा छेद नजर आ सकता है. उस के कौन से सवाल से हम घर सकते हैं या शंका के घेरे में आ सकते हैं.सब के सब अपने आप को केशव पंडित का सामना करने के लिए तैयारी में लग गए. एसा केशव पंडित का खौफ था. अब किसी भी दिन केशव पंडित से उन का सामना हो सकता था. लेकिन दो दिन सामना नहीं हुआ. केशव पंडित नहीं आया. ये दो दिन उन के लिए बहुत लम्बे बीते. 


अब वो दृश्य शुरू होता है

आखिर कार तीसरे दिन वे सब ड्राइंग रुम में बैठे थे तब डोरबेल बजी. 

जैसे ही नौकर ने पूछा "कौन है" दरवाजे के बाहर से आवाज़ आई "मैं हूं केशव पंडित"

सुनते ही कमरे में मौन छा गया. सब एक दूसरे को आंखों से दरवाजा खोलने के लिए कहने लगे. किसी की हिम्मत नहीं हुई की वो स्वयं अपने आप जाकर दरवाजा खोल दे. 

आखिरकार ससुर ने नौकर को दरवाजा खोलने के लिए कहा. नौकर बेचारा मालिक का हुक्म कैसे टालता. वो उठकर दरवाजा खोलने के लिए गया. इधर बाकी सब एसे एलर्ट होकर बैठ गए. जैसे किसी तूफान का सामना करना है. 

नौकर ने दरवाजा खोला. सामने केशव पंडित खड़ा था. उस के चेहरे पर मुजरिम के कलेजे को चीर के रख देने वाली मुस्कान थी. दरवाजा खोलकर नौकर ड्राइंग रूम में जाकर बैठ गया. पीछे पीछे केशव पंडित भी गया. कुर्सी पर बैठ कर केशव पंडित ने सब को बारी बारी से देखा. सब ऐसे बैठे थे. जैसे रेड अलर्ट पर हों. 

केशव पंडित फिर पिता की आंख में आंख डालकर चंद पल मुस्कुराता रहा. फिर बहुत ही कातिल मुस्कान के साथ बोला *आप सब तो मेरे सवालों का जवाब देने के लिए एसे तैयार बैठे हैं. जैसे बच्चा शिक्षक के सामने मौखिक परीक्षा देने के लिए तैयार होकर बैठा हो. लगता है आपने मेरे बारे में बहुत कुछ सुन रखा है* सुनते ही पिता के छक्के छूट गए. उन्हें लगा ये कमबख्त कितना घाघ है. ये समझ गया कि हम सवालों का सामना करने के लिए तैयार होकर बैठे हैं. वे हड़बड़ाए और एकदम से शरीर को ढीला छोड़कर बोले "नहीं नहीं, एसी कोई बात नहीं है." ये सुनकर केशव पंडित फिर मुस्कुराया. उसने दूसरा गोला फेंका. वो बोला *आप पस्त भी बहुत जल्दी हो जाते हैं* ये सुनकर पिता ये सोचकर और ज्यादा घबरा गए की इस की आंखें हैं या एक्स रे मशीन. कमबख्त न समझ गया कि मैं पस्त हो गया हूं बल्कि मुझे बता भी दिया. यहां से उन की सारी प्लानिंग धरी की धरी रह गई. केशव पंडित ने उन्हें मानसिक चक्रव्यूह में एसा उलझाया की उस के सवालों के बावलों की तरह उत्तर देते रहे. बहुत कुछ एसा बोल गए जो वे बताना नहीं चाहते थे. 


ये सारा दृश्य मैंने आनंद जी को सुनाया था. जिसे सुनकर आनंद जी वो बात कही थी. जो मैंने इस से पहले की पोस्ट में लिखी है. 

ये थी मेरी और आनंद जी की पहली यादगार मुलाकात, जो मुझे आज भी ज्यों की त्यों याद है. क्यों? क्यों कि आनंद जी ने मेरी मुलाकात मुझ ही से करवाई थी. 

महेश सोनी

वो उपन्यास वो दृश्य

आज सुबह आनंद जी को जन्म दिवस की बधाई देते समय मैंने वेदप्रकाश शर्मा के उपन्यास बहु मांगे इंसाफ के एक दृश्य का उल्लेख किया था. उस दृश्य का वर्णन करूं. उस से पहले भूमिका बांधता हूं. 

बहु मांगे इंसाफ की कहानी एक दौलतमंद मगर दहेज के भूखे परिवार की कहानी थी. परिवार के सारे सदस्य उच्च शिक्षित थे एवं पुरुष महत्वपूर्ण पदों पर थे. ज्यादातर पुरुष न्यायक्षेत्र से जुड़े क्षेत्रों में थे. 

परिवार में मुखिया उस की पत्नी दो बेटे दो बहुएं और एक नौकर इतने व्यक्ति थे.

छोटे बेटे की ससुराल से उम्मीद से कम दहेज आया होने से वे नाराज थे. इस नाराजगी के कारण उस दिन छोटी बहू को जला देते हैं. जिस दिन बड़ी बहू अपने पीहर जाती है. उस के बाद एसा षड्यंत्र रचते हैं कि वो आत्महत्या लगे. वो अपने षडयंत्र पर अमल भी कर लेते हैं, अर्थात बहू को छोटी बहू को मार देते हैं. वे बहू को मारते इसलिए हैं की बहू की बीमे की रकम भी उन्हें मिल जाए और छोटे बेटे की दुबारा शादी भी कर सके.

उन का षडयंत्र लगभग सफल हो गया था, लेकिन अचानक बीमा कंपनी के डिटेक्टिव केशव पंडित को लगता है. इस घटना में कुछ असामान्य है. वो बीमे का चेक रुकवा देता है और अपनी तरह से षडयंत्र का भंडाफोड़ करने निकल पड़ता है. 

(अनुसंधान...अगली पोस्ट में....)

महेश सोनी

पुष्प हाला(रुबाई)

 मनचाही सुगंध पुष्प माला में है 

स्वादिष्ट व श्रेष्ठ स्वाद हाला में है 

चखते ही नहीं कभी जो वो क्या जाने 

क्या स्वाद सुगंध पुष्प हाला में है 

कुमार अहमदाबादी

जिंदगानी देखी(रुबाई)


मासूम व पवित्र जिंदगानी देखी

कण कण में कथा तथा कहानी देखी

दो चार पलों की जिंदगी में मैंने 

ठहराव कभी कभी रवानी देखी 

कुमार अहमदाबादी

रवानी = लगातार गतिशील

बुधवार, जुलाई 26

बेवफा को भूल जाना चाहिए (गज़ल)


 बेवफा को भूल जाना चाहिए

भूलकर फिर मुस्कुराना चाहिए


मुस्कुराना इक हुनर है दोस्तों

ये हुनर सब को सिखाना चाहिए


शांति से उत्सव मनाने के लिये

शत्रु से भी दोस्ताना चाहिए


दोस्तों को जानने के वास्ते

दुश्मनी को आजमाना चाहिये


हुस्न से दरखास्त है तू कत्ल कर

प्यार हम को कातिलाना चाहिये


मूर्तियों को तोडना आसान है

जब बनानी हो जमाना चाहिए


बात मेरी याद रखना ए 'कुमार'

प्यार शब्दों से बढ़ाना चाहिए

कुमार अहमदाबादी

मंगलवार, जुलाई 25

शीतल छाया(रुबाई)

अब तक डूबे थे धन की माया में

या फिर नारी की कोमल काया में

संध्या है अब कुछ पल धीरज धर कर

बैठो सत्संग की शीतल छाया में

कुमार अहमदाबादी

मधुवन जैसा मन(रुबाई)

मधुवन जैसा मन है तेरा जानम 

चंदन जैसा तन है तेरा जानम

यौवन धन की मालिक है तू क्यों की

जेवर सा यौवन है तेरा जानम

कुमार अहमदाबादी

रविवार, जुलाई 23

इक दीवानी थी(रुबाई)


 इक दीवानी थी इक दीवाना था

मीठा प्यारा कोमल अफसाना था

दोनों की अपनी ही थी इक दुनिया

दोनों का उस में आना जाना था

कुमार अहमदाबादी

उपयोगी रचनाएं(मुक्तक)

स्याही जब कागज़ पर छप जाती है

उस की हस्ती उस में मिल जाती है

कागज पर छप कर ज्यादातर स्याही

उपयोगी रचनाएं बन जाती है

कुमार अहमदाबादी

शुक्रवार, जुलाई 21

एक हल (ग़ज़ल)

एक हल

साथ चल


कल था कल

कल है कल


खो गया 

हाथ मल


भाई है

आत्मबल


बात अब

मत बदल


मत बहा

व्यर्थ जल


तोड़ मत 

आज फल


लो गया

पल में पल


मान जा 

मत बदल


तू किसी

को न खल


शांति से

ख़ोज हल


ए कुमार

अब तू टल

कुमार अहमदाबादी

गुरुवार, जुलाई 20

ગરબે રમવા આવો મા અંબા (ગરબો)


ગરબે રમવા આવો મા અંબા નોરતાની રાત છે

રાસ પણ રમીશું સાથે મા અંબા નોરતાની રાત છે

આની સાથે એની સાથે મારી સાથે તેની સાથે

ગરબે રમવા આવો મા અંબા..નોરતાની રાત છે....


ઝમક્યું રે ઝમકયું માં નું મા નું ઝાંઝર ઝમક્યું રે

ચમકી રે ચમકી માની ચુંદલડી ચમકી રે

આની સાથે મારી સાથે મારી સાથે આની સાથે

ગરબે રમવા આવો મા ચામુંડા.....નોરતાની રાત છે


રઢિયાળી રાત છે તારાઓ સાથે છે

મોજીલી રાત છે ચાંદલિયો સાથે છે

આની સાથે મારી સાથે મારી સાથે આની સાથે

ગરબે રમવા આવો મા દુર્ગા........ નોરતાની રાત છે


શેરીઓ શણગારી છે શણગાર્યા ચોક છે

સોસાયટી આખે આખી અને શણગારી છે

આની સાથે મારી સાથે મારી સાથે આની સાથે

ગરબે રમવા આવો મા નવદુર્ગા નોરતાની રાત છે

અભણ અમદાવાદી 

जूझने की शक्ति(लघु वार्ता)

भोलेनाथ एक कविराज की शब्द तपस्या से प्रसन्न हो गये। शिवरात्रि के दिन भोलेनाथ उस के सामने प्रगट हुये। प्रगट होकर बोले "मैं प्रसन्न हुआ। बोल तुझे क्या चाहिए?"

कविराज ने कहा “भोलेनाथ, मुझे पत्नी से जूझने की शक्ति दीजिए।"

भोलेनाथ ने कहा “लगता है तुमने भांग का ज्यादा सेवन कर लिया है!”

इतना कहकर भोलेनाथ अंतर्ध्यान हो गये। 

अनुवादक  कुमार अहमदाबादी

स्त्री सिंगार क्यों करती है?

 स्त्री सिंगार क्यों करती है

जरूरी है दीवानाओ प्रशंसा रूप नी करवा

सलामो चांद ने भरवा सिताराओ जरूरी छे

किस्मत कुरैशी

हिंदी फिल्मी गीत 'घूंघट की आड़ से..' में शब्द हैं "जब तक न पड़े आशिक की नजर सिंगार अधूरा रहता है". स्त्री सिंगार किस के लिए करती है? वो अपने पति की अपने साथी की प्रशंसा को पाने के लिए सिंगार करती है. प्रशंसा करने वाले न होते तो सौंदर्य किस से प्रतिभाव प्राप्त करता? किस के लिए सिंगार करता? यूं तो स्त्री स्वयं सौंदर्य की परिभाषा है. तो फिर वो सिंगार क्यों करती है? दरअसल वो अपने कुदरती सौंदर्य को और ज्यादा सुंदर बल्कि सुंदरतम बनाने के लिए सिंगार करती है. जैसे कवि कविता लिखने के लिए परमात्मा विशेष गुण देता है. कवि फिर क्या करता है? परमात्मा के दिए गुण को निखारने के लिए, ज्यादा असरकारक बनाने के लिए कविता लिखने की विभिन्न तकनीक सीखता है. कोई दोहों की, कोई छप्पों की, कोई रुबाई की, कोई गजलों की या कोई किसी और तकनीक को सीखता है. इस से परमात्मा द्वारा मिले गुण का प्रभाव अनेक गुना हो जाता है.


ईसी तरह स्त्री द्वारा सिंगार किए जाने पर स्त्री को मिले कुदरती सौंदर्य में अनेक गुना वृद्धि हो जाती है. लेकिन ये वृद्धि तब मायने रखती है या यूं कहो सार्थक हो जाती है. जब स्त्री का साथी उस के सौंदर्य की प्रशंसा करता है. 


अगर आसमान में चांद अकेला होता तो शायद उतना खूबसूरत ना लगता. जितना सितारों के होने से लगता है. सितारे एक तरह से चांद का सिंगार है. उसी तरह स्त्री चांद है. उस की प्रशंसा वो सितारे हैं. जो चांद के सौंदर्य को चार चांद लगा देते हैं. 

कुमार अहमदाबादी

ता.15-04-2012 के दिन गुजराती वर्तमान पत्र जयहिंद में छपा लेख परिमार्जन के बाद.

बुधवार, जुलाई 19

પ્રેમ અને સમર્પણ(અનુવાદિત બોધકથા)

 

પ્રેમ અને સમર્પણ
(મહાભારતમાંથી)
લેખિકા - મીરા
અનુવાદક - અભણ અમદાવાદી

આ કથા આંબાના વૃક્ષ અને એના પર રહેનાર એક પોપટની છે. ગીચ જંગલમાં આંબાનું એક વૃક્ષ હતું. પોપટની જન્મ એ જ વૃક્ષ પર થયો હતો. એ ત્યાં જ રહેતો હતો. પોપટ આખો દિવસ આમ તેમ ઊડીને ખોરાક શોધતો. સાંજે પાછો એ જ વૃક્ષ પર આવીને આરામ કરતો, ઊંઘી જતો.
એક દિવસ જંગલમાં એક શિકારી આવ્યો. એણે હરણાં નો શિકાર કરવા માટે ઝેરમાં બોળેલું તીર એની તરફ ચલાવ્યું. તીર લક્ષ્યને વીંધી ના શક્યું એ લક્ષ્ય ચૂકી ગયું. લક્ષ્ય ચૂકેલું તીર જઈને વૃક્ષના થડમાં ખૂંપી ગયું. તીર વિષ વૃક્ષમાં ખુંપ્યા પછી એનું ઝેર વૃક્ષમાં ફેલાવા માંડ્યું. ઝેરની અસરના કારણે વૃક્ષ સુકાવા માંડ્યું. ધીમે ધીમે એના પાંદડા અને ફૂલ ખરવા માંડ્યા. ધીમે ધીમે વૃક્ષ ઠુંઠ બની ગયું. જેમ જેમ વૃક્ષ સુકાતું ગયું. એમ એમ એના પર રહેનાર પક્ષીઓ એક પછી એક જવા માંડ્યા. ધીમે ધીમે બધા જતાં પણ રહ્યાં. પરંતુ વૃક્ષના થડમાં રહેનારા એ પોપટે ત્યાં જ રહેવાનો નિર્ણય કર્યો. એ વૃક્ષ સાથે લાગણીથી બંધાયેલો હતો. એને વૃક્ષથી અનહદ પ્રેમ હતો, માયા હતી. એ લાગણીશીલ પોપટે વૃક્ષની સાથે જ પ્રાણ છોડવાનો નિર્ણય લઈ લીધો. એણે થડથી બહાર નીકળવાનું છોડી દીધું. ખોરાક ના મળવાના કારણે ધીમે ધીમે પોપટનું શરીર પણ સુકાવા માંડ્યું.
એની ત્યાગ વૃત્તિ, ધીરજ, લાગણીશીલતા, સમર્પણ ભાવ, સુખ દુઃખમાં સંબંધ નિભાવવાના સ્વભાવથી ભગવાન ખુશ થઈ ગયા. ભગવાને ઈન્દ્ર દેવને પોપટ પર મોકલ્યા.
ઈન્દ્ર દેવ વૃક્ષ પાસે પહુંચ્યા. એમને વૃક્ષને કહ્યું "એ પ્રેમાળ શુક, આ જંગલમાં અનેક એવા વૃક્ષ છે. જે ફળ ફૂલથી ભરપૂર છે. તે છતાં તું ફળ ફૂલ વિનાના આ વૃક્ષ પર ક્રમ રહે છે? આ વૃક્ષ તો હવે મૃતઃપ્રાય છે. આજે નહીં કાલે સમાપ્ત થઈ જશે. તું બીજા લીલાછમ વૃક્ષ પર કેમ નથી જતો?
વૃક્ષ પ્રતિ સમર્પિત ધર્માત્મા પોપટે કહ્યું "દેવરાજ, હું આ વૃક્ષની છાયામાં નાનાથી મોટો થયો છું. અહીં મેં મારું બાળપણ વિતાવ્યું છે. આ વૃક્ષે મને કાયમ બાળકની જેમ સાચવ્યો છે: મારું ધ્યાન રાખ્યું છે. મીઠા ફળ ખવડાવ્યા છે. સદગુણો શીખવાડયા છે. મને પોતાનામાં સંતાડીને શત્રુઓથી બચાવ્યો છે. આ બધા કારણોસર હું આને પ્રેમ કરું છું માટે હું છોડવા નથી માંગતો. એવું નહીં થાય કે આજે આના માઠા દિવસો આવ્યા છે ત્યારે હું આને છોડી દઉં. બીજે જતો રહું. જેની સાથે સુખ ભોગવ્યું છે એની સાથે દુઃખ પણ ભોગવીશ. તમે દેવ છો છતાં મને ખોટી સલાહ કેમ આપો છો? જ્યારે આ સમર્થ હતું. શક્તિ સંપન્ન હતું. ત્યારે એના આસરે મેં જીવન વિતાવ્યું છે. આજે જ્યારે શક્તિહીન છે ત્યારે છોડી દઉં? હું આવું નહીં કરું.
ઈન્દ્રને પોપટની વાણી અમૃત સમાન લાગી. ઇન્દ્રદેવ ખુશ પણ થયા. એમને દયા આવી ગયી. તેઓ બોલ્યાં હે શુક, તુ મારી પાસે એક વરદાન માંગી શકે છે" પોપટે કહ્યું "હે દેવ, જો તમારે વરદાન આપવું હોય તો એ આપો કે મારું પ્રિય આ વૃક્ષ ફરી પહેલાં ની જેમ જ લીલુંછમ થઈ જાય.
ઈન્દ્ર દેવે અમૃત રૂપી વરસાદ વરસાવીને વૃક્ષના મૂળને સિંચ્યા. મૂળ સિંચાવાથી વૃક્ષ પહેલાં ની જેમ જ પાછું લીલુંછમ થઈ ગયું.
ઉપર બેસી કર્મોના ચોપડા લખતા ચિત્રગુપ્તે પોપટના ખાતામાં એક શ્રેષ્ઠતમ સત્કર્મ લખી દીધું.
લેખિકા - મીરા
અનુવાદક - અભણ અમદાવાદી

लेखन का बेसिक ज्ञान (कोपी पेस्ट)


प्रत्येक लेखक को इसका बेसिक ज्ञान  होना ही चाहिए।

ये सदैव ध्यान रखें कि पूर्णविराम दोहे या कविता के पदों में दो से अधिक बार नहीं लिखा जाता । ये भी व्यवहार में ही देखने को मिलता है , व्याकरणसम्मत नहीं है।

हिंदी के लेखक खासतौर से कविताओं में कई - कई विस्मयादिबोधक चिह्न लगाते हैं जो बिल्कुल भी सही नहीं है।

मैं प्रतिदिन पांडुलिपियों में ऐसे ग़लत चिह्न देखती हूँ। अक्सर टोकने पर भी लेखक सही चीज़ स्वीकार नहीं करना चाहते।

कई बार प्रूफ देने पर कुछ लोग समझ जाते हैं किंतु ज़्यादातर अपने अज्ञान के साथ हीआगे बढ़ने में विश्वास रखते हैं।

आप भी जानिए विराम चिह्नों की उपादेयता के बारे में...


 विराम चिन्हों के प्रकार या भेद

पूर्ण विराम (।)

अर्द्ध विराम (;)

अल्प विराम (,)

प्रश्न चिन्ह (?)

उप विराम (अपूर्ण विराम) (:)

विस्मयबोधक चिन्ह (!) या  आश्चर्य चिन्ह

निर्देशक चिन्ह (डैश) (-) या संयोजक चिन्ह या सामासिक चिन्ह

कोष्ठक ( ) [ ] { }

अवतरण चिन्ह (‘ ’)(“ ”) या उध्दरण चिन्ह

विवरण चिन्ह (:-)

पुनरुक्ति सूचक चिन्ह („ „)

लाघव चिन्ह (०)

लोप चिन्ह (… , ++++)

दीर्घ उच्चारण चिन्ह (ડ)

हंसपद  या त्रुटिबोधक चिन्ह (^)

तुल्यता सूचक (=)

समाप्ति सूचक (-0-, —)

विराम चिन्ह क्या है

विराम चिन्ह (Punctuation Mark) की परिभाषा – भित्र-भित्र प्रकार के भावों और विचारों को स्पष्ट करने के लिए जिन चिह्नों का प्रयोग वाक्य के बीच या अंत में किया जाता है, उन्हें ‘विराम चिह्न’ कहते है।


दूसरे शब्दों में-  विराम का अर्थ है – ‘रुकना’ या ‘ठहरना’ । वाक्य को लिखते अथवा बोलते समय बीच में कहीं थोड़ा-बहुत रुकना पड़ता है जिससे भाषा स्पष्ट, अर्थवान एवं भावपूर्ण हो जाती है। लिखित भाषा में इस ठहराव को दिखाने के लिए कुछ विशेष प्रकार के चिह्नों का प्रयोग करते हैं। इन्हें ही विराम-चिह्न कहा जाता है।


सरल शब्दों में- अपने भावों का अर्थ स्पष्ट करने के लिए या एक विचार और उसके प्रसंगों को प्रकट करने के लिए हम रुकते हैं। इसी को विराम कहते है।


विराम चिन्हों का उपयोग जानना अति आवश्यक है इसके बिना व्यक्ति अच्छे तरीके से पढ़ लिख नहीं सकता, क्योंकि अच्छे लेखन के लिए, पढने के लिए, विराम चिन्हों का उपयोग जानना बहुत आवश्यक है . लिखित भाषा अपने कथ्य को तभी पूरा सफलता से व्यक्त कर सकती है, जब उसमें विराम चिन्हों का समुचित प्रयोग हुआ हो . “विराम- का अर्थ है रुकना” जो चिन्ह बोलते या पढ़ते समय रुकने का प्रस्तुत संकेत देते हैं उन्हें विराम  चिन्ह कहते हैं | विराम चिन्हों में अब अनेक चिन्ह सम्मिलित कर लिए गए हैं


इन विराम चिन्हों का प्रयोग वाक्यों के मध्य या अंत में किया जाता है।


हिंदी व्याकरण के विशेषज्ञ कामता प्रसाद गुरु ने विराम चिन्हों की संख्या 20 मानी है। कामता प्रसाद गुरु पूर्ण विराम (।) को छोड़ कर बाकि सभी विराम चिन्हों को अंग्रेजी से लिया हुआ माना है।


विराम चिन्हों के प्रकार या भेद

हिन्दी में प्रयुक्त विराम चिह्न निम्नलिखित है-


पूर्ण विराम (।)

किसी वाक्य के अंत में पूर्ण विराम चिन्ह लगाने का अर्थ होता है कि वह वाक्य खत्म हो गया है। यानी जहाँ एक बात पूरी हो जाये या वाक्य समाप्त हो जाये वहाँ पूर्ण विराम ( । ) चिह्न लगाया जाता है। पूर्ण विराम (।) का प्रयोग प्रश्नसूचक और विस्मयादि सूचक वाक्यों को छोड़कर बाकि सभी प्रकार के वाक्यों के अंत में किया जाता है।


जैसे —


पढ़ रहा हूँ।

तुम जा रहे हो।

राम स्कूल से आ रहा है।

अर्द्ध विराम (;)

जब किसी वाक्य को कहते हुए बीच में हल्का सा विराम लेना हो पर वाक्य को खत्म न किया जाये तो वहाँ पर अर्द्ध विराम (;) चिन्ह का प्रयोग किया जाता है। यानी जहाँ अल्प विराम से कुछ अधिक ठहरते है तथा पूर्ण विराम से कम ठहरते है, वहाँ अर्द्ध विराम का चिह्न ( ; ) लगाया जाता है।


जैसे —


यह घड़ी ज्यादा दिनों तक नहीं चलेगी; यह बहुत सस्ती है।

राम तो अच्छा लड़का है; किन्तु उसकी संगत कुछ ठीक नहीं है।

कल रविवार है; छुट्टी का दिन है; आराम मिलेगा।

अल्प विराम (,)

जब किसी वाक्य को प्रभावी रूप से कहने के लिए वाक्य में अर्द्ध विराम (;) से ज्यादा परन्तु पूर्ण विराम (।) से कम विराम लेना हो तो वहां अल्प विराम (,) चिन्ह का प्रयोग किया जाता है। जहाँ थोड़ी सी देर रुकना पड़े, वहाँ अल्प विराम चिन्ह (Alp Viram) का प्रयोग करते हैं ।


जैसे —


सुनील, जरा इधर आना।

राम, सीता और लक्ष्मण जंगल गए ।

अल्प विराम का प्रयोग निम्नलिखित परिस्थितियों में किया जाता है-


जहाँ किसी व्यक्ति को संबोधित किया जाय, वहाँ अल्पविराम का चिह्न लगता है। जैसे- प्रिय महराज, मैं आपका आभारी हूँ।

अंको को लिखते समय भी अल्पविराम का प्रयोग किया जाता है। जैसे- — 1, 2, 3, 4, 5, 6 आदि।

‘हाँ’ और ‘नहीं’ के बाद — नहीं, यह काम नहीं हो पाएगा।

जहाँ शब्दों को दो या तीन बार दुहराया जाय, वहाँ अल्पविराम का प्रयोग होता है। जैसे- वह दूर से, बहुत दूर से आ रहा है।

तारीख और महीने का नाम लिखने के बाद — 2 अक्टूबर, सन् 1869 ई० को गाँधीजी का जन्म हुआ।

प्रश्न चिन्ह (?)

प्रश्न चिन्ह (?) का प्रयोग प्रश्नवाचक वाक्यों के अंत में किया जाता है । अर्थात जिस वाक्य में किसी प्रश्न (सवाल) के पूछे जाने के भाव की अनुभूति हो वहां वाक्य के अंत में प्रश्न चिन्ह (?) का प्रयोग होता है।

यानी जहाँ बातचीत के दौरान जब किसी से कोई बात पूछी जाती है अथवा कोई प्रश्न पूछा जाता है, तब वाक्य के अंत में प्रश्नसूचक-चिह्न का प्रयोग किया जाता है।


जैसे —


ताजमहल किसने बनवाया ?

तुम कहाँ जा रहे हो ?

यह तो तुम्हारा घर नहीं है ?

उप विराम (अपूर्ण विराम) (:)

जब किसी शब्द को अलग दर्शना हो तो वहां उप विराम (अपूर्ण विराम) (:) का प्रयोग किया जाता है।अर्थात जहाँ वाक्य पूरा नहीं होता, बल्कि किसी वस्तु अथवा विषय के बारे में बताया जाता है, वहाँ अपूर्ण विराम-चिह्न का प्रयोग किया जाता है।


यानी जब किसी कथन को अलग दिखाना हो तो वहाँ पर उप विराम (Up Viram) का प्रयोग करते हैं ।


जैसे —


प्रदूषण : एक अभिशाप ।

उदाहरण : राम घर जाता है।

कृष्ण के अनेक नाम है : मोहन, गोपाल, गिरिधर आदि।

विस्मयबोधक चिन्ह (!) या  आश्चर्य चिन्ह

विस्मयबोधक चिन्ह का प्रयोग हर्ष, विवाद, विस्मय, घृणा, आश्रर्य, करुणा, भय इत्यादि का बोध कराने के लिए इस चिह्न का प्रयोग किया जाता है।


जैसे —


वाह! क्या आलिशान घर है।

रे! तुम यहां।

ओह! यह तो उसके साथ बुरा हुआ।

छी! कितनी गंदगी है यहाँ।

अच्छा! ऐसा कहा उस पाखण्डी व्यक्ति ने तुमसे।

शाबाश! मुझे तुमसे यही उम्मीद थी।

हे भगवान! ये क्या अनर्थ कर दिया तुमने?

निर्देशक चिन्ह (डैश) (-) या संयोजक चिन्ह या सामासिक चिन्ह

निर्देशक चिन्ह (-) जिसे संयोजक चिन्ह या सामासिक चिन्ह भी कहा जाता है, कुछ इसे रेखा चिन्ह भी कहते हैं। विषय, विवाद, सम्बन्धी, प्रत्येक शीर्षक के आगे, उदाहरण के पश्चात, कथोपकथन के नाम के आगे किया जाता है


किसी के द्वारा कही बात को दर्शाने के लिए

जैसे —


तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा – सुभाष चन्द्र बोस

अध्यापक ― तुम जा सकते हो ।

किसी शब्द की पुनरावत्ति होने पर अर्थात एक ही शब्द के दो बार लिखे जाने पर उनके मध्य (बीच में) संयोजक चिन्ह (-) का प्रयोग होता है।


दो-दो हाथ हो जायें।

कभी-कभी में ख्यालों में खो सा जाता हूँ।

युग्म शब्दों के मध्य

जैसे —


खेल में तो हार-जीत होती रहती है।

कुछ खाया-पिया करो, बहुत कमजोर हो गए हो।

तुलनावाचक ‘सा’, ‘सी’, ‘से’, के पहले

जैसे —


झील-सी आँखें

सागर-सा ह्रदय

कोष्ठक ( ) [ ] { }

कोष्ठक चिन्ह (Koshthak Chinh) का प्रयोग अर्थ को और अधिक स्पस्ट करने के लिए शब्द अथवा वाक्यांश को कोष्ठक के अन्दर लिखकर किया जाता है ।


कोष्ठक का प्रयोग किसी शब्द को स्पष्ट करने, कुछ अधिक जानकारी बताने आदि के लिए कोष्ठक ( ) चिन्ह का प्रयोग किया जाता है। कोष्ठक का उपयोग मुख्यतः वाक्यों में शब्दों के मध्य किया जाता है। ( ) को लघु कोष्ठक, { } मझला कोष्ठक तथा [ ] को दीर्घ कोष्ठक कहते हैं। हिंदी साहित्य लेखन में लघु कोष्ठक ( ) का ही प्रयोग किया जाता है। इनका उपयोग हमेशा जोड़ी में ही होता है।


जैसे —


धर्मराज (युधिष्ठिर) सत्य और धर्म के संरक्षक थे ।

लता मंगेशकर भारत की कोकिला (मीठा गाने वाली) हैं।

उच्चारण (बोलना) जीभ एवं कण्ठ से होता है।

अवतरण चिन्ह (‘ ’)(“ ”) या उध्दरण चिन्ह

किसी वाक्य में किसी खास शब्द पर जोर देने के लिए अवतरण या उद्धरण चिन्ह (‘ ’) का प्रयोग किया जाता है।


किसी और के द्वारा लिखे या कहे गए वाक्य या शब्दों को ज्यों-का-त्यों लिखने के लिए अवतरण चिह्न या उद्धरण चिन्ह (“ ”) का प्रयोग किया जाता है।


जैसे —


महा कवि तुलसीदास ने सत्य कहा है ― “पराधीन सपनेहु सुख नाहीं” ।

हिन्दुओं का एक प्रमुख काव्य ग्रंथ ‘महाभारत’ है।

भारतेंदु जी ने कहा, “हिंदी, हिन्दू, हिंदुस्तान” ।

विवरण चिन्ह (:-)

विवरण चिन्ह (:-) का प्रयोग वाक्यांश में जानकारी, सूचना या निर्देश आदि को दर्शाने या विवरण देने के लिए किया जाता है।


जैसे —


वनों से निम्न लाभ हैं :-

भारत में सेब की कई किस्में पायी जाती हैं जिनमें से कुछ निम्न हैं :-

इस देश में बड़ी – बड़ी नदियाँ हैं :-

पुनरुक्ति सूचक चिन्ह („ „)

पुनरुक्ति सूचक चिन्ह („ „) का प्रयोग ऊपर लिखे किसी वाक्य या वाक्य के अंश को दोबारा लिखने का श्रम बचाने के लिए करते हैं।यानी पुनरुक्ति सूचक चिन्ह का प्रयोग किसी बात को दोहराने के लिए किया जाता है.


जैसे —


रामेश कुमार, कक्षा सातवीं

राजेश ,, ,, ,,

लाघव चिन्ह (०)

किसी शब्द का संक्षिप्त रूप लिखने के लिए लाघव चिन्ह (०) का प्रयोग किया जाता है।यानि किसी बड़े शब्द को संक्षेप में लिखने के लिए कुछ अंश लिखकर लाघव चिन्ह (Laghav Chinh) लगा दिया जाता है । इसको संक्षेपण चिन्ह (Sankshepan Chinh) भी कहते हैं ।


जैसे —


पंडित का  – पंo

प्रोफेसर को – प्रो०

डॉक्टर के लिए ― डॉ०

लोप चिन्ह (… , ++++)

जब वाक्य या अनुच्छेद में कुछ अंश छोड़ कर लिखना हो तो लोप चिह्न (…) का प्रयोग किया जाता है।


जैसे —


श्याम ने मोहन को गाली दी … ।

मैं सामान उठा दूंगा पर … ।

गाँधीजी ने कहा, "परीक्षा की घड़ी आ गई है …. हम करेंगे या मरेंगे” ।

दीर्घ उच्चारण चिन्ह (ડ)

जब वाक्य में किसी शब्द विशेष के उच्चारण में अन्य शब्दों की अपेक्षा अधिक समय लगता है तो वहां दीर्घ उच्चारण चिन्ह (ડ) का प्रयोग किया जाता है। छंद में दीर्घ मात्रा (का, की, कू , के , कै , को , कौ) और लघु मात्रा (क, कि, कु, र्क) को दर्शाने के लिए इस चिन्ह का प्रयोग होता है।


जैसे —


देखत भृगुपति बेषु कराला।

ऽ। ।   । । । ।  ऽ।  ।  ऽ ऽ (16 मात्राएँ, । को एक मात्रा तथा ऽ को 2 मात्रा माना जाता है)

हंसपद  या त्रुटिबोधक चिन्ह (^)

जब किसी वाक्य अथवा वाक्यांश में कोई शब्द अथवा अक्षर लिखने में छूट जाता है तो छूटे हुए वाक्य के नीचे हंसपद चिह्न (^) का प्रयोग कर छूटे हुए शब्द को ऊपर लिख देते हैं। यानी त्रुटिबोधक चिन्ह का प्रयोग लिखते समय किसी शब्द को भूल जाने पर किया जाता है ।


जैसे —


हमें रोजाना अपना कार्य ^ चाहिए ।

मैं पिताजी के साथ ^ गया ।

मैं कल ^ को जाऊंगा

तुल्यता सूचक (=)

किसी शब्द अथवा गणित के अंकों के मध्य की तुल्यता (समानता या बराबरी आदि) को दर्शाने के लिए तुल्यता सूचक (=) चिन्ह का प्रयोग किया जाता है।तुल्यता सूचक (=) चिन्ह गणित में खूब प्रयोग होता है.


जैसे —


4 और 4 = 8

अशिक्षित = अनपढ़

अ = ब

समाप्ति सूचक (-0-, —)

समाप्ति सूचक (-0-, —) चिह्न का उपयोग बड़े लम्बे लेख, कहानी, अध्याय अथवा पुस्तक के अंत में करते हैं, जोकि यह सूचित करता है कि लेख, कहानी, अध्याय अथवा पुस्तक समाप्त हो चुकी है।


गूगल से साभार

(नीरज सुधांशु जी की वोल से)

कॉपी पेस्ट

चांदनी ही शान है(ग़ज़ल)

चांदनी ही शान है।

चाँद की पहचान है॥


छेड़ मत ईमान को।

कांच का सामान है॥


आँख मछली की तू देख।

लक्ष्य का फ़रमान है॥


खत्म कर दूँ अँधकार।

ज्योति का अरमान है॥


पा सकेंगे पूर्ण हम?

व्योम में जो ज्ञान है॥


राज बहके या रजा

देश को नुक्सान है।।


चार बूँदे ही मिले

प्यास का अरमान है।।


गर कुशल साथी मिले

जिन्दगी वरदान है।।


ज्ञान के भंडार का।

नाम हिन्दुस्तान है॥


सच कहा तूने 'कुमार'

ये ग़ज़ल गुलदान है॥

कुमार अहमदाबादी

मंगलवार, जुलाई 18

नमी थी आंख में(मुक्तक)


 रात भर महफिल जमी थी आंख में

 बादलों जैसी नमी थी आंख में

दर्द था एकांत था, था शून्य भी

आंसुओं की पर कमी थी आंख में

कुमार अहमदाबादी 


सब ने घेरा है(रुबाई)

माया ममता ने सब को घेरा है

कहते हैं ये मेरा वो तेरा है

लेकिन सच ये है की इस धरती पर

ना कुछ तेरा है ना कुछ मेरा है

कुमार अहमदाबादी

सोमवार, जुलाई 17

पूर्व प्राथमिक शिक्षा कितनी जरुरी है?–02 (अनुदित लेख)

अनुवादक – महेश सोनी

बचपन के प्रथम पांच वर्ष बच्चे के व्यक्तित्व के विकास के लिये बहुत महत्वपूर्ण है। बच्चा उन पांच वर्षों के दौरान प्रति पल कुछ न कुछ सीखता है। हर घड़ी वो कुछ न कुछ शिक्षा प्राप्त करता है। उस के विकास की गति बहुत तेज होती है। बाल मनोविज्ञानीयों का मानना है कि इंसान जन्म से लेकर मृत्यु तक जितना सीखता है। उस में से आधा तो तीन वर्ष की आयु तक सीख लेता है। मनुष्य हिलना डुलना, भाषा, स्वभाव, वृत्तियां बर्ताव आदि जीवन के पहले तीन वर्षों में सीख जाता है। हालांकि तब वो शारीरिक रुप से पूर्ण विकसित नहीं होता। बच्चा उम्र के चौथे वर्ष तक शरीर के स्नायु यानि की मांसपेशियों को सही तरीके से चलाना नहीं सीखता। उसे सही तरीके से संकलित करना नहीं आता। पेन या पेंसिल पकड़कर लिखने के लिये उस के हाथ तैयार नहीं होते। उस समय उस से जबरदस्ती लिखवाने से एक खतरा रहता है। जीवनभर वो स्वच्छ व सुंदर अक्षरों में लिख नहीं सकता। उस की लिखावट जीवनभर खराब रहती है। उस उमर में बच्चे कपड़े पहन सकता है। लेकिन बटन सही तरीके से बंध नहीं कर सकता। वो जूते के फीते सही तरीके से बांध नहीं सकता। वो छोटे छोटे स्नायुओं पर आयु के पांचवें वर्ष में नियंत्रण प्राप्त करता है। पांच वर्ष का होते होते वो शारीरिक रुप से स्वतंत्र हो जाता है। वो अपनी दैनिक क्रियाओं के लिये निर्भर नहीं रहता। जैसे पहले होता है। उदाहरण देखें तो, पहले पहले कपड़े भी माता पिता या काका बुआ आदि पहनाते हैं। 

इसलिये पांच वर्ष पूरे होने से पहले बच्चे का विधिवत शिक्षण शुरु नहीं होना चाहिये। ये ही वो कारण है। बच्चों को पहली कक्षा में प्रवेश की आयु मर्यादा पांच वर्ष पूरे होने के बाद की तय की गयी है। 

लेकिन माता पिता ये अपेक्षाएं रखने लगे हैं। उन का बच्चा नर्सरी या बालमंदिर यानि से ही पेन पकड़कर लिखने लगे या किताब को हाथ में रखकर पढ़ने लगे। कई माता–पिता शिक्षकों को ये कहते हैं कि "हमारे बच्चे को लिखना पढ़ना क्यों नहीं आता?" लेकिन ये एकदम गलत अवैज्ञानिक दृष्टिकोण है। सही बात ये है; आयु के प्रथम पांच वर्षों के दौरान बच्चे का सही व पूर्ण विकास माता पिता की मीठी प्रेम दृष्टि की छत्रछाया में ही होता है। 

हिम्मतभाई महेता लिखित पुस्तक  "बाल्यावस्था व कुमारावस्था की शिक्षा समस्याएं" (प्रकाशक –बालविनोद प्रकाशन द्वारा प्रकाशित) किताब के पहले प्रकरण "पूर्व प्राथमिक शिक्षण केटलुं जरुरी?" के कुछ पेरेग्राफ का अनुवाद

अनुवादक – महेश सोनी

पूर्व प्राथमिक शिक्षा कितनी जरुरी है?–01 (अनुदित लेख)

अनुवादक – महेश सोनी

ये बिल्कुल जरुरी नहीं है। बच्चा पहली कक्षा में प्रवेश करे उस से पहले उसे विधिसर पढ़ाया जाये। आज से वर्षों पहले प्ले ग्रुप या नर्सरी वगैरह नहीं होते थे। इस के बावजूद बच्चे शिक्षा प्राप्त करने में पिछड़ते नहीं थे। कुछ अनुभव एसे हैं। जो बच्चे द्वारा विधिवत शिक्षा प्राप्त करने से पहले प्राप्त करने जरुरी हैं। बच्चा इन अनुभवों को प्राप्त करता भी है। उदाहरण......पांच वर्ष की उम्र तक बच्चा किसी प्ले ग्रुप या बाल शिशु मंदिर में गये बिना अंदाजन 2500 शब्दों का भंडार इकठ्ठा कर लेता है। जब कि नये क्षमताधिष्ठित अभ्यासक्रम में ये अपेक्षा रखी गयी है। बच्चे में पहली कक्षा के बाद 1500 शब्दों के अर्थ को ग्रहण करने की क्षमता होनी चाहिये। इस सोच के अनुसार बच्चा पहली कक्षा में आने तक रोजमर्रा के जीवन में वाणी और व्यवहार से इतना शब्द भंडार प्राप्त कर लेता है। एसे में ये होता है। बच्चे को अंग्रेजी माध्यम की पाठशाला में दाखिला दिलाया जाने पर उसे शिक्षा प्राप्त करने की शुरुआत जीरो से करनी पड़ती है। 

हिम्मतभाई महेता द्वारा लिखित पुस्तक "बाल्यावस्था और कुमारावस्था की शिक्षा समस्याएं" (प्रकाशक – बालविनोद प्रकाशन द्वारा प्रकाशित) किताब के पहले प्रकरण "पूर्व प्राथमिक शिक्षा केटली जरूरी?" के पहले पेरेग्राफ की कुछ पंक्तियों का अनुवाद

(अनुवाद जारी है)

अनुवादक – महेश सोनी

हिम्मतभाई महेता लिखित पुस्तक "बाल्यावस्था व कुमारावस्था की शिक्षा समस्याएं" (प्रकाशक –बालविनोद प्रकाशन द्वारा प्रकाशित) किताब के पहले प्रकरण "पूर्व प्राथमिक शिक्षण केटलुं जरुरी?" के कुछ पेरेग्राफ का अनुवाद


अनुवादक – महेश सोनी


मुकरने पर(ग़ज़ल)


वो तड़पेगा या नाचेगा मुकरने पर
ये सोचो क्या करेगा मन गुजरने पर

सलाह औ’ मश्वरा सबसे यूं करना की
कोई कुछ भी न कह पाए सुधरने पर

हमें ये देखना है आज महफिल में
शरम आती है किस किस को मुकरने पर

कहा था हां मगर ना है हमारी अब
करोगे क्या हमारे यूं मुकरने पर

करेगी फैसला जब भाग्य की देवी
मिलेगा वायदों को क्या मुकरने पर
कुमार अहमदाबादी 

છટકો હવે(ગઝલ)

ભીંત પર ફોટો બની લટકો હવે

ચક્ર પૂરું થઈ ગયું છટકો હવે


સાધનોના થીગડા માર્યા પછી

ઘર બન્યું છે રૂપનો કટકો હવે


ભોગવો છો ચાતર્યો ચીલો તમે

શૂળ થઈને આંખમાં ખટકો હવે


રેલવેને રોડ પર હાંક્યા પછી

રાજીનામાનો સહો ઝટકો હવે


ચેતવ્યાં'તા પણ તમે માન્યા નહીં

છો કનક તો શું થયું બટકો હવે

અભણ અમદાવાદી

चांद को जब मुस्कुराना आ गया(ग़ज़ल)

चाँद को जब मुस्कुराना आ गया

प्यास को भी खिलखिलाना आ गया


चाँदनी को पुष्परस में घोलकर

पान करना लड़खड़ाना आ गया


गूँथकर माला में तारेँ, रूपसी

रात को दुल्हन बनाना आ गया


क्या जरूरत बोतलों की है भला

होश को जब गडबडाना आ गया


आसमाँ की जगमगाहट देखकर

स्वप्न को भी जगमगाना आ गया


सोलवें में चाँद के सिंगार को

देख दरपन को लजाना आ गया


चाँदनी को छेड़ने की सोच से

पास मेरे खुद बहाना आ गया


रात बोली पूर्णिमा की ए 'कुमार'

चाँदनी का अब जमाना आ गया


चाँदनी के एक पल के संग से

बादलों को चमचमाना आ गया

कुमार अहमदाबादी 

तन्हाई का अफसाना(रुबाई)


तन्हाई का छोटा सा अफसाना

खाली बोतल है गुमसुम दीवाना

मन है खाली जीवन भी है खाली

फिर क्यों खाली ना होता पैमाना 

कुमार अहमदाबादी

संतृप्त प्यास (रुबाई)


बाँहों में आकर प्यास बहक जाती है

ज्यों आग हो चूल्हे की दहक जाती है

फिर प्रेम की गंगा में निरंतर बहकर

संतृप्त निशा रानी महक जाती है

कुमार अहमदाबादी

संतृप्त मतलब तृप्त, जिस की प्यास मिट गयी है, जो तृप्त हो गया हो

अदाकारी नहीं देखी(मुक्तक)


सफल पर ढोंगी लोगों की अदाकारी नहीं देखी

सरल शालीन इंसानों की गद्दारी नहीं देखी

समझते हैं वे अभिनय कब कहां कितना दिखाना है

बहारों ने कभी फूलों की मक्कारी नहीं देखी

कुमार अहमदाबादी

आखिरी पंक्ति एक शरद तैलंग साहब की ग़ज़ल में पढ़ने के बाद रचना बनी है। 

इतिहास से छेड़छाड़(मुक्तक)


इतिहास से छेड़छाड़ करने लगे हैं लोग

शब्दों के रंगों को बदलने लगे हैं लोग

भूल जाते हैं रंग बदलनेवाले भविष्य में 

उन का लिखा भी बदलनेवाले हैं लोग

कुमार अहमदाबादी

सब जिम्मेदार होते हैं(विचार लेख)

 आजकल एक विशेष विचारधारा के लोग लड़कियों के साथ दुर्घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं. एक फिल्म में लड़की अपनी बड़ों से कहती है की तुमने मुझे हमारी संस्कृति के बारे में क्यों नहीं बताया? 

ये एक तरह का पलायनवाद है. क्या एक व्यक्ति विशेष रुप से एक लड़की सिर्फ इसलिए किसी के चंगुल में फंस सकता/सकती है की उसे अपनी पृष्ठभूमि के बारे में कुछ पता नहीं.

अपनी संस्कृति के बारे में मालूम ना होने पर भी लड़की विजातीय पात्र की मंशा, इच्छा व लक्ष्य को तो अच्छी तरह समझ सकती है. कहा जाता है. हर लड़की हर औरत में एक विशेष गुण होता है. जो उसे फौरन बता देता है की कौन सा लड़का या पुरुष उसे किस दृष्टि से देख रहा है. ये गुण होने के बावजूद अगर लड़की लड़के की मंशा को समझने में धोखा खा जाए तो दोषारोपण माता पिता पर क्यों?


 दूसरी महत्वपूर्ण बात,

जिम्मेदारी और प्रशंसा का हकदार सिर्फ एक व्यक्ति नहीं होता. पूरी टीम होती है. परिवार भी एक टीम है एक कंपनी है. एक कंपनी का प्रोजेक्ट सफल या निष्फल होने पर पूरी टीम को यश या अपयश मिलता है. उसी तरह परिवार के किसी भी सदस्य, खास तौर से लड़की के साथ दुर्घटना होने पर पूरा परिवार जिम्मेदार होता है, होना भी चाहिए. लेकिन आज स्थिति ये है कि दोष या तो लड़की पर या विशेष रुप से मां पर डाल दिया जाता है.

कुमार अहमदाबादी

मन किसी का मत दुखाया कीजिए(ग़ज़ल)


मन किसी का मत दुखाया कीजिए

प्रेम का दीपक जलाया कीजिए


रास्ते में प्रेम यात्री के सदा

फूल और चंदन बिछाया कीजिए


तोड़ना अच्छा नहीं है फूल को

माली का दिल मत दुखाया कीजिए


खर्च करना बात अच्छी है मगर

चार पैसे भी बचाया कीजिए


घोलकर संस्कार घुट्टी में ‘कुमार’

रोज बच्चों को पिलाया कीजिए

कुमार अहमदाबादी

बात मेरी मान भर दे जाम(गज़ल)


बात मेरी मान भर दे जाम है पीना

आज तेरे हाथ से ये जाम है पीना


घोलकर तेरी अदाएं शोखियां इस में

आज तेरे हाथ से ये जाम है पीना


रस मिलाकर प्रेम से अंगूरी आंखों का

आज तेरे हाथ से ये जाम है पीना


एक दूजे को पिलायें हम ये कहकर की

आज तेरे हाथ से ये जाम है पीना


देह रस को घोलकर प्याले में तृप्ति तक

आज तेरे हाथ से ये जाम है पीना

*कुमार अहमदाबादी* 

रास्ते के पत्थरों को जब हटाया(गज़ल)


रास्ते के पत्थरों की जब हटाया

काफ़िला पदयात्रियों का मुस्कुराया


यात्रियों ने लक्ष्य को जब पा लिया तो

गीत सावन ने रसीला गुनगुनाया


पथरीले पथ पर चला था वो सदा पर

पांव उस का एक भी ना डगमगाया


देखकर उस को ये लगता ही नहीं की

जालिमों ने है बहुत उस को सताया


कल चिता उस की जली थी आज देखो

देह लेकर फिर नयी वो लौट आया

कुमार अहमदाबादी

जाम में पानी मिलाना भी हुनर है(गज़ल)


जाम में पानी मिलाना भी हुनर है दोस्तों

आंसुओं को गटगटाना भी हुनर है दोस्तों


कौन क्या देकर गया लेकर गया सब भूलकर

प्रेम से सब से निभाना भी हुनर है दोस्तों


पिंजरे में कैद होकर आसमां को देखकर

पंख अपने फड़फड़ाना भी हुनर है दोस्तों


शान झूठी सिर्फ लोगों को दिखाने के लिये

खाली हुक्का गुड़गुड़ाना भी हुनर है दोस्तों


पंचतत्वों से बना तन ऋण सरीखा है ’कुमार’

पंच के ऋण को चुकाना भी हुनर है दोस्तों

कुमार अहमदाबादी

सुरालय में चलकर (अनुवादित ग़ज़ल और मूल ग़ज़ल )


સુરાલયમાં જાશું જરા વાત કરશું

અમસ્તી શરાબી મુલાકાત કરશું


મુહબ્બતના રસ્તે સફર આદરી છે

મુહબ્બતના રસ્તે ફના જાત કરશું


જમાનાની મરજીનો આદર કરીને

વિખૂટાં પડીને મુલાકાત કરશું


સલામત રહે સ્વપ્ન નિંદ્રાને ખોળે

કરી બંધ આંખો અમે રાત કરશું


સુરાલયમાં મસ્જિદમાં મંદિરમાં ઘરમાં

કે ' આદમ ' કહે ત્યાં મુલાકાત કરશું


सुरालय में चलकर जरा बात कर लें

सनम से शराबी मुलाकात कर लें


मुहब्बत के पथ पर सफर कर रहे हैं

कहो तुम जहां दिन तथा रात कर लें


सलामत रहे ख्वाब सारे हमारे

परस्पर नयन भी मुलाकात कर लें


जमाने की मरजी का स्वीकार कर के

विरह से भी मीठी मुलाकात कर लें


सुरालय में मस्जिद में मंदिर में घर में

तू ’आदम’ कहे तो मुलाकात कर लें

शायर — शेखादम आबूवाला

अनुवादक — कुमार अहमदाबादी*

भावनाओं का स्थान

दुनिया क्या जाने की कवि क्यों

शब्द कृति को संभालकर रखता है

शब्द कृति में कवि नादान

प्रेम स्मृति को संभालकर रखता है.......दुनिया क्या जाने


प्रस्तावना को प्रथम नजर में सपनों को अनुक्रमणिका में

सर्वनाम में संबोधन को संज्ञा में प्रेम स्थान की 

प्रेम स्मृति को संभालकर रखता है.........दुनिया क्या जाने


शब्द मरोड़ में अंग मरोड़ शब्द संधिमें आलिंगन

अल्पविराम में हां हां ना ना स्वर संधि में स्वीकृति की

प्रेम स्मृति को संभालकर रखता है.........दुनिया क्या जाने


छंदों में मीठा गुस्सा और अलंकार से मनवार

पूर्ण विराम में पूर्णानंद और काव्यकृति में संस्कृति की

प्रेम स्मृति को संभालकर रखता है..........दुनिया क्या जाने



भाव वाचक में उन्माद और गुण वाचक में मधुरता

क्रिया वाचक में प्रेम पथ और कर्म वाचक में संगम की

प्रेम स्मृति को संभालकर रखता है........दुनिया क्या जाने


क्रिया पद में प्रेम कर्म क्रिया विशेषण में चटखारे

हांसिए पर नफरत और शीर्षक में जीवन सार की 

प्रेम स्मृति को संभालकर रखता है........दुनिया क्या जाने 

कुमार अहमदाबादी

શબ્દો માં સાચવણી



દુનિયા શું જાણે કે કેમ કવિ,

શબ્દકૃતિને સાચવી રાખે છે

શબ્દકૃતિના શબ્દોમાં એ ભોળો

પ્રેમ સ્મૃતિને સાચવી રાખે છે...દુનિયા


પ્રસ્તાવના પ્રથમ નજરમાં, અભરખાને અનુક્રમમાં

સર્વનામમાં સંબોધન ને સંજ્ઞામાં પ્રેમ સ્થળની

પ્રેમ સ્મૃતિને સાચવી રાખે છે...દુનિયા


શબ્દ મરોડમાં અંગ મરોડ ને શબ્દ જોડણી આલિંગન

અલ્પવિરામે આનાકાની સ્વરસંધિએ સ્વીકૃતિની

પ્રેમ સ્મૃતિને સાચવી રાખે છે...દુનિયા


છંદોમાં રીસામણા ને અલંકારથી મનામણા

પૂર્ણવિરામે પૂર્ણાનંદ તો કાવ્યકૃતિમાં સંસ્કૃતિની

પ્રેમ સ્મૃતિને સાચવી રાખે છે...દુનિયા


ભાવવાચક ઉન્માદ ને ગુણવાચકમાં મધુરતા

ક્રિયાવાચક પ્રેમપથ તો કર્મવાચકમાં સંગમની

પ્રેમ સ્મૃતિને સાચવી રાખે છે...દુનિયા


ક્રિયાપદે પ્રેમકર્મ ને ક્રિયાવિશેષણે સિસકારા

હાંસિયા પર નફરત ને મથાળે જીવનસારની

પ્રેમ સ્મૃતિને સાચવી રાખે છે

અભણ અમદાવાદી  

ये प्यार उषा भी है(रुबाई)

ये प्यार उषा भी है व संध्या भी है

ये प्यार आशा भी है निराशा भी है

गर प्यार करोगे कभी तो जानोगे

ये सूर्य किरण चंद्र किरण सा भी है

कुमार अहमदाबादी

रविवार, जुलाई 16

पी ले प्याला(मुक्तक)


पी ले जल्दी से ये प्याला

लाया हूं मैं मीठी हाला

घोला भावों को शब्दों में

जल्दी जल्दी पी ले लाला

कुमार अहमदाबादी

प्रेम घागा (मुक्तक)


प्रेम से जो दूर भागा

उस का फिर ना भाग जागा

प्रेम है वरदान ईश का

जोड़ता है प्रेम धागा

कुमार अहमदाबादी

कौन हूं मैं क्या लाया हूं


कौन हूं मैं और क्या मैं लाया हूं?

जाऊंगा तब छोड़ के क्या जाऊंगा?


धरा हूं मैं परिवार लेकर आई हूं

जाऊंगी तब आंसू छोड़ के जाऊंगी


हवा हूं मैं सांस लेकर आई हूं

जाऊंगी तब विनाश छोड़ के जाऊंगी


पानी हूं मैं जीवन लेकर आया हूं

जाऊंगा तब मौत छोड़ के जाऊंगा


जीव हूं मैं शरीर लेकर आया हूं

जाऊंगा तब मिट्टी छोड़ के जाऊंगा


फूल हूं मैं रंग–रुप लेकर आया हूं

जाऊंगा तब सुगंध छोड़ के जाऊंगा


शून्य हूं मैं गणित लेकर आया हूं

जाऊंगा तब उलझन छोड़ के जाऊंगा


वक्त हूं मैं इतिहास लेकर आया हूं

जाऊंगा तब इतिहास छोड़ के जाऊंगा


ज्ञान हूं मैं शांति लेकर आया हूं

जाऊंगा तब मौन छोड़ के जाऊंगा


कुमार हूं मैं शब्द लेकर आया हूं

जाऊंगा तब कविता छोड़ के जाऊंगा

कुमार अहमदाबादी

चांदनी से शान है (ग़ज़ल)


चाँदनी से शान है

चाँद की पहचान है


छेड़ मत ईमान को

कांच का सामान है


आँख मछली की तू देख

लक्ष्य का फ़रमान है


खत्म कर दूँ अँधकार

ज्योति का अरमान है


पा सकेंगे पूर्ण हम

व्योम में जो ज्ञान है


राज बहके या रजा

देश को नुक्सान है


चार बूँदे ही मिले

प्यास का अरमान है


गर कुशल साथी मिले

जिन्दगी वरदान है


ज्ञान के भंडार का

नाम हिन्दुस्तान है


सच कहा तूने 'कुमार'

ये ग़ज़ल गुलदान है

कुमार अहमदाबादी

नशे में चूर(रुबाई)


शादी के नये मस्त नशे में है चूर

ये सोचती है क्यों है सनम मुझ से दूर

दफ्तर से आकर वो ही भरेंगे अब मांग

चुटकी में लिये बैठी है कब से सिंदूर

कुमार अहमदाबादी

સરકતી રહી(મુક્તક)


યુવાની રેતની માફક સરકતી રહી

પળે પળ સ્વર્ણ મૃગ પાછળ ભટકતી રહી

સમય વીતી ગયો એના પછી સઘળી

આશાઓ રોજ શ્રાવણ થઈ વરસતી રહી

અભણ અમદાવાદી

कल तक थी सजल(रुबाई)


आँखें आज है सूखी कल तक थी सजल

जो आज है कल था ना होगा कभी कल

इंसान वही होता है वक्त अलग

जो आज है निष्फल कल होगा वो सफल

कुमार अहमदाबादी

दिखण में गोरी है(राजस्थानी ग़ज़ल)

लोग केवे के दिखण में गोरी है         

भायला थारी सगी रंगीली है


मिश्री घोळर गीत गावे ब्यांव में

गीत गावे प्रेम रा गीतारी है              


लूतरा केवे मने जद प्रेम सूं              

यार लागे आ सगी मोजीली है         


भोळी है पण तेज है बोलण में औ'

सुस्त सागे थोडी सी खोडीली है        


आंख में मीठी शरम औ' होठ पर 

मौजीली होळी री फीटी गाळी है       


बात सुण लो थे सगो जी आज तो 

आ सगी केवे सगो जी पेली है           

कुमार अहमदाबादी

टाइम एंड रिलेशनशिप मैनेजमेंट


राकेश अहमदाबाद में अठारहवीं मंजिल पर रहता था। एक दिन उस ने अपने मित्र शैलेश के साथ ग्राउंड फ्लोर पर जाने के लिये अपने फ्लोर से लिफ्ट में प्रवेश किया। लिफ्ट चली। कुछ पलों बाद चौदहवीं मंजिल पर रुकी। उस फ्लोर से एक युवा ने लिफ्ट में प्रवेश किया। 

राकेश ने कुछ सेकंड बाद युवा से पूछा "कैसे हो बेटे?"

युवा ने उत्तर दिया "बढ़िया अंकल, आप कैसे हैं?"

राकेश बोला "फर्स्ट क्लास बेटा"

राकेश ने फिर पूछा "घर में सब मजे में हैं?"

युवा बोला "हां, अंकल" 

इतनी देर में ग्राउंड फ्लोर आ गया।

तीनों बाहर निकले। युवा ने राकेश को बाय कहा और चला गया।

उस के जाने के बाद शैलेश ने पूछा "यार, तूने उस से फालतू की बातें क्यों की?"

राकेश ने कहा "ये फालतू की बातें नहीं थी। टाइम मैनेजमेंट और रिलेशन डेवलपमेंट था।

शैलेश ने पूछा "वो कैसे?"

राकेश ने बताया "वो एसे की जब तक लिफ्ट ग्राउंड फ्लोर पहुंचती। तब तक हम चाहें या ना चाहें हमें कुछ पल साथ रहना ही था। तो, मैंने उस समय का फायदा उठाया। मेरी बिल्डिंग के रहवासी से थोड़ी बातचीत कर ली। बातचीत से समय और रिलेशनशिप दोनों का मैनेजमेंट हो गया। 

लेखक — कुमार अहमदाबादी

शनिवार, जुलाई 15

गोरस की बोतल(रुबाई)


मेरी जीवन साथी है ये बोतल

सच्ची जीवनदायी है ये बोतल

यारों आओ बैठो तुम भी पी लो

गोरस से तर प्यारी है ये बोतल

कुमार अहमदाबादी

रोटी की खुशबू(रुबाई)


चौके से आयी सब्जी की खुशबू

साथ आयी टिक्कड़ रोटी की खुशबू

खाना लेकर आयी तो साथ आयी

उत्तम औ' कोमल पत्नी की खुशबू

कुमार अहमदाबादी

મૃગ માયા (ગઝલ)


મૃગ માયાને સમજી શક્યું ન કોઈ 

પડછાયાને સમજી શક્યું ન કોઈ

 

પળે પળ માનવીની સાથે રહેનાર

પડછાયાને સમજી શક્યું ન કોઈ


લાંબા ટુંકા થઈ સંકેતો આપે છતાં

પડછાયાને સમજી શક્યું ન કોઈ 


વિસ્તરણ સમાપનને જાણવા છતાં

પડછાયાને સમજી શક્યું ન કોઈ  

 

કાળો છે છતાં રંગ નથી બદલતો

પડછાયાને સમજી શક્યું ન કોઈ 

અભણ અમદાવાદી

मत दुखाया कीजिये (ग़ज़ल)


मन किसी का मत दुखाया कीजिए

प्रेम का दीपक जलाया कीजिए


रास्ते में प्रेम यात्री के सदा

फूल और चंदन बिछाया कीजिए


तोड़ना अच्छा नहीं है फूल को

माली का दिल मत दुखाया कीजिए


खर्च करना बात अच्छी है मगर

चार पैसे भी बचाया कीजिए


घोलकर संस्कार घुट्टी में ‘कुमार’

रोज बच्चों को पिलाया कीजिए

कुमार अहमदाबादी

मदमस्त गुलाबी है(रुबाई)


मदमस्त गुलाबी है चले आओ तुम

ये प्यास रसीली है चले आओ तुम

मटकी भी है मुरली भी है गौ माता भी

संध्या ये सुहानी है चले आओ तुम

कुमार अहमदाबादी

नशे में हूं क्या (रुबाई)

ये शाम सनम साथ नशे में हूं क्या

ये नैन अदा खास नशे में हूं क्या

ए वक्त जरा ठहर मज़ा लेने दे

ये जाम मधुर प्यास नशे में हूं क्या

कुमार अहमदाबादी

झूमतो आंगणो (राजस्थानी गज़ल)

काल थो झूमतो आंगणो 

आज क्यों है सूनो आंगणो 


बेटी ने देर फेरा अबे

बाप सो रो रियो आंगणो 


भींत ने नींव पूछी बता 

क्यों हुयो खोखलो आंगणो 


भींत घाल'र पछे भाई के'

है अबे मोकळो आंगणो 


याद परदेस में आय'सी

फूटरो सोवणो आंगणो 

कुमार अहमदाबादी

बादामी आंखें (मुक्तक)

 

रेशमी आंखें कभी बादामी आंखें दिखती है

झील सी आंखें कभी ये मोरनी सी लगती है

शांत आंखें प्यासी आंखें क्रुद्ध आंखें औ’ कभी

आदमी को इन के भीतर शेरनी भी दिखती है

कुमार अहमदाबादी

ये तिलक पहचान है (ग़ज़ल)

ये तिलक पहचान है

साथिया भी शान है 


विश्व में अब हिंदू का 

हो रहा सम्मान है


गीता का सार सुनो

वो ही सच्चा ज्ञान है


बस सनातन धर्म ही

ब्रह्म की संतान है


राम एवं कृष्ण हर 

हिंदू का अभिमान है


हिंदू नीती रीति में 

सांस लेना आसान है


विश्व सारा कर रहा

बिंदी का सम्मान है

कुमार अहमदाबादी 

(स्वस्तिक को राजस्थानी में साथिया कहते हैं)

श्रीमती को पत्र (काल्पनिक)

प्रिय श्रीमती, 

पति पत्नी जीवन में कई दौर से गुजरते हैं। शादी होते ही एक दूसरे को अपनी योग्यता से प्रभावित करने का दौर पहला होता है। पति अपने गुणों से जिस में सब से महत्वपूर्ण कमाने का गुण होता है। प्रभावित करने का प्रयास करता है। पति को प्रभावित करने के पत्नी के पास जो सब से महत्वपूर्ण गुण होता है। वो पाक कला यानि स्वादिष्ट रसोई बनाने की कला होती है। अक्सर कहा जाता है पति के दिल को जितने का रास्ता पेट से होकर गुजरता है। 

कई बार एक दूसरे को प्रभावित करने के लिए अपनी हर बात को सच साबित करने का जुनून या दौर भी आता है।

लेकिन ये सब उस समय की स्थितियां हैं। जब दोनों का शादीशुदा जीवन शुरू होता है।

हम दोनों इस दौर से बहुत आगे निकल आए हैं। 

अब हम कोई काम करते हैं तो एक दूसरे को प्रभावित करने के लिए या अपनी ही बात सच साबित करने के लिए नहीं करते। हमारे लिए वो दौर बीत गया।

अब हम जब एक दूसरे को कोई बात कहते हैं या एक दूसरे के सामने किसी बात पर अड़ जाते हैं: तो इसलिए अड़ जाते हैं कि वो परिवार के या हमारे या परिवार के किसी न किसी के हित के होता है।

पत्र लेखक

तुम्हारा और सिर्फ तुम्हारा

कुमार अहमदाबादी

पटरानी बनो(रुबाई)

अवसर ये बडा है मत इन्कार करो

मेरे लिए तन मन को तैयार करो

पटरानी बनो मन के साम्राज्य की तुम

इस राज्य के पद को स्वीकार करो

कुमार अहमदाबादी

माना मंज़िल दूर है(मुक्तक)


चलो माना की मंज़िल दूर है

ये भी माना विधाता क्रूर है

मगर वो जानता है राही के

जिगर में हौसला भरपूर है

कुमार अहमदाबादी

सुहानी शाम

 ये शाम सुहानी है चली आओ तुम

इक रीत निभानी है चली आओ तुम

प्यासे को प्रतीक्षा नहीं करवाते जी

अब प्यास बुझानी है चले आओ तुम

कुमार अहमदाबादी

बावफा की दुआएं

 बावफा की सब दुआएं गीत बनती है

और उस की सिसकियां संगीत बनती है 

साथ लेकर ताल का जब गूंजती है वो 

चाहकों के मन की फिर मनमीत बनती है 

कुमार अहमदाबादी

साहित्यिक उत्तर


एक कवि फल खरीदने के लिए बाजार गया. एक ठेले पर उस ने ताजे केले देखे.

अब संयोग की बात ये हुई की वो ठेले वाला भी साहित्य प्रेमी था; यानि साहित्यकारों की तरह मीठी जबान में बात कहने सुनने वाला था. 

कवि ने बहुत मीठे स्वर में ठेले वाले से पूछा ‘भाई, ये केले क्या भाव दिए?’

ठेले वाले ने उत्तर दिया ‘20₹ के तीन है भैया’

कवि ने भाव ताल करने के उद्देश्य से कहा ‘भाई, 10₹ के तीन दे दो’

केले वाले ने कहा ‘भाई साहब, कुछ देर पहले 15₹ वाले भाई की इच्छा भी स्वर्ग को सिधार चुकी है’

कुमार अहमदाबादी

आजा साजन आजा रे(गीत)


आजा सावन आजा रे

सब को भिगोने आजा रे

आजा सावन आजा रे

खुशियों को लेकर आजा रे....आजा सावन आजा रे 


खेतों में मल्हार गाकर

किसान तुझ को बुलाते हैं

शहरों के व्यापारी भी

बेसब्री से तुझ को बुलाते हैं.... आजा सावन आजा रे 


बीज धरती के भीतर 

बेसब्री से राह तेरी देखते हैं

बच्चे धरती के ऊपर 

बेचैनी से राह तेरी देखते हैं......आजा सावन आजा रे 

कुमार अहमदाबादी 

भोजन समारंभ का दृश्य (मुक्तक)


मूंग चीनी घी का जलवा देखता हूं

आज कल सपनों में हलवा देखता हूं

लोग खाना खा रहे हैं मस्त होकर

एक दो के हाथ में करवा देखता हूं

कुमार अहमदाबादी

(करवा पानी पीने के एक राजस्थानी बर्तन का नाम है)

लव जिहाद के किस्से क्यों बढ़ रहे हैं( पार्ट - 2)

लेखिका – मीरा व्यास

अनुवादक – महेश सोनी


गलती लड़कियों की भी है. आरव हो या अतीक किसी पर भी आंखे मूंदकर क्यों विश्वास करती है. कहा जाता है. स्त्रियों के पास सशक्त छठी इंद्रिय होती है. जब भी कोई पुरुष उस की तरफ देखता है. वो तुरंत उस के मंशा को समझ जाती है. एसा है तो फिर ये छठी इंद्रिय उस वक्त जागृत क्यों नहीं होती. जब कोई पुरुष उसे फंसाने के हेतु से उस से संपर्क करता है. 

दूसरी घटना सूरत के नजदीक के स्थान से प्रकाश में आया है. मुझे ये समझ नहीं आता, विश्वास नहीं होता की युवतियां प्रेमांध होकर यौन संबंध भी बांध लेती है. मेरे मतानुसार दोनों गुनहगार हैं. ये भी विचारणीय मुद्दा है. हिंदू लड़कियां विधर्मी युवकों से नजदीकियां क्यों बढ़ाती है? युवक का नाम वाजिद है. 23 वर्ष की युवती को फंसाया. मैं ये भी कहूंगी. युवतियों को अपने माता पिता से कोई बात छुपानी नहीं चाहिए. माता पिता को भी चाहिए की वे भी युवा हो रही बेटियों से सखी भाव रखे. जीवन की कठोर सत्यों से अवगत कराते रहे. 

ये मालूम होने के बावजूद की वाजिद मुस्लिम है. शादी कर लेती है. जानबूझकर कोई कुवे में नहीं कूदता. लेकिन फिर भी एसा कुछ हो रहा है. जो नहीं होना चाहिए. प्रेम करना गुनाह नहीं है. लेकिन अंधी बनकर प्रेमजाल में फंसाया अवश्य गुनाह है. अदालत में विवाह करने के बाद माता पिता को जानकारी देने के बजाय उस से पहले ही लड़के की माता पिता से पहचान करवाने का बाद शादी करने का क्यों नहीं सोचा जाता? Y फिर सोचने नहीं दिया जाता? शादी के बाद जब गर्भवती होने पर सच बाहर आता है. ये याद रखिए लव जिहाद के मामलों में युवतियों को ही सब से ज्यादा भुगतना पड़ता है. दुष्कर्म का शिकार वे ही होती हैं. 

लड़कियों को स्त्रियों को जागृत रहने की जरूरत है. लड़कियों को किसी के भी साथ इतनी निकटता नहीं रखनी चाहिए की छुपानी पड़े. जब निकटता छुपानी पड़े तो समझ लेना चाहिए की कहीं न कहीं कुछ समस्या है या भविष्य में होगी. जन्मदाता माता पिता का विश्वास प्रेम के नाम पर किये जा रहे षडयंत्र में फंसकर कभी मत ना तोड़ें. तुम्हारे जीवन में आने वाले प्रेमी को युवक को तुम ज्यादा से ज्यादा कुछ महीनों से के दो चार वर्षों से जानती होंगी. लेकिन इस के बावजूद उस पर इतना विश्वास कर लेती हो की अन्य कोई कुछ कहे तो वो जूठ लगता है! माता पिता द्वारा दिए जा रहे सलाह सूचन रोक टोक लगने लगते हैं! उन की बातें चिक चिक लगने लगती है. क्यों? क्या माता पिता तुम्हारे हितैषी नहीं हैं? 


माता पिता आप को सुखी देखना चाहते हैं. इसलिए आप को सलाह मशविरा देते हैं. मैं इसलिए आप से करबद्ध गिनती करती हूं मेरी बहनों की माता पिता द्वारा दिए गए सलाह मशवरों की कभी अनदेखी ना करें. इस के बावजूद अगर आप कहीं किसी के जाल में फंस जाएं तो सब से पहले माता पिता को बताएं. वे अनुभवी होते हैं. उन्होंने जमाना देखा हुआ होता है. वे अवश्य समस्या का समाधान ढूंढ लेंगे.


 बेटियों को सलाह देना चढ़ती हूं. इतनी भोली और सरल मत बनिए की कोई आप का गलत फायदा उठा सके. कुदरत ने आप को पुरुष की इच्छा को, उस के में को, उस की सोच को पढ़ने की समझने की जो छ्ठ्ठी इंद्रिय दी है. उस का उपयोग कीजिए. मन को जागृत रखिए. चेतन रखिए. 

जब भी कोई व्यक्ति पहचान छुपाकर आप से मिले, या जैसे ही ये मालूम हो; इस ने तो अपना असली परिचय छुपाकर मुझ से पहचान की थी. तुरंत सतर्क हो जाइए. समझ जाइए की दाल में कहीं काला है. ये भी सोचिए कहीं ऐसा तो नहीं की पूरी दाल ही काली है प्रेम के नाम पर कोई भी व्यक्ति आप का फायदा कैसे उठा सकता है. वो भी तब जब नारी को नारायणी कहा गया है. 

युवतियों को समझना चाहिए हिंदू हो या मुस्लिम अपरिचित युवकों से ज्यादा मेल मुलाकात बढ़ाने की जरूरत ही क्या है? मेल मुलाकात बढेगा तो प्रेम की जाल में फंसने की संभावना होगी ना. परिचय ही क्यों बढ़ाना है ना होगा बांस ना बजेगी बांसुरी या फिर जब कड़ाही में तेल ही ना होगा तो पकौड़े क्या खाक तले जाएंगे कुल मिलाकर उस संभावना को ही समाप्त कर देना है. जो आप को खतरनाक रास्ते पर ले जाए. 

एक और कठोर सत्य याद रखिए. क्या आप उस व्यक्ति का सम्मान करेंगी. जो अपने माता पिता से जूठ बोलता हो. उस माता पिता से जिन का स्थान परमात्मा के बाद है. उस आदमी का आप सम्मान करेंगी. अपने दिल पर हाथ रखकर सोचिए. क्या वो व्यक्ति आप का सम्मान करेगा, उम्रभर साथ देगा. जो ये जनता हो की आप अपने माता पिता से जूठ बोलकर उस के पास आयी हो. अपने दिल पर हाथ रखकर सोचना और ईमानदारी से जवाब देना. 

अंत में, 

*जिस प्रेम की शुरुआत ही जूठ से हुई हो. वो प्रेम कभी सच्चा नहीं हो सकता और कभी सफल नहीं हो सकता.*

लेखिका – मीरा व्यास

अनुवादक – कुमार अहमदाबादी

लव जिहाद के किस्से क्यों बढ़ रहे हैं (पार्ट 1)


लेखिका – मीरा व्यास

अनुवादक – महेश सोनी


आप को क्यों कोई ठग जाए प्यार में इतनी अंधी मत बनिये की आप को कोई ठग सके. आज कल लव जिहाद के किस्से बहुत बढ़ रहे हैं, क्यों?


मैंने एक किस्से में पढ़ा था कि अतिक ने आरव नाम रखा था. लेकिन हिंदू नाम हो फिर भी हमारे समाज की बहनें अंधा विश्वास कर के मित्र बनाती है. धीरे धीरे यही मित्रता प्रेम में परिवर्तित होती है. कुछ दिनों पहले भरूच शहर का एक किस्सा जाहिर हुआ था. 

हिंदू समाज की शिक्षित व नौकरी कर रही बेटी ने बताया था कि मेरे बॉस ने मेरी पहचान आरव से करवाई थी. उस से शादी करने के लिए मम्मी पापा के साथ बातचीत करने के लिए कहा. लेकिन आरव हो या अतीक किसी को जाने पहचाने बिना शारीरिक संबंध के लिए कैसे तैयार हो जाती है? मुझे ये समझ में नहीं आता कि जिस माता पिता के साथ तेईस वर्षों से रह रही है. एक पल के लिए उन का विचार नहीं करती. माता पिता को बताए बिना चोरी छुपे रजिस्टर मैरिज कर लेती है. मेरी राय में जो बेटी माता पिता को अंधेरे में रखकर प्रेम लीला रचा सकती है. उन की आंखों में धूल झोंक सकती है. वो कतई उचित नहीं है. जब तक सब कुछ सही चलता है. तब तक सदा चांदनी रात होती है. लेकिन जब रातें काली होने लगती है और सत्य सामने आता है या समझ में आता है. तब तक बहुत देर हो चुकी होती है. मैं बेटियों से कहना चाहती हूं. प्रेम में जल्दबाजी मत कीजिए. हर पीली चीज सोना नहीं होती. मेरी नासमझ बहनों आप सत्य को समझिए. मित्रता कीजिए लेकिन आंखें मूंदकर कभी किसी का विश्वास मत कीजिए. माना की विधर्मी युवक चंदन का तिलक व हाथ में कलावा बांध कर आते है. लेकिन क्या क्या हिंदू धर्म की युवतीओं को अपने धर्म की गहन जानकारी नहीं लेनी चाहिए.

अनुसंधान जारी है

लेखिका – मीरा व्यास

अनुवादक – महेश सोनी

घास हरी या नीली

*घास हरी या नीली* *लघुकथा* एक बार जंगल में बाघ और गधे के बीच बहस हो गई. बाघ कह रहा था घास हरी होती है. जब की गधा कह रहा था. घास नीली होती है...