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शुक्रवार, मार्च 29

छेड़ दो (मुक्तक)



बांसुरी से राग मीठा छेड़ दो
मन लुभावन गीत प्यारा छेड़ दो
गोपियों की बात मानो कृष्ण तुम
तार राधा का जरा सा छेड़ दो
कुमार अहमदाबादी

गुरुवार, मार्च 28

सच डरता नहीं (कहानी)

 सच डरता नहीं


कौशल और विद्या दोनों बारहवीं कक्षा में पढते थे। दोनों एक ही कक्षा में भी थे। दोनों ही ब्रिलियन्ट स्टूडेंट थे, इसी वजह से दोनों में दोस्ती भी थी; और एक स्वस्थ प्रतिस्पर्धा भी थी। परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करने के लिये दोनों खूब पढाई करते थे। पढाई में एक दूसरे की मदद भी करते थे।

लेकिन जैसा की अक्सर होता है। एक लडके व एक लडकी की दोस्ती को हमेशा शक की नजर से ही देखा जाता है। कौशल व विद्या के साथ भी एसा ही हुआ। जो विद्यार्थी व विद्यार्थीनी पढाई में दोनों का मुकाबला नहीं कर सकते थे। उन्हों ने दोनों के संबंधों के बारे में अफवाहें उडाना शुरु कर दिया। धीरे धीरे अफवाहें जोर पकडती गई। कौशल व विद्या को भी अफवाहों के बारे में पता चला तो दोनों हंसकर रह गये।

लेकिन एक दिन किसी ने अफवाह को एकदम निम्न स्तर तक पहुंचा दिया। उस दिन विद्या बहुत विचलित हो गई। इतनी विचलित हो गई कि आधी छुट्टी के दौरान आत्महत्या का इरादा कर के स्कूल से थोडी दूर से गुजर रहे रेल्वे ट्रेक की तरफ जाने लगी। विद्या की एक सहेली ने कक्षा में आकर वहां बैठे विद्यार्थियों को विद्या के इरादे के बारे में बताया। कौशल भी क्लास में था। कौशल तथा अन्य विद्यार्थी विद्या को वापस लाने के लिये उस की तरफ भागे।


वे सब विद्या के पास जाकर उसे समझाने लगे। मगर, विद्या ने किसी की नहीं सुनी और वो बस ट्रेक की तरफ चलती रही। दो पांच मिनट तक समझाने के बावजूद जब विद्या नहीं मानी तो आखिरकार कौशल ने उस का हाथ पकड लिया; और उसे वापस स्कूल की तरफ खींचता हुआ सा लेकर जाने लगा। विद्या ने विरोध किया पर कौशल नहीं माना। तब तक वहां अच्छी खासी भीड भी जमा हो गई।

भीड को जमा होते देखकर विद्या की एक सहेली ने कौशल से कहा 'कौशल, हाथ छोड दो, भीड इकट्ठा हो रही है। तमाशा हो रहा है।' ये सुनकर कौशल ने हाथ छोड दिया। हाथ छुटते ही विद्या फिर रेल्वे ट्रेक की तरफ भागी। कौशल ने दौडकर उसे वापस पकड लिया और स्कूल की तरफ ले जाने लगा। इस बार कोई कुछ नहीं बोला। उस के बाद कौशल वहां से स्कूल तक विद्या का हाथ पकडे रहा। वैसे हाथ पकडे हुए ही वो विद्या को आचार्य की ऑफिस में ले गया। आचार्य ने नजर उठाकर दोनों को देखा। चेहरे पर प्रश्नार्थ के भाव उभरे। उन भावों को देखकर कौशल ने आचार्य को बताया कि 'ये आत्महत्या के लिये ट्रेक की तरफ जा रही थी। इसे वापस लेकर आया हूँ'

आचार्य ने विद्या का हाथ पकडा और अपने पास एक कुर्सी पर बिठाया। फिर कौशल की तरफ मुडकर दो पल उसे गहरी नजरों से देखने के बाद बोलीं 'वेलडन कौशल, तुम्हारी निर्भीकता और नीडरता ने मुजे सत्य का प्रमाण दे दिया है। अब आगे मैं सबकुछ संभाल लूंगी। तुम्हें डरने की कोई जरुरत नहीं' 

कुमार अहमदाबादी

रविवार, मार्च 24

बेटों को संस्कार सीखाओ

 बेटों को संस्कार सीखाओ

बेटी बचाओ बेटी पढाओ


एक अभियान बेटी बचाओ बेटी पढाओ चल रहा है। जब कि सच पूछें तो,                       

बेटे को समझाओ बेटे को सीखाओ अभियान चलाने की आवश्यकता है। 


आप सोचेंगे कि भाई ये क्या बात कह रहे हो। 


आप जरा सोचें की, बेटी बचाओ बेटी पढाओ अभियान चलाने आवश्यकता क्यों खडी हुई? इसलिये कि बेटियों को वो संघर्ष करने पडता है। जो संघर्ष दरअसल होना ही नहीं चाहिये। 

बेटीयां जब घर से बाहर निकलती है तब उन्हें कई प्रकार की मानसिक व शारीरिक प्रताडना का सामना करना पडता है। छोटा सा उदाहरण देख लिजिए। लड़कियां बस में या बस की लाइन में खडी हो तो लड़के और कुछ पुरुष भी अनुचित तरीके से स्पर्श करते हैं । भद्दे इशारे करते हैं। बेटियों  के साथ एसा व्यवहार करीब करीब हर स्थान पर होता है। संभवतः सौ में से अस्सी से नब्बे पुरुष लड़कियों के साथ इसी प्रकार का वर्तन करते हैं। 

तो, प्रश्न ये होता है कि परिवर्तित किसे होना चाहिये। जो गलत व्यवहार कर रहा है उसे?  या जो गलत व्यवहार सहन करता है उसे? इसलिये  बेटे को सीखाओ बेटे को समझाओ ताकि वो लड़कियों से स्त्रियों से गलत व्यवहार करना स्वेच्छा से बंद करे। 


एक दो मुद्दे पुरुषों को भी समझने चाहिये कि,

वे खुद को परिवर्तित कर लें वर्ना गर बेटियों ने व्यवहार परिवर्तित करवाया तो भविष्य में आप के लिये एसी समस्याएं खडी होगी। जिन के बारे में आपने सोचा भी ना होगा। बेटियों ने अगर समाज का, व्यवस्था का संचालन अपने नियंत्रण में ले लिया तो जो कुछ होगा। वो आप की कल्पना से परे होगा।

इसीलिए बेटी बचाओ बेटी पढाओ और साथ में बेटे को समझाओ

कुमार अहमदाबादी

गुरुवार, मार्च 21

पूजा किसे कहते हैं?(अनुदित)

 पूजा किसे कहते हैं?

अनुवादक - महेश सोनी


उत्तर -
पूजनम् (पूज+ल्युट) का सीधा सादा सारा अर्थ; सम्मान करना,सादर स्वागत करना, आराधना करना, अर्चना करना, आदरपूर्वक भोग धरना: होता है। सगुणोपासना( सगुण+उपासना, सगुण यानि (सतोगुण, रजोगुण, तमोगुण) में देवपूजन का अधिक महत्व है। वैदिक काल से अग्नि, सूर्य, वरुण, रुद्र, इंद्र आदि देव और दिव्य शक्तियों का पूजा होती रही है/होती आयी है। भारत का इतिहास में पूजा से प्राप्त हुयी अकल्पनीय उपलब्धियों की अनेक घटनायें दर्ज है। भारतीय पौराणिक साहित्य एसे किस्सों से समृद्ध है। पुरातन काल एवं परंपरा से ही दो प्रकार की विधियों से पूजा की जाती रही है।
1. योग
2. पूजा

1. योग
अग्निहोत्रि द्वारा पूजा करवाने को योग या यज्ञ कहा जाता है। ये पूजा अनेक लोगों के सहयोग से संपन्न होते हैं। इस में मंत्रों और परंपराओं का विशिष्ट क्रम रहता है। ये योग सकाम और निष्काम के भेद के कारण अनेक प्रकार के होते हैं। प्रत्येक की अनुष्ठेय क्रिया भी अलग अलग प्रकार की होती है।

2. पूजा
कुछ निश्चित पदार्थों सहित देवों की पूजा अर्चना होती है। पत्र, पुष्प एवं जल के द्वारा अर्चना करने को ही पूजा कहते हैं। इस पूजा द्वारा इंसान अपने आराध्य देव को प्रसन्न कर के वरदान मांगता है। इस पूजा की पंचोपचार(पंच+उपचार=पंचोपचार) से लेकर सर्वांगोपचार(सर्वांग+उपचार= सर्वांगोपचार) तक अनेक प्रणालीयां है। (1) वैदिक परिपाटी (2) पौराणिक परिपाटी। पौराणिक परिपाटी के मुद्दे पर मंत्रो में भेद दिखायी देता है।

*हिन्दू मान्यताओं नो धार्मिक धार्मिक आधार* *(लेखक - डॉ. भोजराज द्विवेदी*) की पुस्तक के पृष्ठ नंबर 86 पर दिये गये प्रश्न एवं उत्तर का अनुवाद
अनुवादक - महेश सोनी

रंगों का गीत


इस दुनिया में आकर हमने रंग इतने देखे हैं
मेघधनुष में रंग है जितने रंग उतने देखे है
इस दुनिया में आकर हमने ...
.
कोई नीला कोई पीला कोई काला कलंदर है
कोई आसमानी गगन, कहीं पे नीला समंदर है
इस दुनिया में आकर हमने....
.
चोर का चेहरा पीला और दुल्हन का लाल देखा
खेतों में हरियाली देखी आग को केसरिया देखा
इस दुनिया में आकर हमने....
.
मौसम के संग इन्सानों को हमने रंग बदलते देखा
युद्धों के आखिर में हमने श्वेत ध्वज लहराते देखे
इस दुनिया में आकर हमने....
.
फूल खिलते मौसम के संग और फिर मुरझाते है
क्रोध से लाल चेहरे और शर्म से लाल चेहरे देखे
इस दुनिया में आकर हमने....
.
दंगों की कालिमा देखी, पानी का ना रंग देखा
वायु को रंग बिना पर, योद्धा को केसरिया देखा
इस दुनिया में आकर हमने....
कुमार अहमदाबादी

सोमवार, मार्च 11

भंगिया

तर्ज - ये गोटेदार लहंगा


सेवक लाये हैं भंगिया, भोले बाबा छान के

भर भर के लोटा पीले, मस्ती में छान के ।। टेर।।


बड़े जतन से हौले -2, भांग तेरी घुटवाई,

केसर पिस्ता खूब मिलाया, छान लेई ठण्डाई,

हमरी भी रख ले बतिया-2, सेवक तू जान के।।१।।


गौरा मैया के हाथों से, भांग सदा तू खाये,

तेरे सेवक बडे चाव से, आज घोटकर लाये,

सावन की बुंदे थिरके-2, रिमझिम की ताल पे।।२।।


और देव होते तो लाते, भर भर थाल मिठाई,

लेकिन भोले बाबा तुझ को , भांग सदा ही भाई

भक्त दया का भोले-2, हम को भी दान दे 


ये रचना मैंने एम.जे. लायब्रेरी की किताब रस-माधुरी(श्री सांवरिया भक्त मंडल द्वारा संग्रहित व प्रकाशित) में पढी थी। बहुत मीठी व प्यारी लगी; सो रसिकों के लिये यहां पोस्ट कर दी।

दर्द रह गया(मुक्तक)

 

छल गयी आशा को बरखा खेत सूखा रह गया

चक्र टूटा अर्थ का व्यापार ठंडा रह गया

क्या जगत का तात करता वारि जब बरसा नहीं

पेट भूखा आंख भीनी दर्द खारा रह गया

वारि-पानी

कुमार अहमदाबादी

शुक्रवार, मार्च 8

कुंदन कला - कलाइयों की अदभुत कला

कुंदन कला - कलाइयों की अदभुत कला
लेखक - कुमार अहमदाबादी

कुंदन कला कलाईयों की एक एसी कला है। जो अदभुत व अद्वितीय है।  हालांकि आज तक कभी भी इस का कलाई की एक कला के रुप में प्रचार प्रसार नहीं हुआ। कलाई की अन्य जो कलाएं हैं। कलाई की कला के रुप में उन के प्रचार प्रसार और इस के प्रचार प्रसार का तुलनात्मक अध्ययन करें। तब मालूम होगा। कुंदन कला का कभी भी कलाई की एक अद्वितीय कला के रुप में प्रचार हुआ ही नहीं है। 

आप जरा याद कीजिए फिर गौर कीजिये। 
आप में से कई व्यक्ति क्रिकेट के शौकीन होंगे। आपने क्रिकेट की कमेन्ट्री के दौरान अनेक बार ये शब्द कलाईयों का बेहतरीन उपयोग सुने होंगे। ये शब्द आपने बल्लेबाज के शॉट की प्रशंसा के लिये एवं बोलर खास कर के लेग ब्रेक बोलर या चाइनामैन बोलर ( जैसे की अब्दुल कादिर, शेन वार्न, अनिल कुंबले, कुलदीप यादव) की गेंदबाजी के दौरान सुने होंगे। वास्तव में वो सच भी है। बल्लेबाज या गेंदबाज का बेहतरीन तरीके से व लाजवाब तकनीक से कलाईयों के घुमाव का और लोच का उपयोग कर के अपने कार्य को सुन्दर आकर्षक व फलदायक बनाना ही उस की विशेषता होती है, खूबी होती है, कला होती है। यहां कमेन्ट्री के दौरान सुने जाने वाले एक और शब्द का सिर्फ उल्लेख कर के अब वापस मूल मुद्दे पर लौटते हैं। वो शब्द है हैंड आई को ऑर्डिनेशन । जिस का अर्थ होता है आंखों और हाथों का तालमेल  या आंखों और हाथों का समन्वय।

अब वापस कुंदन कला के मुद्दे पर लौटते हैं। कुंदन कला के जेवर जब सृजन(बनने) की प्रक्रिया में होते हैं। तब भी बार बार कलाइयों का उपयोग होता है। जडतर का जो कलाकार जितनी कुशलता से अपनी कलाइयों का उपयोग करता है। उस द्वारा निर्मित जेवर उतना ही खूबसूरत व आकर्षक बनता है। 

कुंदन कार्य के दौरान प्रत्येक चरण में कलाइयों का उपयोग होता है। जेवर में सुरमा, लाख, पेवडी आदि भरने से लेकर जेवर को हूंडी से उतारने तक कलाइयों का उपयोग होता है। आप स्वयं कुंदन के जेवर के सृजन के दौरान के पलों को याद कर लिजिए। कुंदन बनाते समय, कुंदन लगाते समय, नीट करते समय, तचाई करते समय आप कलाइयों का उपयोग करते हैं या नहीं? जडतर के कलाकारों को एक विशेष पल की याद दिलाता हूं। आप जब ताच लेते हैं। तब जहां ताच पूरी होती है। उस जगह पहुंचने के बाद ताच का वो छिलका जो पकाई से उतरा हुआ। लेकिन सलाई से (और थोडा सा जेवर से भी) चिपका हुआ होता है। उसे जेवर हटाने के लिये (आज की भाषा में कहें तो कनेक्सन काटने के लिये) कलाई को जो हल्का सा झटका देते हैं। झटका देकर उस ताच जेवर से दूर करते हैं। वो क्या होता है? वो जो झटका देकर,  कलाई को घुमाव देकर ताच को जेवर से अलग करने की प्रक्रिया में कलाई की लोच का उपयोग होता है। वो क्या होता है? वही कुंदन की कला में कलाईयों का अदभुत उपयोग है। 
वो जडिया जडतर का उत्तम, श्रेष्ठ कलाकार बनता है। जडाई का मास्टर बनता है। जो जाने अंजाने कलाईयों का कुशलतापूर्वक उपयोग करना सीख जाता है।
कुमार अहमदाबादी

बुधवार, मार्च 6

याद है शरारत (मुक्तक)



थी बहुत ही वो प्यारी हिमाकत सनम

भा गयी थी नशीली शराफत सनम

मैं नहीं भूलना चाहता स्पर्श वो

याद है होठ की वो शरारत सनम

कुमार अहमदाबादी

होली गीत(विभिन्न छंदों में)

 (प्रिल्युड)

(अपवाहक एवं विद्युल्लेखा छंद में)


(पुरुष) गोरी तू चटक मटक, लटक मटक, चटक मटक, करती क्युं री? ओये होये क्युं री?

(स्त्री) पीया तू समझ सनम, चटक मटक, लटक मटक, करती क्युं मैं? ओये होये क्युं मैं?

(पुरुष) तेरा ये बदन अगन, जलन दहन, नयन अगन, लगते क्युं है? ओये होये क्युं है?

(स्त्री) मेरे ये नयन बदन, सनम अगन, जलन दहन, जलती होरी....ओये होये होरी

(स्त्री) चाहे ये सनन पवन, बरफ़ पवन, सनम पवन, बनके आ जा...... ओये होये आ जा

(पुरुष) आया मैं सनन पवन, पवन बरफ, बरफ पवन, बनके गोरी ओये होये होरी.......

आई रे आई होरी

[मुखड़ा]

[स्त्री समूह] आई रे आई रे होरी, आई आई रे होरी, आई रे आई रे होरी, आई रे.............. होरी आई रे

[पुरुष समूह] लाई रे लाई रे होरी, लाई रे लाई रे होरी, लाई रे लाई रे होरी, लाई रे .............होरी लाई रे



[स्त्री समूह] तन में तरंग लाई, मन में उमंग लाई

[पुरुष समूह] गुल में निखार लाई,रुत बेक़रार लाई

[स्त्री समूह] पिया का प्यार लाई, रस की फुहार लाई

[पुरुष समूह] दिल में करार लाई रंग बेशुमार लाई.......आई रे....होरी आई रे

आई रे[रिपीट]

[अंतरे]

[नायक] तुम भी खेलो, मैं भी खेलूं.धरती का कण कण खेले,

[नायिका] रंगो के इस रत्नाकर में, जीवन का पल पल खेले,

[दोनों समूह] सागर, सरिता, झरने,चंदा, भानु और तारे खेलें

[दोनों] बन के तारें अम्बर के हम, झुमके खेलें होरी रे,होरी रे, होरी रे,...........आई रे



[नायिका] राधा खेले, श्याम खेले, सारा गोविन्द धाम खेले

[नायक] प्रेम पियाला मस्ती से, पीकर बंसी फाग खेले,

[दोनों समूह] बंसी की सरगम पर ये, गोपियाँ, वो गैया खेले,

[दोनों] रेशमी सूर बंसी के रे झुमके खेले होरी रे, होरी रे, होरी रे,..............आई रे



[नायक] योगी खेलें, भोगी खेलें, मिलकर दोनों संग खेलें

[नायिका] मौसम की मस्ती में डूबे, फूलों से भंवरे खेले,

[दोनों समूह] मेघ-धनुषी मौसम में गुल, रंगीली रसधार झेलें,

[दोनों] पिचकारी की धार पे सब, झुमके खेलें होरी रे, होरी रे, होरी रे,.........आई रे



[नायिका] पीला खेलें, लाल खेलें, हम ये सालों साल खेलें,

[नायक] मौसम आएँ, मौसम जाएँ, सदियों ये फागुन लाएँ,

[दोनों समूह] रंग बिरंगी होरी से हम दूर कभी हो ना जाएँ,

[दोनों] फाग-राग की मस्ती में सब, झुमके खेलें होरी रे, होरी रे, होरी रे,.....आई रे

कुमार अहमदाबादी

तराजू की चिंता


मैं तराजू हूँ। वो तराजू, कुछ पलों बाद जिस में खडा होकर अर्जुन मत्स्यवेध करनेवाला है। मुझे ये चिंता सता रही है। क्या मैं संतुलित रह पाउंगा? क्यों कि अर्जुन की सफलता व निष्फलता मेरे संतुलित रहने या ना रहने पर निर्भर है। मैं जानता हूँ। कृष्ण पानी को स्थिर रखेंगे। अगले कुछ पल साबित करनेवाले हैं। लक्ष्य को भेदना हो, प्राप्त करना हो तो लक्ष्य पर नजर रखनी आवश्यक है। अगर अर्जुन यानि भेदक अपने शरीर को स्थिर व संतुलित रखेगा; तो ही जलरुपी तत्व स्थिर रहेगा। भेदक को अपनो सांसों को भी नियंत्रित रखना होगा। सांस अनियंत्रित होते ही शारीरिक व मानसिक संतुलन बिगड जाता है। संतुलन बिगडने के बाद लक्ष्य को भेदना असंभव हो जाता है। मुझे एक और संभावना चिंतित कर रही है। क्या हवा स्थिर व शांत रह सकेगी?
कुमार अहमदाबादी

होरी गीत (प्रिल्युड)

 होरी गीत (समूह गीत) विभिन्न छंदो में


(प्रिल्युड)

अपवाहक एवं विद्युल्लेखा छंद में


(पुरुष)गोरी तू चटक मटक, लटक मटक, चटक मटक, करती क्युं री? ओये होये क्युं री?

(स्त्री)पीया तू समझ सनम, चटक मटक, लटक मटक, करती क्युं मैं? ओये होये क्युं मैं?

(पुरुष)तेरा ये बदन अगन, जलन दहन, नयन अगन, लगते क्युं है? ओये होये क्युं है?

(स्त्री)मेरे ये नयन बदन, सनम अगन, जलन दहन, जलती होरी....ओये होये होरी

(स्त्री)चाहे ये सनन पवन, बरफ़  पवन, सनम पवन, बनके आ जा...... ओये होये आ जा

(पुरुष)आया मैं सनन पवन, पवन बरफ, बरफ पवन, बनके गोरी ओये होये होरी.......

आई रे आई होरी

मंगलवार, मार्च 5

परंपरा(अनूदित लेख)

 *परंपरा*

लेखिका - एषा दादावाला

अनुवादक - कुमार अहमदाबादी 

जामनगर में मेहमानों को एक कतार में बिठाकर अपने हाथ से बुंदी के लड्डु परोसने वाले मुकेश अंबानी को देखकर मन में प्रश्न हुआ। अब कुछ लोग करेंगे? 

जो लोग दो पांच करोड की आसामी है। वे शादी ब्याह में विदेशों से शेफ(रसोइया) बुलवाते हैं। दुनिया भर की सुगर फ्री मीठईयों का काउंटर रखकर तरह तरह की शेखियां बघारते हैं। जब की पौने दस लाख करोड(कोई फटाफट बता सकता है। इस रकम में कितने शून्य होंगे? अब सुगर फ्री चोंचले वाले क्या करेंगे?) जिस के पास है। वो धनपति भोजन के लिये पारंपरिक कतार व्यवस्था में आमंत्रितों को भोजन करवा रहा है।

श्रीमंतो को देख देख कर आम आदमी ने भी कतारबद्ध भोजन करवाने की व्यवस्था को छोडकर भारी भरकम बुफे की व्यवस्था अपना ली। जिस में नोर्थ इन्डियन, साउथ इंडियन, थाई, इटैलियन आदि आदि काउंटर सजाये जाते हैं। अब अरब खरबपति मुकेश अंबानी ने फिर से कतारबद्ध बिठाकर भोजन करवाने की रीत को पुर्नजीवित किया है। मेहमानों को अपने हाथों से भोजन परोसने की रीत को फिर शुरू किया है। 

अब?

एक समय था। जब भोजन में भारतीय व्यंजनो की बोलबाला थी। हर प्रांत के अपने अपने व्यंजन थे। गुजरात में दाल, लड्डु व आलू की मीठी सब्जी, फूलवडी, लापसी थे। राजस्थान में मोतीपाक सब से उत्तम मीठाई मानी जाती थी। बाद में वो स्थान कतली ने ले लिया। तब घर का लगभग हर व्यक्ति भोजन परोसने में गौरव का अनुभव करता था। बच्चे बूढे स्त्रियां सब मेहमानों को भोजन करवा कर अद्वितीय आनंद प्राप्त करते थे। 

फिर आपसी स्पर्धा में कई विसंगतियां आ गयी।

ये मानकर की हमारे पास तो बहुत है; नो गिफ्ट प्लीज एवं एवं ओन्ली ब्लेसिंग्स को बडे बडे अक्षरों में लिखवाने का दौर भी चला। जब की इधर अनंत अंबानी जो की आज अरबों का भावि वारसदार है। उसे गुड़ के साथ सगुन की नोट लेने में कोई हिचकिचाहट नहीं है। 

अब वो वर्ग क्या करेगा। जो दंभ की दुनिया में जीता था। 

प्रतिस्पर्धा के जमाने में अपनी हस्ती को बड़ा बताने या साबित करने के प्रयास जारी रखेंगे, या; प्रेम से अपनेपन से बुंदी, मोतीपाक, लापसी को शादी ब्याह में बनवाकर उन के समर्थक होने का प्रमाण देंगे?

*लेखक - एषा दादावाला*

*अनुवादक - कुमार अहमदाबादी*

सोमवार, मार्च 4

भांग और शिवरात्रि व होली(अनूदित लेख)

भांग और शिवरात्रि व होली(अनूदित लेख) 

अनुवादक - कुमार अहमदाबादी


ता. 03-03-2024 [रविवार] के गुजरात समाचार की रवि पूर्ति में छपे लेख

(लेखक - भालचंद्र जानी)  का अनुवाद



गुजरात समाचार की रविपूर्ति (03-03-2024 के दिन) में भांग के बारे में एक अच्छा लेख छपा ही. लेख हॉटलाइन कॉलम में छपा है. इस कॉलम के लेखक भालचंद्र जानी है. उस का हिंदी अनुवाद कर के दोपहर बाद रखने का प्रयास करुंगा. मूल लेख लम्बा है. दो या तीन हिस्सों में पोस्ट करना पड़ेगा. एक झलक दे देता हूं.


मैंने शंकर का एक रूप निराला देखा

जटा में गंगा, हाथ में भंग का प्याला देखा

जिसे भांग का सेवन करना अच्छा लगता है. वो तो शंकर का नाम जोड़े बिना भी भांग का नशा करता है. लेकिन धर्म को मानने वाले भगवान शंकर का नाम पहले लेते हैं. कहते हैं शिवजी भांग पीकर मस्ती में मस्त रहते थे. तांडव नृत्य करते थे. एसी बातें कर के शिव भक्त मस्ती के लिए भांग का सेवन करते हैं. शिवरात्रि के दिन शंकर के मंदिर में जाकर उन का दर्शन कर के भांग को प्रसाद के रुप में ग्रहण करते हैं. भक्त प्रसाद के रुप में जो भांग लेते हैं. वो छानी हुई होती है. 

भांग गुजरात में सरकार द्वारा कानूनन प्रतिबंधित है. इसलिए कोई भी वैध या हकीम एसी कोई दवाई जिस में भांग शामिल हो. किसी अपरिचित दर्दी को देते नहीं हैं. लेकिन ये भी सत्य है. आयुर्वेद में भांग के कई औषधीय गुणों के बारे में वर्णन है. शराब और भांग में एक अंतर ये है की शराब के व्यसनी व्यक्ति को शराब शारीरिक, मानसिक, आर्थिक और सामाजिक रुप से बहुत हानि पहुंचाती है. जब की भांग का अतिरेक व्यक्ति को बहुत ज्यादा या गंभीर नुकसान नहीं करता. इस के बावजूद भांग का उपयोग करना जरुरी हो तो उस का उपयोग औषधि के रुप में करना चाहिए; व्यसन के रुप में नहीं. 

भांग का उपयोग पाचन तंत्र की कार्य क्षमता विकसित करने अच्छे से कार्य करने के उद्देश्य से किया जाता है. पीड़ा के शमन यानि पीड़ा को दबाने के लिए भी किया जाता है. हालांकि औषध के  रुप में उपयोग करने से पहले भांग का शुद्धिकरण करना पड़ता है. उस के लिए भांग की पत्तियों को गाय के दूध में उबालने के बाद साफ पानी से धोकर सुखानी चाहिए. सूखी हुई पत्तियों को गाय के घी में सेकने के बाद उन्हें औषधि के रुप में उपयोग में लिया जाता है. 

भांग की पत्तियां और बीज दोनों का ही औषधि के रुप में उपयोग होता है. ये दोनों उष्ण होने से वातहर और कफहर है.लेकिन पित्तवर्धक है. वातहर होने के कारण ये पीड़ा का शमन करता है.

धनुर्वात या कुत्ते के काटने से हड़कवा होने से शरीर में खिंचाव आने पर भांग दी जाती है. भांग का धुआं देने से खिंचाव में आराम मिलता है.आराम मिलने से व्यक्ति को नींद आ जाती है. हड़काव के कारण दर्दी अगर उधम मचा रहा हो तो उसे शांत करने के लिए पीड़ा को दबाने के लिए भांग को ज्यादा मात्रा में दिया जाता है. हालांकि इस से हड़काव ठीक नहीं होता. लेकिन व्यक्ति को पीड़ा का पता नहीं चलता.हमारे यहां 99 प्रतिशत लोग सिर्फ महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव की पूजा करने के बाद प्रसाद के रुप में ही भांग पीते हैं.

शनिवार, मार्च 2

केसर की क्यारी (रुबाई)




 सब से न्यारी है केसर की क्यारी

सब को प्यारी है केसर की क्यारी

ये  जीवन भी  है  बागीचा इस में

हर इक नारी है केसर की क्यारी 

कुमार अहमदाबादी 


घास हरी या नीली

*घास हरी या नीली* *लघुकथा* एक बार जंगल में बाघ और गधे के बीच बहस हो गई. बाघ कह रहा था घास हरी होती है. जब की गधा कह रहा था. घास नीली होती है...