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गुरुवार, दिसंबर 28

मत छेडो जानम(रुबाई)

 


नन्ही सी जान मत निकालो हमदम
गर ना माने तो दूंगी मैं मेरी कसम
मैं पानी पानी हो जाती हूं जी
मत छेडो सामने किसी के जानम
कुमार अहमदाबादी

मंगलवार, दिसंबर 26

मंजिल अपनी चुन लो(रुबाई)

 





कहती है जो मधुबाला वो सुन लो

पीते पीते अच्छा सपना बुन लो 

सपना जीवन की मंजिल होता है

तुम भी कोई मंजिल अपनी चुन लो

कुमार अहमदाबादी

खुल्लम खुल्ला(रुबाई)


 जीवन जीता हूं मैं खुल्लम खुल्ला

सब कुछ पीता हूं मैं खुल्लम खुल्ला

आंसू आहें नफरत को वारि के साथ

निश दिन पीता हूं मैं खुल्लम खुल्ला

कुमार अहमदाबादी

खुद्दार हूं मैं

 


ऐसी तस्वीरें बहुत पीड़ादायक होतीं है,इन तस्वीरों में कब रंग भरे जाएंगे क्या कोई कह सकता है?या इन्हें साल दर साल स्याह ही रहना होगा??
Uggar Bishnoi की वाल से -देखिए
ऑनलाइन शॉपिंग की दुनिया से परे हटकर ये तस्वीर उज्जैन से आई है सौजन्य धना शर्मा ने अपनी वालपे ये तस्वीर डाली थी लेकिन अंदर के पत्रकार ने हिला कर रख दिया। मेने बुजुर्ग की आंखों में आशा उमीद दो पैसे मिलने की देखी की कहीं से मिल जाये मैने उन झुर्रियों को देखा जो उम्र के पड़ाव में आखिरी सांस तक शरीर को सहेजे हुए है मेने उस कुर्ते नुमा शर्ट को देखा जो ये कह रहा हो मानो की कोई तो इस बोझ को कम कर दो इन सामान को खरीद कर वास्तव में बाबा महाकाल की नगरी में ये दृश्य दिल को छू गया। जहाँ एक और कम उम्र के नौजवान बड़ी बड़ी कम्पनी बनाकर एमेजॉन फ्लिपकार्ट से घर बैठे समान भेजकर करोड़ो अरबो की कमाई कर रहे है वही दो जून की रोटी के लिए इस बुजुर्ग की मशक्कत सोचने पर मजबूर कर रही है कि क्या अमीरी गरीबी का फासला इतना बढ़ेगा या सोच कर मेहनत को बहुत पीछे छोड़ जाते। पूरे समान को जोड़े तो 100 रुपये से ज्यादा नही होगा पर मजबूरी या यूं कहें कि किस्मत इंसान को कितना परेशान करती है ये सीधा सीधा उदाहरण है। समय के आगे किसी की नही चलती ऐसा कहते है पर में अनुरोध विनती करता हु ऐसे लोग जहा दिखे जैसे दिखे जो हो सके कुछ न कुछ खरीद लिया करे क्योंकि आपके खरीदने से उसके घर मे शाम का चूल्हा या उसकी जो मजबूरी रही होगी उसकी पूर्ति हो जाएगी। । क्योंकि जिस पैसों से इनका काम हो जाएगा वो पैसे शायद आपके लिए छोटा मोटा खर्च हो सकता है।
खुद्दार हूँ मैं गद्दार नहीं
लाचार हूँ मैं बीमार नहीं
कुमार अहमदाबादी

सोमवार, दिसंबर 25

ऋण को चुकायो कान्हा(रुबाई)

 

रुबाई
ममता को भरपूर सतायो कान्हा
गोवर्धन परबत को उठायो कान्हा
बचपन की मैत्री को निभायो कान्हा
पांचाली के ऋण को चुकायो कान्हा
कुमार अहमदाबादी


रविवार, दिसंबर 24

बसायो कान्हा (रुबाई)


माँ को मुंह में ब्रह्म दिखायो कान्हा

गोपीयों से रास रचायो कान्हा

रण में गीता ज्ञान सुनायो कान्हा

नव नगरी सागर तट बसायो कान्हा

कुमार अहमदाबादी

शुक्रवार, दिसंबर 22

मधुवन में खो जाएं (रुबाई)


 कुछ तुम कुछ मैं मौसम को महकाएं

मादक स्वर में मीठे नग़में गाएं

दोनों मिलकर कंगन को खनकाएं

मधुरस पीकर मधुवन में खो जाएं

कुमार अहमदाबादी 

गुरुवार, दिसंबर 21

चलना सीख ले दौड़ना आ जाएगा(मुक्तक)

 

आज चलना सीख ले कल दौडना आ जाएगा
ज़िंदगी की मंज़िलों को खोजना आ जाएगा
ज्ञान का दीपक जला ले मन में तेरे तू 'कुमार'
रोशनी में उस की सच को तौलना आ जाएगा
कुमार अहमदाबादी

सब कहते हैं दिलदार मुझे(रुबाई)




 सच कहता हूं सच है स्वीकार मुझे

फूलों से प्यार है बहुत प्यार मुझे

परबत झरने सागर सूरज चंदा

जी ये सब कहते हैं दिलदार मुझे
कुमार अहमदाबादी

शनिवार, दिसंबर 16

अंगूर की मिठास(मुक्तक)


 

अमरूद की मिठास आहा क्या कहूँ
हाफूस की मिठास आहा क्या कहूँ
कुछ फल सदा मीठे ही लगते हैं ‘कुमार’
अंगूर की मिठास आहा क्या कहूँ
कुमार अहमदाबादी

शुक्रवार, दिसंबर 15

आज्ञा दो पागल जीने की(रुबाई)

 


आज्ञा दो पागल होकर जीने की 
फूलों से होठों का रस पीने की
मन में है इक मीठी मीठी इच्छा
मादक धड़कन सुनने दो सीने की
कुमार अहमदाबादी

गुरुवार, दिसंबर 14

कलम के सिपाही(कविता)


कलम के सिपाही हम है, दुश्मन की तबाही हम हैं।

पी.एम. के भाई हम है, परबत व राई हम हैं

 कलम के....


सत्य की शहनाई और जूठ की रुसवाई हम हैं।

शब्द की सच्चाई और अर्थ की गहराई हम हैं 

कलम के....


चिंतक का चिंतन और दर्शन का मंथन हम हैं।

धर्मों का संगम और एकता का बंधन हम हैं

कलम के....


विचार की रवानी और घटना की जुबानी हम हैं।

जीवन की जवानी और जोश की कहानी हम हैं

कलम के....


रचना की खुद्दारी और भाषा के मदारी हम हैं।

प्याले की खुमारी और हार-जीत करारी हम हैं

कलम के....


पेट की लाचारी और मानसिक बीमारी हम हैं।

ममता एक कंवारी और जिम्मेदार फरारी हम हैं

कलम के....


रूप के शिकारी और वीणा के पुजारी हम हैं।

दुल्हे की दुलारी और मीरा के मुरारी हम हैं

कलम के....


प्रेम की पुरवाई और जानम की जुदाई हम हैं।

तन्हाई में महफ़िल व महफ़िल की तरुणाई हम हैं

कलम के....


सपनों के रचैता और अर्थ हीन फजीता हम हैं।

भावों की सरिता और 'कुमार' की कविता हम हैं

कलम के....


[ये कविता तब लिखी गई थी जब बाजपाईजी पी.एम. थे]

कुमार अहमदाबादी 

बुधवार, दिसंबर 13

किस की है माला(रुबाई)




जीवनभर मणकों की फेरी माला
कर के तेरी एवं मेरी माला
जब बिखरे मणके सारे तब समझे
वो ना मेरी थी ना तेरी माला
कुमार अहमदाबादी

पहना दो वरमाला(रुबाई)

 पहना दे साजन मेरे वरमाला

पी लेना फिर सब से प्यारी हाला

प्याला नाजुक कोमल चंचल है तू

एसे पीना की फूटे ना प्याला

कुमार अहमदाबादी


गुरुवार, दिसंबर 7

चुस्की लेने दो(रुबाई)


मस्ती के पल जी लेने दो प्रीतम
छोटी सी चुस्की लेने दो प्रीतम
कुछ मीठा कुछ फीका कुछ कुछ खट्टा
अंगुर का रस पी लेने दो प्रीतम
कुमार अहमदाबादी 


छटपटा रही है कब से (रुबाई)


 मन ही मन मुस्कुरा रही है कब से

आंखें भी गुनगुना रही है कब से

मौसम का है नशा ये या यौवन का

मछली सी छटपटा रही है कब से

कुमार अहमदाबादी

बुधवार, दिसंबर 6

सच्ची मधुशाला(रुबाई)




 मधुबाला भर दे दोनों का प्याला 

मेरा साथी भी है पीने वाला 

पीकर दर्शन अक्सर ये कहता है 

ये जीवन ही है सच्ची मधुशाला 

कुमार अहमदाबादी

मंगलवार, दिसंबर 5

रोयी प्यासी दीवानी (रुबाई)


 
जैसे होती है बारिश तूफानी
ज्यों चलती है आंधी रेगिस्तानी
दिल टूटा तो तन्हाई में तन्हा
रोयी खुलकर इक प्यासी दीवानी
कुमार अहमदाबादी

रविवार, दिसंबर 3

रखवाली कर(रुबाई)


पावन देवालय की रखवाली कर

मानव के महालय की रखवाली कर

सनकी और पागल मानस वालों से

दानी विद्यालय की रखवाली कर

कुमार अहमदाबादी

शुक्रवार, दिसंबर 1

मौसम के गीतों को गाना सीखो(रुबाई)

मौसम के गीतों को गाना सीखो
फूलों सा खुद को महकाना सीखो
जीवन जीना है आसानी से तो
तकलीफों में भी मुस्काना सीखो
कुमार अहमदाबादी

 

मैं हूं तेरी मधुशाला(रुबाई)

छोडो ये ये है शीशे का प्याला

प्यासी है तेरी प्यारी मधुबाला

जीवनभर होश में न आने दूंगी

मुझ को पी मैं हूं तेरी मधुशाला

कुमार अहमदाबादी  


बुधवार, नवंबर 29

मुस्कायी है मधुबाला (रुबाई)



 जब जब भी मुस्कायी है मधुबाला

छलका है मेरे भीतर का प्याला

रोका मैंने ना टूटे पर आखिर

टूटा झटके से संयम का प्याला

कुमार अहमदाबादी

अजरामर प्याला(रुबाई)



 मैं कमसिन कोमल बाला हूं

यौवन रस का अजरामर प्याला हूं

मन के भर जाने तक तू पीता रह

मैं पूरी की पूरी मधुशाला हूं

 कुमार अहमदाबादी

सोमवार, नवंबर 27

संस्मरण

                                                               

कल विश्व कप फाइनल है. कल २०२३ का विश्व कप फाइनल खेला जाएगा. विश्व कल फाइनल के दिन से मेरी व्यक्तिगत याद भी जुड़ी हुई है. मैंने 1987 के नवंबर महीने की 7 तारीख की रात को 11:55 मिनिट पर व्यक्तिगत डायरी लिखने की शुरुआत की थी. 8 तारीख को मेरा जन्म दिवस था और उसी दिन विश्व कप फाइनल भी था. ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड फाइनल खेलने वाले थे. पहला लेख मैंने दूसरे दिन होने वाले फाइनल के बारे में लिखा था. ये लिखा था कि मुझे लगता है "ऑस्ट्रेलिया जीत जाएगा."                  

 उस टूर्नामेंट में ऑस्ट्रेलिया के ज्यादातर खिलाड़ी नए थे या यूं कहिए कम अनुभवी थे. टीम नव सृजन के दौर से गुजर रही थी. तीन साढ़े तीन वर्ष पहले तीन महारथी रोडनी मार्श, ग्रेग चैपल और डेनिस लिली ने एक साथ सन्यास लिया था. उस वजह से टीम थोड़ी कमजोर हो गई थी. हालांकि ऑस्ट्रेलिया का स्तर इतना मजबूत है. वो कमजोर हो तब भी दूसरी कई टीमों से अच्छी होती है. दूसरी तरफ टीम में जो नए खिलाड़ी भी शामिल हुए थे. उन्हें भी अपना सिक्का जमाना था. टीम में ज्यॉफ मार्श(मिचेल मार्श के पिता), डेविड बुन, क्रेग मेकडरमॉट, ब्रूस रीड, स्टीव वॉग, डीन जॉन्स, माइक वेलेटा, सायमन ओडोनल, ग्रेग डायर, टीम मे जैसे ज्यादातर नए खिलाड़ी थे. इन में से लगभग कोई भी तीन वर्ष से ज्यादा अनुभवी नहीं था. कप्तान एलन बॉर्डर था. वो अनुभवी था.   बॉर्डर 1979 में उप कप्तान के रुप में भारत की यात्रा कर चुका था. 79 में किम ह्यूज कप्तान था.            

ऑस्ट्रेलिया में हमेशा क्रिकेट प्रतिभाओं की भरमार रही है. क्रिकेट वहां एक जुनून है. एक तरह से राष्ट्र का गौरव है.

एसी पृष्ठभूमि में ऑस्ट्रेलिया फाइनल में पहुंची थी. दूसरी तरफ उन के सामने थी. उन की चिर प्रतिद्वंद्वी इंग्लैंड था. वैसे भी प्रत्येक आस्ट्रेलियन इंग्लैंड के विरुद्ध हमेशा दुगने तिगुने जोश से खेलता है. इसीलिए मुझे लगा था. ऑस्ट्रेलिया विश्व कप फाइनल जीतेगा. वही हुआ. ऑस्ट्रेलिया फाइनल जीता और सिर्फ 7 रन से जीता. ऑस्ट्रेलिया ने पहले खेलकर 253/5 स्कोर बनाया. लक्ष्य का पीछा करते हुए इंग्लैंड को 246/8 पर रोक दिया. डेविड बुन को प्लेयर ऑफ द मैच का अवार्ड दिया

शनिवार, नवंबर 25

वापस पाना है(रुबाई)


  जो कुछ खोया है वापस पाना है

बिछड़ों को अब घर वापस लाना है

जागा भी है बदला भी है भारत

लौटेंगे जो उन को अपनाना है

      कुमार अहमदाबादी

शुक्रवार, नवंबर 24

छू लो अभी तक(रुबाई)


इस देहलता व मन को छू लो अभी तुम

मिट्टी से बने घड़े को फोड़ो अभी तुम

मौसम व निशा है मस्त मादक ए कुमार

यौवन इक संपदा है लूटो अभी तुम

*कुमार अहमदाबादी*

बुधवार, नवंबर 22

એક મતલો એક શેર


લોહી ભીનો પાલવ જોઈ રસ્તો રડતો'તો
ચગદાયેલી બાઈક જોઈ ડુસ્કા ભરતો'તો

भावार्थ
खून से सने आंचल को देखकर रास्ता रो रहा था।
कुचली हुई बाईक को देखकर हिचकियां ले रहा था।



ભાવિ સહારો આંખોનો તારો લાડકવાયો
ઘરડા માળીનો ટેકો ચિતામાં બળતો'તો

भावार्थ
भविष्य का सहारा आंखों का तारा राजदुलारा
बूढ़े माली का सहारा चिता में जल रहा था
*અભણ અમદાવાદી*

Beautiful Stadium of Ahmedabad


 Beautiful Stadium of Beautiful Ahmedabad
Biggest Cricket Stadium of World 

भंवरलाल जी का घर

निर्णयपुरा विस्तार में चार थंभों का चौक आते ही रामकीशन ने तांगा रोका। तांगे से उतरकर एक व्यक्ति से पूछा 'भाई, मेरा नाम रामकीशन है। मैं भंवरलाल जी से मिलना चाहता हूँ। आप बता सकते हैं कि भंवरलाल जी का मकान कौन सा है? व्यक्ति बोला 'कौन से भंवरलाल जी? इस एरिये में आठ दस भंवरलाल जी है। आप को कौन से भंवलरलाल जी से मिलना है?आप उन की छाप बताइये। मैं तुरंत बता दूंगा कि उन का घर कहां है? रामू बोला 'छाप तो मुझे मालूम नहीं है। पर इतना जानता हूँ कि वो ठीक-ठाक डील डौल के हैं। व्यक्ति बोला 'भाई,ज्यादातर भंवलरलाल जी ठीक-ठाक डील डौल के ही हैं।' ये विस्तार जो की निर्णयपुरा गवाड कहा जाता है। अंदाजन सात आठ भंवरलाल जी रहते हैं। सुनिये,मैं लगभग सारे भंवरलाल क नाम बताता हूँ। आप जिन से मिलना चाहते हो। शायद छाप से पहचान जाओ। अभी आप को छाप याद नहीं पर शायद आप को लगे हां, मैं इन्हीं से मिलना चाहता हूँ। ठीक है। आगंतुक यानि आनेवाला बोला 'ठीक है।'

व्यक्ति बोला 'भंवरलाल जी फूलपुरावाले, भंवरलाल जी मशीनवाले, भंवरलाल जी गट्टोंवाले, भंवरलाल जी गांववाले, भंवरलाल जी शरारती

व्यक्ति ने जैसे ही भंवरलाल जी शरारती का नाम बोला। आनेवाले ने पूछा 'ये शरारती छाप कैसे पडी?' व्यक्ति बोला 'भाई,वो बहुत शरारत करते हैं। उन से मिलना हो तो बचकर रहना। आनेवाला बोला 'ठीक है ध्यान रखूंगा।

चौक में खडा व्यक्ति और नाम बोलने लगा, भंवरलाल जी उंची चौकीवाले, भंवरलाल जी घाटवाले, भंवरलाल जी पाटावाले, भंवरलाल जी वकील, भंवरलाल जी उस्ताद, भंवरलाल जी जडिया। अब बोलो आप को किस से मिलना है? और काम क्या है?

आनेवाला बोला 'जी, मुझे उन से घाट पर मीना करवाना है।'

व्यक्ति बोला 'मेरे साथ आओ, मैं तुम्हें पहुंचा देता हूँ।

आनेवाला व्यक्ति के साथ उस के घर गया। उसे हाटडे(घर में प्रवेश करते ही काम करने का कमरा) में बिठाकर व्यक्ति अंदर गया। दो मिनिट में वापस बाहर आया और बोला 'आप को जिन से मीना करवाना है। वो भंवरलाल मैं ही हूँ।

*कुमार अहमदाबादी*

सोमवार, नवंबर 20

पॉजीटिव और नेगेटिव सोच का फर्क

*ऑस्ट्रेलिया क्रिकेट का सम्राट*

 पॉजिटिव और नेगेटिव सोच का फर्क ऑस्ट्रेलिया और पाकिस्तान के खिलाड़ियों की सोच और वाणी और व्यवहार से स्पष्ट हुआ. अहमदाबाद में पाकिस्तान एक लाख दर्शकों के सामने पस्त हो गया. जब की ऑस्ट्रेलियन कप्तान पेट कमिंस से जब एक लाख दर्शकों के बारे में पूछा गया. उस ने कहा "हम एक लाख दर्शकों को अपने खेल से चुप कर देंगे."       

बंदे ने जो कहा वो कर के दिखाया. इंसान की सोच पॉजिटिव होनी चाहिए. ऑस्ट्रेलिया ने 6 बार वर्ल्ड कप जीता है. उन्होंने भारत में दो बार इंग्लैंड में एक बार, दक्षिण अफ्रीका में एक बार, वेस्ट इंडीज में एक बार और एक बार अपनी धरती यानि ऑस्ट्रेलिया में विश्व कप जीता है.      

 इस के अलावा अन्य आंकड़े देखें. ऑस्ट्रेलिया ने फाइनल में इंग्लैंड, पाकिस्तान, भारत(दो बार) श्रीलंका और न्यूजीलैंड को एक एक बार हराया है. एलन बॉर्डर, स्टीव वॉग, रिकी पोंटिंग(दो बार) , माइकल क्लार्क और पैट कमिंस यानि कुल पांच कप्तान वर्ल्ड कप जीत चुके हैं.

*महेश सोनी*

रविवार, नवंबर 12

सत्कारो सब (रुबाई)


दीवाली आयी है सत्कारो सब 

दीपक रोशन कर सत्कारो सब 

जीवन के इस पावन अवसर पर 

लक्ष्मी माँ आयी है सत्कारो सब 

कुमार अहमदाबादी 

बुधवार, नवंबर 8

थाली में प्याली में(रुबाई)


 रसगुल्ला दे सोने की थाली में

रबड़ी भी दे चांदी की प्याली में

थोड़ा थोड़ा ले लूंगा पर जूठन

ना छोडूंगा प्याली या थाली में

*कुमार अहमदाबादी*


रविवार, नवंबर 5

मन क्यों व्याकुल है(मुक्तक)


सोचो कितना पावन तेरा कुल है
जिस धरती पर जन्मा है गोकुल है
भारत की धरती है रघुवर की भी
फिर तेरा मन क्यों इतना व्याकुल है
कुमार अहमदाबादी

मंगलवार, अक्तूबर 24

अपना डेरा है(रुबाई)

 कहते हैं जोगी वाला फेरा है

इस जग में क्या तेरा क्या मेरा है

लेकिन जैसा भी है जब तक है दम

ये नश्वर जग ही अपना डेरा है

कुमार अहमदाबादी 

रविवार, अक्तूबर 22

कोमल और संस्कारी(रुबाई)


वो भोली कोमल औ' संस्कारी है

रिश्तेदारों को मन से प्यारी है

जल सी चंचल सागर सी गहरी औ'

गंगा जैसी पावन सन्नारी है

कुमार अहमदाबादी

प्यारी आवाज(रुबाई)

सब से मीठी सब से प्यारी आवाज
हल्की फुल्की एवं भारी आवाज
खुश कर देती है यारों तन मन को
ढक्कन के खुलने की न्यारी आवाज
कुमार अहमदाबादी
न्यारी - सब से अलग

मंगलवार, अक्तूबर 17

कौन है प्यारी मैं या बोतल (रुबाई)


ए जी मैं हूं प्यारी या ये बोतल

मैं हूं दिल की रानी या ये बोतल

सच कहना साजन बिन घबराए मैं हूं

मस्तानी दीवानी या ये बोतल

कुमार अहमदाबादी

सोमवार, अक्तूबर 16

मन के पट खोलो(रुबाई)


 नैनों से नैनों में मदिरा घोलो

मदिरा पीकर मीठा मीठा बोलो

मदहोशी जब नभ को छू ले तब तुम

मन के सम्मुख तन मन के पट खोलो

कुमार अहमदाबादी

गुरुवार, अक्तूबर 12

ऋतुराज आये हैं(रुबाई)

 ऋतुराज आये हैं देवी दर्शन दो

दे दो कुछ हम को कुछ वापस ले लो

अब तुम हो हमारी हम हैं तुम्हारे

अपने आप को खोकर हम को पा लो

कुमार अहमदाबादी

बुधवार, अक्तूबर 11

ध्यान धरो मानव (रुबाई)

 तुम ध्यान धरो मानव परमात्मा का

उस से ही मिलन होगा उच्चात्मा का

ये ध्यान तुम्हें ले जाएगा भीतर

दर्शन वहीं पर होगा श्रेष्ठात्मा का

कुमार अहमदाबादी

मंगलवार, अक्तूबर 10

नाजुक कली सी बोतल (रुबाई)


प्यारी भली सी है ये बोतल यारों

मीठी डली सी है ये बोतल यारों

क्या क्या मैं दूं उपमाएं इस साथिन को

नाजुक कली सी है ये बोतल यारों

कुमार अहमदाबादी

सोमवार, अक्तूबर 9

तोलकर बोलो(रुबाई)

ये वो छोड़ो बोतल खोलो प्यारे

प्याला पी लो फिर कुछ बोलो प्यारे

पीकर बोलो खुलकर बोलो लेकिन

जो बोलो वो पहले तोलो प्यारे

कुमार अहमदाबादी

शनिवार, अक्तूबर 7

मां का दामन(रुबाई)


बादल सा है मेरी मां का दामन
झरमर झरमर जैसे बरसे सावन
मां के जैसा कोई नहीं है जग में
मां की ममता है गंगा सी पावन
कुमार अहमदाबादी

शुक्रवार, अक्तूबर 6

मैं गीता हूं (रुबाई)

तुम तुम हो मैं मैं हूं समझे प्यारे

दोनों के जीवन है बिल्कुल न्यारे

तुम खंजर हो मैं भगवदगीता हूं

मैं मीठा हूं तुम हो पूरे खारे

कुमार अहमदाबादी

मन का ताला(रुबाई)

मन से ज्यादा गहरा है ये प्याला

प्याले से ज्यादा गहरी है हाला

जो भी डूबा गहराई में इन की

उसने खोला अपने मन का ताला

*कुमार अहमदाबादी*

कान्हा की मूरत(रुबाई)

देखो तुम कितनी प्यारी मूरत है

भोली भाली अलबेली सूरत है

चंचल मन पल पल करता है दर्शन

मन मंदिर में कान्हा की मूरत है

कुमार अहमदाबादी 

बुधवार, अक्तूबर 4

सरगम सी सांसें(रुबाई)

 

चंचल है मछली सी आंखें तेरी

सोने की लड़ियां हैं बांहें तेरी

सब कुछ कह सकता नहीं मैं शब्दों से

जीवन है सरगम सी सांसें तेरी

कुमार अहमदाबादी

मंगलवार, अक्तूबर 3

ये बोतल(रुबाई)


 यारों मुझ को प्यारी है ये बोतल

सारे जग से न्यारी है ये बोतल

शायर हूं मैं यारों सच लिखता हूं

प्यारी है पर खारी है ये बोतल

कुमार अहमदाबादी 

ज्योत जलती नहीं(रुबाई)

 

क्या बात है ज्योत आज कल जलती नहीं

बिजली भी है गरजी पर कभी चमकी नहीं

कुछ बात तो है सनम बता या ना बता

सावन में घटा आई मगर बरसी नहीं

कुमार अहमदाबादी

ये शाम हमारी है (रुबाई)


ये शाम हमारी है सनम प्यार करो

ढाओ अभी मदमस्त सितम प्यार करो

रंगीन हवा प्यास गुलाबी है नशा

ये शाम भी देती है कसम प्यार करो

कुमार अहमदाबादी

सोमवार, अक्तूबर 2

बोतल बोली (रुबाई)

 

सूर्योदय होते ही बोतल खोली

बोतल प्यारी खुलते ही ये बोली

देखा ना तुम सा मैंने जीवन में

तुम ही हो मेरे प्यारे हमजोली

कुमार अहमदाबादी

साथी न मिला(रुबाई)


खोजा था बहुत नाम को साथी न मिला

तैयार है पर जाम को साथी न मिला

मिलता नहीं है साथ किसी को भी यहां

एकांत है पर शाम को साथी न मिला

कुमार अहमदाबादी

शनिवार, सितंबर 30

प्यासा मन डोला(रुबाई)

          

साजन प्यासा मन भी डोला तन भी
सांसे डोली डोला है जीवन भी
कैसा जादू डारा है जी तुमने
धीरे धीरे डोला है मधुबन भी
कुमार अहमदाबादी

शुक्रवार, सितंबर 8

हमारी आस्थाएं और विश्वास (भाग -01)

लेखक - श्री विमल सोनी

गिराणी सोनारों की गवाड़

बीकानेर - 334001

बीकानेर का हमारा ब्राह्मण स्वर्णकार समाज स्थानीय अन्य जातियों की भांति अपने कर्म के प्रति आस्थावान है और अनेक मान्यताओं में विश्वास रखता है। इस की झलक हमें त्यौहारों, व्रतों, मेलों और कतिपय किवदंतीयों में देखने को मिलती है।

स्वर्ण-कर्म से संबंधित होने के कारण प्रत्येक घर में अंगीठा या भट्ठी मिलेगी ही मिलेगी। अनेक लोग इसे धुने के रूप में मानते हैं। इस की नित्य प्रति जल छिड़क कर अगरबत्ती से पूजा करते हैं। प्रतीक रुप में अग्नि तत्व का सतत सानिध्य इस जाति को प्राप्त है। इस कारण यहां भारद्वाज गोत्र की अधिकता पाई जाती है। इस गोत्र का वेद यजुर्वेद है और उपवेद धनुर्वेद है। ग्रह मंगल है जो अग्नि बहुल है और उपास्य देव है राम। 

स्वर्ण को वेद में हिरण्य कहा गया है। इस का अर्थ है 'हितं च रमणीयं च' यानि जो हितकर और सुन्दर दोनों ही है। इस प्रकार हिरण्य कर्म से जुड़े होने के कारण हमारी जाति में सौंदर्योपासना कारीगरी के प्रति रुझान और अनेक कलाओं में दक्षता पाई जाती है। .

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स्वर्ण लेखा से साभार

1986 में बीकानेर में आयोजित ब्राह्मण स्वर्णकार सम्मेलन, जो की श्री अखिल भारतीय ब्राह्मण स्वर्णकार सभा के तत्वावधान में ता.13 से 15 सितंबर 1986 के दौरान हुआ था। तब ये स्वर्ण लेखा स्मारिका छपी थी।

बुधवार, सितंबर 6

गृहस्थ धर्म में नारी का दायित्व (भाग - 02)

लेखक - श्रीमती शांतिदेवी सोनी

कन्हैयालाल प्रकाश चन्द्र सोनी

आसावत सुनारों का मोहल्ला

बीकानेर

 श्रेष्ठ विचार, व्यवहार और आचरण नारी के एसे गुण हैं कि  जिस घर में एसी गृहिणी होती है। वह घर पृथ्वी पर ही स्वर्ग बन जाता है। गृहिणी की ममतामयी उदात्त भावनाओं से प्रेरित होकर गृहपति भी श्रद्धा से झुक जाता है। उस के सम्मुख आत्म समर्पण कर के कह उठता है  'गृहिणी गृहमुच्यते'  अर्थात 'घरवाली ही घर है'। एसी घरवाली वास्तव में अर्धांगिनी कहलाने की पूर्ण रूपेण अधिकारिणी होती है। जो हर सुख और दु:ख या कष्ट के समय हिम्मत से अपने पति के साथ डटी रहकर उस की सहायता करती है। उस में साहस का संचार करती है। आवश्यकता पड़ने पर वह अपने पति को मित्रवत सलाह भी देती है; उपदेश भी देती है। गृहिणी के इस प्रकार के आचरण से गृहपति अपनी असफलता से भी निराश नहीं होता। उस में विपत्तियों से जूझने का अदम्य साहस आ जाता है। 


इस के अतिरिक्त घर का पूरा प्रबंध और बच्चों की देखभाल आदि सभी कुछ नारी के दायित्व की सीमा में ही आते हैं। यदि नारी अपने दायित्व का पूर्ण निर्वाह करती है तो पुरुष निर्द्वन्द्व होकर बाहर के कार्य कर सकता है। अन्यथा बाहर भी उस को घर की चिन्ता परेशान करती रहेगी और वह धनोपार्जन आदि अपने दायित्व का पालन नहीं कर सकेगा और घुटन का अनुभव करता रहेगा। 


अंत: संक्षेप में मैं केवल यही कहना चाहती हूं कि अपने आचरण से नारी घर को स्वर्ग भी बना सकती है और नर्क भी। गृहिणी ही घर की केन्द्र-बिन्दु है, धुरी है और घर का कण-कण गृहिणी के कार्य कलापों से प्रभावित रहता है। इसलिये गृहस्थ धर्म में नारी का महत्वपूर्ण दायित्व है। इसे समझ कर और तदनुकूल आचरण कर न केवल हम सुखी हो सकते हैं अपितु सारे समाज को सुखानुभूति प्रदान कर सकते हैं। ........................................................................................................................................................

गृहस्थ धर्म में नारी का दायित्व (भाग - 01) का दूसरा पार्ट 

स्वर्ण लेखा से साभार

1986 में बीकानेर में आयोजित ब्राह्मण स्वर्णकार सम्मेलन, जो की श्री अखिल भारतीय ब्राह्मण स्वर्णकार सभा के तत्वावधान में ता.13 से 15 सितंबर 1986 के दौरान हुआ था। तब ये स्वर्ण लेखा स्मारिका छपी थी।


गृहस्थ-धर्म में नारी का दायित्व (भाग - 01)


 लेखक - श्रीमती शांतिदेवी सोनी

कन्हैयालाल प्रकाश चन्द्र सोनी

आसावत सुनारों का मोहल्ला

बीकानेर


हमारे देश में गृहस्थ-जीवन अन्य देशों से कुछ भिन्न प्रकार का है। हमारे यहां दाम्पत्य-सूत्र-बन्धन एक पवित्र धार्मिक कर्म माना गया है, जो अजीवन पति पत्नी को निभाना पड़ता है। इस निर्वहन के द्वारा घर या गृहस्थी की गाड़ी सुचारु रुप से चलती रहती है। यदि इस में किसी प्रकार की कमी आ जाती है तो वहीं इस गृहस्थी की गाडी में रुकावट उत्पन्न होने लगती है। हमारी मान्यता और अनुभव है कि गृहस्थी की गाड़ी को सफलतापूर्वक चलाने के लिये पुरुष बाहर का कार्य(धनोपार्जन आदि) करे तथा नारी घर के आंतरिक कार्य करे। एसे गृहस्थों को अच्छे  गृहस्थ कहा जाता है; क्यों कि पति-पत्नी प्रेम, विश्वास और निष्ठापूर्वक गृहकार्य करते हैं। यदि आपसी प्रेम और विश्वास में कमी आ जाती है तो घर में अशांति उत्पन्न होकर गृहस्थ जीवन में कलह, दु:ख, क्रोध, घृणा, वैमनस्य आदि अनेक मानसिक और शारीरिक बीमारियां उत्पन्न हो जाती है। इस का दुष्प्रभाव गृहवासियों तक ही सीमित नहीं रहता अपितु पड़ोसियों तथा अन्य रिश्तेदारों पर भी पड़ता है। इस के विपरित पति पत्नी के आपसी प्रेम विश्वास और निष्ठा से घर तो सुधरता ही है। इस से पड़ोसियों गली-गांव वालों और बाहर के रिश्तेदारों के मन में भी आदर भाव उत्पन्न होता है और वे भी ऐसे सद-गृहस्थों के आदर्श को स्वयं ग्रहण करने हेतु प्रेरित होते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि यदि पति पत्नी अपनी सीमाओं (मर्यादा) में सुचारु रुप से कार्य करते है तो उस का सभी पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। इस के विपरित कार्य करने पर बुरा प्रभाव पड़ता है। अब हमें नारी के दायित्व पर किंचित विचार करना है।

1987 में प्रकाशित किताब स्वर्ण लेखा में छपे आलेख का प्रथम पैराग्राफ

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स्वर्ण लेखा से साभार

1986 में बीकानेर में आयोजित ब्राह्मण स्वर्णकार सम्मेलन, जो की श्री अखिल भारतीय ब्राह्मण स्वर्णकार सभा के तत्वावधान में ता.13 से 15 सितंबर 1986 के दौरान हुआ था। तब ये स्वर्ण लेखा स्मारिका छपी थी।

सोमवार, सितंबर 4

स्वर्ण कला और इस की प्राचीनता (भाग -02)

लेखक - श्री आशाराम सोनी

पुत्र  रेखचंद जी

आसावत सोनारों की गवाड़


स्वर्ण कला में अनेक विधाएं हैं। घडिया सोना घड़ता है। जड़िया घड़े हुये आभूषण में हीरा, टन,ना, माणिक, मोती या अन्य नगीने जड़ता है।सैटिंग वाले बिना जड़ाई नंग लगाते हैं। मीनाकार भांति भांति के रंग भरकर उसे सजाते हैं। बेल पत्ती, सीन, सीनरी मानव आकृति चित्रित करते हैं। जड़ाई के लिये कुंदन वाले कुंदन बनाते हैं। पाती पत्तर खिंचने के वाले मशीनों का सहारा लेते हैं। सोना चांदी इकट्ठा गाळने वाले इसी एक काम से गुजर कर लेते हैं। सोना शुद्ध करने वाले तेजाब निकालते हैं। क‌ई नगीनों का व्यापार करते हैं। छिलाई, डैमस कटाई आदि क‌ई तरह के काम है। 

जयपुर और बनारस कुंदन और जड़ाई का काम किसी जमाने में मशहूर था। धीरे धीरे बीकानेर ने उन्नति की। श्री रामप्रसाद जी आज भी विद्यमान है(ये आलेख 1986+87 के आसपास लिखा गया था तब विद्यमान होने की बात लिखी गयी है) सत्यासी वर्ष की वय में आज भी सारे अंग प्रत्यंग ठीक है। ये जड़ाई के नामी कारीगर थे। इन के भतीजे मूलचंद्र जी चल बसे। वे भी चल बसे। वे भी निपुण थे और पुत्र मदनलाल जी जयपुर में काम करते हैं। सरकार द्वारा जड़ाई के लिये ही पुरस्कृत हुये हैं।

मीने का काम भी विशिष्ट होता है। दूर दूर के बंधु मीना करवाने यहां आते हैं। सोने का तैयार काफी माल यहां से बाहर जाता है, अन्य प्रांतों में भी पहुंचता है। पिंक मीनाकारी और पारदर्शक मीने का उत्कृष्ट काम यहां होता है। सोने और चांदी की जड़ाऊ और मीने की चीजों का बाजार राजस्थान से बाहर दक्षिण में गुजरात और चेन्नई (पहले मद्रास) में है। मुस्लिम देशों में भी इस की मांग है। यहां के बने एसे जेवर देश विदेश में लगने वाली औद्योगिक, व्यावसायिक और कलादीर्घाओं, प्रदर्शनियों एवं बाजारों में प्रदर्शित किये जाते हैं, बिकते भी है। यहां की कला निपुणता का बखान एक कवि ने इस दोहे में यों किया है :-


अमल, मिठाई, इस्तरी, सोनों, गहणों, साह।

मरु  धरा  में  नीपजे, वाह  बीकाणा  वाह।।


जेवरों की डिजाइन और हथौटी स्थान विशेष की अलग अलग होती है। इसी कारण गहना देखते ही जान लेते हैं कि यह वस्तु अमुक जगह बनी हुयी है। प्राचीन काल से चली आ रही इस स्वर्ण कला में भी क‌ई उतार चढ़ाव आते हैं। इस में अनेकानेक रासायणिक द्रव्यों और पदार्थों का प्रयोग होता है। रसायन शास्त्र जिस ने पढ़ा हो। वो प्रयुक्त पदार्थों के अलावा भी अन्य परीक्षणों द्वारा नये नये परिणाम निकाल सकता है। दु:ख इस बात का है, पढ़ लिख कर हर कोई नौकरी खोजता है। अपने पैतृक धन्धे को हीन समझ कर उस की ओर देखता तक नहीं। आज के वैज्ञानिक युग की मांग है। हमारे समाज के विज्ञान के छात्र इस विषय का अध्ययन करें और इस कला को समृद्ध श्रेष्ठ एवं उच्च स्तर की बनाने की दिशा में कार्य करें। जिस से समाज के बंधु लाभान्वित हो सकें।


सन 1963 में स्वर्ण नियंत्रण लागु होने के बाद इस कार्य में अनेकों उलझनें इस रही है। उस के लिये युवकों को प्राथमिकता से विचार करना होगा। ये चिंता का विषय है; सोने का भाव दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। दूसरी तरफ सरकार ने स्वर्ण नियंत्रण के बदले में आरंभ जो सुविधाएं दी थी। वे भी बंद करदी है।

(स्वर्ण लेखा से साभार)

1986 में बीकानेर में आयोजित ब्राह्मण स्वर्णकार सम्मेलन, जो की श्री अखिल भारतीय ब्राह्मण स्वर्णकार सभा के तत्वावधान में ता.13 से 15 सितंबर 1986 के दौरान हुआ था। तब ये स्वर्ण लेखा स्मारिका छपी थी। 

रविवार, सितंबर 3

स्वर्णकला और इस की प्राचीनता (भाग - 01)

 लेखक - श्री आशाराम सोनी

पुत्र रेखचंद जी

आसावत सोनारों की गवाड़

बीकानेर 

स्वर्णकला कितनी प्राचीन है - इस का उत्तर इतिहास देता है। राजा महाराजा और सम्राटों की वेश-भूषा, सिंहासन, राज महल, राज रानियों के अंग अंग में पहने आभूषणों एवं उन के पूजा गृह में स्थापित प्रतिमा, श्रंगार और स्वर्ण  मंडित व मणि-मुक्ता जड़ित द्वारों, उपकरणों तथा पूजा पात्रों के वर्णन में उल्लेखित है। महाभारत में जहां जहां राज्य वैभव दर्शाया गया है। सोने चांदी से बनी वस्तुओं की चर्चा है। दानी कर्ण का प्रतिदिन स्वर्ण दान का रोचक वर्णन है। इस से भी पूर्व वाल्मीकि रचित रामायण में महारानी कौशल्या, स्त्री रत्न सीता के स्वर्णाभरणों और लंका के धन वैभव में सोने की लंका की रोचकता चर्चित है। आदि ग्रंथ वेद में यज्ञ सर्वोपरि कर्म बताया गया है और यज्ञ कराने वाले पुरोहित को यजमान द्वारा दक्षिणा में स्वर्ण देने का आदेश है। 


पुरानी संस्कृति के प्रतीक समस्त एतिहासिक मंदिरों में देव प्रतिमाएं विविध आभूषणों से  श्रृंगारित है। उन के पात्र सोने चांदी से बने हैं। सोमनाथ मंदिर से सोने चांदी की वस्तुएं लूटी गयी। तिरुपति बालाजी में स्वर्ण प्रतिमाएं और छतें व गुंबज भी स्वर्ण मंडित व हीरे आदि रत्नों से जड़ित है। कन्याकुमारी का मीनाक्षी मंदिर भी इस का साक्षी है। पंजाब का स्वर्ण मंदिर तो सोने की खान ही हैं। राजस्थान के मंदिरों में भी अतुल सोना चांदी भरा पड़ा है। बीकानेर के प्रसिद्ध प्राचीन मंदिर भांडासर, करणी जी, नागणेची, लक्ष्मीनाथ जी और शिवबाड़ी आदि भी इस कथन के साक्षी हैं। 


आज से चार दशक पूर्व महिलाओं के अलावा पुरुष भी सोने चांदी से लदे फंदे होते थे। कानों में मुरकी या लोंग और भंवरिया, गळे में सांकळ, तोड़ा या लॉकेट, हाथों में कडे, अंगूठी, कमीज या चोळे में सोने के बटन, कमर में सोने या चांदी के करधनी और पैरों में सोने का कडा, विवाह के समय सिरपेच, बगल में चौबन्दी भी पहनते थे। राजाओं के आभूषण विशेष होते। थे।


स्त्रियों को जेवरों से विशेष मोह होता है। वे नख शिख आभूषणों को धारण करना चाहती है। सुहागिन घर और बाहर सिर पर हमेशा बोरिया बांधकर रखती है। उसे बोरिया विहीन देखते ही मन में आशंकाएं उठने लगती है। इस के अलावा रानियां सांकळ जोडी (मोर मींढी) और चांद सूरज भी सिर पर धारण किये जाते हैं। सकरपारा, तारा, शीशफूल श्रंगार पट्टी और हीरे जवाहरात युक्त स्वर्ण मुकुट पहनती थी। कानों में बालियां, सुरलिया-पत्ता व नाक में नथ, फीणी, तिनखा, दांतों में रवे, गले में ठुस्सी, तायतिया, तिमणिया, आड, हांस, गळपटियो, सिबी-सांकळ, चन्द्रहार, तख्त्यां, कांठळीयो, नेकलेस, हाथों में हाथीदांत के स्वर्ण-मंडित चूड़ी, मुठिया, पुरांची, आदि उंगलियों में अंगूठी, दावणों, छल्ले, कमर में सोने या चांदी का कन्दोळा व करधनी लटकण और पैरों में कड़ला, आंवला, टणका, हीरानामी, जिभ्यां, कड़ी, रमझोळ, जोड़-नेवरी और पायल पहनी जाती थी।

(अनुसंधान जारी है)

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स्वर्ण लेखा से साभार

1986 में बीकानेर में आयोजित ब्राह्मण स्वर्णकार सम्मेलन, जो की श्री अखिल भारतीय ब्राह्मण स्वर्णकार सभा के तत्वावधान में ता.13 से 15 सितंबर 1986 के दौरान हुआ था। तब ये स्वर्ण लेखा स्मारिका छपी थी।

श्री गुरु वंदना


माता पिता गुरु चरणों में प्रणवत बारम्बार

हम पर किया बड़ा उपकार, हम पर किया .......टेर।।


माता ने जो कष्ट उठाया, वह ॠण जाये ना कभी चुकाया

अंगुली पकडकर चलना सीखाया, ममता की दी शीतल छाया

जिन की गोद में पलकर हम, कहलाते हैं हुशियार

हम पर किया बड़ा उपकार.......।।1।।


पिता ने हम को योग्य बनाया, कमा कमाकर अन्न खिलाया

पढा लिखा गुणवान बनाया, जीवनपथ पर चलना सिखाया 

जोड जोड अपनी सम्पत्ति का, बना दिया हकदार

हम पर किया बड़ा उपकार......।।2।।


तत्वज्ञान गुरु ने बतलाया, अंधकार सब दूर भगाया

हृदय में भक्ति दीप जलाकर, हरिदर्शन का मार्ग बताया

बिना स्वार्थ ही कृपा करें ये, कितने। बड़े हैं उदार

हम पर किया बड़ा उपकार......।।3।।


प्रभु कृपा से नर तन पाया, संत मिलन का साज बजाया

बंद, बुद्धि और विद्या देकर सब जीवों में श्रेष्ठ बनाया

जो भी इन की शरण में आता, कर देता उद्धार

हम पर किया बड़ा उपकार......।।4।।


शुक्रवार, सितंबर 1

लीले री असवारी बाबो

 तर्ज - ब्याव बीनणी बिलखूं म्हें तो


लीले री असवारी बाबो अजमल घर अवतारी है

घट घट रो बासी बाबे ने ध्यावे दुनिया सारी है


1

कुं कुं रा पगल्या दरसाया अजमल घर आंगणिये में

द्वारका रा नाथ पधार्या अजमल घर आंगणिये में

मैणादे रा कंवर लाडला -2 भगतां रा हितकारी है

                             घट घट रो बासी बाबे ने ध्यावे 


2

आंख्या आंधे री खुल जावे बांझ्या पुत्र खिलावे है

कोढ़ी कंचन काया पाकर मन में सब हरसावे है

बाबा री दरगा में देखो दूर देशां सूं आवे है 

                            घट घट रो बासी बाबे ने ध्यावे 


3

चारों दिशा सूं संघ बनाकर आया दरसण पावण ने

मन इच्छा सब कारज सारो आया जात लगावण ने

थारे शरणे आया बाबा थांसु अरजी म्हारी है

                          घट घट रो बासी बाबे ने ध्यावे 


गुरुवार, अगस्त 31

आयो भादवो(बाबे रो भजन)

 

आयो भादवो भले रो, मनडे रो मोर नाचे

बाबा रे पाळा चालो, बाबो थांरी डोर खेंची

आयो भादवो......


1

वीर है कळयुग में साचा, देवे है पग पग पर परचा

नाम बाबे रो ले टुर जा, करो बाबे री सब चर्चा

 ओ तो धाम रुणिचे वाला, मनडे री पोथी बाचे

आयो भादवो......


2

आ दुनिया बाबे ने पूजे, जयकारो जोरों सूं गूंजे

ध्वजा रो  दरसन करता ही, भाव अंतर मन भीजे

थारो दुखडो बे सुणेला, मनडे ने क्यों भींचे

आयो भादवो ......


3

करोड़ों यात्री आवे, मनसा पूर्ण हो जावे,

पाय जनमारो वे धोवे, बीज नेकी रा वे बोवे

थारी बावडी रे पाणी सूं धर्म बेल ने भींचे

आयो भादवो ......




गुलाबी कोमलांगी सुंदरी(मुक्तक)


देह हीना है गुलाबी कोमलांगी सुंदरी
मुस्कुराते होठ मादक है मीनाक्षी सुंदरी
फूल पत्ती से सजा है बेल बूटों सा बदन
भाग्य में किस के ये होगी भाग्यशाली सुंदरी
कुमार अहमदाबादी

बुधवार, अगस्त 30

आणो पड़सी बाबा (बाबे रो भजन)

 तर्ज - पल्लो लटके

आणो पड़सी बाबा आणो पड़सी - 2

भगत री लाज बचावण खातिर आणो पड़सी


1.

जद जद सुगना थने बुलायो दौड्यो दौड्यो आयो

मैं भी भटक रेयो हूं बाबा बेडो पार लगावो

कि म्हाने-2 साचो साचो रास्तो दिखाणो पड़सी


2.

घरां नहीं तो बाबा म्हारे हिवडे में बस जावो

रुणिचे रा श्याम धणी थे हंसकर गले लगावो

म्हारो-2 कोई नहीं है बाबा थांने आणो पड़सी


3.

थोड़ी किरपा कर दो बाबा पैदल थांरे आवां

मनसा पूरी कर दो अब तो दरसन थारा पावां

पीर जी -2 थांरे शरणे आया अब तो आणो पड़सी


घास हरी या नीली

*घास हरी या नीली* *लघुकथा* एक बार जंगल में बाघ और गधे के बीच बहस हो गई. बाघ कह रहा था घास हरी होती है. जब की गधा कह रहा था. घास नीली होती है...