Translate

शुक्रवार, दिसंबर 31

मोर नाचे नाचसी

 मोर नाचे नाचसी 

मन री बायड काढसी


मोती सच्चा लाधसी

भाग थारा जागसी 


बात मन री जे हुवे 

तूं बणाये लापसी


संचसी नहीं पाणी तो

धूड मिट्टी फाकसी


आयी है लछमी घरे

धोए मुंढो आळसी?


पीड थारी एक दिन

काळजे ने बाळसी 


फूंक मत घर कोइ रो 

 हाय बीरी लागसी

कुमार अहमदाबादी 


गुरुवार, दिसंबर 30

નમાલો સનમ

                                                 

 ચિતા ની રાખ જેવો તું સનમ

ઠરેલી આગ જેવો તું  સનમ


ડરે ના કોઈ જેનાથી કદી

મરેલા વાઘ જેવો તું સનમ


થઈ લીલોતરી તુજ ભૂતકાળ 

ખરેલા પાન જેવો તું  સનમ


ન સમજ્યો માછલી કાં તરફડે

નઠારી જાળ જેવો તું સનમ 


નકામી નોટ ને પસ્તી સમો

નકામા ભાર જેવો તું સનમ 


ભણ્યો કે ના 'અભણ' ગણ્યો તું

અધૂરા પાઠ જેવો તું સનમ 

અભણ અમદાવાદી 

बुधवार, दिसंबर 29

પ્રેમમાં પરિવર્તન


 

रसमळाई चेपणी है एक दिन(राजस्थानी गज़ल)

रसमळाई  दाळशीरो चेपणा है एक दिन

कतली जोंफळ और चमचम चाखणा है एक दिन


लॉकडाउन में तरस ग्यो म्हैं जीमण रे वास्ते

टूटते ही लॉक मीठा टेकणा है एक दिन


चायपट्टी तक ग्यों ने बीत ग्या जुग तीन चार

चाय, कांजी और कचोळी सूंतणा है एक दिन


रांगडी में पी'र ठंडाई पछे जा'र कोटगेट

गाळ लाडू और घेवर टेकणा है एक दिन


लाल शरबत पी'र डूब'र मस्ती में कर आंख लाल

जग्गु सा रा दाळिया भी खावणा है एक दिन

कुमार अहमदाबादी 


मंगलवार, दिसंबर 28

प्रेम सूं(राजस्थानी गज़ल)

 प्रेम करणो प्रेम सूं 

और करणो नेम सूं 


जान जीमण वास्ते  

पोंच जाणो टेम सूं 


ब्हैम रो इलाज है

दूर रैणो ब्हैम सूं 


बाबु थे सोनार हो

मोस राखो हेम सूं 


भायलों सूं रोज मिल

लालजी सूं खेम सूं 

कुमार अहमदाबादी 

इत्र का व्यापारी

एक भ्रष्टाचारी पकडा गया 

इत्र का व्यापारी पकडा गया 

वक्त कैसा आज आया जिसे 

सायकल थी प्यारी पकडा गया 

कुमार अहमदाबादी 

रविवार, दिसंबर 26

तांगा गीत

कयी दशकों पहले ओ.पी.नैयर ने घोड़ो की टाप पर आधारित ताल पर कयी धुनें बनायी थी। उसी ताल पर गीत लिखने का एक प्रयोग मैंने भी किया है। 

गीत पेश है,


*तांगा गीत*

जीया जीया जीया मेरा जीया ये चाहे संग,  सैंया के झूलूं प्रेम हिंडोले

गोरी गोरी गोरी(2) तेरे जाने ना इशारे, इतने भी भोले नहीं सैंया तुम्हारे


गोरी गोरी गोरी इ इ इ इ इ इ इ

अरे सुन मेरी प्यारी बांहों में तुझे लूंगा


बांहों में तुझे लेकर मैं झूला झूलाउंगा

ओ मेरे प्यारे सैंया बांहों में तेरी आउंगी


बांहो में तेरी आके मैं फूली ना समाउंगी

पीया मेरे जीया मेरा तूने चुराया

तूने पुकारा मैं दौडा चला आया...गोरी गोरी.....


ये प्रेम का झूला यूं झूले ए दोनों के

जो भी हमें देखे तो दिखे इक दोनों 


ये बांहें तेरी है मेरा प्रेम हिंडोला 

बांहों में यूं झूली के तन सुध भूला


तनमन तेरे मेरे बन गये झूला

सांसे झूले देखो प्रेम का झूला....गोरी गोरी ....



इस प्रेम के झूले में झूल के सैंया

मैं तुझ में समायी औ' मंजिल है पायी


मैंने जो खोया है तूने वो पाया

तूने जो खोया है मैंने वो पाया


खोना पाना पाना खोना रीत है पुरानी

रीत ये पुरानी लगे हमें भी सुहानी...गोरी गोरी....

*कुमार अहमदाबादी*

शुक्रवार, दिसंबर 17

प्रतीक्षा का दीप

 सोलह सिंगार कर के

प्रतीक्षा के दीप को 

प्रज्वलित किया है

देखना है हवा कब

मीठा मनमोहक झोंका बनकर

कामना की ज्वाला को ठारेगी

कुमार अहमदाबादी 

गुरुवार, दिसंबर 16

उड गया रे हंसा(भजन)

उड़ गया रे हंसा उड़ गया रे

उड़ गया रे हंसा उड़ गया रे

खाली पिंजरा रह गया, 

मिट्टी का पिंजरा रह गया.....उड़ गया रे हंसा उड़ गया रे....


पतली सी नाजुक थी डोर टूटी

सांसों की जो कोमल डोर टूटी

फिर कभी ना जुड सकती थी

मिट्टी की मटकी एसी फूटी

खाली देह का पिंजरा रह गया...उड़ गया रे हंसा उड़ गया रे......


तेरे कर्म कहेंगे तेरी कहानी

सत्कर्म लिखेंगे तेरी कहानी

जवानी में कर्मदीप जलाकर 

रातों को कैसे  दिन बनाया

और रोशन की जिंदगानी..........उड़ गया रे हंसा उड़ गया रे.......

कुमार अहमदाबादी

माँ का संतोष

राजेश एवं रमेश भाई थे। राजेश बडा और रमेश छोटा था। दोनों के घर आमने सामने थे। दोनों में मिल्कत को लेकर विवाद चल रहा था। इस के कारण दोनों भाईयों में बातचीत का भी व्यवहार का भी नहीं था। उन के पिताजी छत्रचंद जी वर्षों पहले अनंत की यात्रा पर रवाना हो चुके थे। जब की माता रामरखीदेवी छोटे बेटे के साथ रहती थी।

रात के पौने बारह बजे थे। रामरखी देवी घर के बाहर कुरसी पर बैठी थी। उन की पौत्री ने आकर कहा 'दादी, आ जाओ, आप का बिस्तर बिछा दिया है। मेरा होमवर्क भी हो गया है। अब हम सो जाते हैं।' 

रामरखीदेवी ने कहा 'तू सोजा, मैं थोडी देर बाद आ रही हूँ।' 

पौत्री बोली 'ठीक है दादी, लेकिन मुझे मालूम है आप कब आओगी। ये भी मालूम है। उस समय क्यों आओगी?

इतना कहकर वो चली गयी। 

थोडी देर बाद बाहर कहीं से राजेश आया। अपने घर गया। उसे अपने घर में जाता हुआ देखने के बाद रामरखीदेवी उठी और सोने के लिये चल दी। 

कुमार अहमदाबादी

मंगलवार, दिसंबर 14

अर्द्धांगिनी के सामने(गज़ल)

सौ बहाने थे किये अर्धांगिनी के सामने

एक भी पर ना चला उस मनचली के सामने

श्रीमती को तार सप्तक में बुलाना भूल थी
भूल मैं स्वीकार करता हूँ सभी के सामने

सूर्य की पहली कीरण को देखकर सब ने कहा
कालिमा की हार तय है रोशनी के सामने 




चुलबुली है मसखरी भी और जिम्मेदार भी
मुस्कुराती है सदा वो दिल्लगी के सामने

मौन सब से श्रेष्ठ है हथियार सुन ले ए कुमार
किसी की चलती नहीं है श्रीमती के सामने

वह ख़फा होती नहीं बस मुस्कुराती रहती है
चाहे कुछ भी कह दो मेरी चुलबुली के सामने
कुमार अहमदाबादी

बात सीधी है(गज़ल)

बात सीधी है सरल है 
शब्द से गूंथी गज़ल है

हाथ में है हाथ या फिर 
हाथ में मेरे कमल है

दूसरे सब रस है झूठे
प्रेम का रस ही असल है

आदमी मजबूत है फिर 
आंख इस की क्यों सजल है

घाव खाकर जो न रोये
आदमी वही असल है

बात में दम है 'कुमार'
ये गज़ल भी इक कमल है
कुमार अहमदाबादी 

शुक्रवार, दिसंबर 10

सजा(मुक्तक)

 हमारे युवा को सजा दी गयी है

हवा को नशे की दवा दी गयी है

न सोचे न समझे न पूछे न जाने

युवा सोच को वो दिशा दी गयी है

कुमार अहमदाबादी 

घास हरी या नीली

*घास हरी या नीली* *लघुकथा* एक बार जंगल में बाघ और गधे के बीच बहस हो गई. बाघ कह रहा था घास हरी होती है. जब की गधा कह रहा था. घास नीली होती है...