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गुरुवार, मार्च 22

दो राहा

गहन समस्या सामने है कोई हम को राह बताए
चक्र चलाएँ भूखे रहें कोई सच्ची राह बताए

घातक हमले संस्कृति पर
घातक हमले भारत पर
घातक हमले मानवता पर
घातक हमले आजादी पर, हो रहे हैं....कोई सच्ची

नजर के सामने मोहन हैँ दो
नजर के सामने विचार हैँ दो
नजर के सामने युद्ध हैँ दो
नजर के सामने युग पूरे हैँ दो......गहन समस्या

जीया एक पल पल में तो सिद्धांतो में दूजा जीया
कीये एक ने पाप माफ़ सौ ना माना तो चक्र चलाया
दूजे ने गाल दूजा थप्पड के लिए आगे बढाया
नाम दोनों के समान पर लीला दोनों की जुदा थी.....गहन
समस्या

दुश्मन को माफ़ कर के एक ने सारा हिसाब रखा
दूजे की माफी का बर्तन एसा जैसे अक्षय पातर
दिए एक ने अवसर शत्रु को पर मर्यादा में दिए
दूजा अवसर शत्रु को बेहिसाब बस देता रहा.....गहन
समस्या

मोहन ने शस्त्र ऊठाए धर्म की खातिर सोगंध तोडी
लाठी गोली गाँधीने चुपचाप सीने मे झेले
एक ने युद्धभूमि को भी जीवन का हिस्सा माना
दूजे ने अहिंसा को शत्रु विजय का मार्ग समझा....गहन
समस्या

मूल कवि > अभण एहमदाबादी-निकेता व्यास
अनुवादक > कुमार एहमदाबादी

बुधवार, मार्च 21

नयन दीप

आँखों में दीप जल रहा है।
शहद सा स्वप्न पल रहा है।

प्रेम का कब मिलेगा न्यौता।
मोर मन का मचल रहा है।

अब गगन को गुलाबी कर दो।
धीर का सूर्य ढल रहा है।

ओ बलम राह देखे श्रँगार।
मिटने को ये मचल रहा है।

मीठे पल होंगे कितने मादक।
मन में ये प्रश्न चल रहा है।

फूल भौँरा है पर नहीं है।
दोनों का मन बहल रहा है।

प्रेम के पल रसीले थे अब।
याद से मन बहल रहा है।

प्रेम ने चेतना जगा दी।
गर्भ में बीज पल रहा है।

प्रेम है प्रार्थना सा पावन।
सब का ये प्राण बल रहा है।
कुमार अहमदाबादी

रविवार, मार्च 11

होरी गीत (समूह गीत) विभिन्न छंदो में

(प्रिल्युड)

(पुरुष) गोरी तू चटक मटक, लटक मटक, चटक मटक, करती क्युं री? ओये होये क्युं री?

(स्त्री) पीया तू समझ सनम, चटक मटक, लटक मटक, करती क्युं मैं? ओये होये क्युं मैं?

(पुरुष) तेरा ये बदन अगन, जलन दहन, नयन अगन, लगते क्युं है? ओये होये क्युं है?

(स्त्री) मेरे ये नयन बदन, सनम अगन, जलन दहन, जलती होरी....ओये होये होरी

(स्त्री) चाहे ये सनन पवन, बरफ़ पवन, सनम पवन, बनके आ जा...... ओये होये आ जा

(पुरुष) आया मैं सनन पवन, पवन बरफ, बरफ पवन, बनके गोरी ओये होये होरी.......

आई रे आई होरी

[मुखड़ा]

[स्त्री समूह] आई रे आई रे होरी, आई आई रे होरी, आई रे आई रे होरी, आई रे.............. होरी आई रे

[पुरुष समूह] लाई रे लाई रे होरी, लाई रे लाई रे होरी, लाई रे लाई रे होरी, लाई रे .............होरी लाई रे



[स्त्री समूह] तन में तरंग लाई, मन में उमंग लाई

[पुरुष समूह] गुल में निखार लाई,रुत बेक़रार लाई

[स्त्री समूह] पिया का प्यार लाई, रस की फुहार लाई

[पुरुष समूह] दिल में करार लाई रंग बेशुमार लाई.......आई रे....होरी आई रे

आई रे[रिपीट]

[अंतरे]

[नायक] तुम भी खेलो, मैं भी खेलूं.धरती का कण कण खेले,

[नायिका] रंगो के इस रत्नाकर में, जीवन का पल पल खेले,

[दोनों समूह] सागर, सरिता, झरने,चंदा, भानु और तारे खेलें

[दोनों] बन के तारें अम्बर के हम, झुमके खेलें होरी रे,होरी रे, होरी रे,...........आई रे



[नायिका] राधा खेले, श्याम खेले, सारा गोविन्द धाम खेले

[नायक] प्रेम पियाला मस्ती से, पीकर बंसी फाग खेले,

[दोनों समूह] बंसी की सरगम पर ये, गोपियाँ, वो गैया खेले,

[दोनों] रेशमी सूर बंसी के रे झुमके खेले होरी रे, होरी रे, होरी रे,..............आई रे



[नायक] योगी खेलें, भोगी खेलें, मिलकर दोनों संग खेलें

[नायिका] मौसम की मस्ती में डूबे, फूलों से भंवरे खेले,

[दोनों समूह] मेघ-धनुषी मौसम में गुल, रंगीली रसधार झेलें,

[दोनों] पिचकारी की धार पे सब, झुमके खेलें होरी रे, होरी रे, होरी रे,.........आई रे



[नायिका] पीला खेलें, लाल खेलें, हम ये सालों साल खेलें,

[नायक] मौसम आएँ, मौसम जाएँ, सदियों ये फागुन लाएँ,

[दोनों समूह] रंग बिरंगी होरी से हम दूर कभी हो ना जाएँ,

[दोनों] फाग-राग की मस्ती में सब, झुमके खेलें होरी रे, होरी रे, होरी रे,.....आई रे

कुमार अहमदाबादी

घास हरी या नीली

*घास हरी या नीली* *लघुकथा* एक बार जंगल में बाघ और गधे के बीच बहस हो गई. बाघ कह रहा था घास हरी होती है. जब की गधा कह रहा था. घास नीली होती है...