दोस्तों, कल गुजरात दिवस यानि गुजरात का स्थापना दिवस था. इस अवसर पर मैं मेरा लिखा एक हिंदी गीत पेश कर रहा हूं. आशा है आप को पसंद आएगा.
स्वप्न को हम वास्तविकता यूँ बनाते हैं,
नर्मदा का नीर साबर में बहाते हैं.
स्वप्न को….
हो सुलगती रेत या फिर बर्फ या पानी,
संकटो में पांव हिम्मत से बढ़ाते हैं.
लक्ष्य ऊँचे प्राप्त करने है कहाँ आसान,
गुरुशिखर तक ठोकरें खाकर भी जाते हैं,
स्वप्न को….
अमरीका या अफरीका या पूर्व या पच्छम,
दूध में चीनी से हम घुलमील जाते हैं,
खींच लाया इस जमीं का जादू कान्हा को,
जो यहाँ पर द्वारिका नगरी बसाते हैं,
स्वप्न को….
भूमि ये वनराज की, सरदार, गाँधी की,
राष्ट्र का जो नव-सृजन कर के दिखाते हैं,
शून्य, प्रेमानंद, अखो, नरसिंह, कलापी से,
काव्य-धारा भिन्न छंदों में बहाते हैं,
स्वप्न को…
गुर्जरों के हौसले को दाद देता जग,
आम-जन भी खेल ऊँचा खेल जाते हैं,
खून की होली जो खेले उन से ये कह दो,
हम दशानन को दशहरे पर जलाते हैं,
स्वप्न को….
वनराज चावड़ा सदियों पहले हुआ एक गुजराती विजेता योद्धा है. जिसे गुजरात का पहला विजेता माना जाता है। इस के अलावा गुजरात के सासण गिर के बब्बर शेर भी विख्यात है। एशिया में शेरों की आबादी अब सिर्फ सासण गिर के वन में ही बची है। गुजरात में बब्बर शेरों को वनराज यानि वनों का राजा कहा जाता है।
*कुमार अहमदाबादी*