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गुरुवार, सितंबर 15

पीयूषी नजर

किसी की पीयूषी नजर है व मैं हूं

खुमारी भरा ये जिगर है व मैं हूं


निराशा मिली है हृदय को हमेशा

जीवित उर्मियों की कबर है व मैं हूं


नहीं नाखुदा को खुदा पर भरोसा

यहां नाव, गहरा भंवर है व मैं हूं


सफर चल रहा है पुरातन समय से

समय के सरीखा सफर है व मैं हूं


गये जो, गया साथ सर्वस्व उन के

यहां शून्य वीरान घर है व मैं हूं

*शायर – शून्य पालनपुरी*

*अनुवादक – कुमार अहमदाबादी*


जिंदगी और मौत(गज़ल)

जिंदगी  और मौत आते हैं गुजरने के लिए

स्वप्न जब आते हैं आते हैं बिखरने के लिए


गर्व करना मत जवानी की अदाओं पर कभी

बाढ़ सरिताओं में आती है उतरने के लिए


पुष्प के जलते हुए जीवन की चिंता है किसे?

लोग उपवन में आते हैं बस विचरने के लिए


नाव भवसागर में डूबी है ना डूबेगी कभी 

जीव आते हैं हमेशा पार उतरने के लिए


बुझ रहा है दीप क्यों जब आ रहे हैं प्रेम से 

मौत से मिलने परिंदे प्राण त्यजने के लिए


देह का होगा विलय या जड़ मिटा दी जाएगी

मौत आती है यहां पर रोज मरने के लिए

*मूल रचना शून्य पालनपुरी साहब की है*

*अनुवादक – *कुमार अहमदाबादी*


घास हरी या नीली

*घास हरी या नीली* *लघुकथा* एक बार जंगल में बाघ और गधे के बीच बहस हो गई. बाघ कह रहा था घास हरी होती है. जब की गधा कह रहा था. घास नीली होती है...