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बुधवार, जनवरी 25

बसंत आया रे (गीत)


  बसंत आया रे


आया रे आया रे आया रे आया रे आया रे
मुझ में आया तुझ में आया हम सब में आया रे
हम सब में आया रे, बसंत आया रे
ऋतुराज आया रे‌ ए बसंत आया रे

मस्त हो गई कलियां सारी झूम रही है कोकिलाएं
मस्त हो गये भंवरे सारे झूम रही है‌ यौवनाएं
मस्त हो गया आसमां और झूम रही है हवाएं
हम सब में आया रे बसंत आया रे
ऋतुराज आया रे ए बसंत आया रे

पत्ता पत्ता डाल झूम रहा है डाली डाली गा रही है
खेतों में हरियाली देखो मस्ती से लहलहा रही है
वायु भी होकर सुगंधित मीठे गीत गा रही है
हम सब में आया रे बसंत आया रे
ऋतुराज आया रे ए बसंत आया रे
कुमार अहमदाबादी

मंगलवार, जनवरी 24

सत्य भारत की शान है (ग़ज़ल)

 

सत्य भारत की शान है

मान है औ’ अभिमान है


जो बताया है सत्य ने

रास्ता वो आसान है


सत्य को जो पढ़ ना सके

आदमी वो नादान है


सोचने की है बात ये

सत्य से तू अनजान है


ओम में क्या है सत्य तू

सत्य की ही संतान है

*कुमार अहमदाबादी*

शनिवार, जनवरी 21

सत्य लिखना हो अगर(ग़ज़ल)



सत्य लिखना हो अगर तो ही कलम को थामना
झूठ आता ही नजर तो ही कलम को थामना

आइने को सामने सब के अगर तुम रख सको
सच्ची देनी हो खबर तो ही कलम को थामना

बात गर सामान्य जनता की ग़ज़ल में कह सको
भाव करते हो असर तो ही कलम को थामना

कार्य कर्ता कर्म कर्मणी छंद लय के साथ गर
व्याकरण की हो कदर तो ही कलम को थामना

तीर जब जब लोग मारे मुस्कुराकर सौ दफा
गर पी सकते हो जहर तो ही कलम को थामना
कुमार अहमदाबादी


मंगलवार, जनवरी 17

(मुंड मुंडाया) अखे के छप्पे का अनुवाद

 મૂંડ મુંડાવ્યું હરિને કાજ, લોક પૂજેને કહે મહારાજ

 મનમાં જાણે હરીએ કૃપા કરી, માયામાં લપટાણો ફરી

સૌને મન કરે તે કલ્યાણ, અખા એને હરિ મળવાની હાણ

અખો

अनुवाद

मुंड मुंडाया हरि के काज, लोक पूजे औ’ कहे महाराज

मन में सोचे हरि ने कृपा करी, माया में उलझी जान

सब सोचे ये करे कल्याण, अखा को हरी मिलने की शान

अनुवादक – कुमार अहमदाबादी

सोमवार, जनवरी 9

नव वर्ष का शुभारंभ

 

नववर्ष का आरंभ मेरे लिए बहुत अच्छा रहा। पहले एक तारीख को कवि सम्मेलन में काव्य पठन का अवसर मिला; उस कार्यक्रम में सम्मान पत्र भी मिला। अब अन्य एक साहित्यिक सम्मान *हिन्दी गौरव सम्मान 2022* मिला है।

कटिली काया (मुक्तक)


 
आंखें हैं नशीली कितनी क्या कहूं सनम
मादक है जवानी कितनी क्या कहूं सनम
काया है कटीली नक्शीदार शिल्प सी
है रूह सुहानी कितनी क्या कहूं सनम
कुमार अहमदाबादी

रविवार, जनवरी 8

क्यों तू ये उम्मीद रखे



ओ रे मनवा क्यों तू ये उम्मीद रखे

कोई तेरे संग चलेगा कोई तेरा संग करेगा

इस दुनिया में आया है जो, 

जो गया है इस दुनिया से

कोई न आया संग उस के ना कोई संग गया है..............फिर क्यों तू ये उम्मीद रखे...


माना तूने खाया धोखा, पर नहीं तू कोई अनोखा

इस दुनिया में कदम कदम पर धोखे होते आए हैं

इस दुनिया के लोगों ने हंस के धोखे खाए हैं................फिर क्यों तू ये उम्मीद रखे...


हंस के जीवन जीना पड़ेगा, दर्द को भी पीना पड़ेगा

जग में गर कुछ पाना है तो मुस्कुराकर जीना पड़ेगा........फिर क्यों तू ये उम्मीद रखे...

कुमार अहमदाबादी 

गुरुवार, जनवरी 5

अनूदित मुक्तक( दो नाम )

 


ए हृदय निष्फल प्रणय के दो ही केवल नाम है
चूप रहे तो आबरू है, बोले तो इल्जाम है
मैं तो जीये जाता हूं जीवन किसी तृष्णा बिना
किसे परवा है भरा है या कि ये खाली जाम है
अनुवादक – कुमार अहमदाबादी

घास हरी या नीली

*घास हरी या नीली* *लघुकथा* एक बार जंगल में बाघ और गधे के बीच बहस हो गई. बाघ कह रहा था घास हरी होती है. जब की गधा कह रहा था. घास नीली होती है...