मां शैलपुत्री का ध्यान मंत्र है
वन्दे वांच्छित लाभाय
चंद्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारुढां शूलंधरा शैलपुत्री
यशस्विनीम्।।
स्वयं की योगाग्नि द्वारा भस्मीभूत हुई देवी सती ने उस के बाद शैलराज हिमालय की पुत्री बनकर जन्म लिया। वहां वे शैलपुत्री के नाम से विख्यात हुई। उन्हें पार्वती एवं हेमवती के रुप में भी जाना जाता है।
एक रहस्य शैलपुत्री के साथ जुडा हुआ है। वो ये कि उन की उपासना करते समय साधक अपने मन को मूलाधार चक्र में स्थित करता है। योग साधना और मंत्र साधना का आरंभ ही मूलाधार चक्र पर ध्यान केंद्रित करने के साथ होता है। हिमाचल प्रदेश में बसने वाले श्रीविधा के सिद्ध उपासक ओम शास्त्री ने ‘नवदुर्गा साधना’ के समय अत्यंत मार्मिक बात बताई थी कि नवदुर्गाओं का मनुष्य के जीवनकाल के साथ तुलनात्मक अध्ययन करना चाहिये। जिस से उस के मर्म की गहराई को समझा जा सके। शैलपुत्री माता को नवजात शिशु की तरह माना जा सकता है। उपासना के पथ पर आगे बढ़ने के बाद स्वयं के विकार और नकारात्मक वृत्तियों का दहन करने के बाद मनुष्य जिस तरह साधना में मनोयोग से जुड़ जाता है; उस घटना को मा शैलपुत्री के अवतरण के साथ जोडा जा सकता है। भगवाव शिव की आज्ञा का उल्लघंन करने के बाद देवी सती ने जि तरह से अपना सर्वस्व गंवा दिया। उसी तरह अहंकार, मद, मोह, कामवासना में अंध बना व्यक्ति अपना ही नुक्सान करता है। लेकिन नवदुर्गा की उपासना से उस के जीवन में एसा पडाव आता है। जिस मे वो अपने विकारों से मुक्त होकर धीरे धीरे उपासना के पथ पर आगे बढ़ता है; एवं शैलपुत्री की तरह नव जन्म धारण कर के अंत में शिव को प्राप्त करता है।
लेखक - परख ओम भट्ट, अनुवादक - कुमार अहमदाबादी
गुजरात समाचार में चल रही नवदुर्गा श्रेणी में आज ता.०३-१०-२०२४ गुरुवार के दिन दूसरे पृष्ठ पर छपे लेख का आंशिक अनुवाद
(अनुवाद का अगला हिस्सा शाम तक पोस्ट करुंगा)
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