बच्चे को सुलाने के लिये गाई जाने वाली लोरी के पीछे जो मनोविज्ञान काम करता है। वो न सिर्फ बहुत गहरा है बल्कि माता और पुत्र के रिश्ते की मजबूती को भी व्यक्त करता है।
बच्चा जब गर्भ के रुप में कोख में होता है। तब पूर्णतया मां से जुडा होता है। अन्य एक महत्वपूर्ण तथ्य ये कि कोख हृदय से ज्यादा दूर नहीं होती। गर्भावस्था में बच्चा मां के हृदय की धडकन एकदम स्पष्ट रुप से सुनता है। धडकन चूं कि तालबद्ध (विज्ञान कहता है। सामान्य रुप से हृदय ७१ से ७२ धड़कता है) होती है। कई बार वो बच्चे के लिये शब्द बिना की लोरी का काम करती है।
गर्भावस्था में इस परिस्थिति से गुजरे हुए बच्चे को सुलाने के लिये जब मां लोरी गाती है तो बच्चा को लोरी के शब्द को नहीं समझता। लेकिन लोरी की लय से परिचित होता है। लय को समझता है।
बाकी का काम मां के स्वर का अपनापन व उस की मधुरता पूरी कर देते हैं। उस मधुरता में खो हुए बच्चे को धीरे धीरे नींद आ जाती है।
कुमार अहमदाबादी
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