Translate

सोमवार, जनवरी 31

खिचडी खाइये और खिलाइये 

अनुवादित (अनुवादक - महेश सोनी)

अनुवादक - महेश सोनी

जब छोटे थे तब खिचडी खाते थे। मुझे याद है कयी बच्चे खिचडी के नाम से चिड जाते थे। लेकिन अंदाजा नहीं था। खिचडी में इतने गुण है; इतनी शक्ति है।


कुछ वर्ष पहले प्राचीन भारत की विरासत को जानने में रुचि जागी। उस समय प्रकृति को देखने जानने  की भी रुचि जगी थी। कुछ कुछ समझने भी लगे थे। विश्व में जंकफूड एवं फास्टफूड का बढ रहा मांग एवं उस आहार के कारण हो रही समस्या व नुक्सान के कारण मन द्रवित था। तब भारतीय आहार संस्कृति एवं पद्धति का अभ्यास शुरु किया था। । उस अभ्यास के दौरान खिचड़ी के बारे में जो मालूम हुआ।  वो यहाँ पेश करता हूँ। 


जूनागढ़  कृषि यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर गोलकिया साहब के साथ मिलकर खिचडी के बारे में इधर उधर से जानकारी प्राप्त करने के बाद वडोदरा की एम. एस. यूनिवर्सिटी के साथ खिचड़ी के बारे में संशोधन करने पर मालूम हुआ। खिचड़ी 'गरीब' या 'बेचारी' नहीं है; बल्कि धनवान है, अमीर है;  वैभवशाली है।

दस हजार वर्ष पहले भी खिचडी थी।  ऋषि-मुनि भी खिचड़ी की हिमायत करते थे एवं आयुर्वेद भी खिचड़ी की हिमायत करता है। मग व चावल दोनों अति पवित्र व शक्तिशाली होते हैं। 


खिचड़ी शुभ एवं पवित्र आहार है; वो माता के दूध जैसी पवित्र है। देवी देवों को भी खिचड़ी पसंद है, प्यारी लगती है। खिचडी में अपार व अमाप गुण है। ये सिर्फ चार घंटों में पच जाती है। खिचड़ी खाने से मन निर्मल होता है। 

भारत में कहावत है ना 'जैसा अन्न वैसा मन'

मग व चावल की खिचडी में गाय का घी मिलाकर बल्कि उस घी को मथकर खाना शरीर और  मन के लिये फायदेमंद यानि गुणकारी रहता है।  

समझा एवं कहा जाता है कि भारत में अगर जंकफूड के बदले खिचड़ी खाने का प्रचलन बढ़ जाये तो स्वास्थ्य संबंधित कई समस्याओं का समाधान हो सकता है। बीमारीयां कम हो सकती है। लोगों के तन   मन स्वस्थ स्वस्थ रह सकते हैं। यहां तक की आत्महत्याएं भी घट सकती है। किवदंति यह भी है कि खिचडी से मोक्ष भी मिल सकता है। 

ब्रह्म खिचड़ी में विविध प्रकार की सब्जियां होती है। जिस से भोजन करनेवाले को संतोष एवं तृप्ति की अनुभूति होती हैं। खिचड़ी का एक प्रकार पुदीने की खिचड़ी है। जो कई रोगों को मिटाती है। इस के अलावा विभिन्न स्वाद की खिचड़ी बनती है। इस विषय पर भी संशोधन किया गया है कि बच्चों को खिचडी के प्रति आकर्षित कैसे किया जाये। बच्चों में खिचड़ी खाने की रुचि को कैसे जगाया जाये। एक प्रयोग चीज़ खिचडी का भी किया गया है। 

हमारे कयी वानगीयां विशिष्ट है। देशी हांडवा पांचसौ(500) वर्ष पुराना है। कयी प्रकार की चटनियां बनती है। इन सब में भरपूर मात्रा में पोषक तत्व होते हैं। कहा जाता है खिचड़ी में सोलह(16) प्रकार के पोषक तत्व होते हैं। उस में एनर्जी (280 कैलरी) प्रोटीन (7.44) ग्राम, कार्बोहाइड्रेट (32 ग्राम) टोटल फेट (12.64 ग्राम) डायेटरी फाइबर (8 ग्राम) विटामीन ए (994.4 आइयु) विटामिन बी 6  (0.24 मिलीग्राम) आर्यन (2.76 मिलीग्राम) सोडियम (1015.4 मिलीग्राम) पोटेशियम (753.64 मिलीग्राम) मेग्नेशियम (71.12 मिलीग्राम) फॉस्फरस (148.32 मिलीग्राम) और जिंक (1.12 मिलीग्राम) होते हैं। 


एम.एस. यूनिवर्सिटी के फूड और न्यूट्रीशन विभाग द्वारा भूतकाल में खिचड़ी में पाये जानेवाले पोषक तत्वों का विश्लेषण किये जाने पर उपरोक्त जानकारी मिली थी। 


अगर खिचडी को मिट्टी के बर्तन में पकायी जाये तो उस के गुण और स्वाद बढ जाते हैं। एसा कहा जाता है कि पुराने समय में लोग मिट्टी के बर्तन में ही खिचडी बनाया करते थे। 


तैतरिय उपनिषद के एक श्लोक के अनुसार "अन्न ब्रह्म है," क्यों कि अन्न से ही प्रत्येक प्राणी उत्पन्न होता है। उत्पन्न होने के बाद अन्न से ही जीवित रहता है। अंत में मृत्यु के पश्चात अन्न में ही प्रवेश कर जाता है। 

भगवान श्रीकृष्ण ने भगवदगीता में कहा है कि, मैं मनुष्य के शरीर में जठराग्नि के रुप में बसता हूँ। उन्होंने ये भी कहा है कि आयुष्य, बल, आरोग्य, सुख और प्रित बढानेवाला, समस्या पैदा न करनेवाला, हृदय और मन को स्थिर रखनेवाला, मन को उद्वेलित न करनेवाला रसादार व चकनाईवाला आहार सात्विक मनुष्यों को प्रिय लगता है। हमारी खिचड़ी में ये सब गुण शामिल होते है। 


वो समय बहुत जल्दी वापस आयेगा। जब लोग सत्य को जानकर समझकर भारतीय खाद्य पदार्थों और पद्धति की तरफ लौटने लगेंगे;  कि अन्न ही ब्रह्म है। खिचड़ी उस में सर्वोत्तम है। लोगों द्वारा खिचडी में रुचि बढने के बाद स्वास्थ सुधार की प्रक्रिया भी आरंभ होगी। अभी हम बेशक खिचड़ी के महत्व से अंजान हैं। लेकिन जल्दी ये सत्य लोगों की समझ में आने लगेगा कि देश विदेश के चटाकेदार व्यंजनों से हमारी सरल सादी खिचड़ी लाख दरज्जे बेहतर है; श्रेष्ठ है। 

एक तरफ करोडों युवक फास्टफूड खाकर अपने स्वास्थ्य को बिगाड़ रहे हैं। दूसरी तरफ खिचड़ी जैसे स्वास्थ्यप्रद स्वास्थ्यवर्धक भोजन से दूर रहकर अपना ही नुक्सान कर रहे हैं। 

अनुवादक - महेश सोनी

फूलों से स्वागत

 प्यासी शाम और नयनों में आंसू

प्याले में मदिरा होठों पर मुस्कान 

जब यादों के द्वार पय आओगे तुम

इन्हीं फूलों की माला पहनाउंगा

कुमार अहमदाबादी 

ब्रह्मचक्र

 खोने और पाने का चक्र 

अविरत चलता रहता है

देखिये ना, मैंने यानि एक आत्मा ने

अलौकिक पंच तत्वों को छोडा तो

माता की कोख में स्थान पाया

कोख को छोडा तो संसार को पाया

संसार में बचपन को छोडा तो?

बचपन को छोडा तो जवानी पायी

जवानी को छोडा तो वृद्धावस्था को पाया

वृद्धावस्था को छोडा तो?

वृद्धावस्था को छोडा तो चिता को पाया

चिता को छोडूंगा तो वही पाउंगा

जिन्हें छोडकर संसार को पाया था

और संसार को क्या छोडकर पाया था?

वही अलौकिक असीमीत तत्व

पंचतत्व 

ब्रह्माण्ड में यही चक्र है 

जो निरंतर घूमता रहता है

ब्रह्माण्ड का चक्र

ब्रह्मचक्र

कुमार अहमदाबादी

प्यास का विद्रोह

 

प्यास जब विद्रोह करती है तब

सारे बंधन तोड देती है

उस समय उसे प्यास बुझाने के लिये

जो भी पानी मिले

स्वीकार कर लेती है

वो ये नहीं देखती कि

पानी कुएं का है या तालाब का

नदी का है या सरोवर का

कुमार अहमदाबादी 

मैं मर रहा हूँ

 धीरे धीरे मर रहा हूँ मैं

एक बाद एक मेरे सारे अंग

निष्क्रिय हो रहे हैं

लेकिन मुझे खुशी है

मैं सही हाथों में था

अच्छे हाथों में था

मैं सदा सकारात्मक विचारों के साथ रहा

सकारात्मकता को बढाया

मैं भाग्यवान हूँ कि मुझे 

एक साहित्यकार का साथ मिला

उसने मुझे डाकिया बनाकर

अपनी रचनाओं को शौकीनों तक पहुंचाया

लेकिन अब मेरे हृदय की गति

यानि की रेम बहुत धीमी हो गयी है

कयी अंग जैसे की यू-टयूब आदि

काम करना बंद कर चुके हैं

बस ये एक वॉट्स'प है 

जो संपर्क साधे हुये है

जिस दिन ये...

समझो उस दिन 

प्यास का सुख

 

जिंदगी में कभी 

प्यासा होने का सुख भोगा है

तुम सोचोगे! प्यासा होने का सुख 

प्यास का ना मिटना भी एक सुख देता है

ये सुख का एसा पौधा है 

जो अतृप्ति के आंगन खिलता है

जिस पर छटपटाहट के फूल लगते है

आंसू जेठ की तपती दोपहरी बन जाते है

और मन?

एसा रेगिस्तान बन जाता है

जिस में दूर तक पानी की एक बूंद दिखायी नहीं देती

पानी की बूंद हा हा, हाहाहाहा

पानी की बूंद सही समय पर सही जगह पर बरस जाये

तो रेगिस्तान का सृजन ही नहीं होता

पर अफसोस 

हर जगह बूंद नहीं बरसती

इसलिये धरा अतृप्त ही रह जाती है

और प्यास को भी सुख समझ लेती है

कुमार अहमदाबादी

शनिवार, जनवरी 29

चौथा शेर

मैं चौथा शेर हूँ 

जो अब तक सामने नहीं आया था

मैं सामने आना भी नहीं चाहता था

पर अब आना पड रहा है

चार शेर प्रतिक हैं

जीवन के चार आयाम

सत्य प्रेम करुणा और अहिंसा के

लेकिन विश्व के कुछ लोगों ने

अहिंसा को कमजोरी मान लिया है

वो भूल गये की

अहिंसा मैंने  विश्व की शाति के लिये  अपनायी थी 

लेकिन अब जब

विश्व कयी जगह अशांति है

कुछ जानवरों को 

बकरी होते हुये भी 

शेर होने का वहम हो गया है

इसलिये

अब मुझे यानि चौथे शेर को 

सामने आना होगा

और

इस अहिंसा शब्द का पूरा उपयोग छोडकर 

बाराक्षरी के एक अक्षर को

कछ समय के लिये 

सेवानिवृत करना होगा।

कुमार अहमदाबादी

शुक्रवार, जनवरी 28

सेवानिवृत्ति (काल्पनिक आत्मकथा)

 


देश के गणतंत्र दिवस की परेड में आखिरी बार हाजिर रहने के बाद कुछ ही देर पहले लौटा हूँ। वहां तो बहुत मुश्किल से अपने आंसू रोक सका था। लेकिन इस पल मेरी आंखे छलछला रही है; और क्यों ना छलछलाये? निवृति की आखिरी क्षणों में जब विश्व के सब से बडे गणतंत्र के प्रधानमंत्री सर पर हाथ रखकर सेवाओं को बिरदाए तो, आंखें क्यों ना छलछलाए?

माना की मैं जानवर हूँ। लेकिन हम जानवरों के सीने में भी दिल धडकता है। सीधी बात है कि जब दिल धडकता है तो भावनाएं भी जन्म लेती है। हमारी नसों में भी खून बहता है। 

और मैं भाग्यवान हूँ कि मैंने भारत देश में जन्म लिया है। भारत जहां जानवरों को भी सम्मानित किया जाता है। जैसे मेरे सेवाकाल के दौरान मुझे किया गया है। मैं केवल दूसरा अश्व हूँ। जिसे चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ का कमान्डेशन कार्ड प्रदान किया गया है। मैंने अपने कार्यकाल में गणतंत्र दिवस की तेरह परेड देखी है। मैं जिस रेजिमेन्ट में था। वो सब से पुरानी है। मैंने इक्कीसवीं सदी के आरंभ के वर्षों में सेवा का आरंभ किया था। दो से ज्यादा राष्ट्रपतियों का कार्यकाल देखा है। समय कितनी तेजी से बहता है। मैं तब तीन वर्ष का था। जब सेवा शुरु की थी; और आज सेवा के आखिरी दिन देश के प्रधानमंत्री एवं अन्य गणमान्य मंत्रियों के लाड प्यार को पाने के बाद निवृत्त हुआ हूँ। 

मैं ये सोचकर गदगद हूँ। मेरे निवृत होने के बाद भी मेरा खयाल रखा जायेगा। इसीलिये भारत महान है। इंसान तो इंसान यहां हम जानवरों का सम्मान किया जाता है,  और सम्मान दिया भी जाता है। अब इस से पहले की आंसू छलछला जाये। आप से विदा लेता हूँ।

विराट( पीबीजी का सेवा निवृत अश्व)

काल्पनिक आत्मकथा)

लेखक - कुमार अहमदाबादी

बुधवार, जनवरी 26

साधना

(प्रस्तुत विचार मेरे हैं। ये आवश्यक नहीं प्रत्येक व्यक्ति इन से सहमत हो। सब की अपनी अपनी राय अपने अपने मत हो सकते हैं। मेरा ये दावा भी नहीं है कि यही सच है। ) 


- वस्त्रों का त्याग कर देना तानि पहनना छोड देना साधना नहीं है। किसी वस्त्रहीन को देखकर उस के       लिये वस्त्र की व्यव्स्था करना साधना है। 

- इसी तरह भोजन का त्याग करना; साधना नहीं है। किसी भूखे जीव के लिये भोजन की व्यवस्था करना साधना है। 

- एक ही नाम या शब्द या श्लोक को निरंतर जपते रहना साधना नहीं है। उस नाम को जपते जपते वाणी के उच्चारण को एवं विचारों को स्पष्ट रुप से व्यक्त करने की कला को सीखना साधना है। 

लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये निरंतर कार्य करते रहना साधना है। 

- ये सीखते रहना की किसी भी कार्य को सुंदर तरीके से कैसे किया जाये, साधना है। 

- किसी निराश हताश व्यक्ति को जीवन के प्रति तथा और किसी भी व्यक्ति को भी लक्ष्य प्राप्त करने के लिये प्रेरित करना साधना है।

- परमात्मा की मूर्ति के सामने बैठकर आरती धूप दीप करना विधियां है; साधना नहीं है। साधना वो है जब आप परमात्मा की मूर्ति के सामने या अकेले में या भीड में भी अकेले होकर परमात्मा के विचारों में खो जाओ; तथा इस विचार से कि परमात्मा ने आप पर कितनी कृपादृष्टि रखी है;  आप की आंखों से झर झर आंसू झरने लगे: वो साधना है। 

कुमार अहमदाबादी

સાધના

(પ્રસ્તુત વિચાર મારા છે. આ જરૂરી નથી કે દરેક વ્યક્તિ આ વિચારો સાથે સંમત થાય. દરેકના પોત પોતાના મત અને વિચાર હોય છે. મારો આ પણ દાવો નથી કે આ જ સત્ય છે.) 

- વસ્ત્રોનો ત્યાગ કરવો એ વસ્ત્ર પહેરવા છોડી દેવા એ સાધના નથી.

- ભોજનનો ત્યાગ કરવો પણ સાધના નથી. કોક ભૂખ્યા જીવ માટે ભોજનની વ્યવસ્થા કરવી એ સાધના છે. 

- એક જ નામ કે શ્લોકનું લગાતાર રટણ કરવું એ સાધના નથી. વિચારો ને યોગ્ય શબ્દો દ્વારા યોગ્ય ઉચ્ચારણ દ્વારા વ્યવસ્થિત રીતે વ્યક્ત કરતા        સીખતા રહેવું એ કલા સાધના છે. 

- લક્ષ્યને પ્રાપ્ત કરતા સતત પ્રયાસ કરતા રહેવું સાધના છે.

- કોઈપણ કાર્યને સુંદર રીતે કેવી રીતે કરી શકાય. એના માટે પ્રયાસરત અને ચિંતન કરતા રહેવું, સાધના છે. 

- જીવનથી નિરાશ હતાશ વ્યક્તિને જીવન પ્રત્યે અને અન્ય કોઈપણ વ્યક્તિને લક્ષ્ય પ્રાપ્ત કરવા પ્રેરણા આપવી એ સાધના છે. 

- પરમાત્માની મૂર્તિની  સામે બેસી આરતી કે ધૂપ દીપ કરવા એ સાધના નથી, વિધિઓ છે. સાધના એ છે જ્યારે આ વિચાર તમારા મનમાં આવે કે 'પરમાત્માની મૂર્તિની સામે કે એકલા બેઠા બેઠા પરમાત્માના વિચારોમાં ખોવાઈ જાઓ. પરમાત્મા એ તમને માનવ જીવન આપી.  તમારા પર કેટદી કૃપા કરી છે અમીવર્ષા કરી છે, એવું વિચારી તમારી આંખોથી આંસુ અનરાધાર વહેવા માંડે, એ સાધના છે. 

અભણ અમદાવાદી

मंगलवार, जनवरी 25

विश्व का राजा

अब तक मेरे पास मेरे आंगन में

जो भी आया लूटने के लिये आया

इस दुनिया के कुछ कुबुद्धियों ने

मुझे लूटने में और तोडफोड करने में

कोई कसर नहीं रखी 

कोई तलवार लेकर आया तो कोई 

व्यापारी बनकर आया

हां, एकाध बार एसा भी हुआ है कि

कोई विद्यार्थी बनकर आया

लेकिन 

वो विद्यार्थी जो भी लेकर गया प्रेम से लेकर गया, 

लेकिन आनेवालों दूसरों में से

कोई तलवार के जोर पर ले गया 

तो 

किसी ने सहायकारी योजना बनाकर लूट चलायी

सात समंदर पार से आये व्यापारीयों ने तो

न सिर्फ मुझे लूटा बल्कि 

मेरे इतिहास को भी तोडा मरोडा

सदियों से चली आ रही 

सारी व्यवस्थाओं को चौपट कर दिया

कला हुनर शिक्षा प्रणाली सब को तहस नहस कर दिया

लेकिन शेर बब्बरशेर 

सोया हुआ सिंह जाग गया है

वो सिंह जाग गया है जिसे विश्व

अब तक देख नहीं पाया था

जो चार सिंहों के चिन्ह का 

चौथा सिंह है 

जो दिखता नहीं है

वो दहाडने का आरंभ कर चुका है

अब भारत फिर से 

विश्व का नरेन्द्र बनने के पथ पर अग्रसर है

कुमार अहमदाबादी

अदभुत स्थापत्य અદભુત સ્થાપત્ય


 આ મંદિરનું નિર્માણ ઈ.સ. 1338માં વિદ્યારાન્ય નામના એક એક ૠષિએ કર્યું હતું.  મંદિરમાં બાર(12) સ્તંભ છે. જે સનાતન ધર્મના બાર મહિનાનું પ્રતિનિધિત્વ કરે છે. દરેક મહીના ની સવારે સૂર્યની કિરણો મંદિરમાં પ્રવેશ કરે છે ત્યારે તે મહિનાનો સંકેત કરનારા સ્તંભ સાથે ટકરાય છે. આમ દરેક મહિનામાં સૂર્યકિરણો જુદા જુદા સ્તંભ સાથે ટકરાય છે. જેથી લોકોને તે મહિનાની જાણકારી મળે છે.

इस मंदिर का निर्माण इ.स. 1338 मेअं विद्यारान्य नाम के ऋषि ने किया था। मंदिर में बारह(12) स्तंभ है। जो सनातन धर्म के बारह महीनों का प्रतिनिधित्व करते  हैं। हरेक महीने की सुबह सूर्य की किरणें मंदिर में प्रवेश करती है। तब उस महीने का प्रतिनिधित्व करनेवाले स्तंभ से टकराती है। जिस से लोगों को महीने की जानकारी मिलती है।

(ये जानकारी मुझे वॉट्स'प पर मिली है। ) 

भूखा कुत्ता (कहानी)

दो तीन दिन का भूखा शेरु सोसायटी के पीलर के पास बैठा था। खाने को खोज खोज कर थककर चूर हो गया था। सोसायटी में रहनेवाले भगवानदास को प्लास्टिक की एक थैली देते हुये उन की पत्नी ने कहा 'सुनो जी, ये बची हुयी ब्रेड दो तीन दिन की बासी हो गयी है। हम में से तो कोई खायेगा नहीं। आप नीचे जाकर कुत्ते शेरु को दे आइये। भगवानदास ब्रेड की थैली लेकर चल पडे। नीचे जाकर उन्होंने ब्रेड शेरु के आगे डाल दी। शेरु ब्रेड देखकर बढा। लेकिन ब्रेड के पास मुंह ले जाने के बाद तुरंत वापस घूमा लिया। मुंह घुमाने के बाद भगवानदास को देखने लगा। शेरु ने एसा दो तीन बार किया। तब भगवानदास को लगा। शेरु ब्रेड के बारे में कुछ कह रहा है। उन्होंने सारी ब्रेड को एक के बाद एक हाथ में लेकर देखा। कुछ ब्रेड कहीं कहीं से थोडी थोडी सडने लगी थी। भगवानदास समझ गये। उन्होंने जो जो ब्रेड सडी हुयी थी। उन का सडा हुआ हिस्सा तोडकर वापस प्लास्टिक की थैली में डाल लिया। बाकी ब्रेड शेरु के सामने रख दी। शेरु अपनी भूख मिटाने में व्यस्त हो गया।

कुमार अहमदाबादी

सोमवार, जनवरी 24

चित्र को सुनो



शमशान के आंगन में
झूले पर झूल रहा है
निर्दोष बचपन
परमात्मा भी कैसे कैसे
दृश्य दिखाता है इंसान को
कभी कभी सोचता हूँ
परमात्मा एवं विधाता
एसे दृश्य क्यों दिखाते हैं
क्या इसलिये की
इंसान को ये याद रहे कि
तुझे जो भी कर्म करने हैं
शमशान के द्वार के इस पार कर ले
बच्चों की तरह मन भर हंस ले
आनंद के उत्सव के झूलों पर झूल ले
और ये सब
तू तब तक कर सकेगा जब थक
तेरे अंदर एक बच्चा सांस लेता रहेगा
जिस दिन बच्चे ने सांस तोडी
सारे झूले टूट जाएंगे
और तू यहीं आयेगा
लेकिन
अपने पैरों पर नहीं
चार कंधों पर आयेगा
कुमार अहमदाबादी 


बुधवार, जनवरी 19

पसीने की थिरकन


जेठ की तपती दोपहरी में

मजदूर ने गेहूं की आखिरी बोरी 

दुकान के सामने रखी

सेठ ने तुरंत केश बोक्ष में से 

रुपये निकालकर उसे मजदूरी दे दी

मजदूरी जैसे ही मजदूर के हाथ में आयी

मजदूर के अंग अंग पर चांदी सा चमक रहा

पसीना थिरकने लगा।

कुमार अहमदाबादी


टाइम पास

पति - मैं तुम्हें झगडने का कोई मौका नहीं दूंगा 

पत्नी - मैं तुम्हारे दिये मौके की मोहताज नहीं हूँ 

पति - ठीक है

पत्नि - क्या ठीक है?

पति - की तुम मौके की मोहताज नहीं हो

पत्नी - तो इस में तुम इतना खुश क्यों हो रहे हो?

पति - अरे, मैं कहां खुश हो रहा हूँ 

पत्नी - खुश हो इसीलिये तो एक बार में मेरी बात मान गये; वर्ना तुम मेरी बात कब मानते हो?

पति -(बात खत्म करने के लिये) ठीक है। जो तुम कहो वही सही। 

पत्नी - यानि मान गये की तुम मेरी बात मानते नहीं?

पति - मैंने तुम्हारी बात कब नहीं मानी?

पत्नी -अभी भी कहां मान रहे हो

पति - क्या नहीं मान रहा?

पत्नी - कि, तुम मेरी बात मानते नहीं। बोलो मानते हो?

(पति दुविधा में पड गया। हां कहे तो समस्या ना कहे तो समस्या) 

(पहले ये देखते हैं कि हां कहने पर पत्नी क्या कहती है


पति - हां मानता हूँ तुम्हारी बात

पत्नी - परसों मैंने मेरी पसंद की एक साडी लाने के लिये कहा था तब मानी थी मेरी बात!? 

(पति समझ गया कुछ भी बोलने में खतरा है सो चुप रहा)

दो मिनिट बाद पत्नी बोली - देखा, साडी की बात से कैसे सांप सूंघ गया मेरे भोले बाबा को

पति- तो मैं क्या बोलूं? 

पत्नी - ये नहीं कह सकते थे। लोकडाउन खुलने दो। तुरत दिला दूंगा। 

पति - (फिर बात खत्म करने के लिये) ठीक है, लॉकडाउन खुलने दो दिला दूंगा साडी। 

पत्नी - हां, अभी तो हां कहोगे ही। जानते हो लॉकडाउन है कहीं जा नहीं सकते। वादा करने में क्या दिक्कत है।

पति - अरे मैंने एसा नहीं सोचा था

पत्नी - और एसा कभी सोचना भी मत

पति - ठीक है नहीं सोचूंगा।

पत्नी - क्यों? क्यों नहीं सोचोगे! अच्छा समझी, तुम दुनिया को ये बताना चाहते हो कि, तुम तो बेहद मासूम और भोले हो। मैं ही झगडालू हूँ ।

पति - अरे, मैंने एसा कब सोचा? 

पत्नि - तो अब सोच लो। लॉकडाउन चल ही रहा है। तुम्हारे पास तो समय समय ही समय है। मुसीबत तो हम औरतों की आई हुयी है। 

पति - क्या मुसीबत आयी है?

पत्नी - और नहीं तो क्या, बैठे बैठे हुकम चलाते रहते हो। आज सुबह वो सब्जी बना लेना, शाम को वो सब्जी बना लेना। 

पति - ठीक है मत बनाना

पत्नी - ताकि तुम बाहर जाकर कह सको कि मेरी पत्नी मेरा कहा नहीं मानती!

पति - अरे यार हद हो गयी, कुछ भी बोलूं उल्टा ही मतलब निकालती हो। आखिर तुम चाहती क्या हो?

पत्नी - बस इसी तरह लॉक डाउन में टाइम पास करवाते रहो

पति - आप का आदेश स्वीकार है

पत्नी - 😀😀😀😀😀 चाहती तो हूँ कि इस आदेश पर भी टाइम पास करूं लेकिन क्या करूँ । आप का खयाल आ गया।

पत्नी - इस से ज्यादा आप सहन नहीं कर पायेंगे। 

पति - 😨

*कुमार अहमदाबादी*

बुधवार, जनवरी 12

કબૂતરની ફરિયાદ

 

હું ધાબા પર ઉભો'તો

અચાનક એક વૃદ્ધ કબૂતર મારી પાસે આવ્યું

મારી પાસે બેસીને મારી સાથે વાતોએ વળગ્યું 

વાતો હતી બદલાતા સમયની

સમયની સાથે 

બદલાતા ફેશનની

બદલાતા જીવન મુલ્યોની

એણે બહુ વાતો કરી

પણ, એની એક વાત 

મારા હૃદયને સ્પર્શી ગયી

અને મને વિચારતો કરી મુક્યો

સાચું કહું તો 

એ વાતે 

મનમાં ખળભળાટ મચાવી દીધો 

એણે ફરિયાદ કરી હતી કે તમે માણસોએ

અમને બેરોજગાર કરી દીધાં છે

તમે આજકાલ અમને

ટપાલ પહોંચાડવાનું કામ કેમ નથી સોંપતા?

અભણ અમદાવાદી

मंगलवार, जनवरी 11

कबूतर जा जा जा


मैं छत पर खडा था

अचानक एक बूढा कबूतर मेरे पास आया

आकर वो बातें करने लगा

बातें थी बदलते समय की

बदलते फैशन की 

समय के साथ

परिवर्तित हो जाते सिद्धांतों की 

उसने बहुत बातें की 

लेकिन उस की एक बात

मेरे दिल को छू भी गयी

और झकझोर भी गयी

उसने शिकायत की थी

आजकल तुम इंसानों ने

हमें बेरोजगार कर दिया है

आपने हमें डाकिया बनाना क्यों छोड दिया?

कुमार अहमदाबादी

शुक्रवार, जनवरी 7

कसम भवानी की

कसम भवानी की,

जिस माली को हम भारतीयों ने

उद्यान के विकास के लिये

तीन सौ से ज्यादा कमल सौंपे हैं

उस माली का कोई 

चवन्नी छाप शत्रु अहित करने की सोचेगा, तो

उस शत्रु को

हम पंचमहाभूत में नहीं 

सिर्फ, शून्य में 

जी हां, 

सिर्फ शून्य में विसर्जित कर देंगे

कसम भवानी की........

कुमार अहमदाबादी 

कविता क्या है

कविता क्या है? शब्दों का खेल 

शब्द क्या है? व्याकरण का हिस्सा 

व्याकरण क्या है? सम्पर्क का माध्यम 

सम्पर्क क्या है? इंसान की जरुरत 

इंसान क्या है? इंसान की जरुरत 

इंसान क्या है? कुदरत का खिलौना 

कुदरत क्या है? संसार की कर्ता धर्ता

संसार क्या है? भावनाओं की सभा 

भावनाएं क्या है? कविता का हृदय

कविता क्या है? शब्दों का खेल 

शब्द क्या है?..............

कुमार अहमदाबादी 

बुधवार, जनवरी 5

नारी की भाषा


तुम समझो भोलेनाथ
मैं एक नारी हूँ
नारी मन को व्यक्त करने के लिये
किसी शब्द का प्रयोग नहीं करती
वो हमेशा संकेतों का सहारा लेती है
मंद मंद मुस्कराना,
नजर चुराते हुये नजर मिलाना
शरमाना, न शरमाते हुये भी शरमाना, 
आंख झुकाना, चूडी बजाना
पायल छनकाना, प्यारा गीत गुनगुनाना
अब इतना कहने पर भी नहीं समझे
तो मुझे लगता है
तुम सचमुच भोले हो
*कुमार अहमदाबादी*

कब समझोगे?

ये जो अलकलट  तुम्हारी आंखों के आगे आयी है

ये हंस सी सफेद दंतपंक्ति जो मुस्कुरा रही है

आंख की पलक जो तुम्हें देख रही है

ये शर्मीले होठ तुम्हारे कानों को छूना चाहते हैं

इन सब के संकेतों को तुम कब समझोगे

कब मुझे शब्दों का प्रयोग करने से रोकोगे?

कुमार अहमदाबादी

मंगलवार, जनवरी 4

आखिरी कंवारी नींद


ए मेरे प्यारे आंगन,

         आज तेरे दामन में मेरी आखरी रात है। कल से तू मेरा होकर भी मेरा नहीं रहेगा। आज तेरे आंचल में आखिरी बार चैन से सोना चाहती हूँ। कल से शायद तेरे आंगन में अब तक जैसे सोती थी।  ऐसे सोना मेरे नसीब में हो या ना हो। 

आज न जाने कितने पल कितनी घडियां कितने दिन कितने  सप्ताह और कितने वर्ष तेरे दामन में चैन से सोयी हूँ,  खेली- कूदी हूँ। वो सब इस पल मेरी आंखों में तारों के समान झिलमिला रहे हैं। न जाने क्या क्या याद आ रहा है। 

पापा कहते हैं। यहीं मैंने पहला कदम ऊठाया था यानि की चलना सीखी थी। लेकिन तब कहाँ मालूम था। चलते चलते एक दिन एसा आयेगा। मुझे तुझे यानि आंगन से ही बाहर चला जाना पडेगा। 

मम्मी का खाना खाने के लिये पुकारना, पाठशाला जाने के लिये तैयार करना, पाठशाला की यूनिफॉर्म पहनाना; पाठशाला के लिये तैयार करते समय ये कहना 'हे भगवान, ये लडकी अपनी जिम्मेदारी को कब समझेगी।' माँ की डांट से अक्सर पापा का बचाना। पाठशाला के शिक्षक द्वारा दिया गया। होमवर्क करना, कितना कुछ याद आ रहा है। 

पापा व मम्मी मैं क्या लिखूं और क्या बाकी रखूं। 

भैया के साथ लडना-झगड़ना, प्यार करना, साथ भोजन करना, होमवर्क करने में एक दूसरे की मदद करना व लेना। 

😭😭😭😭😭😭😭😭😭

अब और नहीं  लिख सकती मैं, आंखे जिन्हें कल बरसना है। इसी पल बरसने लगेगी। बहुत ही मुश्किल से आंसूओं को रोककर रखा है। 

और फिर आज तेरे दामन में गहरीवाली आखिरी नींद भी तो लेनी है। एसा नहीं है की कल के बाद कभी तेरी गोद में सोउंगी नहीं। लेकिन वो नींद कुंवारी नींद नहीं होगी। आज अंतिम कंवारी नींद है। 

आंगन की बेटी

::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::

लेखक

कुमार अहमदाबादी

रविवार, जनवरी 2

मुख्यमंत्री का पत्र


 

शरारती इशारे

सजनी तेरे शरारती इशारे पर 
वार जाउं मासूम नजारे पर
सारे  सपने मेरे मैं लुटा दूंगा
भोलीभाली कली के इशारे पर
कुमार अहमदाबादी 

मनुष्यता

सम्राट में नहीं तथा दरवेश में नहीं

मेरी मनुष्यता किसी गणवेश में नहीं

जहाँ तक मुजे याद है। ये शेर भगवतीकुमार शर्मा के शेर का अनुवाद है। कवि कहते हैं कि करीब करीब समाज में सार्वजनिक सेवा से संबंधित हर व्यक्ति के लिये गणवेश यानि ड्रैस तय की गयी है। जब व्यक्ति कार्यरत होता है। तब वो अपनी ड्रेस यानि गणवेश में होता है। जैसे कि पुलिस के लिये खाकी,वकीलों के लिये काला कोट, डॉक्टर, नर्स के लिये सफेद रंग के वस्त्र, कुलीयों के लिये लाल रंग के वस्त्र तथा अन्य संस्थाओं के व्यक्तियों के लिये भी वस्त्र व रंग तय किये गये हैं। यहां तक की प्रत्येक पाठशाला भी अपने विद्यार्थीयों कः लिये तय करती है। आजकल तो ऑफिस व शॉरुम भी अपने कर्मचारियों को एक समान वस्त्र व रंग का तय करने लगे हैं। 

ये सारे ड्रैस क्या दर्शाते हैं?

ये इंसान का व्यावसायिक दरज्जा, समाजिक आदि को दर्शाते हैं। लेकिन मानवता किसी ड्रैस की मोहताज नहीं है। वो एक सम्राट में भी हो सकती है और एक गरीब के पास भी हो सकती है।

बाहर के आवरण इंसान का सामाजिक दरज्जा बता सकते है। लेकिन एसे कोई भी वस्त्र नहीं है। जो उस की मानवता को व्यक्त कर सके। 


किसी राग में नहीं है किसी द्वेष में नहीं

ये लोही है कि बरफ? जो आवेश में नहीं

कवि ने मानव स्वभाव की स्वाभाविकता को व्यक्त किया है। प्रत्येक मानव में राग, द्वेष, क्रोध, लोभ होते ही हैं। क्यों कि इंसान के शरीर में बरफ नहीं, खून दौडता है।जिस आदमी के लहू में आवेश हो, राग न हो, स्पर्धात्मकता न हो, वो बरफ समान होता है। जो कभी पिघल कर बह भी जाये तो भी कोई परवाह नहीं करता।

ता-29 - 03 - 2010 के दिन मेरी कॉलम में छपे लेख का अंशानुवाद

कुमार अहमदाबादी 

प्रारंभ


प्रिये,

मैं 

सुहाग की 

सेज पर

फूल नहीं बिछाउंगा

क्यों कि,

मैं नहीं चाहता 

हमारे 

दाम्पत्य जीवन

का

प्रारंभ

कोमलता

को 

कुचलकर हो

*कुमार अहमदाबादी*

संगम


डूबतो जोयो सूरज में सांज ना दरिया किनारे
नीकऴेलो चाँद जोयो रात ना दरिया किनारे
दिलीप श्रीमाली

ये गालगागा के चार आवर्तन में लिखा गया शेर है। दरिया यानी समंदर, समंदर का किनारा शुरुआत और अंत का संगम है। किनारे पर समंदर के साम्राज्य का अंत व मानव की धरती पर बस रही आबादी की शुरूआत होती है।
शायर ने शेर में जीवन की दो विपरीत स्थितियों के संगम की; उस से पहले व बाद की स्थितियों की बात कही है।शाम को सूरज के डूबने पर दिन पूरा होता है मगर जीवन रुकता नहीं। रात्रि का आगमन होता है।
इस शेर का अध्यात्मक अर्थ भी है। मृत्यु जीवन का अंत नहीं। मृत्यु बाद कहीं और नवजीवन शुरु होता है। मृत्यु सागर के किनारे की तरह मानवलोक व दिव्यलोक के बीच की सरहद है। समंदर का किनारा है। 
इसी शेर का राजकीय परिस्थितियों के संदर्भ में अर्थघटन करें तो कह सकते हैं: ताकतवर सूर्य के अस्त के बाद 'कमजोर' चाँद और तारे अपना राज्य स्थापित करते हैं। एक शक्तिशाली सम्राट या साम्राज्य के पतन के बाद जिन्होंने साम्राज्य के आधिपत्य को स्वीकार किया हो। वो  छोटे राजा एवं नवाब रंग दिखाते हैँ। वे अपने स्वतंत्र  छोटे छोटे राज्यों की स्थापना करते हैं।
27।6।10 को जयहिन्द में मेरी कोलम 'अर्ज करते हैं' में छपे लेख का अंशानुवाद
कुमार अहमदाबादी 
अभण अमदावादी 

शनिवार, जनवरी 1

मंदिर-यात्रा-1


वैष्णोदेवी मंदिर के बाद यात्रळु एस.जी.हाइवे पर नये बने जगन्नाथ जी मंदिर के दर्शन करने पहुंचे। एसजी हाइवे पर स्थित जगन्नाथजी का मंदिर एकदम नया है। यात्राळुओं में से शायद ही किसी को इस मंदिर के बारे में पहले से मालूम होगा। जगन्नाथ मंदिर में जो मूर्तियां है। एसा लगता है वो जमालपुर मंदिर की प्रतिकृति है। मंदिर-यात्रा के दौरान बसों में एकदम धार्मिक वातावरण बन गया था। यात्री भजन गाकर भक्तिरस पी रहे थे। धीरे धीरे यात्रा एक के बाद एक मंदिर तक पहुंचती रही। यात्री दर्शन करते रहे। यात्रियों को यात्रा के दौरान बस में ही और बाहर अल्पाहार और आलू की सब्जी और पूडी का सादा भोजन और पानी उपलब्ध करवाया गया। उस से पहले यात्रा के दौरान दूसरे या तीसरे मंदिर के दर्शन के स्थल पर चाय, कॉफी व बिस्कुट का नाश्ता दिया गया। यात्रियों ने यात्रा के दौरान एक के बाद जिन मंदिरों में दर्शन लाभ लिये। उन मंदिरों की सूचि इस प्रकार है। 

🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁

*श्री धर्म आनंद यात्रा में जिन मंदिरो के दर्शन किये उनकी सूची,*


1. श्री तिरुपति बालाजी मंदिर, एसजी हाइवे

2. श्री वैष्णों देवी मंदिर,एसजी हाइवे

3. श्री जगन्नाथ मंदिर, अडालज

4. श्री अन्नपूर्णा देवी मंदिर,अडालज

5. श्री प्रभा हनुमानजी मंदिर,जमीयत पूरा

6. श्री त्रि मंदिर, जमीयत पूरा

7. श्री सोला भागवत विद्यापीठ, एसजी हाईवे

8. श्री सोमनाथ महादेव, भाडज

9. श्री हरे कृष्ण मंदिर,भाडज

10.श्री इस्कॉन मंदिर, एसजी हाइवे

11. श्री सोमनाथ महादेव मंदिर,नारोल पिराणा रोड

12. श्री बलिया बाप मंदिर,लाम्भा गाम

13. श्री जगन्नाथ जी मंदिर ,जमालपुर

🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁

चूंकि समय पूरा हो रहा था। एएमटीएस के नियमानुसार निश्चित समय में जितने मंदिरों के दर्शन का लाभ मिला। उतना लाभ लेने के बाद मंदिर-यात्रा की बसें वापस समाज की वाडी की तरफ रवाना हुयी। वैसे ये भी क्या कम है कि एक दिन में संख्या में इतने सारे मंदिरों में जाकर परमात्मा के दर्शनों का लाभ मिला। परमात्मा का दर्शन सब से बडा प्रसाद होता है। वो प्रसाद लेकर और साथ ही साथ कुछ मीठी यादें लेकर हम वापस समाज की वाडी पर पहुंचे। वहां सब ने एक ग्रुप फोटो खिंचवाया। ग्रुप फोटो खिंचवाने के बाद सब अपने अपने गृहमंदिर( मेरी राय में परमात्मा के मंदिर के बाद घर सब से बडा मंदिर होता है) की तरफ रवाना हुए। 

*कुमार अहमदाबादी*

मंदिर-यात्रा

एक दिन वॉट्स'प पर मैसेज देखा। जो सूचना रुपी मैसेज था; जो कि विशेषतः समाज के वरिष्ठ नागरिकों के लिये था। सूचना ये थी;  सागर मेला परिवार गोठ समिति द्वारा समाज के वरिष्ठ नागरिकों को अहमदाबाद और उस के आसपास के मंदिरों के दर्शन करवाने का आयोजन किया गया है। सूचना में आयोजन की ता.23-08-2021 समय सुबह 7:30 बजे का लिखा था। इस के अन्य आवश्यक दिशानिर्देश थे। जैसे कि यात्रा में आनेवाले सब को अपना आधिकारिक पहचान-पत्र साथ रखना होगा। जरुरत के अनुसार सूखा नाश्ता साथ रखें। गहने व अन्य कीमती जेवर पहनकर न आयें। समय एवं सूचनाओं का पालन करें। यात्रा के दौरान भजन कीर्तन आनंद लेना हो तो भजनों की पुस्तक या पुस्तिका साथ ले सकते हैं। सूक्ष्म वाजिंत्र भी साथ ले सकते हैं। चूंकि यात्रा वरिष्ठ नागरिकों के लिये थी। एक विशेष सूचना थी कि 'यात्री रोज़मर्रा की दवाई जरुर साथ लेवें।' सोश्यल डिस्टेंस व मास्क के नियम का पालन करने के लिये विशेष आग्रह किया गया था। 

ता-23-08-2021 की सुबह हुयी। सब यात्री समय के अनुसार समाज की वाडी पर पहुंच गये। ए.एम.टी.एस. की बसें आयीं। सब यात्रियों को जिस बस में बैठने की सूचना थी। उस के अनुसार सब अपनी अपनी बस में सवार हो गये। 

हाँ, रवाना होने से पहले मैंने एक कार्य अवश्य किया था। यात्रा के आयोजकों में से एक केदार जी को कहकर हम जिस बस में बैठे थे। उस के आरटीओ नंबर का फोटो खिंचवा लिया। अच्छी समझो या बुरी ये मेरी आदत है। किसी महत्वपूर्ण यात्रा से पहले वाहन का आरटीओ नंबर जरुर नोट कर लेता हूँ। 

बहरहाल साहब, जयकारे के साथ यात्रा आरम्भ हुयी। 

यात्रा का सब से पहला पडाव था, 

*तिरुपति बालाजी मंदिर, एस जी हाइवे*

वहां सब ने दर्शन किये। तिरुपति बालाजी का मुख्य व सब से महत्वपूर्ण मंदिर दक्षिण भारत में है। किंवदंती के अनुसार तिरुपति बालाजी को विष्णु का अवतार है। अहमदाबाद में भी तिरुपति बालाजी के मंदिर का ई.स.2007 में दर्शनों के लिये उपलब्ध हुआ। बालाजी मंदिर के बाद मंदिर-यात्रा की बसें  पहुंची। वैष्णीदेवी मंदिर के लिये रवाना हुयी। 

अहमदाबाद का वैष्णोदेवी मंदिर जम्मू कश्मीर के मूल वैष्णो देवी मंदिर की एक सच्ची प्रतिकृति है और पवित्र हिंदू मंदिर की तीर्थ यात्रा करने वाले भक्तों की तलाश को पूरा करता है। पवित्र मंदिर के वातावरण का वास्तविक अहसास देने के लिए इसे एक नकली पहाड़ी के ऊपर स्थापित किया गया है।


पीले बलुआ पत्थर से बनी एक मानव निर्मित पत्थर की पहाड़ी एक गोलाकार आकार में है जिसमें कई सुंदर नक्काशी और देवी-देवताओं की मूर्तियां हैं। तीर्थयात्रियों को पहाड़ी की चोटी पर स्थित मुख्य मंदिर तक पहुंचने के लिए मानव निर्मित पहाड़ी से गुजरना पड़ता है।


एक व्यक्तिगत ट्रस्ट द्वारा निर्मित सरखेज गांधीनगर राजमार्ग पर वैष्णोदेवी सर्कल पर स्थित है।

*(मंदिर यात्रा का विवरण शब्दयात्रा के रुप में जारी है)*

घास हरी या नीली

*घास हरी या नीली* *लघुकथा* एक बार जंगल में बाघ और गधे के बीच बहस हो गई. बाघ कह रहा था घास हरी होती है. जब की गधा कह रहा था. घास नीली होती है...