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गुरुवार, अगस्त 31

आयो भादवो(बाबे रो भजन)

 

आयो भादवो भले रो, मनडे रो मोर नाचे

बाबा रे पाळा चालो, बाबो थांरी डोर खेंची

आयो भादवो......


1

वीर है कळयुग में साचा, देवे है पग पग पर परचा

नाम बाबे रो ले टुर जा, करो बाबे री सब चर्चा

 ओ तो धाम रुणिचे वाला, मनडे री पोथी बाचे

आयो भादवो......


2

आ दुनिया बाबे ने पूजे, जयकारो जोरों सूं गूंजे

ध्वजा रो  दरसन करता ही, भाव अंतर मन भीजे

थारो दुखडो बे सुणेला, मनडे ने क्यों भींचे

आयो भादवो ......


3

करोड़ों यात्री आवे, मनसा पूर्ण हो जावे,

पाय जनमारो वे धोवे, बीज नेकी रा वे बोवे

थारी बावडी रे पाणी सूं धर्म बेल ने भींचे

आयो भादवो ......




गुलाबी कोमलांगी सुंदरी(मुक्तक)


देह हीना है गुलाबी कोमलांगी सुंदरी
मुस्कुराते होठ मादक है मीनाक्षी सुंदरी
फूल पत्ती से सजा है बेल बूटों सा बदन
भाग्य में किस के ये होगी भाग्यशाली सुंदरी
कुमार अहमदाबादी

बुधवार, अगस्त 30

आणो पड़सी बाबा (बाबे रो भजन)

 तर्ज - पल्लो लटके

आणो पड़सी बाबा आणो पड़सी - 2

भगत री लाज बचावण खातिर आणो पड़सी


1.

जद जद सुगना थने बुलायो दौड्यो दौड्यो आयो

मैं भी भटक रेयो हूं बाबा बेडो पार लगावो

कि म्हाने-2 साचो साचो रास्तो दिखाणो पड़सी


2.

घरां नहीं तो बाबा म्हारे हिवडे में बस जावो

रुणिचे रा श्याम धणी थे हंसकर गले लगावो

म्हारो-2 कोई नहीं है बाबा थांने आणो पड़सी


3.

थोड़ी किरपा कर दो बाबा पैदल थांरे आवां

मनसा पूरी कर दो अब तो दरसन थारा पावां

पीर जी -2 थांरे शरणे आया अब तो आणो पड़सी


मंगलवार, अगस्त 29

अब तो सुण लो बाबा म्हारी (बाबे रो भजन)

 तर्ज

नगरी नगरी द्वारे द्वारे


अब तो सुण लो बाबा म्हारी बीते रे उमरिया

चरण शरण में आया थारी लेवोनी खबरिया

रोज सवेरे बाबा थांने, जल अस्नान कराउं रे - 2

केसरिया जामे रे उपर, पिचरंगी पाग पेहराउं रे -2

अब तो सुण लो बाबा म्हारी.........


केसर रो थांरे तिलक लगाकर, फूलां री माळा पेहराउं रे - 2

केळा पेड़ा श्रीफळ रो थारे, रुच रुच भोग लगाउं रे - 2

धूप दीप सूं करुं रे आरती, अजमल रा कंवरिया

अब तो सुण लो बाबा म्हारी.........


राम सरोवर प्यारो लागे, मंदिर री छवि न्यारी रे - 2

लीले घोडे री असवारी, म्हाने लागे प्यारी रे - 2

आंधा ने थे आंख्या देवो, रामदेव सांवरिया 

अब तो सुण लो बाबा म्हारी.........


घणां दिनां सूं आशा लग रही, बाबा थांने टेर टेर - 2

हाथों री अंगुलियां दुख रही, माळा थारी फेर फेर - 2

भजन मंडळी थांने ध्यावे, डालो नी नजरिया

अब तो सुण लो बाबा म्हारी.........

सोमवार, अगस्त 28

मंदिर मंदिर मूरत तेरी


दरशन दो घनश्याम नाथ मेरी अंखियां प्यासी रे

मन मंदिर की ज्योत जगा दो, घट घट वासी रे


1

 मंदिर मंदिर मूरत तेरी, फिर भी ना दिखे सूरत तेरी

यह शुभ बेला आई मिलन की, पूरन मासी रे


2

 द्वार दया का जब तू खोले, पंचम स्वर में गूंगा बोले

अंधा देखें लंगड़ा चलकर पहुंचे काशी रे


3

पानी पीकर प्यास बुझाऊं, नैनन को कैसे समझाऊं

आंख मिचौली अब तो छोड़ो, मन के वासी रे


4

लाज ना लुट जाये प्रभु मेरी, नाथ करो ना दया में देरी

तीनों लोक छोड़ के आवो, गगन विलासी रे


5

द्वार खड़ा कब से मतवाला, मांगे तुम से हार तुम्हारा

नरसी की प्रभु विनती सुन लो भगत विलासी रे






चोर रो भायलो


चोर रो भायलो चोर 

ढोर रो भायलो ढोर

बात इती सी है की

मोर रो भायलो मोर

कुमार अहमदाबादी

पावर ऑफ स्पोकन वर्ड्स(बोलने की शक्ति का कमाल)

 *सुनहरा भविष्य*

रामू अपने आसन पर बैठा बैठा कुछ गुनगुना रहा था। पास में अंगेठा रखा हुआ था। अंगेठे में लगायी हुयी अगरबत्ती अपना कर्म कर रही थी। म्यूजिक प्लेयर में भक्ति संगीत की सिर्फ धुन धीमे धीमे बज रही थी।

.

रामू का दोस्त श्यामू आया। आकर वो पास बैठा। दोनों में बातचीत शुरु हुयी। 

श्यामू ने पूछा 'कंई कर रेयो हो'

रामू - पावर ऑफ स्पोकन वर्ड्स

श्यामू -मतलब

रामू - अपों में केवेनी शुभ शुभ बोलो क्यों कि बोलो जिको हुवे

श्यामू - हों साची बात है। चोईस घंटों में एक वार तो बोल्योडी बात साची हुवे ई है।

रामू - बस शुभ शुभ इ ज बोल रेयो थो

श्यामू - कंई बोल रेयो थो, मनें इ सुणा

रामू - ले तूं ई सुण

.

*(मन री बात)*

घाट आयो रे मनवा आयो रे मनवा आयो रे

घाट आयो रे मनवा आयो रे मनवा आयो रे..घाट आयो रे मनवा

.

मंदी गयी रे भायला आयगी है तेजी, आयगी  तेजी

तेजी में तूं घोड़ो बण'र दौड  भायला दौड़ ले रे

कर्म है पूजा कर्म है पूजा कर्म है पूजा, कर्म तूं थारो कर ले रे...घाट आयो रे मनवा 

.

घाट भर ले रे मनवा भर ले रे मनवा भर ले ले

सूरमो भर'र तोल कर ले रे, तोल कर ले रे मनवा कर ले रे

कर्म है पूजा, कर्म है पूजा कर्म है पूजा, पूजा कर ले रे......घाट आयो रे मनवा

.

मोरत ने तूं उडीक मत भाई, दिन फिरियां काम है आयो

आयी है लछमी मुंढो मत धो, स्वागत कर ले रे

कर्म है पूजा कर्म है पूजा, कर्म है पूजा, पूजा कर ले रे.......घाट आयो रे मनवा

*कुमार अहमदाबादी*

रविवार, अगस्त 27

अजमल जी रे लाल ने घणी खम्मा

 

अजमल जी रे लाल ने
अजमल जी रे लाल ने घणी खम्मा
माता मैणां दे रे लाल ने घणी खम्मा
आ साठ कोस री परिक्रमा
आपौ चालां रुणीचे रम्मा झम्मा
अजमल जी रे लाल ने घणी खम्मा

1.
बांध धोतियो टांग कोछियो, हाथां में ले लो लाठी।
कांधे केतली भर पाणी री, कमर बांध लो काठी।।
                                   अजमल जी रे लाल ने घणी खम्मा
2.
सब मिल आवो पूजा करावो, श्रीफळ भेंट चढावो।
जगमग जोत हुवे बाबे री, झुक झुक शीश नवावो।।  
                                  अजमल जी रे लाल ने घणी खम्मा
3.
हिम्मत राखजो मत घबराजो, बाबो खींचे डोरी।
मारग  में  थाने मिले  पीर जी करे  यात्रा सोरी।।
                                  अजमल जी रे लाल ने घणी खम्मा
4.
मीठां बोलणां हिरदे तोलणां, शुद्ध भावना रखणा।
जै  जै  कार  बोलता  चालो  रुणीचे  पग  धरणां।।
                                  अजमल जी रे लाल ने घणी खम्मा

शनिवार, अगस्त 26

बाबे री माळा फेरो(भजन)

तर्ज- बन्ना रे बागां में


भाई रे बाबा री माळा फेरो

सांचे हिवडे सूं सांचे मनडे सूं सांचे हिवडे सूं

माळा फेरो म्हारा प्यारा भायला


1

भाई रे हाथ में माळा थांरे -2

थारी आंख्यां ओ थारी निजरां ओ थांरो चितडो

इत उत डोले म्हारा प्यारा भायला


2

भाई रे माळा में मनडो नी लागे -2

कद माळा कदे कपड़ा कदे घडी घडी घडियां

नाराज म्हारा प्यारा भायला


3

भाई रे थारी आंख्यां थीर ना रेवे -2

थे  पळ पळ थे क्षिण क्षिण थे तो झटपट

आसन बदलो म्हारा प्यारा भायला


4

भाई रे काँच में मूंडो निरखे -2

थारी चेतना में थारी आत्मा ने थारे ज्ञान ने

क्यूं नी निरखे म्हारा प्यारा भायला 




शुक्रवार, अगस्त 25

बाबा रे दरसण री तो प्यासी है नजरिया(भजन)


तर्ज - खम्मा हो धणियां

बाबा रे दरसण री तो प्यासी है नजरियां
कब देवोला म्हांने दरसणीयां -2-
                     हो म्हारा रुणिचे रा धणियां_
1.
दरसण री प्यास लिये, मन में विश्वास लिये
धूप दीप नैवेध बाबा, धोळी धजा हाथ लिये
द्वारे खड़ा है थारा टाबरिया..................हो म्हारा रुणिचे रा धणियां

2.
भगतां री पीड सुण, रामा पीर आया है
दरसण थांरा पाकर टाबरिया हरषाया है
धन्य हुआ है म्हारा जीवनियां................हो म्हारा रुणिचे रा धणियां

3.
द्वारका रा नाथ थांने घणी घणी खम्मा जी
भगती मुक्ति म्हांने दे दो गलती कर दो क्षमा जी
ले लोनी बाबा म्हांने शरणियां...............हो म्हारा रुणिचे रा धणीयां

गुरुवार, अगस्त 24

रुणीचे वाळा तू अब तक क्यों नहीं आया(भजन)


 

तर्ज - फिरकीवाली तू कल फिर आना


रुणिचे वाला तू अब तक क्यों नहीं आया

म्हें आया थारे द्वार रे

ओ थारे आया पैदलिया धर ध्यान रे


1

घर घर में जैकारो लागे गूंजे, थारो गान रे

भोळा सा भगतां ने बाबा, थे सिखावो ज्ञान रे

आस ना कोई सुध बुध खोई-2 आया दुखडा भारी

रुणीचे वाळा.......


2

म्हैं तो थारी बाट देखां, लीले चढकर आओ रे

भगतां ने थे परचो देकर, नैया पार लगावो रे

मंशा मारी पूरी कर दो-2 थारां परचा भारी

रुणीचे वाळा.......


3

नौलख जातरी आवे थारे, धोके लोग लुगाई रे

नैया अटकी बीच भंवर में, म्हारी लाज बचाई रे

सांचे मन सूं ध्यान लगावे-2 सब रा संकट टारी

रुणीचे वाळा.......

बाबा बाबा आयो हूं मैं थांरे द्वार (भजन)

जीवन में पहली बार बाबे का भजन लिखने का प्रयास किया है. जिसे समाज के सामने रखने की जुर्रत कर रहा हूं. आप कोई गलती नजर आए; या कोई परिवर्तन करना उचित लगे तो बताएं. आप की मेहरबानी होगी. 

तर्ज शागिर्द फिल्म के कान्हा कान्हा आन पड़ी मैं तेरे द्वार भजन की है. 


मुखडा - बाबा बाबा आयो हूं मैं थांरे द्वार


बाबा बाबा 

आयो हूं मैं थांरे द्वार -2-


मानूं मैं थांरो भगत कोनी हो

थांरे दरबार में आयो कोनी हो -2- 

आयो हूं मैं थांरे द्वार.......... बाबा बाबा आयो हूं मैं थांरे द्वार


सच्चे मन सूं पैदल चाल'र

विघ्न झूठा सच्चा  टाळ'र  -2-

आयो हूं मैं थांरे द्वार.......…..बाबा बाबा आयो हूं मैं 

कुमार अहमदाबादी

बुधवार, अगस्त 23

पीर जी रुणिचे रा(भजन)


 

तर्ज - मोरियो आछो बोल्यो रे

पीर जी म्हारे घरां थे बेगा आवजो
म्हारे हिवड़े में आनंद अपार पीर जी
म्हारे घरां थे बेगा आवजो

1
पीर जी रुणिचे रो लागे प्यारो देवरो
थारी धजा तो फरके गिगनार पीर जी
म्हारे घरां थे......

2
पीर जी लीले पर चढ़ कर बेगा आवजो
थांरे दरसण उड़ीके नर  नार पीर जी
म्हारे घरां थे......

3
पीर जी सरधा सूं आवां थारे देवरे
झोळी भगतां री भर दी बाबा आज पीर जी
म्हारे घरां थे......

4
पीरजी स्वर्णकारां री सुण लो वीणती
अब तो थे ही खींचो भगतां री डोर पीर जी
म्हारे घरां थे......

मंगलवार, अगस्त 22

बाबा सुणकर थांरो नाम(भजन)

(भजन)

तर्ज - मीठे रस सूं भरियोडी राधा राणी लागे


बाबा सुणकर थांरो नाम दौड्या आया थारे धाम,

दौड्या आया थारे धाम बाबा, नैया ने पार लगा दीजो


दिन काटां गिण गिण कर म्हारी बिगडी बणावो - 2

बेगा सा लीले चढ़ आवो, म्हाने मत तरसावो -2

अब तो बिगडी जावे बात, बाबा थारो ही है साथ

बाबा नैया ने पार लगा दीजो.....


दर पर थारे जो भी आया, कोई गया ना खाली -2

थोड़ी म्हां पर म्हेर करो थे, मैं हूं एक सवाली -2

मैं भी आया थांरे द्वार, म्हारी सुण लो पुकार

बाबा नैया ने पार लगा दीजो......


चरण कमळ में शीश नवाऊं, सिंवरुं बारम्बार -2

नित रो थोंरे धोक लगाउं, झुक झुक करुं जुहार -2

थे हो भगतां रा सिरमौर, कर लो म्हां पर थोडो गौर 

बाबा नैया ने पार लगा दीजो......

मैं तो भिखारी बाबा तेरे द्वार का(भजन)

मैं तो भिखारी बाबा तेरे द्वार का*

(भजन)

तर्ज - अच्छा सिला दिया तूने मेरे प्यार का


मैं तो भिखारी बाबा तेरे द्वार का 

टूटा हुआ फूल हूं मैं तेरे हार का

बड़ी आशा लेके दाता तेरे पास आया हूं

हाल क्या सुनाऊं सारे जग का सताया हूं

भूखा हूं मैं बाबा तेरे प्यार का


दानी तेरे जैसा और नहीं कोई दूजा है

इसीलिए घर घर होती तेरी पूजा है

दुख हरते हो दुखी लाचार का 

टूटा हुआ फूल हूं तेरे हार हार का


तुम्हीं हो किनारा और तुम्हीं मझधार हो

नैया मेरी डूबे नहीं तुम्हीं खेवणहार हो 

टूटे ना उम्मीद मेरे एतबार का

टूटा हुआ फूल हूं तेरे हार का


आते हैं सवाली जो भी उन की झोली भरते हो

किसी को भी खाली नहीं दर से टाल देते हो

मेरी भी झोली भर दो सेवक हूं आप का

टूटा हुआ फूल हूं तेरे हार का 

फूलों री छड़ी थारे हाथां में(भजन)

तर्ज - मेहंदी लगी थारे हाथां में


फूलां री छड़ी थारे हाथां में, मुकुट विराजे माथे में

थारे गल फूलां रो हार बाबा राम धणी


नाम सुण्यो है जद सूं बाबा, नींदडली नहीं आंख्या में

घणी दूर सूं चल के आया, दो दर्शन थांरे भगतां ने

आंसु भर्या म्हारी आंख्या में, नैया है भवसागर में -2-

म्हारी नैया पार लगावो, म्हारा रामधणी...........फूलों री छड़ी थारे हाथां में


एक सहारो थारो बाबा, म्हाने क्यों तरसावे है

अब सूं थारी टेर लगावां, क्युं नई दर्श दिखावे है

गले लगा थारे टाबर ने, थोंरे चरणा रे चाकर ने

अब सुण ले लख दातार, म्हारा रामधणी..........फूलों री छड़ी थारे हाथां में


म्हैं सुणी हों बाबा थारी, महिमा अपरंपार घणी

क्यों तरसाओ पीरां जी थांरे टाबरियां ने आस घणी

गुण गावां दिन रातां ने, भूल गया सब कामां ने

अब नैया पार लगावो, म्हारा राम धणी..............फूलों री छड़ी थारे हाथां में 

सोमवार, अगस्त 21

शिव भोले का गुजराती भजन और उस का हिन्दी अनुवाद

अनुवादक- कुमार अहमदाबादी

મૂળ ભજન

હર  હર ભોળા શંભુ, તમારી ધૂન લાગી  (2) 

તારી ધૂન લાગી ભોળા તારી ધૂન લાગી    (2) 


પાર્વતીના પ્યારા, તમારી ધૂન લાગી  (2) 

તારી ધૂન લાગી ભોળા, તારી ધૂન લાગી 


ગણેશજી ના પિતા, તમારી ધૂન લાગી  (2) 

તારી ધૂન લાગી ભોળા, તારી ધૂન લાગી 


સૃષ્ટિ ના રખવાળા, તમારી ધૂન લાગી  (2) 

તારી ધૂન લાગી ભોળા, તારી ધૂન લાગી 


ભક્તો ના તારણહાર, તમારી ધૂન લાગી  (2) 

તારી ધૂન લાગી ભોળા, તારી ધૂન લાગી 

.................................................................

अनुदित भजन

हर हर शंभू भोले, तुम्हारी धुन लागी (2)

तुम्हारी धुन लागी रे,  तुम्हारी धुन लागी (2)


पार्वती के प्यारे, तुम्हारी धुन लागी (2)

गणेश जी के पिता तुम्हारी धुन लागी (2)

तुम्हारी धुन लागी रे, तुम्हारी धुन लागी (2)


सृष्टि के रखवाले रे, तुम्हारी धुन लागी(2)

तुम्हारी धुन लागी रे, तुम्हारी धुन लागी (2)


भक्तों के रखवाले तुम्हारी धुन लागी (2)

तुम्हारी धुन लागी रे, तुम्हारी धुन लागी

अनुवादक- कुमार अहमदाबादी

रविवार, अगस्त 20

भोला बागम्बर वाला (शिव भजन)


भोला बागम्बर वाला, शंकर है डमरुवाला
माया है उस की महान, है वो निराला भगवान
बैठा आंखों को मींचे, सांसों को ऊपर खींचे
करता ना जाने किस का ध्यान, है वो निराला भगवान।। टेर।।

जटा में शिवशंकर के, गंगा विहार करे
माथे पे देखो उन के, चंदा उजियार करे
कानों में कुंडल उन के गले में सर्पों का हार पड़े
पीता है भंग का प्याला, रहता सदा मतवाला
अजब निराली उन की शान है, है वो निराला भगवान ... भोला बागम्बर वाला

अंग में वो निश दिन भस्मी रमाए
होकर मगन कभी डमरु बजाए
डमरु बजाए तांडव नाच दिखाए
एसा है भोलाभाला, भक्तों का है रखवाला
अपने भक्तों का रखता मान, है वो निराला भगवान....भोला बागम्बर वाला

सेवा में रहती जिसके गिरजा सुकुमारी
कार्तिक गणेश दोनों पुत्र आज्ञाकारी
देता वरदान सब को भोला भंडारी
सारे जग का प्रतिपाला देवों में देव निराला
गाता है ताराचंद गुणगान है वो निराला भगवान......भोला बागम्बर वाला

सोमवार, अगस्त 14

लोकतांत्रिक व्यवस्था का सच

लोकतंत्र एसी व्यवस्था है. जिस में सत्ता पक्ष को शासन करने वाले पक्ष को विपक्षी की बात धैर्य से सुननी पड़ती है. लोकतंत्र को समझने जानने वाले सुनते भी हैं. कटु से कटु आलोचना का सामना करने के लिए तैयार रहना पड़ता है. लेकिन चाहे सत्ता पक्ष हो या विपक्ष किसी को ये हक नहीं होता. वो सामने वाले पक्ष की पारिवारिक मामलों के बारे में कुछ पूछे या आलोचना करे. सामने वाले के परिवार के रहन सहन या अंदरुनी व्यवस्था के बारे में कुछ पूछे या कहे. 

इस के बावजूद अगर सत्ता पक्ष या विपक्ष एसा करता है तो ये समझ जाना चाहिए. एसा करने वाला लोकतांत्रिक व्यवस्था को पूरी तरह आत्मसात कर नहीं पाया है.

महेश सोनी

अधूरे कार्य का नुकसान (लघु कथा)

पिंटू ने खाना खाने के बाद अपनी मां को कहा. माता श्री, मैंने खाना खा लिया पर आज रोटियां थोड़ी सी कच्ची पक्की थी. मुझे सब्जी भी थोड़ी सी गड़बड़ लगी . माता ने कहा "बेटा, कच्चा पक्का खाना तो मिल गया ना और खा भी लिया ना. कच्चा हो या पक्का खाना खाना होता है.

पिंटू ने कहा "नहीं माता श्री, एसा नहीं होता. अधपका खाना पेट मतलब पाचनतंत्र को और इस तरह पूरे शरीर को नुकसान करता है"
कुमार अहमदाबादी

मंगलवार, अगस्त 8

कविता कैसे बनती है

मैं आप को बताता हूं. कविता की रचना एसे होती है. समझो मैं यानि एक कवि को एक फंक्शन में जाना है. जाने से पहले कवि की अपनी पत्नी से बात हुई. जिस में ये तय हुआ. मैं आप को समाज की फंक्शन में फलां फलां जगह पर मिलूंगा या मिलूंगी. कवि निर्धारित समय पर पहुंच गया. लेकिन वहां पत्नी दिख नहीं रही. कवि ने इधर उधर नजर घुमाई. नहीं दिखा. अब कवि नजर घुमा रहा है.लेकिन पत्नी दिख नहीं रही. अब चूं कि कवि है इसलिए खोजते खोजते एक कविता मन में उपजी. जो ये थी.


शाम से खोजती है नजर

वाम को खोजती है नजर

भोली रानी छुपी है कहां

जाम को खोजती है नजर

कुमार अहमदाबादी


सौंदर्य के उपासक कवि के लिए उस की पत्नी(जो वामांगी कहलाती है, क्यों हर शुभ कार्य में वो हमेशा वाम यानि लेफ्ट साइड में ही बैठती है) जाम से कम नहीं होती. 

इस छोटी से कविता में कितनी महत्वपूर्ण बातें आ गई है. मैंने कुछ नहीं किया. कवि को जब भी कहीं कोई मिलनसार व अच्छा व्यक्ति मिल जाता है. कविता बन जाती है. मुझे उम्मीद है. मेरी बात आप की समझ में आ गई होगी. 

छायावाद(प्रो.भगवानदास जैन)

 अंग्रेजी के रोमेण्टिसिज़म को ही हिन्दी में छायावाद कहते हैं ।

 प्रकृति के मानवीकरण को ही छायावाद कहते हैं ।

स्थूल के प्रति सूक्ष्म के विद्रोह का नाम ही छायावाद है ।

प्रकृति के माध्यम से रूमानी अनुभूतियों की व्यंजना ही छायावाद है । 

 दो विश्व-युद्धों के बीच की हिन्दी कविता छायावाद है ।छायावाद के प्रमुख कवि : प्रसाद, पंत, निराला और महादेवी । उदा○

 १ मैं नीरभरी दुख की बदली

     मेरा परिचय इतिहास यही

     उमड़ी कल थी ,मिट आज चली।

                 ••••••महादेवी वर्मा

२ न जाने नक्षत्रों से कौन

   निमंत्रण देता मुझको मौन

            •••••सुमित्रानंदन पंत

       

           ( प्रो○ भगवानदास जैन ) 

लेखन के बारे में

 *कॉपी पेस्ट*

प्रत्येक लेखक को इसका बेसिक ज्ञान  होना ही चाहिए।

ये सदैव ध्यान रखें कि पूर्णविराम दोहे या कविता के पदों में दो से अधिक बार नहीं लिखा जाता । ये भी व्यवहार में ही देखने को मिलता है , व्याकरणसम्मत नहीं है।

हिंदी के लेखक खासतौर से कविताओं में कई - कई विस्मयादिबोधक चिह्न लगाते हैं जो बिल्कुल भी सही नहीं है।

मैं प्रतिदिन पांडुलिपियों में ऐसे ग़लत चिह्न देखती हूँ। अक्सर टोकने पर भी लेखक सही चीज़ स्वीकार नहीं करना चाहते।

कई बार प्रूफ देने पर कुछ लोग समझ जाते हैं किंतु ज़्यादातर अपने अज्ञान के साथ हीआगे बढ़ने में विश्वास रखते हैं।

आप भी जानिए विराम चिह्नों की उपादेयता के बारे में...


 विराम चिन्हों के प्रकार या भेद

पूर्ण विराम (।)

अर्द्ध विराम (;)

अल्प विराम (,)

प्रश्न चिन्ह (?)

उप विराम (अपूर्ण विराम) (:)

विस्मयबोधक चिन्ह (!) या  आश्चर्य चिन्ह

निर्देशक चिन्ह (डैश) (-) या संयोजक चिन्ह या सामासिक चिन्ह

कोष्ठक ( ) [ ] { }

अवतरण चिन्ह (‘ ’)(“ ”) या उध्दरण चिन्ह

विवरण चिन्ह (:-)

पुनरुक्ति सूचक चिन्ह („ „)

लाघव चिन्ह (०)

लोप चिन्ह (… , ++++)

दीर्घ उच्चारण चिन्ह (ડ)

हंसपद  या त्रुटिबोधक चिन्ह (^)

तुल्यता सूचक (=)

समाप्ति सूचक (-0-, —)

विराम चिन्ह क्या है

विराम चिन्ह (Punctuation Mark) की परिभाषा – भित्र-भित्र प्रकार के भावों और विचारों को स्पष्ट करने के लिए जिन चिह्नों का प्रयोग वाक्य के बीच या अंत में किया जाता है, उन्हें ‘विराम चिह्न’ कहते है।


दूसरे शब्दों में-  विराम का अर्थ है – ‘रुकना’ या ‘ठहरना’ । वाक्य को लिखते अथवा बोलते समय बीच में कहीं थोड़ा-बहुत रुकना पड़ता है जिससे भाषा स्पष्ट, अर्थवान एवं भावपूर्ण हो जाती है। लिखित भाषा में इस ठहराव को दिखाने के लिए कुछ विशेष प्रकार के चिह्नों का प्रयोग करते हैं। इन्हें ही विराम-चिह्न कहा जाता है।


सरल शब्दों में- अपने भावों का अर्थ स्पष्ट करने के लिए या एक विचार और उसके प्रसंगों को प्रकट करने के लिए हम रुकते हैं। इसी को विराम कहते है।


विराम चिन्हों का उपयोग जानना अति आवश्यक है इसके बिना व्यक्ति अच्छे तरीके से पढ़ लिख नहीं सकता, क्योंकि अच्छे लेखन के लिए, पढने के लिए, विराम चिन्हों का उपयोग जानना बहुत आवश्यक है . लिखित भाषा अपने कथ्य को तभी पूरा सफलता से व्यक्त कर सकती है, जब उसमें विराम चिन्हों का समुचित प्रयोग हुआ हो . “विराम- का अर्थ है रुकना” जो चिन्ह बोलते या पढ़ते समय रुकने का प्रस्तुत संकेत देते हैं उन्हें विराम  चिन्ह कहते हैं | विराम चिन्हों में अब अनेक चिन्ह सम्मिलित कर लिए गए हैं


इन विराम चिन्हों का प्रयोग वाक्यों के मध्य या अंत में किया जाता है।


हिंदी व्याकरण के विशेषज्ञ कामता प्रसाद गुरु ने विराम चिन्हों की संख्या 20 मानी है। कामता प्रसाद गुरु पूर्ण विराम (।) को छोड़ कर बाकि सभी विराम चिन्हों को अंग्रेजी से लिया हुआ माना है।


विराम चिन्हों के प्रकार या भेद

हिन्दी में प्रयुक्त विराम चिह्न निम्नलिखित है-


पूर्ण विराम (।)

किसी वाक्य के अंत में पूर्ण विराम चिन्ह लगाने का अर्थ होता है कि वह वाक्य खत्म हो गया है। यानी जहाँ एक बात पूरी हो जाये या वाक्य समाप्त हो जाये वहाँ पूर्ण विराम ( । ) चिह्न लगाया जाता है। पूर्ण विराम (।) का प्रयोग प्रश्नसूचक और विस्मयादि सूचक वाक्यों को छोड़कर बाकि सभी प्रकार के वाक्यों के अंत में किया जाता है।


जैसे —


पढ़ रहा हूँ।

तुम जा रहे हो।

राम स्कूल से आ रहा है।

अर्द्ध विराम (;)

जब किसी वाक्य को कहते हुए बीच में हल्का सा विराम लेना हो पर वाक्य को खत्म न किया जाये तो वहाँ पर अर्द्ध विराम (;) चिन्ह का प्रयोग किया जाता है। यानी जहाँ अल्प विराम से कुछ अधिक ठहरते है तथा पूर्ण विराम से कम ठहरते है, वहाँ अर्द्ध विराम का चिह्न ( ; ) लगाया जाता है।


जैसे —


यह घड़ी ज्यादा दिनों तक नहीं चलेगी; यह बहुत सस्ती है।

राम तो अच्छा लड़का है; किन्तु उसकी संगत कुछ ठीक नहीं है।

कल रविवार है; छुट्टी का दिन है; आराम मिलेगा।

अल्प विराम (,)

जब किसी वाक्य को प्रभावी रूप से कहने के लिए वाक्य में अर्द्ध विराम (;) से ज्यादा परन्तु पूर्ण विराम (।) से कम विराम लेना हो तो वहां अल्प विराम (,) चिन्ह का प्रयोग किया जाता है। जहाँ थोड़ी सी देर रुकना पड़े, वहाँ अल्प विराम चिन्ह (Alp Viram) का प्रयोग करते हैं ।


जैसे —


सुनील, जरा इधर आना।

राम, सीता और लक्ष्मण जंगल गए ।

अल्प विराम का प्रयोग निम्नलिखित परिस्थितियों में किया जाता है-


जहाँ किसी व्यक्ति को संबोधित किया जाय, वहाँ अल्पविराम का चिह्न लगता है। जैसे- प्रिय महराज, मैं आपका आभारी हूँ।

अंको को लिखते समय भी अल्पविराम का प्रयोग किया जाता है। जैसे- — 1, 2, 3, 4, 5, 6 आदि।

‘हाँ’ और ‘नहीं’ के बाद — नहीं, यह काम नहीं हो पाएगा।

जहाँ शब्दों को दो या तीन बार दुहराया जाय, वहाँ अल्पविराम का प्रयोग होता है। जैसे- वह दूर से, बहुत दूर से आ रहा है।

तारीख और महीने का नाम लिखने के बाद — 2 अक्टूबर, सन् 1869 ई० को गाँधीजी का जन्म हुआ।

प्रश्न चिन्ह (?)

प्रश्न चिन्ह (?) का प्रयोग प्रश्नवाचक वाक्यों के अंत में किया जाता है । अर्थात जिस वाक्य में किसी प्रश्न (सवाल) के पूछे जाने के भाव की अनुभूति हो वहां वाक्य के अंत में प्रश्न चिन्ह (?) का प्रयोग होता है।

यानी जहाँ बातचीत के दौरान जब किसी से कोई बात पूछी जाती है अथवा कोई प्रश्न पूछा जाता है, तब वाक्य के अंत में प्रश्नसूचक-चिह्न का प्रयोग किया जाता है।


जैसे —


ताजमहल किसने बनवाया ?

तुम कहाँ जा रहे हो ?

यह तो तुम्हारा घर नहीं है ?

उप विराम (अपूर्ण विराम) (:)

जब किसी शब्द को अलग दर्शना हो तो वहां उप विराम (अपूर्ण विराम) (:) का प्रयोग किया जाता है।अर्थात जहाँ वाक्य पूरा नहीं होता, बल्कि किसी वस्तु अथवा विषय के बारे में बताया जाता है, वहाँ अपूर्ण विराम-चिह्न का प्रयोग किया जाता है।


यानी जब किसी कथन को अलग दिखाना हो तो वहाँ पर उप विराम (Up Viram) का प्रयोग करते हैं ।


जैसे —


प्रदूषण : एक अभिशाप ।

उदाहरण : राम घर जाता है।

कृष्ण के अनेक नाम है : मोहन, गोपाल, गिरिधर आदि।

विस्मयबोधक चिन्ह (!) या  आश्चर्य चिन्ह

विस्मयबोधक चिन्ह का प्रयोग हर्ष, विवाद, विस्मय, घृणा, आश्रर्य, करुणा, भय इत्यादि का बोध कराने के लिए इस चिह्न का प्रयोग किया जाता है।


जैसे —


वाह! क्या आलिशान घर है।

रे! तुम यहां।

ओह! यह तो उसके साथ बुरा हुआ।

छी! कितनी गंदगी है यहाँ।

अच्छा! ऐसा कहा उस पाखण्डी व्यक्ति ने तुमसे।

शाबाश! मुझे तुमसे यही उम्मीद थी।

हे भगवान! ये क्या अनर्थ कर दिया तुमने?

निर्देशक चिन्ह (डैश) (-) या संयोजक चिन्ह या सामासिक चिन्ह

निर्देशक चिन्ह (-) जिसे संयोजक चिन्ह या सामासिक चिन्ह भी कहा जाता है, कुछ इसे रेखा चिन्ह भी कहते हैं। विषय, विवाद, सम्बन्धी, प्रत्येक शीर्षक के आगे, उदाहरण के पश्चात, कथोपकथन के नाम के आगे किया जाता है


किसी के द्वारा कही बात को दर्शाने के लिए

जैसे —


तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा – सुभाष चन्द्र बोस

अध्यापक ― तुम जा सकते हो ।

किसी शब्द की पुनरावत्ति होने पर अर्थात एक ही शब्द के दो बार लिखे जाने पर उनके मध्य (बीच में) संयोजक चिन्ह (-) का प्रयोग होता है।


दो-दो हाथ हो जायें।

कभी-कभी में ख्यालों में खो सा जाता हूँ।

युग्म शब्दों के मध्य

जैसे —


खेल में तो हार-जीत होती रहती है।

कुछ खाया-पिया करो, बहुत कमजोर हो गए हो।

तुलनावाचक ‘सा’, ‘सी’, ‘से’, के पहले

जैसे —


झील-सी आँखें

सागर-सा ह्रदय

कोष्ठक ( ) [ ] { }

कोष्ठक चिन्ह (Koshthak Chinh) का प्रयोग अर्थ को और अधिक स्पस्ट करने के लिए शब्द अथवा वाक्यांश को कोष्ठक के अन्दर लिखकर किया जाता है ।


कोष्ठक का प्रयोग किसी शब्द को स्पष्ट करने, कुछ अधिक जानकारी बताने आदि के लिए कोष्ठक ( ) चिन्ह का प्रयोग किया जाता है। कोष्ठक का उपयोग मुख्यतः वाक्यों में शब्दों के मध्य किया जाता है। ( ) को लघु कोष्ठक, { } मझला कोष्ठक तथा [ ] को दीर्घ कोष्ठक कहते हैं। हिंदी साहित्य लेखन में लघु कोष्ठक ( ) का ही प्रयोग किया जाता है। इनका उपयोग हमेशा जोड़ी में ही होता है।


जैसे —


धर्मराज (युधिष्ठिर) सत्य और धर्म के संरक्षक थे ।

लता मंगेशकर भारत की कोकिला (मीठा गाने वाली) हैं।

उच्चारण (बोलना) जीभ एवं कण्ठ से होता है।

अवतरण चिन्ह (‘ ’)(“ ”) या उध्दरण चिन्ह

किसी वाक्य में किसी खास शब्द पर जोर देने के लिए अवतरण या उद्धरण चिन्ह (‘ ’) का प्रयोग किया जाता है।


किसी और के द्वारा लिखे या कहे गए वाक्य या शब्दों को ज्यों-का-त्यों लिखने के लिए अवतरण चिह्न या उद्धरण चिन्ह (“ ”) का प्रयोग किया जाता है।


जैसे —


महा कवि तुलसीदास ने सत्य कहा है ― “पराधीन सपनेहु सुख नाहीं” ।

हिन्दुओं का एक प्रमुख काव्य ग्रंथ ‘महाभारत’ है।

भारतेंदु जी ने कहा, “हिंदी, हिन्दू, हिंदुस्तान” ।

विवरण चिन्ह (:-)

विवरण चिन्ह (:-) का प्रयोग वाक्यांश में जानकारी, सूचना या निर्देश आदि को दर्शाने या विवरण देने के लिए किया जाता है।


जैसे —


वनों से निम्न लाभ हैं :-

भारत में सेब की कई किस्में पायी जाती हैं जिनमें से कुछ निम्न हैं :-

इस देश में बड़ी – बड़ी नदियाँ हैं :-

पुनरुक्ति सूचक चिन्ह („ „)

पुनरुक्ति सूचक चिन्ह („ „) का प्रयोग ऊपर लिखे किसी वाक्य या वाक्य के अंश को दोबारा लिखने का श्रम बचाने के लिए करते हैं।यानी पुनरुक्ति सूचक चिन्ह का प्रयोग किसी बात को दोहराने के लिए किया जाता है.


जैसे —


रामेश कुमार, कक्षा सातवीं

राजेश ,, ,, ,,

लाघव चिन्ह (०)

किसी शब्द का संक्षिप्त रूप लिखने के लिए लाघव चिन्ह (०) का प्रयोग किया जाता है।यानि किसी बड़े शब्द को संक्षेप में लिखने के लिए कुछ अंश लिखकर लाघव चिन्ह (Laghav Chinh) लगा दिया जाता है । इसको संक्षेपण चिन्ह (Sankshepan Chinh) भी कहते हैं ।


जैसे —


पंडित का  – पंo

प्रोफेसर को – प्रो०

डॉक्टर के लिए ― डॉ०

लोप चिन्ह (… , ++++)

जब वाक्य या अनुच्छेद में कुछ अंश छोड़ कर लिखना हो तो लोप चिह्न (…) का प्रयोग किया जाता है।


जैसे —


श्याम ने मोहन को गाली दी … ।

मैं सामान उठा दूंगा पर … ।

गाँधीजी ने कहा, "परीक्षा की घड़ी आ गई है …. हम करेंगे या मरेंगे” ।

दीर्घ उच्चारण चिन्ह (ડ)

जब वाक्य में किसी शब्द विशेष के उच्चारण में अन्य शब्दों की अपेक्षा अधिक समय लगता है तो वहां दीर्घ उच्चारण चिन्ह (ડ) का प्रयोग किया जाता है। छंद में दीर्घ मात्रा (का, की, कू , के , कै , को , कौ) और लघु मात्रा (क, कि, कु, र्क) को दर्शाने के लिए इस चिन्ह का प्रयोग होता है।


जैसे —


देखत भृगुपति बेषु कराला।

ऽ। ।   । । । ।  ऽ।  ।  ऽ ऽ (16 मात्राएँ, । को एक मात्रा तथा ऽ को 2 मात्रा माना जाता है)

हंसपद  या त्रुटिबोधक चिन्ह (^)

जब किसी वाक्य अथवा वाक्यांश में कोई शब्द अथवा अक्षर लिखने में छूट जाता है तो छूटे हुए वाक्य के नीचे हंसपद चिह्न (^) का प्रयोग कर छूटे हुए शब्द को ऊपर लिख देते हैं। यानी त्रुटिबोधक चिन्ह का प्रयोग लिखते समय किसी शब्द को भूल जाने पर किया जाता है ।


जैसे —


हमें रोजाना अपना कार्य ^ चाहिए ।

मैं पिताजी के साथ ^ गया ।

मैं कल ^ को जाऊंगा

तुल्यता सूचक (=)

किसी शब्द अथवा गणित के अंकों के मध्य की तुल्यता (समानता या बराबरी आदि) को दर्शाने के लिए तुल्यता सूचक (=) चिन्ह का प्रयोग किया जाता है।तुल्यता सूचक (=) चिन्ह गणित में खूब प्रयोग होता है.


जैसे —


4 और 4 = 8

अशिक्षित = अनपढ़

अ = ब

समाप्ति सूचक (-0-, —)

समाप्ति सूचक (-0-, —) चिह्न का उपयोग बड़े लम्बे लेख, कहानी, अध्याय अथवा पुस्तक के अंत में करते हैं, जोकि यह सूचित करता है कि लेख, कहानी, अध्याय अथवा पुस्तक समाप्त हो चुकी है।


*गूगल से साभार*

*(नीरज सुधांशु जी की वोल से)*

*कॉपी पेस्ट*

शुक्रवार, अगस्त 4

अनुदित रूबाई

રૂબાઈ  रूबाई

मूल गुजराती रूबाई और अनुदित रूबाई – 

સૂરજની રોશની ઉદયથી સમજો

સંસાર કરે યાદ વિનયથી સમજો

અંજાન પ્રકાશથી દિશાઓ ચમકે 

ઘટના છે દિન રાત સમયથી સમજો

મનહર શામિલ


रुबाई (अनूदित)

सूरज की रोशनी उदय से समझो

संसार करे याद विनय से समझो

अनजान प्रकाश से दिशाएं चमकी

घटना है दिन रात समय से समझो

अनुवादक – कुमार अहमदाबादी


मूल रूबाई चार अलग अलग छंदों में हैं। जो इस प्रकार है।

पहला मिसरा

गागागा गालगा लगागागा गा

दूसरा मिसरा

गागाल लगागाल लगागागा गा

तीसरा मिसरा

गागाल लगालगा लगागागा गा

चौथा मिसरा

गागागा गागाल लगागागा गा 

जानकारी का स्त्रोत – प्रभात प्रकाशन(मुंबई) द्वारा प्रकाशित किताब रुबाइयते शामिल (कवि – मनहर शामिल) ने साभार 

मंगलवार, अगस्त 1

सत्य क्या होता है?

भारत और पाकिस्तान एक साथ स्वतंत्र हुए थे. लेकिन आज भारत तरक्की कर रहा है. पाकिस्तान लगातार पिछड़ रहा है. क्यों? जब की दोनों की एक जैसी परिस्थितियां थी. 

इस मुद्दे पर आगे कुछ लिखूं. उस से पहले एक प्रश्न पूछता हूं. क्या आप उस पिता को उस गुरु को बुरा कहेंगे. जो अपनी संतानों को अपने शिष्यों को अपने पैर पर खड़ा होना सिखाता है. जो गुरु अपने शिष्य को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कठोर कदम उठाता है. कहेंगे बुरा? नहीं कहेंगे. 

अब इसे भारत और पाकिस्तान के संदर्भ में देखें. 

दोनों एक ही दिन स्वतंत्र हुए. तब दोनों की परिस्थितियां एक समान थी. बल्कि पाकिस्तान फायदे में ही था. उस समय दोनों देशों में विदेशी कंपनियां थी. लेकिन भारत में स्वतंत्रता के बाद स्वदेशी कंपनियों को बढ़ावा देने की नीति अपनाई. जब की पाकिस्तान ने एसी कोई नीति नहीं अपनाई. परिणाम स्वरूप भारत में स्वदेशी कंपनियां और स्वदेशी उत्पादन विकसित होने लगे. इस के कुछ उदाहरण देखें. ठहरिए, पहले कुछ एसे उत्पादों के उदाहरण देखते हैं. जो उस समय मशहूर थे. जिन्हें भारतीय समझा जाता था. लेकिन वो भारतीय नहीं थे. मर्फी, बुश, फिलिप्स रेडियो, डालडा घी आदि एसी कंपनियों के प्रोडक्ट थे. जो मूलतः विदेशी थी. विदेशी कंपनियों की भारतीय यूनिट में उत्पादनों को असेंबल किया जाता था या निर्माण किया जाता था. लेकिन ये पूर्णतः भारतीय प्रोडक्ट नहीं थे. पूर्णतः भारतीय प्रोडक्ट अगर कोई था तो वो पारले के बिस्कुट थे. भारत में पूर्ण रुप से विदेशी उत्पादनों को प्रतिबंधित नहीं किया. लेकिन उन पर टैक्स बढ़ा दिया. एसा इसलिए की जो विदेशी चीजें मंगा सकते हों वे मंगवा सके और भारत सरकार को भी आमदनी हो. 

इन नीतियों के कारण भारत में धीमे धीमे स्वदेशी उत्पादन होने लगे. शुद्ध भारतीय उत्पादन भी ब्रांड(ब्रांड किसे कहते हैं? एक प्रतिष्ठित नाम को ब्रांड कहते हैं.) बनने लगे. पारले के बाद निरमा आया. धीरे धीरे अन्य क्षेत्रों में भी प्रोडक्ट ब्रांड का रूप लेने लगे. हीरो साइकिल याद कीजिए. डेयरी उद्योग में अमूल एक ब्रांड बना. ये संख्या बढ़ती गई. आज बालाजी वेफर्स एक अंतरराष्ट्रीय ब्रांड है. ये तो आदमी के रोजमर्रा की चीजें हैं. अब तो भारत सेटेलाइट के क्षेत्र में भी आत्मनिर्भर बन चुका है. इतना आत्मनिर्भर की अपने दम पर चंद्रयान को चंद्र तक भेज सकता है. ये सब कैसे संभव हुआ? नेहरु को कोसने वाले ये ना भूलें. चंद्रयान का प्रोजेक्ट जो संस्था(इसरो) चला रही है. उस की स्थापना नेहरु ने की थी. अटल बिहारी बाजपेई जी की सरकार के कार्यकाल में परमाणु परीक्षण किए गए थे. जिस संस्था ने वो परमाणु बम बनाए थे. उस संस्था की स्थापना कांग्रेस के कार्यकाल में हुई थी. 

आज इंटरनेट के युग में नेट पर मिल रही जानकारी संपूर्ण सत्य नहीं होती. आखिर में एक सत्य के साथ पोस्ट समाप्त करता हूं. 


सत्य आसानी से नहीं मिलता है. उसे खोजना पड़ता है. जो जानबूझकर आप तक पहुंचाया जाए. वो सत्य नहीं बल्कि महाभारत में युधिष्ठिर द्वारा बोला गया वाक्य...... "सच जूठ मैं नहीं जानता लेकिन अश्वत्थामा मारा गया" होता है.

महेश सोनी

घास हरी या नीली

*घास हरी या नीली* *लघुकथा* एक बार जंगल में बाघ और गधे के बीच बहस हो गई. बाघ कह रहा था घास हरी होती है. जब की गधा कह रहा था. घास नीली होती है...