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रविवार, अप्रैल 13

हजारी जी का साम्राज्य

11 सितंबर का दिन मेरे लिए ऐतिहासिक था। मेरे ननिहाल परिवार द्वारा एन्टिक आयोजन किया गया था। मेरे नानाजी के पिताजी श्री हजारीमलजी करीब एक सौ दो या तीन साल बसने के लिए सुप्रसिद्ध देशनोक गाँव छोड़कर बिकानेर आये थे। इस उपलक्ष्य में पारिवारिक भोज आयोजित किया गया था। हजारीजी के बारे में कुछ लिखूँ। उस से पहले देशनोक के बारे में थोड़ी सी जानकारी दे दूँ।

 

देशनोक करणी माता के मंदिर व उस में रहनेवाले चूहोँ के लिए विख्यात है। करणी माता को बिकानेर के राज परिवार की कुलदेवी माना जाता है। मंदिर ऐतहासिक है। मंदिर में ईतने चूहे हैं कि आप पैर उठाकर चल नहीं सकते। पैर को जमीँ से सटाकर चलना पड़ता है। एसी मान्यता है कि अगर कोई चूहा पैर से कुचला जाए तो आप को सोने या चाँदी का चूहा बनवाकर मंदिर को भेंट करना पड़ता है।

हजारी जी के कुछ पारिवारिक सदस्य बिकानेर में रहते थे। करीब एक सौ दो या तीन साल पहले देशनोक से हजारीमल जी बिकानेर आ गये। हजारी जी के पिता का नाम नारायणदास जी बी दादाजी का नाम करणीदान जी    था। हजारी जी अत्यंत कर्मठ व्यक्ति थे। बहुत जल्द बिकानेर के ब्राह्मण स्वर्णकार समाज में खुद को स्थापित कर लिया। विशिष्ट पहचान कायम कर ली। वे बेहद उच्च स्तर का घड़ाई कार्य (जिस में रेण द्वारा सोने को घाट दिया जाता है। जैसे कि फूल पान बनाना)करते थे। कुशल वैध भी थे। उन्हें नाडी विज्ञान का गहरा ज्ञान था। मगर उन्होंने कभी वैधकीय ज्ञान को धनार्जन का साधन कभी नहीं बनाया।

 

एक बार देशनोक के एक शख्स भँवरलाल की तबियत बेहद खराब थी। परिस्थिति ये थी कि उन्हें धरती ले लिया (गाँवो में बचने की उम्मीद न हो तो धरती पर सुला दिया जाता है। जो मिट्टी में मिट्टी मिलनेवाली है ये दर्शाता है) गया था। हजारी जी को बिकानेर से बुलाया गया। वे उँट सवारी कर के करीब पौने घंटे में पहुँचे। वहाँ रोना धोना मचा था। सब से पहले नब्ज देखी। नब्ज देखकर रोना धोना बंद करवाया। एक कागज पर दवाइयों के नाम लिखकर जिम्मेदार व्यक्ति को दिया। जो बाजार से लानी थी। उस जमाने में उन दवाईयों के दाम कुल मिलाकर दो आने जितने थे। जो कोई ज्यादा नहीं थे। दवाई लाई गई। दवाइयों को कूट पीसकर एक एक घूंट  दर्दी को देने लगे। कुछ घंटो बाद दवाई का असर नजर आने लगा। दूसरे दिन दर्दी ने आँख खोली। मरीज की माँ ने अपने गहने लाकर हजारी जी के सामने रख दिए। उन्होँ ने कुछ भी लेने से ईन्कार कर दिया।

एक और घटना

 हजारी जी के दो काकाओं रामसंग जी व रामदास जी में बोलचाल नहीं थी। रामसंग जी उम्र दराज थे। बीमार थे। हजारी जी काका से मिलने गए। नब्ज देखी। देखकर पूछा "कोई आखरी ईच्छा" काका ने कहा "आखरी घड़ीयों में रामदास से मिल लेता तो...पर वो देशनोक में है" हजारी जी ने उठते हुए बोले "मैं लेकर आता हूँ।" काका ने कहा "अरे अभी दस साढ़े दस बज रहे हैँ कहाँ जाएगा।" हजारी जी बोले "यूँ गया यूँ आया" घर गए उँट निकाला। पौने घंटे के अंदर अंदर देशनोक पहुँच गए। काका रामदास से कहा "चलिए आप को लेने आया हूँ। काका रामसंग आप से मिलना चाहते हैं" सुनकर काका ने कहा "अरे मेरी उस की बोलचाल बंद है फिर भी तू..." हजारी जी ने काका की बात काटकर उन्हेँ कम से कम शब्दों में वास्तविकता बताई। काका मान गए। काका को लेकर रवाना होने से पहले काकी को सूचना दे दी। आप सब भी बैल गाड़ियाँ जोड़ कर जल्दी बिकानेर पहुँच जाईये। फिर करीब पौने घंटे में बिकानेर पहुँच गए। दोनों भाई सारे मतभेद भूलाकर गले मिल कर खूब रोए। घंटे सवा घंटे बातें की। गिले शिकवे दूर हुए। सुबह चार बजे के आसपास रामसंग जी ने देह त्याग दिया। 

 

जारी जी के संतानें कई हुई पर पांच पुत्रोँ व दो पुत्रियों ने लंबी उम्र पाई। उस जमाने में मृत्यु दर ज्यादा था। हर तरह से सशक्त बच्चा ही लंबी आयु प्राप्त करता था। हजारी जी के 35 या 36 पौत्र पौत्रियों ने लंबी उम्र पाई। जिन में 18 पौत्र व 17 या 18   पौत्रियाँ थे। करीब करीब 30 पौत्र पौत्रियाँ कम उम्र में ही गुजर गए। आज हजारी जी के परिवार में सब मिलाकर हजार से ज्यादा व्यक्ति हैं। ग्यारह तारीख के कार्यक्रम में अंदाजन 900 व्यक्ति शामिल हुए थे। बिकानेर से बाहर रहनेवाले कुछ सदस्य निजी कारणवश शामिल नहीं हो सके। बिकानेर में रहनेवाले सारे सदस्य कार्यक्रम में शामिल हुए थे। एक परिवार बाकी परिवारों से तीस साल से  कटा हुआ था। वो भी ईस आयोजन में खुशी खुशी शामिल हुआ। एक एक व्यक्ति उत्साह से भरा था। सब कुछ आयोजनबद्ध था। बड़ी कुशलता से न्यौते दिए गए। जिम्मेदारीयों को बाँट दिया गया। प्रत्येक परिवार के मुखिया को ये जिम्मेदारी सौंपी गई कि उस के परिवार में कोई बाकी न रहे। ये ध्यान रखना उस का कर्तव्य है। उस के प्रत्येक परिवारजन को न्यौता पहुँचाना व आयोजन स्थल तक लाना उस का कार्य है। प्रत्येक मुखिया ने क्रमबद्ध अपने परिवार की छट्ठी या सातवीं पीढ़ी तक न्यौता पहुँचाया। खाद्य सामग्री लाने का काम विभिन्न व्यक्तियों को सौंपा गया। काम के विभाजन से सबकुछ आसान होता चला गया।

 

कार्यक्रम में प्रवेश द्वार के सामने दो तस्वीरेँ रखी गई थी। एक  हजारी जी की थी। दूसरी में हजारी जी के साथ उन के पाँचों पुत्र दो पौत्र व हजारी जी के चचेरे भाई रेखो जी थे। दोनों तस्वीरेँ कोई सौ या पिचानवे साल पुरानी होगी। मैंने गौर किया था कि आनेवाला हर शख्स जब तसवीरों के सामने आया। तब आँखों में एक अलग ही आत्मियता थी। एक अनोखा लगाव एक विशेष कशिश थी। जिन्हें नहीं पता था वे जानना चाहते था कि वो हजारी जी की सातों संतानोँ में से किस का वंशज है?

 

मेरा एक दोस्त जो पहले अहमदाबाद में रहता था। पिछले दस सालों से बिकानेर में रहता है। वो मुझे कार्यक्रम में मिला। उस ने मुझ से पूछा "तुम यहाँ कैसे?" मैंने कहा " हजारी जी के तीसरे पुत्र मेघराज जी मेरे नाना जी हैं" फिर मैंने पूछा "तुम्हारा सेतु ईस परिवार से कैसे जुडता है?" उस ने बताया "छगनीदेवी मेरी सासुमाँ की दादी जी थीं।" आप के मन में प्रश्न उभरा होगा ये छगनीदेवी कौन होँगी? छगनीदेवी हजारी जी की सब से छोटी पुत्री का नाम था।

 

ईस आयोजन का महत्व तब और बढ़ जाता है। जब हमें ये पता चलता है कि हजारी जी तथा उन की सातों संतान एवं पांचो बहुएँ व दोनों जंवाई सब स्वर्गवासी हो चुके हैं। 18 पौत्रोँ मे से 8 स्वर्गवासी हो चुके हैं। एक तीस पैंतीस या शायद चालीस सालों से लापता है। दस पौत्रियाँ व एक दोहित्री कार्यक्रम में शामिल थीं। सिर्फ एक व्यक्ति मेरी मौसी जी को हजारी जी याद है। जब हजारी जी गुजरे मौसी जी की उम्र आठ दस साल की थी एवं आयोजन के लिए सब को प्रेरित करनेवाले मेरे मामाजी तीन साल के थे।

 

आज के दौर में जब पारिवारिक ऐक्य लगातार कम हो रहा है। तब एसा आयोजन बहुत महत्त्व रखता है। सात पीढ़ी छोडो लोगों को दूसरी तीसरी पीढ़ी के रिश्तेदारों के नाम याद नहीं होते। इस भगीरथ आयोजन को सफल बनाने के कार्य करनवाला हर शख्स अभिनन्दन का पात्र है। परिवार के सब से बड़े व्यक्ति की इच्छा 'एक बार मेरे दादाजी के परिवार को साथ खाना खाते देख लूँ' का सम्मान कर उसे साकार रूप देनेवाला प्रत्येक शख्स अभिनन्दन का पात्र है। इस कार्य को साकार रूप देनेवाले समस्त  परिवारजनों को मैं  बधाई देता हूँ।  उन्होंने मुझे और पुरे परिवार को  पारिवारिक गौरव के ऐसे अनमोल क्षण प्रदान किये हैं। यादों के इतिहास में ऐसे सुनहरी पन्ने जोड़े हैं जिन का कोई मुकाबला नहीं।

आखिर में पुरे परिवार को उन की भावनाओं को सलाम करते हुए शब्दों को विराम दे रहा हूँ।

महेश सोनी

बेमौसम बरसात (रुबाई)

जब जब होती है बेमौसम बरसात  शोले बन जाते हैं मीठे हालात  कहती है बरसात आओ तुम भीगो हौले हौले फिर भीगेंगे जज़बात  कुमार अहमदाबादी