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बुधवार, अप्रैल 3

सताती है मुझे


आज भी मासूम दीवानी सताती है मुझे
याद की खुशबू पहाड़ों से बुलाती है मुझे 
ढाके की मलमल सी वो भी खो गई इतिहास में
ऐतिहासिक पृष्ठ की पीड़ा रुलाती है मुझे
दो दिलों की कामनायेँ रंग लाई थी यहाँ
सूने शिकारे की तन्हाई बताती है मुझे

पुष्पों सी रंगीन प्यारी चुलबुली दीवानगी
सारे बंधन तोड़ दो कह कर लुभाती है मुझे
फूल सी छोटी थी उस की जिन्दगी जो आज तक
लोगों के जीवन को महकाना सिखाती है मुझे
कुमार अहमदाबादी

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