आँखों में दीप जल रहा है।
शहद सा स्वप्न पल रहा है।
प्रेम का कब मिलेगा न्यौता।
मोर मन का मचल रहा है।
अब गगन को गुलाबी कर दो।
धीर का सूर्य ढल रहा है।
ओ बलम राह देखे श्रँगार।
मिटने को ये मचल रहा है।
मीठे पल होंगे कितने मादक।
मन में ये प्रश्न चल रहा है।
फूल भौँरा है पर नहीं है।
दोनों का मन बहल रहा है।
प्रेम के पल रसीले थे अब।
याद से मन बहल रहा है।
प्रेम ने चेतना जगा दी।
गर्भ में बीज पल रहा है।
प्रेम है प्रार्थना सा पावन।
सब का ये प्राण बल रहा है।
कुमार अहमदाबादी
साहित्य की अपनी एक अलग दुनिया होती है। जहां जीवन की खट्टी मीठी तीखी फीकी सारी भावनाओं को शब्दों में पिरोकर पेश किया जाता है। भावनाओं को सुंदर मनमोहक मन लुभावन शब्दों में पिरोकर पेश करने के लिये लेखक के पास कल्पना शक्ति होनी जरुरी है। दूसरी तरफ रचना पढ़कर उस का रसास्वादन करने के लिये पाठक के पास भी कल्पना शक्ति होनी जरुरी है। इसीलिये मैंने ब्लॉग का नाम कल्पना लोक रखा है।
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बुधवार, मार्च 21
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