(प्रिल्युड)
(पुरुष) गोरी तू चटक मटक, लटक मटक, चटक मटक, करती क्युं री? ओये होये क्युं री?
(स्त्री) पीया तू समझ सनम, चटक मटक, लटक मटक, करती क्युं मैं? ओये होये क्युं मैं?
(पुरुष) तेरा ये बदन अगन, जलन दहन, नयन अगन, लगते क्युं है? ओये होये क्युं है?
(स्त्री) मेरे ये नयन बदन, सनम अगन, जलन दहन, जलती होरी....ओये होये होरी
(स्त्री) चाहे ये सनन पवन, बरफ़ पवन, सनम पवन, बनके आ जा...... ओये होये आ जा
(पुरुष) आया मैं सनन पवन, पवन बरफ, बरफ पवन, बनके गोरी ओये होये होरी.......
आई रे आई होरी
[मुखड़ा]
[स्त्री समूह] आई रे आई रे होरी, आई आई रे होरी, आई रे आई रे होरी, आई रे.............. होरी आई रे
[पुरुष समूह] लाई रे लाई रे होरी, लाई रे लाई रे होरी, लाई रे लाई रे होरी, लाई रे .............होरी लाई रे
[स्त्री समूह] तन में तरंग लाई, मन में उमंग लाई
[पुरुष समूह] गुल में निखार लाई,रुत बेक़रार लाई
[स्त्री समूह] पिया का प्यार लाई, रस की फुहार लाई
[पुरुष समूह] दिल में करार लाई रंग बेशुमार लाई.......आई रे....होरी आई रे
आई रे[रिपीट]
[अंतरे]
[नायक] तुम भी खेलो, मैं भी खेलूं.धरती का कण कण खेले,
[नायिका] रंगो के इस रत्नाकर में, जीवन का पल पल खेले,
[दोनों समूह] सागर, सरिता, झरने,चंदा, भानु और तारे खेलें
[दोनों] बन के तारें अम्बर के हम, झुमके खेलें होरी रे,होरी रे, होरी रे,...........आई रे
[नायिका] राधा खेले, श्याम खेले, सारा गोविन्द धाम खेले
[नायक] प्रेम पियाला मस्ती से, पीकर बंसी फाग खेले,
[दोनों समूह] बंसी की सरगम पर ये, गोपियाँ, वो गैया खेले,
[दोनों] रेशमी सूर बंसी के रे झुमके खेले होरी रे, होरी रे, होरी रे,..............आई रे
[नायक] योगी खेलें, भोगी खेलें, मिलकर दोनों संग खेलें
[नायिका] मौसम की मस्ती में डूबे, फूलों से भंवरे खेले,
[दोनों समूह] मेघ-धनुषी मौसम में गुल, रंगीली रसधार झेलें,
[दोनों] पिचकारी की धार पे सब, झुमके खेलें होरी रे, होरी रे, होरी रे,.........आई रे
[नायिका] पीला खेलें, लाल खेलें, हम ये सालों साल खेलें,
[नायक] मौसम आएँ, मौसम जाएँ, सदियों ये फागुन लाएँ,
[दोनों समूह] रंग बिरंगी होरी से हम दूर कभी हो ना जाएँ,
[दोनों] फाग-राग की मस्ती में सब, झुमके खेलें होरी रे, होरी रे, होरी रे,.....आई रे
कुमार अहमदाबादी
साहित्य की अपनी एक अलग दुनिया होती है। जहां जीवन की खट्टी मीठी तीखी फीकी सारी भावनाओं को शब्दों में पिरोकर पेश किया जाता है। भावनाओं को सुंदर मनमोहक मन लुभावन शब्दों में पिरोकर पेश करने के लिये लेखक के पास कल्पना शक्ति होनी जरुरी है। दूसरी तरफ रचना पढ़कर उस का रसास्वादन करने के लिये पाठक के पास भी कल्पना शक्ति होनी जरुरी है। इसीलिये मैंने ब्लॉग का नाम कल्पना लोक रखा है।
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अच्छी कविता है। फागुन साकार हो गया।
जवाब देंहटाएंThnk u very much sahab
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