जिंदगी और मौत आते हैं गुजरने के लिए
स्वप्न जब आते हैं आते हैं बिखरने के लिए
गर्व करना मत जवानी की अदाओं पर कभी
बाढ़ सरिताओं में आती है उतरने के लिए
पुष्प के जलते हुए जीवन की चिंता है किसे?
लोग उपवन में आते हैं बस विचरने के लिए
नाव भवसागर में डूबी है ना डूबेगी कभी
जीव आते हैं हमेशा पार उतरने के लिए
बुझ रहा है दीप क्यों जब आ रहे हैं प्रेम से
मौत से मिलने परिंदे प्राण त्यजने के लिए
देह का होगा विलय या जड़ मिटा दी जाएगी
मौत आती है यहां पर रोज मरने के लिए
*मूल रचना शून्य पालनपुरी साहब की है*
*अनुवादक – *कुमार अहमदाबादी*
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