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गुरुवार, सितंबर 15

पीयूषी नजर

किसी की पीयूषी नजर है व मैं हूं

खुमारी भरा ये जिगर है व मैं हूं


निराशा मिली है हृदय को हमेशा

जीवित उर्मियों की कबर है व मैं हूं


नहीं नाखुदा को खुदा पर भरोसा

यहां नाव, गहरा भंवर है व मैं हूं


सफर चल रहा है पुरातन समय से

समय के सरीखा सफर है व मैं हूं


गये जो, गया साथ सर्वस्व उन के

यहां शून्य वीरान घर है व मैं हूं

*शायर – शून्य पालनपुरी*

*अनुवादक – कुमार अहमदाबादी*


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