किसी की पीयूषी नजर है व मैं हूं
खुमारी भरा ये जिगर है व मैं हूं
निराशा मिली है हृदय को हमेशा
जीवित उर्मियों की कबर है व मैं हूं
नहीं नाखुदा को खुदा पर भरोसा
यहां नाव, गहरा भंवर है व मैं हूं
सफर चल रहा है पुरातन समय से
समय के सरीखा सफर है व मैं हूं
गये जो, गया साथ सर्वस्व उन के
यहां शून्य वीरान घर है व मैं हूं
*शायर – शून्य पालनपुरी*
*अनुवादक – कुमार अहमदाबादी*
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें