मन ही मन मुस्कुरा रही है कब से
आंखें भी पट पटा रही है कब से
मौसम का है नशा या है यौवन का
मछली सी छटपटा रही है कब से
कुमार अहमदाबादी
कुछ तुम कुछ हम मौसम महकाएं
मादक स्वर में मीठे नगमे गाएं
दोनों मिलकर कंगन को खनकाएं
मधुरस पीकर मधुवन में खो जाएं
कुमार अहमदाबादी


कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें