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गुरुवार, सितंबर 11

दो रुबाईयां


मन ही मन मुस्कुरा रही है कब से 
आंखें भी पट पटा रही है कब से
मौसम का है नशा या है यौवन का
मछली सी छटपटा रही है कब से
कुमार अहमदाबादी 



कुछ तुम कुछ हम मौसम महकाएं
मादक स्वर में मीठे नगमे गाएं
दोनों मिलकर कंगन को खनकाएं
मधुरस पीकर मधुवन में खो जाएं 
कुमार अहमदाबादी 

 

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बेमौसम बरसात (रुबाई)

जब जब होती है बेमौसम बरसात  शोले बन जाते हैं मीठे हालात  कहती है बरसात आओ तुम भीगो हौले हौले फिर भीगेंगे जज़बात  कुमार अहमदाबादी