छंद और ताल का संबंध
अनुदित लेख
अनुवादक - महेश सोनी
गज़ल के छंद हों या अन्य कोई मात्रा मेळ छंद एवं दूसरे लयात्मक छंद ताल का अनुसरण करते हैं।
ताल का संबंध समय के साथ है। तय समयांतर पर पुनरावर्तित श्रवण गम्य घटना ताल की मूल विभावना है। आम आदमी की भाषा में कहें तो एसी घटना ताल की जन्मदात्री है; जननी है। इंसान के दिल की धड़कन तालबद्ध होती है। शरीर के भीतर बाहर दोनों सृष्टि में सबकुछ तालबद्ध है। वर्ष, ऋतु, महीने, प्रहर, घडी सबकुछ ताल के ही अंश है।
आप सब जानते होंगे। बच्चे में बोलना सीखने से समझने से पहले व रंगों को पहचानना सीखने से पहले ताल के प्रति आकर्षण होता है। दो महीने का बच्चा झूले में लटकाए हुए खिलौनो को लयबद्ध झूलते या हिलते डुलते देखकर आनंदित होता है। कभी कभी उस तालबद्व आवाज के साथ अपने हाथ पैर लयबद्ध रुप से चलाता है। उस लयबद्ध आवाज को सुनकर कभी किलकारियां भी करता है। आठ से दस बारह महीने का बच्चा उस ताल पर हाथ पैर भी चलाता है; तालियां भी बजाता है; कभी कभी विभिन्न तरह की मुख मुद्राएं भी बनाता है। मानवमात्र में ताल के प्रति कम या ज्यादा रुचि जन्म से ही होती है।
कुछ प्राणियों एवं पक्षियों के वाणी वर्तन एवं नर्तन देखकर कहा जा सकता है। परमात्मा ने उन्हें भी ताल की समझ दी है। कोयल की कूक और मोर का नृत्य इस सत्य का स्पष्ट प्रमाण है।
मानव संस्कृति के साथ विकास साथ ही इंसान में ताल की समझ विकसित होती गयी। इस विकास धारा में क्रमशः शब्द, स्वर, एवं भाव भंगिमाओं की समझ की अलग अलग धारा भी विकसित होती रही। सोने में सुहागा ये हुआ की विभिन्न कलाओं में आदान प्रदान होने से एक कला का दूसरी कला से सामंजस्य बैठने से कलाएं और समृद्ध, प्रभावशाली होती गयी।
संगीत मूलतः स्वरों का विषय है। स्वरों के आरोह अवरोह से संगीत का सृजन होता है। ताल संगीत के स्वरों को समय की डोर से बांधता है। संगीत को एक निश्चित गति प्रदान करने का रास्ता बताता है।