Translate

रविवार, अक्टूबर 26

छंद और ताल का संबंध


छंद और ताल का संबंध 

अनुदित लेख

अनुवादक - महेश सोनी 

गज़ल के छंद हों या अन्य कोई मात्रा मेळ छंद एवं दूसरे लयात्मक छंद ताल का अनुसरण करते हैं।

ताल का संबंध समय के साथ है। तय समयांतर पर पुनरावर्तित श्रवण गम्य घटना ताल की मूल विभावना है। आम आदमी की भाषा में कहें तो एसी घटना ताल की जन्मदात्री है; जननी है। इंसान के दिल की धड़कन तालबद्ध होती है।  शरीर के भीतर बाहर दोनों सृष्टि में सबकुछ तालबद्ध है। वर्ष, ऋतु, महीने, प्रहर, घडी सबकुछ ताल के ही अंश है। 

आप सब जानते होंगे। बच्चे में बोलना सीखने से समझने से पहले व रंगों को पहचानना सीखने से पहले ताल के प्रति आकर्षण होता है। दो महीने का बच्चा झूले में लटकाए हुए खिलौनो को लयबद्ध झूलते या हिलते डुलते देखकर आनंदित होता है। कभी कभी उस तालबद्व आवाज के साथ अपने हाथ पैर लयबद्ध रुप से चलाता है। उस लयबद्ध आवाज को सुनकर कभी किलकारियां भी करता है। आठ से दस बारह महीने का बच्चा उस ताल पर हाथ पैर भी चलाता है; तालियां भी बजाता है; कभी कभी विभिन्न तरह की मुख मुद्राएं भी बनाता है। मानवमात्र में ताल के प्रति कम या ज्यादा रुचि जन्म से ही होती है। 

कुछ प्राणियों एवं पक्षियों के वाणी वर्तन एवं नर्तन देखकर कहा जा सकता है। परमात्मा ने उन्हें भी ताल की समझ दी है। कोयल की कूक और मोर का नृत्य इस सत्य का स्पष्ट प्रमाण है। 

मानव संस्कृति के साथ विकास साथ ही इंसान में ताल की समझ विकसित होती गयी। इस विकास धारा में क्रमशः शब्द, स्वर, एवं भाव भंगिमाओं की समझ की अलग अलग धारा भी विकसित होती रही। सोने में सुहागा ये हुआ की विभिन्न कलाओं में आदान प्रदान होने से एक कला का दूसरी कला से सामंजस्य बैठने से कलाएं और समृद्ध, प्रभावशाली होती गयी। 

संगीत मूलतः स्वरों का विषय है। स्वरों के आरोह अवरोह से संगीत का सृजन होता है। ताल संगीत के स्वरों को समय की डोर से बांधता है। संगीत को एक निश्चित गति प्रदान करने का रास्ता बताता है। 

 


शुक्रवार, अक्टूबर 24

भाषा किस किस की?


भारत में भाषा के कारण अक्सर विवाद हो जाते हैं। गुजरात के पाडोशी राज्य महाराष्ट्र में बरसों हुए अक्सर ये मुद्दा को सुलग जाता है। 

भाषा को प्रायः प्रांत से जोडकर देखा जाता है। एक दो किस्से में धर्म के साथ भी जोड दिया गया है।


एसा इसलिए होता है। लोग भाषा को दृढता से बल्कि जडतापूर्वक पकड़ लेते हैं। ये मान लेते हैं। हमारी भाषा ही सब से अच्छी व सब से बढ़िया है। इतना ही नहीं दूसरी भाषा को अपनी भाषा से कम आंकने लगते हैं। अपनी भाषा को श्रेष्ठ समझना बिल्कुल ग़लत नहीं है। दूसरों की भाषा को कम आंकना या अच्छी ना समझना गलत है। 


प्रत्येक भाषा का अपना गौरव अपना इतिहास होता है। प्रत्येक भाषा अपने आप में एक पूरी संस्कृति को सहेजकर रखती है। इंसान जब एक नयी भाषा सीखता है तो वो सिर्फ भाषा ही नहीं सीखता। नयी भाषा उस के सामने एक नयी संस्कृति के द्वार खोलती है। 


एक अनुवादक इस सत्य को की एक भाषा ‘नयी संस्कृति के द्वार खोलती है’ बहुत अच्छी तरह समझता है। जो इंसान एक से ज्यादा भाषाएं जानता हो वो भी बहुत अच्छी तरह जानता है की भाषा कैसे उसे एक नयी संस्कृति से परिचित करवाती है। भाषा सांस्कृतिक विविधताओं से भी परिचित करवाती है। 


यहां मै दो व्यक्तियों का उल्लेख करुंगा। जिन्होंने विदेशी होते हुए भी भारतीय भाषाओं से भरपूर प्रेम किया। पहले व्यक्ति हैं टैस्सी टोरी, जो राजस्थानी भाषा सीखने के लिये यूरोप से राजस्थान आये थे। दूसरे व्यक्ति हैं फादर वालेस। जो लगभग पोर्तुगल से अहमदाबाद आये थे। फादर वालेस ने लगभग ५० वर्ष अहमदाबाद को कर्मभूमि बनाए रखा। आज भी गुजराती भाषा के बडे और विख्यात लेखकों में फादर वालेस को माना जाता है। टैस्सी टोरी राजस्थानी भाषा और साहित्य के अध्ययन के लिए जाने जाते हैं। यह नाम "टैस्सीटोरी प्रज्ञा-सम्मान" जैसे पुरस्कारों से भी जुड़ा है, जो प्रवासी राजस्थानी प्रतिभाओं को उनकी संस्कृति और भाषा में योगदान के लिए दिए जाते हैं।  


भाषा उस की होती है। जो उस का उपयोग करता है। उस से प्रेम करता है। लेकिन एक सत्य कभी भूलना नहीं चाहिए। ये कभी नहीं मानना चाहिये की मेरी भाषा ही सब से अच्छी है। जैसे प्रत्येक भोजन का अपना अलग अलग स्वाद होता है; वैसे ही प्रत्येक भाषा की अपनी मिठास, अपना इतिहास व अपना गौरव होता है। प्रत्येक भाषा अपने आप में एक संस्कृति समेटे होती है। 

कुमार अहमदाबादी

शुक्रवार, अक्टूबर 10

मुंह मत फुलाया कर (ग़ज़ल)


न मानुं बात तो मुंह मत फुलाया कर 

कभी तो बात मेरी मान जाया कर


कसम से मैं सदा तैयार रहती हूं

कभी साजन मुझे तू भी मनाया कर 


नयी साड़ी दिला दूंगा मगर एसे

जरा सी बात में मुंह मत फुलाया कर 


सनम दरखास्त है ये बेतहाशा तू

सताया कर मगर कह कर सताया कर 


ये अंतिम मांग है सप्ताह में इक बार 

मसालेदार खाना भी बनाया कर


शिकायत कर रही है क्यों ‘कुमार’ को अब

कहा था सब्र को मत आजमाया कर


कुमार अहमदाबादी 



बेमौसम बरसात (रुबाई)

जब जब होती है बेमौसम बरसात  शोले बन जाते हैं मीठे हालात  कहती है बरसात आओ तुम भीगो हौले हौले फिर भीगेंगे जज़बात  कुमार अहमदाबादी