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शुक्रवार, मार्च 8

कुंदन कला - कलाइयों की अदभुत कला

कुंदन कला - कलाइयों की अदभुत कला
लेखक - कुमार अहमदाबादी

कुंदन कला कलाईयों की एक एसी कला है। जो अदभुत व अद्वितीय है।  हालांकि आज तक कभी भी इस का कलाई की एक कला के रुप में प्रचार प्रसार नहीं हुआ। कलाई की अन्य जो कलाएं हैं। कलाई की कला के रुप में उन के प्रचार प्रसार और इस के प्रचार प्रसार का तुलनात्मक अध्ययन करें। तब मालूम होगा। कुंदन कला का कभी भी कलाई की एक अद्वितीय कला के रुप में प्रचार हुआ ही नहीं है। 

आप जरा याद कीजिए फिर गौर कीजिये। 
आप में से कई व्यक्ति क्रिकेट के शौकीन होंगे। आपने क्रिकेट की कमेन्ट्री के दौरान अनेक बार ये शब्द कलाईयों का बेहतरीन उपयोग सुने होंगे। ये शब्द आपने बल्लेबाज के शॉट की प्रशंसा के लिये एवं बोलर खास कर के लेग ब्रेक बोलर या चाइनामैन बोलर ( जैसे की अब्दुल कादिर, शेन वार्न, अनिल कुंबले, कुलदीप यादव) की गेंदबाजी के दौरान सुने होंगे। वास्तव में वो सच भी है। बल्लेबाज या गेंदबाज का बेहतरीन तरीके से व लाजवाब तकनीक से कलाईयों के घुमाव का और लोच का उपयोग कर के अपने कार्य को सुन्दर आकर्षक व फलदायक बनाना ही उस की विशेषता होती है, खूबी होती है, कला होती है। यहां कमेन्ट्री के दौरान सुने जाने वाले एक और शब्द का सिर्फ उल्लेख कर के अब वापस मूल मुद्दे पर लौटते हैं। वो शब्द है हैंड आई को ऑर्डिनेशन । जिस का अर्थ होता है आंखों और हाथों का तालमेल  या आंखों और हाथों का समन्वय।

अब वापस कुंदन कला के मुद्दे पर लौटते हैं। कुंदन कला के जेवर जब सृजन(बनने) की प्रक्रिया में होते हैं। तब भी बार बार कलाइयों का उपयोग होता है। जडतर का जो कलाकार जितनी कुशलता से अपनी कलाइयों का उपयोग करता है। उस द्वारा निर्मित जेवर उतना ही खूबसूरत व आकर्षक बनता है। 

कुंदन कार्य के दौरान प्रत्येक चरण में कलाइयों का उपयोग होता है। जेवर में सुरमा, लाख, पेवडी आदि भरने से लेकर जेवर को हूंडी से उतारने तक कलाइयों का उपयोग होता है। आप स्वयं कुंदन के जेवर के सृजन के दौरान के पलों को याद कर लिजिए। कुंदन बनाते समय, कुंदन लगाते समय, नीट करते समय, तचाई करते समय आप कलाइयों का उपयोग करते हैं या नहीं? जडतर के कलाकारों को एक विशेष पल की याद दिलाता हूं। आप जब ताच लेते हैं। तब जहां ताच पूरी होती है। उस जगह पहुंचने के बाद ताच का वो छिलका जो पकाई से उतरा हुआ। लेकिन सलाई से (और थोडा सा जेवर से भी) चिपका हुआ होता है। उसे जेवर हटाने के लिये (आज की भाषा में कहें तो कनेक्सन काटने के लिये) कलाई को जो हल्का सा झटका देते हैं। झटका देकर उस ताच जेवर से दूर करते हैं। वो क्या होता है? वो जो झटका देकर,  कलाई को घुमाव देकर ताच को जेवर से अलग करने की प्रक्रिया में कलाई की लोच का उपयोग होता है। वो क्या होता है? वही कुंदन की कला में कलाईयों का अदभुत उपयोग है। 
वो जडिया जडतर का उत्तम, श्रेष्ठ कलाकार बनता है। जडाई का मास्टर बनता है। जो जाने अंजाने कलाईयों का कुशलतापूर्वक उपयोग करना सीख जाता है।
कुमार अहमदाबादी

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