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सोमवार, अप्रैल 1

गणगौर

 अहमदाबाद और आसपास के शहरों में राजस्थान के विभिन्न नगरों और गांवों से रोजी रोटी के लिये आये लोग बसे हैं। वे यहां अपने व्रत और त्यौहार मनाते हैं। जिन में राजस्थान की सांस्कृतिक विविधता होती है। अगले कुछ महीनों में चैत्रीय नवरात्रि के साथ साथ होली, थापना, गणगौर, वगैरह त्यौहार हर्षॉल्लास से मनाए जाएंगे। वासणा, निर्णय नगर, साबरमती, गोता, शाहीबाग, भावसार हॉस्टल आदि विस्तारों में राजस्थानी लोगों ने धूलेटी से ही गणगौर की तैयारियां आरंभ कर दी है। 


चैत्रीय नवरात्रि के तीसरे दिन गणगौर उत्सव मनाया जाता है। उस के लिये राजस्थानी युवतियां व महिलाएं विशेष पूजा अर्चना आरंभ कर देती है। होलिका दहन की राख और मिट्टी में से सोलह दिन की सोलह पिंडियां बनाकर छबड़ी में रखकर उस की पूजा करती है। सातवें दिन शीतला सातम मनाती हैं। उसी दिन मकर दास जी यानि शिव व गौरी अर्थात मां पार्वती सहित कानीराम (इसर दास जी के भाई) रोवा बाई(इसर दास की बहन) और मालण यूं कुल मिलाकर मिट्टी की पांच मूर्तियां बनाकर गणगौर तक रोज सुबह *गौर हे गणगौर माता खोल किवाडी* भजन गाकर पूजा की जाती है। सोमवार को इन प्रतिमाओं को लेने भीड उमड़ पड़ती है।

अहमदाबाद और आसपास के शहरों में राजस्थान के विभिन्न नगरों और गांवों से रोजी रोटी के लिये आये हुए लोग बसे हैं। वे यहां अपने व्रत और त्यौहार मनाते हैं। जिन में राजस्थान की सांस्कृतिक विविधता होती है। अगले कुछ महीनों में चैत्रीय नवरात्रि के साथ साथ होली, थापना, गणगौर, वगैरह त्यौहार हर्षॉल्लास से मनाए जाएंगे। वासणा, निर्णय नगर, साबरमती, गोता, शाहीबाग, वाडज, भावसार हॉस्टल आदि विस्तारों में राजस्थानी लोगों ने धूलेटी से ही गणगौर की तैयारियां आरंभ कर दी है। 

चैत्रीय नवरात्रि के तीसरे दिन गणगौर उत्सव मनाया जाता है। उस के लिये राजस्थानी युवतियां व महिलाएं विशेष पूजा अर्चना आरंभ कर देती है। होलिका दहन की राख और मिट्टी में से सोलह दिन की सोलह पिंडियां बनाकर छबड़ी में रखकर उस की पूजा करती है। सातवें दिन शीतला सातम मनाती हैं। उसी दिन मकर दास जी यानि शिव व गौरी अर्थात मां पार्वती सहित कानीराम (इसर दास जी के भाई) रोवा बाई(इसर दास की बहन) और मालण यूं कुल मिलाकर मिट्टी की पांच मूर्तियां बनाकर गणगौर तक रोज सुबह  गौर हे गणगौर माता खोल किवाडी  भजन गाकर पूजा की जाती है। सोमवार को इन प्रतिमाओं को लेने भीड उमड़ पड़ेंगी।

शाहीबाग के पवित्रा बहन ढंढारिया ने उत्सव की विशेषता के बारे में बताते हुए कहा ‘दीवार पर कुमकुम, मेहंदी, और काजल के टीके लगाकर रोज पुजा की जाती है। इस त्यौहार को पीहर जाकर मनाने की परंपरा भी है। विशेष रुप से शादी के बाद पहले गणगौर उत्सव का महत्व है। युवतियां सोलह दिन पीहर में रहकर ये उत्सव मनाती है। इस दौरान फूलपत्ती का कार्यक्रम आयोजित किया जाता है। नन्हीं बालिकाओं को शिव पार्वती बनाकर उन का आशिर्वाद लिया जाता है। महिलाएं आटा गूंथ कर उस से विविधाकार के व्यंजन बनाती है। उन व्यंजनों का भोग लगाया जाता है। नवरात्रि के तीसरे गणगौर के दिन महिलाएं व्रत रखती है। 


अब कुछ जानकारी जो लेख में नहीं है। लेकिन मैंने अपने बीकानेर के बुजुर्गों से सुनी है। वो लिखता हूं। जब राजा शाही का युग था। तब नगर के हर इलाके से लोग गवर ईसर की शोभायात्रा निकालते थे। प्रत्येक शोभायात्रा राजा जी की गढ़ के सामने जाती थी। वहां महाराजा अपने हाथों से खोळा भरते थे एवं अन्य विधियां करते थे। स्वतंत्रता के बाद राज्य व्यवस्था बदलने से कुछ परिवर्तन हुए हैं। 

कुछ बातें बीकानेर से आकर अहमदाबाद में बसे स्वर्णकार समाज द्वारा मनाये जाने वाले उत्सव के बारे में,

अहमदाबाद में गणगौर मेले का आयोजन एक समिति करती है। ये आयोजन लगभग पिछले ढाई तीन दशकों से किया जा रहा है। ये आयोजन समाज के भवन पर किया जाता है। मेले वाले दिन शोभा यात्रा निकलती है। पहले के कुछ वर्ष शोभा यात्रा समाज भवन से प्रगति नगर कम्युनिटी हॉल जाती थी। समाज के कुछ लोग रास्ते में जुड़ते हैं। कुछ लोग सीधे कम्युनिटी हॉल पहुंचते हैं। शोभा यात्रा की विशेषता ऊंट गाडे होते हैं। जो वृद्ध व्यक्ति पूरी यात्रा में पैदल चल नही सकते। वे ऊंट गाड़े में बैठकर शोभा यात्रा के साथ जुड़े रहते हैं। 

गवर इसर को समाज की महिलाएं माथे पर रखकर भवन से कम्युनिटी हॉल तक ले जाती है। महिलाएं क्रमशः यानि एक के बाद एक माथे पर उखणती है। माथे पर रखने की कार्य को राजस्थानी भाषा में माथे पर उखणना कहते हैं। गवर इसर को उखणने के लिये महिलाओं में आपस में मीठी प्रतिस्पर्धा होती है। शोभा यात्रा के दौरान हर एक महिला जल्दी से जल्दी गवर इसर को माथे पर उखणना चाहती है। 

शोभा यात्रा कम्युनिटी हॉल पर पहुंचने के बाद वहां पूजा आरती खोळा भरना वगैरह विधियां होती है। महिलाएं घूमर खेलती हैं। पुरुष भी पारंपरिक राजस्थानी अंदाज में नृत्य करते हैं। 

कम्युनिटी हॉल में की सेवाभावी मित्र मंडलीयां विविध स्वयंभू(अपने आप अपनी मरजी से) सेवाएं देती हैं। कोई मित्र मंडली समाज के लोगों के लिये शरबत की व्यवस्था करती है तो कोई मित्र मंडली गोटों की व्यवस्था करती है। कोई फ्रूट क्रीम की व्यवस्था करती है। कोई गोटों की व्यवस्था करती है। वहां लगभग दो से तीन घंटे तक मेले की रौनक रहती है। लोग हर्षोल्लास से मिलते जुलते हैं। 

कुछ व्यक्ति अपने युवा बच्चों के लिये मेले में आये युवक युवतियों के वाणी वर्तन व व्यवहार पर नजर रखते हैं। उन की अनुभवी आंखें व सोच युवक युवतियों के वाणी व्यवहार से उन के व्यक्तित्व के बारे में अंदाजा लगाना शुरु कर देती है। 

बहरहाल,

दो तीन घंटों के बाद वापस गवर इसर को भवन पर लेकर आते हैं। कुछ समय वहां गीत गाये जाते हैं। उस के बाद गवर इसर को पूजा गृह में विराजमान किया जाता है; क्यों कि कुछ समय बाद धींगा गवर का आयोजन होता है। 

अनुवादक एवं लेखक - महेश सोनी 

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