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गुरुवार, मार्च 28

सच डरता नहीं (कहानी)

 सच डरता नहीं


कौशल और विद्या दोनों बारहवीं कक्षा में पढते थे। दोनों एक ही कक्षा में भी थे। दोनों ही ब्रिलियन्ट स्टूडेंट थे, इसी वजह से दोनों में दोस्ती भी थी; और एक स्वस्थ प्रतिस्पर्धा भी थी। परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करने के लिये दोनों खूब पढाई करते थे। पढाई में एक दूसरे की मदद भी करते थे।

लेकिन जैसा की अक्सर होता है। एक लडके व एक लडकी की दोस्ती को हमेशा शक की नजर से ही देखा जाता है। कौशल व विद्या के साथ भी एसा ही हुआ। जो विद्यार्थी व विद्यार्थीनी पढाई में दोनों का मुकाबला नहीं कर सकते थे। उन्हों ने दोनों के संबंधों के बारे में अफवाहें उडाना शुरु कर दिया। धीरे धीरे अफवाहें जोर पकडती गई। कौशल व विद्या को भी अफवाहों के बारे में पता चला तो दोनों हंसकर रह गये।

लेकिन एक दिन किसी ने अफवाह को एकदम निम्न स्तर तक पहुंचा दिया। उस दिन विद्या बहुत विचलित हो गई। इतनी विचलित हो गई कि आधी छुट्टी के दौरान आत्महत्या का इरादा कर के स्कूल से थोडी दूर से गुजर रहे रेल्वे ट्रेक की तरफ जाने लगी। विद्या की एक सहेली ने कक्षा में आकर वहां बैठे विद्यार्थियों को विद्या के इरादे के बारे में बताया। कौशल भी क्लास में था। कौशल तथा अन्य विद्यार्थी विद्या को वापस लाने के लिये उस की तरफ भागे।


वे सब विद्या के पास जाकर उसे समझाने लगे। मगर, विद्या ने किसी की नहीं सुनी और वो बस ट्रेक की तरफ चलती रही। दो पांच मिनट तक समझाने के बावजूद जब विद्या नहीं मानी तो आखिरकार कौशल ने उस का हाथ पकड लिया; और उसे वापस स्कूल की तरफ खींचता हुआ सा लेकर जाने लगा। विद्या ने विरोध किया पर कौशल नहीं माना। तब तक वहां अच्छी खासी भीड भी जमा हो गई।

भीड को जमा होते देखकर विद्या की एक सहेली ने कौशल से कहा 'कौशल, हाथ छोड दो, भीड इकट्ठा हो रही है। तमाशा हो रहा है।' ये सुनकर कौशल ने हाथ छोड दिया। हाथ छुटते ही विद्या फिर रेल्वे ट्रेक की तरफ भागी। कौशल ने दौडकर उसे वापस पकड लिया और स्कूल की तरफ ले जाने लगा। इस बार कोई कुछ नहीं बोला। उस के बाद कौशल वहां से स्कूल तक विद्या का हाथ पकडे रहा। वैसे हाथ पकडे हुए ही वो विद्या को आचार्य की ऑफिस में ले गया। आचार्य ने नजर उठाकर दोनों को देखा। चेहरे पर प्रश्नार्थ के भाव उभरे। उन भावों को देखकर कौशल ने आचार्य को बताया कि 'ये आत्महत्या के लिये ट्रेक की तरफ जा रही थी। इसे वापस लेकर आया हूँ'

आचार्य ने विद्या का हाथ पकडा और अपने पास एक कुर्सी पर बिठाया। फिर कौशल की तरफ मुडकर दो पल उसे गहरी नजरों से देखने के बाद बोलीं 'वेलडन कौशल, तुम्हारी निर्भीकता और नीडरता ने मुजे सत्य का प्रमाण दे दिया है। अब आगे मैं सबकुछ संभाल लूंगी। तुम्हें डरने की कोई जरुरत नहीं' 

कुमार अहमदाबादी

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