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रविवार, मई 19

नैन धर्नुविधा


*नैन धर्नुविधा*

 मुग्धे धानुष्कता केयमपूर्वा त्वयि दृश्यते

यया विध्यसि चेतांसि गुणैरेव न सायकै: ।।१३।।

हे मुग्ध सुंदरी, तुमने धनुर्विद्या में अदभुत अपूर्व महारथ बेमिसाल कुशलता प्राप्त की है।‌ असाधारण सिद्धि हासिल की है। एसी अप्रतिम कुशलता कैसे प्राप्त की है। तू केवल गुण से पुरुष के हृदय को बींध देती है। 

ए भोली युवती तूने एसी अदभुत बाण विधा कैसे सीखी? केवल नैन कमान की मामूली सी हरकत से हृदय को बींध देती है; छलनी कर देती है। 


इसी संदर्भ में एक कवि ने लिखा है कि,

था कुछ न कुछ कि फांस सी इक दिल में चुभ गयी।

माना कि उस के हाथ में तीरो सनां न था।।


जब की मिर्ज़ा ग़ालिब ने लिखा है,

इस सादगी पे कौन न मर जाए ए खुदा 

लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं


एक और बेहतरीन शायर जौक ने लिखा है,

तुफुगा तीर तो जाहिर न था कुछ पास कातिलों के 

इलाही फिर जो दिल पर ताक के मारा तो क्या मारा 


सार ये है कि पुरुष को वश में करने के लिये स्त्रियों को किसी तरह के भौतिक मानव निर्मित अस्त्रों शस्त्रों की जरुरत नहीं पड़ती। वे अपनी वाणी, व्यवहार, नखरे एवं अदाओं से पुरुष को अपने वश में कर सकती है।

श्री भर्तहरी विरचित श्रंगार शतक के तेरहवें शतक का भावार्थ 

*कुमार अहमदाबादी*



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  जीवन ने पूरी की है हर हसरत मुझ को दी है सब से अच्छी दौलत किस्मत की मेहरबानी से मेरे आंसू भी मुझ से करते हैं नफरत कुमार अहमदाबादी