।।12।।
साहित्यसंगीतकलाविहीन:
साक्षात्पशु: पुच्छविषाणहीनः।
तृणं न खादन्नपि जीवमानः
तद्भागधेयं परमं पशुमान्।।
भावार्थ
जो मनुष्य साहित्य, संगीत और कला विहीन है; यानि जो साहित्य और संगीत शास्त्र का जरा भी ज्ञान नहीं रखता; जरा भी रुचि नहीं रखता या अनुराग नहीं रखता। वह बिना पूंछ और सींग का पशु है। वह घास नहीं खाता और जीता है। ये इतर पशुओं का सौभाग्य है।
नीती शतक के बारहवें श्लोक का भावार्थ
पोस्ट लेखक - कुमार अहमदाबादी
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