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शुक्रवार, अगस्त 16

समाज की वाडी झूम रही है


मैं समाज की वाडी हूं। आज मेरी खुशी का ठिकाना नहीं है या फिर यूं कहें कि आज मैं खुशी से फूली नहीं समा रही हूं; और खुशी से झूम रही हूं।

बताती हूं कारण बताती हूं। जरा धीरज रखिए; कारण बताती हूं। 

आज मेरे बच्चे मेरे फूलों जैसे बच्चे मेरे आंगन में खेल कूद रहे हैं। 

आज मेरे आंगन में भारत का 78 वां स्वतंत्रता दिवस मनाया गया। हर साल की तरह इस वर्ष भी श्री बीकानेर ब्राह्मण स्वर्णकार समाज, अहमदाबाद की कार्यकारिणी द्वारा पारंपरिक 

 तरीके से यानि धूमधाम से मेरे आंगन में स्वतंत्रता दिवस मनाया जा रहा है। 

हर वर्ष की तरह इस वर्ष सुबह ध्वजारोहण करने के बाद बच्चों के लिये खेल कूद की प्रतियोगिताएं शुरु हुयी। खेल कूद प्रतियोगिताएं पूरी होने के बाद शिक्षा के प्रति बच्चों की रुचि और गहरी करने के लिये उन्हें शाम को पुरस्कृत किया जाएगा। 

मैं लगभग दो तीन बजे के आसपास ये लिख रही हूं। कौन सी एसी मां होगी। जो अपने बच्चों को अपने घर के आंगन में खेलते कूदते देखकर खुश नहीं होगी। उसी खुशी को आप सब के साथ बांट रही हूं।

मैं अपनी कलम को इस आशा व विश्वास के साथ विराम देती हूं। इन्हीं बच्चों में से कल कोई बडा व्यापारी बनेगा तो कोई ऊंचे दरज्जे का कारीगर बनेगा। कोई वैज्ञानिक बनेगा तो कोई उद्योगपति बनेगा। कोई बड़े शो-रुम का मालिक बनेगा। कोई मेरी कल्पना के बाहर के क्षेत्र में नाम और दाम कमाएगा। 

मेरी भावनाएं तो अनंत है। सब को तो कलम लिख भी नहीं सकती। लेकिन कलम को तो अब विराम देना पड़ेगा।

तो, इस आशा के साथ कलम को विराम देती हूं कि मेरे सारे बच्चे सफलता के नये शिखर छुएंगे व अपनी इस वाडी को एक मां की गोद को कभी नहीं भूलेंगे। जिस गोद में वे खेले हैं।

कुमार अहमदाबादी

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