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रविवार, अगस्त 18

दिल जो पखेरु होता (सिने मैजिक) पार्ट - 01

*दिल जो पखेरु होता पिंजरे में मैं रख लेता*

*सिने मैजिक*

भाग -०१

*ता.०३-१२-२०१० के दिन गुजरात समाचार में लेखक अजित पोपट द्वारा लिखित* *सिने मैजिक कॉलम का अंशानुवाद*

व्यक्ति जिसे भरपूर प्यार करता हो। उस की अन्यत्र कहीं शादी हो जाए। वो खुद डाक्टर बन जाए। उस के बाद जीवन में एसा मोड आए की वो बीमारी से घिरे अपने पति को लेकर चिकित्सा के लिये आ जाए। उस समय डॉक्टर गहन दुविधा में फंस जाता है। अगर वो रोगी को बचा ना सके तो भूतपूर्व प्रेमिका को ये लग सकता है कि बेवफाई का बदला लेने के लिये जान बूझकर मेरे सुहाग को नहीं बचाया। दूसरी तरफ बचाने के लिये असंभव को संभव कर के दिखाने का कार्य करने का बीडा उठाना होगा। 

इस पृष्ठभूमि में डाक्टर के मन की वेदना को गीत में व्यक्त करता है। वो यादगार गीत है *याद न जाए बीते दिनों की.... जाके न आए जो दिन, दिल क्युं बुलाए, उन्हें दिल क्युं बुलाए*  गीत के अंतरे में शब्द हैं  *दिल जो पखेरु होता पिंजरे में मैं रख लेता, पालता उस को जतन से मोती के दाने देता, सीने से रहता लगाए...*  संगीत के अभ्यासी इस गीत को राग किरवाणी का श्रेष्ठ उदाहरण मानते हैं।

  उपरोक्त गीत १९६३ में परदे पर आयी निर्देशक श्रीधर की मूवी दिल एक मंदिर 

का है। ये गीत राग किरवाणी में बनी उत्तम रचना है। सुरों के सम्राट मोहम्मद रफी द्वारा गाए गए एवं राजेन्द्र कुमार पर फिल्माए गए। मनोवेदना से भरपूर इस गीत को शंकर जयकिशन ने सुरों से सजाया था।

मैहर घराने के उस्ताद स्व. अली अकबर खां साहब इस राग को कर्णाटकी संगीत से लाये थे। व्यथित दिल की वेदना को व्यक्त करने वाला इसी एक और इसी राग पर आधारित गीत अनामिका मूवी में है। अनामिका के गीत *मेरी भीगी भीगी सी पलकों पे रह गये, जैसे मेरे सपने बिखर के..* को आर.डी. बर्मन ने स्वरबद्ध किया था। इस गीत के सरल शब्दों में वर्णित वेदना कलेजे को चीर देती है। 

राग किरवाणी पर आधारित कुछ अन्य गीत हैं.. १९५९ में प्रदर्शित देव आनंद और माला सिन्हा की मूवी लव मैरिज का चंचल गीत *कहे झूम झूम रात ये सुहानी* पंजाबी लयकारी के बादशाह ओ.पी.नैयर इस रागाधारित चंचलता और शोखी से भरपूर गीत दिये हैं। 

१९६२ में प्रदर्शित राज खोसला की एक मुसाफिर एक हसीना मूवी का *मैं प्यार का  राही हूं, तेरी जुल्फ के साए में सरीखे यादगार गीतों का सृजन किया है। एक अन्य *आंखों से जो उतरी है दिल में, तसवीर है इक अनजाने की, खुद ढूंढ रही है शम्मा जिसे क्या बात है उस परवाने की...* गीत भी कमाल का है। एसा हो नहीं सकता की ओ.पी.नैयर के संगीत की बात हो और घुडताल (घुडताल यानि घोडे के चाल वाली या टापों वाली ताल) का उल्लेख न हो। नसीर हुसैन की मूवी फिर वही दिल लाया हूं का शिर्षक गीत इस राग किरवाणी पर आधारित था। ओ.पी.नैयर साहब ने १९६५-६६ में प्रदर्शित विश्वजीत और मुमताज के अभिनय से सजी मेरे सनम मूवी में (जहां तक मुझे मालूम है। हिन्दी या उर्दू गुलबंकी छंद ( {मात्रा व्यवस्था लगा लगा लगा} ) में लिखे गये इस पुकारता चला हूं मैं, गली गली बहार की, बस एक(बसेक उच्चारण द्वारा छंद निभाया गया है) गीत को मोहम्मद रफी साहब ने पूरी मस्ती से गाया है। छंद, धुन वगैरह जितने बेमिसाल है। उतने ही बेमिसाल तरीके से रफी साहब ने गाया है।

१९६१ में किशोर कुमार ने दूर का राही मूवी बनाई थी। 

*अंशानुवाद जारी है*


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