*काम कामिनी का दास है*
श्री भर्तहरी विरचित श्रंगार शतक के श्लोक का भावार्थ
पोस्ट लेखक - कुमार अहमदाबादी
नूनमाज्ञाकरस्तस्या: सुभ्रुवो मकरध्वज:।
यतस्तन्नेत्रसंचारसूचितेषु प्रवर्तते।। ११।।
कामदेव निश्चय ही सुंदर भौंहों वाली स्त्रियों की आज्ञा का चाकर है, दास है; क्यों कि जिन पर उन के कटाक्ष पड़ते हैं। उन्ही को वो जा दबाता है।
जिसे सुंदरियां बेचैन करती है। कामदेव उन्हीं को जाकर मारता है। अव्वल तो स्त्रियां स्वयं ही सक्षम होती है। अपने नैन कटाक्षो से बडे बडे शूरवीरों के छक्के छुड़ा सकती है। उपर से उन के कहने से कामदेव सक्रिय हो जाये। उस के बाद तो शिकार की रक्षा कोई नहीं कर सकता। एसे में करेला वो भी नीम चढ़ा कहावत सत्य साबित हो जाती है।
एसी परिस्थितियों में अपनी रक्षा कौन कर सकता है? वही जो उन की दृष्टि की सीमा रेखा से बाहर हो।
शायद इसीलिए मोक्ष के इच्छुक पुरुष मनुष्यों की बस्तियों को छोड़कर निर्जन वनों मे जाकर आत्मोद्धार का प्रयास करते हैं। क्यों कि निर्जन वन में कामिनी के न होने से उस के सेवक कामदेव के सफल होने की संभावनाएं न्यूनतम रह जाती है। शायद इसीलिए आत्मोद्धार की इच्छा रखनेवाले पुरुष कामिनी की पहुंच से दूर जाकर निवास करना ही श्रेयस्कर समझते हैं। उसी में अपना कल्याण मानते हैं।
कामिनी हुक्मी काम यह नैन सैन प्रगटात
तीन लोक जीत्यो मदन ताहि करत निज हात
सार
कामदेव कामिनीयों का सेवक है।
श्री भर्तहरी विरचित श्रंगार शतक के ग्यारहवें श्लोक का भावार्थ
*पोस्ट लेखक - कुमार अहमदाबादी*
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