सारा जग जानता है कहाँ मेरा घर है
तेरा दिल दिल नहीं है वो मेरी कबर है
ताज से तुलना की तेरे दिल की तो पाया
दोनों पाषाण है और दोनों कबर है
जिन्दगी में कभी चैन से सोया ना था
सोने के बाद चिंता न कोई फिकर है
मैं अकेला नहीं हूँ यहाँ लोग हैं साथ
भीड़ है पर ये मरघट है ना कि नगर है
हम जहाँ जाते हैं घर बसा लेते हैं दोस्त
ये कबर मेरे सपनों का सुन्दर नगर है
प्रेमिका, जिन्दगी दोनों को ना थी ना है
ना सही पर जमीं को हमारी कदर है
काम या क्रोध या द्वेष, ईर्ष्या से हूँ मुक्त
ध्यान में लीन हूँ मोक्ष पे अब नजर है
कुमार अहमदाबादी
साहित्य की अपनी एक अलग दुनिया होती है। जहां जीवन की खट्टी मीठी तीखी फीकी सारी भावनाओं को शब्दों में पिरोकर पेश किया जाता है। भावनाओं को सुंदर मनमोहक मन लुभावन शब्दों में पिरोकर पेश करने के लिये लेखक के पास कल्पना शक्ति होनी जरुरी है। दूसरी तरफ रचना पढ़कर उस का रसास्वादन करने के लिये पाठक के पास भी कल्पना शक्ति होनी जरुरी है। इसीलिये मैंने ब्लॉग का नाम कल्पना लोक रखा है।
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शनिवार, मई 26
मंगलवार, मई 22
साली (हज़ल)
फूल सी इक ईच्छा मैंने पाली है
माधुरी जूही कवि की साली है
फूलों के दर्शन का मौका देती है
चोली में जो फूलोंवाली जाली है
रूप नारी का धरा है कृष्ण ने
मोहिनी सी रूपसी पर काली है
छाँटता हूँ होली पर गम्मत गुलाल
उस की मर्यादा भी मैंने पाली है
खुशबू से भर देती है वातावरण
साली चंदन की महकती डाली है
आधी घरवाली मुझे ना चाहिए
आज से घरवाली दुगनी साली है
माधुरी जूही कवि की साली है
फूलों के दर्शन का मौका देती है
चोली में जो फूलोंवाली जाली है
रूप नारी का धरा है कृष्ण ने
मोहिनी सी रूपसी पर काली है
छाँटता हूँ होली पर गम्मत गुलाल
उस की मर्यादा भी मैंने पाली है
खुशबू से भर देती है वातावरण
साली चंदन की महकती डाली है
आधी घरवाली मुझे ना चाहिए
आज से घरवाली दुगनी साली है
गुरुवार, मई 3
पंछी
चाहत दिल की पूरी करता हूँ
पंछी हूँ जब चाहूँ उड़ता हूँ
छोटा सा लगता है आकाश
जब मैं बंजारो सा फिरता हूँ
रैनबसेरा पेड़ों पे है दोस्त
कुदरत से ही रिश्ता रखता हूँ
पंखों में है संतुलन जरूरी
उड़ानों से साबित करता हूँ
मानव का कर दिया सत्यानाश
यांत्रिक दुश्मन से मैं डरता हूँ
कुमार अहमदाबादी
पंछी हूँ जब चाहूँ उड़ता हूँ
छोटा सा लगता है आकाश
जब मैं बंजारो सा फिरता हूँ
रैनबसेरा पेड़ों पे है दोस्त
कुदरत से ही रिश्ता रखता हूँ
पंखों में है संतुलन जरूरी
उड़ानों से साबित करता हूँ
मानव का कर दिया सत्यानाश
यांत्रिक दुश्मन से मैं डरता हूँ
कुमार अहमदाबादी
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