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मंगलवार, मई 22

साली (हज़ल)

फूल सी इक ईच्छा मैंने पाली है
माधुरी जूही कवि की साली है

फूलों के दर्शन का मौका देती है
चोली में जो फूलोंवाली जाली है

रूप नारी का धरा है कृष्ण ने
मोहिनी सी रूपसी पर काली है

छाँटता हूँ होली पर गम्मत गुलाल
उस की मर्यादा भी मैंने पाली है

खुशबू से भर देती है वातावरण
साली चंदन की महकती डाली है

आधी घरवाली मुझे ना चाहिए
आज से घरवाली दुगनी साली है

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