फूल सी इक ईच्छा मैंने पाली है
माधुरी जूही कवि की साली है
फूलों के दर्शन का मौका देती है
चोली में जो फूलोंवाली जाली है
रूप नारी का धरा है कृष्ण ने
मोहिनी सी रूपसी पर काली है
छाँटता हूँ होली पर गम्मत गुलाल
उस की मर्यादा भी मैंने पाली है
खुशबू से भर देती है वातावरण
साली चंदन की महकती डाली है
आधी घरवाली मुझे ना चाहिए
आज से घरवाली दुगनी साली है
साहित्य की अपनी एक अलग दुनिया होती है। जहां जीवन की खट्टी मीठी तीखी फीकी सारी भावनाओं को शब्दों में पिरोकर पेश किया जाता है। भावनाओं को सुंदर मनमोहक मन लुभावन शब्दों में पिरोकर पेश करने के लिये लेखक के पास कल्पना शक्ति होनी जरुरी है। दूसरी तरफ रचना पढ़कर उस का रसास्वादन करने के लिये पाठक के पास भी कल्पना शक्ति होनी जरुरी है। इसीलिये मैंने ब्लॉग का नाम कल्पना लोक रखा है।
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मंगलवार, मई 22
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