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गुरुवार, मई 3

पंछी

चाहत दिल की पूरी करता हूँ
पंछी हूँ जब चाहूँ उड़ता हूँ

छोटा सा लगता है आकाश
जब मैं बंजारो सा फिरता हूँ

रैनबसेरा पेड़ों पे है दोस्त
कुदरत से ही रिश्ता रखता हूँ

पंखों में है संतुलन जरूरी
उड़ानों से साबित करता हूँ

मानव का कर दिया सत्यानाश
यांत्रिक दुश्मन से मैं डरता हूँ
कुमार अहमदाबादी

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