सारा जग जानता है कहाँ मेरा घर है
तेरा दिल दिल नहीं है वो मेरी कबर है
ताज से तुलना की तेरे दिल की तो पाया
दोनों पाषाण है और दोनों कबर है
जिन्दगी में कभी चैन से सोया ना था
सोने के बाद चिंता न कोई फिकर है
मैं अकेला नहीं हूँ यहाँ लोग हैं साथ
भीड़ है पर ये मरघट है ना कि नगर है
हम जहाँ जाते हैं घर बसा लेते हैं दोस्त
ये कबर मेरे सपनों का सुन्दर नगर है
प्रेमिका, जिन्दगी दोनों को ना थी ना है
ना सही पर जमीं को हमारी कदर है
काम या क्रोध या द्वेष, ईर्ष्या से हूँ मुक्त
ध्यान में लीन हूँ मोक्ष पे अब नजर है
कुमार अहमदाबादी
साहित्य की अपनी एक अलग दुनिया होती है। जहां जीवन की खट्टी मीठी तीखी फीकी सारी भावनाओं को शब्दों में पिरोकर पेश किया जाता है। भावनाओं को सुंदर मनमोहक मन लुभावन शब्दों में पिरोकर पेश करने के लिये लेखक के पास कल्पना शक्ति होनी जरुरी है। दूसरी तरफ रचना पढ़कर उस का रसास्वादन करने के लिये पाठक के पास भी कल्पना शक्ति होनी जरुरी है। इसीलिये मैंने ब्लॉग का नाम कल्पना लोक रखा है।
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