रास्ते के पत्थरों की जब हटाया
काफ़िला पदयात्रियों का मुस्कुराया
यात्रियों ने लक्ष्य को जब पा लिया तो
गीत सावन ने रसीला गुनगुनाया
पथरीले पथ पर चला था वो सदा पर
पांव उस का एक भी ना डगमगाया
देखकर उस को ये लगता ही नहीं की
जालिमों ने है बहुत उस को सताया
कल चिता उस की जली थी आज देखो
देह लेकर फिर नयी वो लौट आया
कुमार अहमदाबादी
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