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शनिवार, जून 18

अंधा विरोध

 

पिछले कुछ वर्षों से देखा जा रहा है। विपक्ष के अलावा कुछ कथित खास लोग जिस में राजनीति के अलावा मीडिया और सिनेमा क्षेत्र के व्यक्ति भी हैं। प्रधानमंत्री मोदी की हर योजना, कार्य, प्रस्ताव, कानून आदि का विरोध कर रहे हैं। ये समझा जा सकता है। ये तो समझ में आता है।  विपक्ष सत्ता पक्ष की योजनाओं और उन के अन्य मुद्दों का संसद में विरोध करता  है। इस में कोई नयी बात भी नहीं है की विरोध पक्ष सत्ता पक्ष का विरोध करे। लेकिन ये सोचने की बात है कि कुछ खास लोग एक खास तबका विरोध क्यों कर रहा है? 

विरोध करनेवालों में कुछ कलाकारों व पत्रकारों का होना विशेष चिंता की व सोचनेवाली बात है। 

उस से भी ज्यादा चिंताजनक बात ये है। ये  *अंधेविरोधी*   हर बार विरोध करनेके लिये जनता के एक वर्ग को सड़क पर क्यों उतार देते हैं?

विरोध पक्ष ने  जम्मू कश्मीर से धाराएं हटाना, विदेश के हिंदू व जैन आदि भारतीयों को शरण देने का मामला, सीएए एक्ट, तीन तलाक, कृषि सुधार बिल  इन सब का जिस तरह से सड़कों पर आम जनता द्वारा विरोध करवाया है; जिस तरह से सामान्य जनता को भड़काकर जनता से तोड़फोड़ व प्रदर्शन करवाई है। वो बहुत ही चिंता की बात है। 

सामान्य जनता को ये समझना होगा। किसी प्रधानमंत्री की एक योजना में कमी रह सकती है। लेकिन हर योजना हर कार्यवाही में गलती नहीं हो सकती। क्यों कि हर योजना व बिल पर संसद में पास होने से पहले मंत्री मंडल में आपस में भी अच्छी खासी चर्चा होती होगी! योजना के कानूनी मुद्दों पर विचार विमर्श होता होगा? 

माना विरोध पक्ष का काम ही विरोध द्वारा योजना या कानून के मसौदे में मौजूद कमियों को बताने का होता है। लेकिन ये अजीब विडंबना है। विरोध पक्ष ने हर बार विरोध करने के लिये सामान्य आदमी को बली का बकरा समझकर सड़कों पर उतारा है।

मुझे कभी मौका मिला तो मैं एक प्रश्न अवश्य विरोध पक्ष के नेता से पूछना चाहूंगा। 

क्या आप में ये हिम्मत नहीं है कि आप संसद में सत्ता पक्ष का सामना कर सको। विधेयक में कमियां बता सको?

क्या इसीलिये आप हर विरोध करने के लिये जनता को सड़कों पर उतार देते हैं?

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