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रविवार, फ़रवरी 9

कान्हा की छेड़छाड़ (रुबाई)


मनमोहक छेड़छाड़ की नटखट ने 
माखन की मटकी फोडी नटखट ने
रोका मैंने पर ना माना कान्हा 
चुनरी माखन से रंग दी नटखट ने 
कुमार अहमदाबादी

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चल जल्दी चल (रुबाई)

  चल रे मन चल जल्दी तू मधुशाला  जाकर भर दे प्रेम से खाली प्याला मत तड़पा राह देखने वाली को  करती है इंतजार प्यासी बाला  कुमार अहमदाबादी