चाँद को जब मुस्कुराना आ गया
फूल को भी खिलखिलाना आ गया
फूल को भी खिलखिलाना आ गया
चाँदनी को पुष्परस में घोलकर
पान करना लड़खड़ाना आ गया
गूँथकर माला में तारेँ, रूपसी
रात को दुल्हन बनाना आ गया
क्या जरूरत बोतलों की है भला
होश को जब गडबडाना आ गया
पान करना लड़खड़ाना आ गया
गूँथकर माला में तारेँ, रूपसी
रात को दुल्हन बनाना आ गया
क्या जरूरत बोतलों की है भला
होश को जब गडबडाना आ गया
आसमाँ की जगमगाहट देखकर
स्वप्न को भी जगमगाना आ गया
स्वप्न को भी जगमगाना आ गया
सोलवें में चाँद के सिंगार को
देख दरपन को लजाना आ गया
देख दरपन को लजाना आ गया
चाँदनी के एक पल के संग से
बादलों को चमचमाना आ गया
चाँदनी को छेड़ने की सोच से
पास मेरे खुद बहाना आ गया
रात बोली पूर्णिमा की ए 'कुमार'
चाँदनी का अब जमाना आ गया
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कुमार अहमदाबादी
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