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मंगलवार, अक्तूबर 23

प्रेम तृप्ति

तृप्ति के सागर में बहने दो
मादक तीर की चुभन सहने दो

रोको ना साजन तुम, अधखुली
आँखों को फरमाइश करने दो

यौवन कुंभो पर बेसब्री छाई
मर्दन से यौवन गढ़ ढहने दो

जुल्फों ने पी ली है रस मदिरा
पागल सी हँसती है हँसने दो

होठों को अरमाँ है गहनों का
होठों को होठों पर सजने दो

नस नस वीणा सी झंकृत कर दो
सांसो की बांसुरी बजने दो

मीठी मीठी प्यारी प्यारी सी
रस मिलन माधुरी चखने दो

उफ़, कितना अच्छा लगता है ये
धीरे धीरे कंपन सहने दो

साजन तृप्ति शिखर पर है अब
स्वर्णिम रस झरने को झरने दो
कुमार अहमदाबादी

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