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रविवार, अक्तूबर 7

भाग्यशाली [ग़ज़ल]

बहुत हूँ भाग्यशाली क्योंकि भाता हूँ सनम को मैं।

कुशल वो माली, पलकों पे बिठाता हूँ सनम को मैं॥

हाँ, मैं स्वीकार करता हूँ कि मैं; चोरी भी करता हूँ।
लबों पे मीठे लब रखकर चुराता, हूँ सनम को मैं॥

नहीं है चांदी मेरे पास, सोना भी नहीं है पर।
पकाके खाना हाथों से खिलाता हूँ सनम को मैं॥

तू शीतल चाँद से भी; सूर्य सी तेजस्वी आभा है।
प्रशंसा के हिंडोले पे, झुलाता हूँ सनम को मैं॥

घडा सिंगार रस का सजनी, पीता हर घडी पल और।
घडे को प्याली में भर भर, पिलाता हूँ सनम को मैं॥

ग़ज़ल है तेरी सौतन, प्रेरणा हो तुम ग़ज़ल की यार।
हो तुम दोनों जीवन साथी चिडाता हूँ सनम को मैं॥

हवा की चाल बदली बदली आती है नजर ज्यों ही।
गुलाबी शेरों के द्वारा मनाता हूँ सनम को मैं॥

दिये हैं भेंट में दो पुष्प: यूँ उपवन है महकाया।
सुनो जी बबलू की मम्मी, बुलाता हूँ सनम को मैं॥

विजयश्री पाक के विरुद्ध, जब जब प्राप्त होती है।
नगर में फटफटीये पे घुमाता हूँ सनम को मैं॥

जहाँ भी हैं व जैसे भी हैं इक दूजे को प्यारे हैं।
निभाती है वो प्रीतम को, निभाता हूँ सनम को मैं॥
कुमार अहमदाबादी

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